हिंदुस्तान में पतझड़ का रंग अगर कहीं अपने पूरे शबाब पर दिखता है तो वह कश्मीर है। अब मौजूदा माहौल में कश्मीर जाने की बात करना थोड़ा अखरता है, हालांकि कश्मीरी कभी अपने मेहमान सैलानियों पर आंच नहीं आने देते। लेकिन बात पतझड़ के रंगों की हो तो कश्मीर का जिक्र किए बिना रहा भी तो नहीं जाता। कश्मीर की बात ही कुछ ऐसी है।
कश्मीर में पतझड़ के मौसम को हारुद कहते हैं (याद है न, आमिर बशीर की बनाई चर्चित फिल्म इसी नाम की थी)। हारुद का मौसम यूं तो कई खासियतें लेकर आता है, लेकिन इसका सबसे अलहदा, खास रंग चिनार की पत्तियों से आता है। वादी के चारों तरफ खड़े पहाड़ भी मानो चिनार के रंग में खुद को रंगने के लिए भूरे हो जाते हैं, बस इससे पहले कि वे बर्फ से सफेद हो जाएं। दरअसल कश्मीर में दोनों ओर कतार में खड़े चिनार के पेड़ और बीच में नीचे बिखरी हुई सुनहरे या सुर्ख लाल रंग की चिनार की पत्तियों की तस्वीर हमेशा से यादगार रही है। कश्मीर यूनिवर्सिटी से लेकर चश्मेशाही तक इस एक नजारे का लुत्फ लेने के लिए दुनियाभर से सैलानी उस समय यहां आते हैं। चिनार की पत्तियां सोने के सिक्कों के माफिक पेड़ों से झड़ती रहती हैं। पैरों के नीचे पत्तियों की सरसराहट बता देती है कि कश्मीर में हारुद का मौसम आ गया है। कश्मीर में पतझड़ का यह रंग अमेरिका, यूरोप या पूर्वी एशिया के देशों के चर्चित पतझड़ के रंगों से टक्कर लेता है। और, यकीनन क्योटो या कनाडा की तस्वीरें देखकर यहां आने वाले सैलानियों को जरा भी निराशा नहीं होती।
कश्मीर के लिए दरअसल हारुद का मौसम कई और मायनों में बेहद अहमियत रखता है। पांपोर व अनंतनाग के आसपास के केसर के खेत इस समय हल्के जामुनी रंग के फूलों से लद जाते हैं। कश्मीर अपने बेहतरीन केसर के लिए जाना जाता है और यह समय फूलों में से केसर रूप स्टिग्मा चुनने का होता है। इस मौसम में आप बनिहाल होते हुए श्रीनगर जाएं तो चिनार के सुनहरे रंग दिखने से पहले केसर के फूलों के रंग दिल खुश कर देते हैं। कश्मीर में यह मौसम एक और खास फसल का है और वह है सेब। कश्मीरी सेब दुनियाभर में जाने जाते हैं। हारुद के मौसम में ही सेब के बगीचों से सेब तोड़े जाते हैं। यह सिलसिला इतना आकर्षक होता है कि कश्मीर आने वाले कई सैलानी बगीचे घूमते-घूमते सेब तोड़ने में हाथ बंटाने लगते हैं। धान की कटाई का भी यही समय है। पतझड़ के रंग में धान भी पककर इन दिनों भूरे रंग के हो जाते हैं। पहाड़ी इलाकों में मक्के व अखरोट की कटाई का भी यही समय है। उधर उत्तरी कश्मीर में गंदरबल के लार इलाके के मशहूर अंगूरों को भी इसी समय तोड़ा जाता है। जाहिर है, जिस मौसम में इतनी सारी फसल जमा होती हो, वो लोगों के लिए तो खुशी का मौसम ही होगा।
हारुद के आखिरी दिनों में धूप मद्धिम होने लगती है। सुबह-शाम कुहासा छाने लगता है। यह वक्त आने वाली भीषण सर्दियों के लिए भी खुद को तैयार करने का होता है। लोग लकड़ियां जमा करने लगते हैं। भेड़ें पहाड़ों से नीचे उतार ली जाती हैं। चिनार की सूखी पत्तियां भी जमा कर ली जाती हैं क्योंकि वे कांगड़ियों में जलाने के काम आती हैं। सैलानी पश्मीना ऊन के गरम कपड़े खरीदने के लिए बेताब रहते हैं और कश्मीरी दुकानदार भी आने वाले ठंडे दिनों की गरज से मोलभाव करने को तैयार रहते हैं।
कश्मीर में हारुद के मौसम की कुछ और पहचान है- पहली झिंगुरों की आवाज। मानो यह इस मौसम के लिए प्रकृति का संगीत है। खास तौर पर कश्मीर के उन इलाकों में यह संगीत ज्यादा सुनाई देता है जहां बल्ले बाने वाली लकड़ी के लिए धुनकी (विलो) के पेड़ों के खेत होते हैं।
दूसरी पहचान वहां की ट्राउट मछलियों की है। पतझड़ के महीनों में कश्मीर की पहाड़ी जलधाराएं ट्राउट मछलियों का खजाना हो जाती हैं। कहा जाता है कि कश्मीर में ट्राउट मछलियों को पालने की शुरुआत अंग्रेजों ने की थी, बाद में वे यहां का हिस्सा हो गईं। अब भी कई विदेशी सैलानी बेहद अच्छी क्वालिटी की ट्राउट मछलियों को फांसने के लिए यहां इस मौसम में आते हैं। एंगलिंग के लिए आने वालों के अलावा ट्रैकिंग और वाटर स्पोर्ट्स के शौकीनों के लिए भी घाटी आने का यह सबसे बढ़िया समय होता है- साफ पानी, खुला आसमान और माफिक मौसम। सवेरे-शाम थोड़ी झुरझुरी वाला मौसम और दोपहर में पतझड़ की गुनगुनी धूप बेहद ताजगी देना वाली होती है।
जैसे-जैसे पतझड़ का मौसम परवान चढ़ने लगता है तो कश्मीर में हजारों की तादाद में प्रवासी पक्षी साइबेरिया, चीन औऱ पूर्वी यूरोप से आने लगते हैं। वह सर्दियों का मौसम यही बिताते हैं। अनुभवी लोग हारुद को कश्मीर घाटी के मौसमों का राजा कहते हैं। अगर आप पतझड़ में कश्मीर न गए तो आपको अहसास ही नहीं होगा कि आखिर आप क्या खो रहे हैं।
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