उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के साथ-साथ अब फूलों की घाटी भी राज्य के बाहर से आने वाले सैलानियों के लिए खोल दी गई है। यानी अब आप इस अनूठी जगह का आनंद ले सकते हैं। इसका यही सबसे उपयुक्त समय है। बस आपको पहले से तय कोविड-19 दिशानिर्देशों का पालन करना होगा जिसमें उत्तराखंड में प्रवेश करने से ठीक पहले के 72 घंटों के भीतर कराए गए कोविड-19 के आरटी-पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट सबसे अहम है। तब तक हम आपको दिखला रहे हैं इस कुदरती करिश्मे की झलक।
भारत में यूं तो कई प्राकृतिक घाटियां हैं जहां कुदरती तौर पर फूल खिलते हैं, और यह भी पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कि मध्य व दक्षिण-मध्य भारत के पठार वाले इलाकों से लेकर सुदूर उत्तर-पूर्व में निचले हिमालय के पहाड़ों तक इन तमाम घाटियों की खूबसूरती एक से बढ़कर एक है। इनमें से कई तो ऐसी भी हैं जो भले ही स्थानीय स्तर पर लोगों में खूब प्रचलित रही हों लेकिन उन इलाकों के बाहर उनकी उतनी लोकप्रियता पहले इतनी नहीं थी। अब उनमें से कई ने सैलानियों की बढ़ी आवक के चलते अपनी पहचान तेजी से बनाई है।
लेकिन इन सबके बावजूद जब हम फूलों की घाटी का नाम लेते हैं तो जेहन में सबसे पहले उत्तराखंड के नंदा देवी बायोस्फेर रिजर्व की फूलों की घाटी का ख्याल आता है। लगभग आठ किलोमीटर की लंबाई में फैली यह घाटी प्राकृतिक रूप से उगने वाले फूलों, वनस्पतियों व औषधियों का खजाना है। इसे पुष्पावती घाटी भी कहा जाता है। इस घाटी के बीच से पुष्पावती नदी बहती है जो घांघरिया में हेमकुंड से आ रही लक्ष्मण गंगा नदी में मिल जाती है। यह इलाका कई दुर्लभ व लुप्तप्राय वन्यप्राणियों का भी है। इस घाटी के सॢदयों में बर्फ से ढक जाने, फिर मार्च-अप्रैल में बर्फ के पिघलना शुरू करने और जून-जुलाई में नई पौध आने का मौसम चक्र ही कुछ ऐसा है कि यह घाटी जुलाई के अंत से लेकर सितंबर तक फूलों से लकदक रहती है। इन फूलों की उम्र इतनी ही रहती है। अगस्त का महीना यहां जाने के लिए सबसे बेहतर होता है। लेकिन मौसम के चक्र के थोड़ा भी गड़बड़ाने से फूलों के खिलने का समय भी आगे-पीछे हो सकता है। लगभग एक सदी से यह इलाका रोमांचप्रेमियों, वनस्पतिशास्त्रियों के लिए जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। मिथकीय इतिहास तो शताब्दियों पुराना है।
अगर कोई तकलीफ की बात है तो सिर्फ यह कि यहां जाने का समय वही है जो रास्ते के सफर के हिसाब से बेहद तकलीफदेह हो सकता है। जुलाई-अगस्त के मानसून के महीने उस इलाके में क्या कहर बरपा सकते हैं, यह आठ साल पहले केदारनाथ इलाके में आए जल-प्रलय में हम देख चुके हैं। उस समय इसी पुष्पावती नदी और उसके आगे लक्ष्मण गंगा नदी ने भी खासी तबाही मचाई थी। लेकिन जब प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना हो तो उसका जोखिम भी तो मोल लेना ही पड़ता है। इसीलिए किसी मानसून में अगर हिम्मत जुटाकर यहां जाया जाए तो यकीनन जिंदगी के सबसे यादगार अनुभवों में से एक होता है। इस बात की तस्दीक यहां गए हजारों रोमांचप्रेमी हमेशा से करते आ रहे हैं। यह घाटी समुद्र तल से 3350 मीटर से लेकर 3650 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित है। रास्ते के अलावा यह ऊंचाई भी थोड़ी कष्टप्रद हो जाती है। लेकिन इतने जोखिम उठाने के बाद जो नजारा देखने को मिलता है, वह इतना दुर्लभ है कि सारी तकलीफों को भुलाने की कूवत वह रखता है। यह झंस्कार व हिमालयी श्रंृखलाओं के बीच का रास्ता है। फूलों की घाटी में छोटे-छोटे नालों के किनारे पूल इस तरह उगे रहते हैं मानो उन्हें क्यारियों में उगाया गया हो। वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क और नंदा देवी की दुर्गम ऊबड़-खाबड़ पहाडिय़ां एक-दूसरे का पूरक हैं। वैली ऑफ फ्लावर्स की हरी-भरी वादियां नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान तक फैली हुई हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को 1988 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था। नवंबर 1982 में इसे ‘राष्ट्रीय पार्क’ घोषित किया गया था।
