कोविड-19 के कारण सूबे में सैलानियों के प्रवेश पर रोक लगाने के करीब साढ़े तीन महीने बाद हिमाचल सरकार ने शनिवार से पर्यटकों समेत हर किसी के लिए प्रदेश की सीमाएं फिर से खोल दी हैं। अनलॉक 2.0 की प्रक्रिया के तहत लोगों की आवाजाही में छूट देने की प्रक्रिया में अब कोई भी व्यक्ति बिना ई-पास के सूबे में प्रवेश कर सकता है। उन्हें केवल सरकार के कोविड ई-पास सॉफ्टवेयर (covid19epass.hp.gov.in) में 48 घंटे पहले अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। अब जिला उपायुक्तों से पहले मंजूरी लेना जरूरी नहीं है। पर्यटकों को सशर्त एंट्री मिलेगी। उन्हें होटल में कम से कम पांच दिन की बुकिंग पहले से करानी होगी। साथ ही राज्य में प्रवेश करने से पहले और अधिकतम 72 घंटे के दरम्यान हुई कोरोना जांच में रिपोर्ट निगेटिव होनी चाहिए। जांच आईसीएमआर से मान्यता प्राप्त किसी लैबोरेटरी से ही होनी चाहिए। राज्य के प्रमुख सचिव राजस्व ओंका...
Read MoreIt was 150 years ago that the Matterhorn was climbed for the first time. This was a pioneering achievement by the Englishman Edward Whymper and his 6 companions, which gave a kick-start to tourism in Zermatt. During that time Zermatt was a remote mountain village that was only reachable by feet. With the many tourists coming to Zermatt after the first ascent of the Matterhorn, the need of a train connection became necessary. In July 1891, the pioneering construction of a train line between Visp and Zermatt was inaugurated, and it celebrated its 125th anniversary in 2016. This was also the first step for the famous Glacier Express route between Zermatt and St. Moritz, which is now operational for more than 85 years. Nowadays 200,000 guests from 120 different countries are travell...
Read Moreखजुराहो का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा था। खजिरवाहिला से नाम पड़ा खजुराहो। लेकिन यह अपने आप में अद्भुत बात है कि यहां कोई भी खजूर के लिए नहीं आता। यहां आने वाले इसके मंदिरों को देखने आते हैं। भारतीय मंदिरों की स्थापत्य कला व शिल्प में खजुराहो की जगह अद्वितीय है। इसकी दो वजहें हैं- एक तो शिल्प की दृष्टि से ये बेजोड़ हैं ही, दूसरी तरफ इनपर स्त्री-पुरुष प्रेम की जो आकृतियां गढ़ी गई हैं, उसकी मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिलती। यही कारण है कि खजुराहो को यूनेस्को से विश्व विरासत का दरजा मिला हुआ है। भारत आने वाले ज्यादातर विदेशी पर्यटक खजुराहो जरूर आना चाहते हैं। वहीं हम भारतीयों के लिए ये मंदिर एक हजार साल पहले के इतिहास का दस्तावेज हैं। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेल वंश के राजाओं ने किया था। इनके निर्माण के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। कहा जाता ह...
Read Moreकेरल अपने खूबसूरत समुद्र तटों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन वहां कई बीच ऐसे भी हैं जो हालांकि इतने लोकप्रिय नहीं हुए हैं किंतु अपनी सुंदरता में वे किसी से कम नहीं। यहां कम सैलानी जाते हैं इसलिए भीड़भाड़ कम है। 1. किले के नीचे बेकल बीच केरल के सबसे उत्तर के जिले कासरगोड़ में बेकल किला है जो केरल के सबसे बड़े और संरक्षित किलों में से एक माना जाता है। यह किला समुद्र के किनारे है। किले की दीवार के नीचे पसरा है बेकल का समुद्र तट। एक तरफ विशाल किला और दूसरी तरफ अरब सागर और बीच में सफेद मखमली रेत का बेकल तट बेहद सुकून देने वाला है। केरल जाने वाले आम सैलानियों की भीड़भाड़ से दूर बेकल मालाबार इलाके के कई टूरिस्ट सर्किट का गढ़ है। पहुंच में भी आसान कासरगोड़ मैंगलोर हवाईअड्डे से महज पचास किलोमीटर दूर है। कासरगोड़ का रेलवे स्टेशन मुंबई-मैंगलोर-कोषीकोड मुख्य रेलमार्ग पर स्थित है। 2. मुष...
Read Moreजब कोई जगह दुनिया में अकेली हो तो उसे देखने का रोमांच कुछ ज्यादा ही होता है। गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित गिर नेशनल पार्क के साथ कुछ ऐसी ही बात है। वह दुनिया में एशियाई शेरों का अकेला बसेरा है। यहां के अलावा खुले जंगल में शेर दुनिया में केवल अफ्रीका में हैं लेकिन वे अफ्रीकी शेर हैं। गिर नेशनल पार्क 16 अक्टूबर से 15 जून तक सैलानियों के लिए खुला रहता है। गिर का परमिट देश के तमाम राष्ट्रीय पार्कों की ही तरह गिर राष्ट्रीय पार्क में जाने के लिए भी परमिट की आवश्यकता होती है। लेकिन अक्सर इसकी औपचारिकताओं के बारे में लोगों को जानकारी कम होती है, जिससे सैलानियों को वहां पहुंचकर परेशानी का सामना करना पड़ता है। गिर में मुख्य नेशनल पार्क में जाने के लिए रोजाना तीन सफारी होती हैं। एक सवेरे छह बजे से, दूसरी सवेरे नौ बजे से और तीसरी दोपहर बाद तीन बजे से। हर सफारी के लिए कुल 46 परमिट आधिकार...
Read Moreसुरकंडा का मंदिर देवी का महत्वपूर्ण स्थान है। दरअसल गढ़वाल के इस इलाके में प्रमुखतम धार्मिक स्थान के तौर पर माना जाता है। लेकिन इस जगह की अहमियत केवल इतनी नहीं है। यह इस इलाके का सबसे ऊंचा स्थान है और इसकी ऊंचाई 9995 फुट है। मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है। इसके चलते जब आप ऊपर हों तो चारों तरफ नजरें घुमाकर 360 डिग्री का नजारा लिया जा सकता है। केवल इतना ही नहीं, इस जगह की दुर्लभता इसलिए भी है कि उत्तर-पूर्व की ओर यहां हिमालय की श्रृंखलाएं बिखरी पड़ी हैं। चूंकि बीच में कोई और व्यवधान नहीं है इसलिए बाईं तरफ हिमाचल प्रदेश की पहाडिय़ों से लेकर सबसे दाहिनी तरफ नंदा देवी तक की पूरी श्रृंखला यहां दिखाई देती है। सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री यानी चारों धामों की पहाडिय़ां नजर आती हैं। यह एक ऐसा नजारा है तो वाकई दुर्लभ है। गढ़वाल के किसी इलाके से इतना खुला नजारा देखने को नहीं मिलत...
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