पश्चिम हिमालय की घाटियों में स्थित वैली ऑफ फ्लावर्स स्थानीय अल्पाइन फूलों और दूर-दूर तक फैले हरे-भरे घास के मैदान के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह घाटी नवंबर-दिसंबर से अप्रैल-मई तक बर्फ से पूरी तरह ढकी रहती है। जून में जब बर्फ पिघलने की शुरुआत होती है तो यह क्षेत्र हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। जुलाई तक यहां के पौधों में फूल महकने लग जाते हैं। अगस्त में फूलों की घाटी सबसे सुंदर नजर आती है क्योंकि इस दौरान फूल पूरी तरह खिल चुके होते हैं लेकिन अक्टूबर से फूल धीरे-धीरे मुरझाने शुरू हो जाते हैं। यहां के फूलों के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि इतने सालों बाद भी अब तक हम यह नहीं कह सकते कि वहां के सारे फूलों के बारे में हम जान गए हैं। इन फूलों में इतने औषिधीय गुण छिपे हैं कि उन पर शोध चला जा रहा है।
यह कई दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों का प्राकृतिक आवास भी है। प्राकृतिक रूप से समृद्ध यह स्थान लुप्तप्राय जानवरों जिनमें एशियाटिक ब्लैक बियर, स्नो लैर्पड, ब्राउन बियर और ब्लू शीप यहां के निवासी हैं। तमाम दुर्लभताओं के कारण नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क हिमालय के सबसे शानदार वन क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इस पार्क में रहने की व्यवस्था नहीं है और न ही यहां किसी को भी रात बिताने की इजाजत है। यही वजह है कि लोगों की कम पहुंच के कारण यह पार्क जैसा था, उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। इस रास्ते से आगे कुछ ट्रैकिंग रूट निकलते हैं, वहां से ट्रैक करके माना तक जाया जा सकता है लेकिन उसके लिए इजाजत लेनी पड़ती है और दिन खत्म होते-होते पार्क की सीमा से उस पार निकल जाना होता है।
फूलों की घाटी और हेमकुंड की यात्रा साल में चार महीनों (जून से सितंबर) के लिए खुली रहती है। इस यात्रा में समुद्र तल से 1830 मी से 4330 मी तक की कुल 55 किमी की दूरी पैदल या खच्चर पर तय करनी होती है। जाहिर है इसके लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। जोशीमठ से गोविंदघाट का मार्ग प्रात: 6 बजे खुलता है। जोशीमठ से जितना शीघ्र निकलें उतना अच्छा है। जोशीमठ से गोविंदघाट की 18 किमी की यात्रा में 30 से 45 मिनट का समय लगता है। पार्क गढ़वाल के चमोली जिले में पड़ता है जो पूर्व में गौरीगंगा और पश्चिम में ऋषि गंगा घाटियों के बीच स्थित है। इसके निकट ही स्थित हेमकुंड एक पहाड़ी हिमकुंड है जिसके तट पर एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा और एक लक्ष्मण मंदिर निर्मित हैं। गोविंदघाट में बद्रीनाथ से आने वाली निर्मल अलकनंदा नदी के तट पर एक काफी बड़ा गुरुद्वारा निर्मित है जिसका मकसद हेमकुंड जाने वाले यात्रियों को विश्रामस्थल उपलब्ध कराना है। अपने वाहनों से आने वाले सभी लोग यहीं गाड़ी पार्क करते हैं। यहां से पैदल रास्ता शुरू होता है। जोशीमठ से घांघरिया तक का 13 किमी का रास्ता तय करने में शारीरिक क्षमता के अनुसार 5 से 8 घंटे लग जाते हैं।
रास्ता पूरे समय पुष्पावती नदी के साथ साथ चलता है जो फूलों की घाटी से निकलकर गोविंदघाट के पास अलकनंदा में मिलती है। घांघरिया में रात्रि विश्राम के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम का एक पर्यटक आवास गृह और अन्य बहुत से छोटे छोटे होटल हैं। इसके अलावा एक गुरुद्वारा (गोविंदधाम) भी है जहाँ काफी लोगों के रुकने की व्यवस्था है। घांघरिया के निकट अब हैलीपेड बन गया है। घांघरिया से करीब एक किमी आगे जाकर फूलों की घाटी और हेमकुंड का रास्ता अलग-अलग हो जाता है। यहां से आगे संरक्षित क्षेत्र होने के नाते खच्चरों का प्रवेश वर्जित है। वन विभाग की एक चौकी है जहां पार्क में प्रवेश व कैमरे आदि का शुल्क देना होता है। फूलों की घाटी करीब 3 किमी आगे से प्रारंभ होती है और आगे 7-8 किमी तक फैली है। घांघरिया से निकलते ही आप मार्ग में झाडिय़ों में लगे कई तरह के छोटे-छोटे फूल देख सकते हैं। ध्यान रखें कि एक समय पर सभी फूल नहीं खिलते अत: यदि आप सभी प्रकार के फूलों को देखना चाहते हैं तो कम से कम तीन बार आना पड़ेगा। लेकिन इतना यकीन रखें कि जब भी आप यहां आएंगे, कुछ न कुछ अद्भुत तो जरूर देखने को मिलेगा।
कैसे जाएं : ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर जोशीमठ से थोड़ा आगे हैं गोविंदघाट। इसका नाम गोविंदघाट गुरु गोविंद सिंह पर है। यहीं से लक्ष्मण गंगा नदी के किनारे भ्यूंदार घाटी में घांघरिया के लिए 13 किलोमीटर लंबा पैदल रास्ता है। इसे खच्चर पर भी सफर किया जा सकता है। घांघरिया से दो रास्ते अलग होते हैं- एक फूलों की घाटी के लिए और दूसरा गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब के लिए। घांघरिया से लगभग तीन किलोमीटर आगे फूलों की घाटी शुरू हो जाती है। ऋषिकेश से गोविंदघाट तक का सफर बस या टैक्सी अथवा निजी वाहन से किया जा सकता है। हरिद्वार या ऋषिकेश तक ट्रेन से भी पहुंचा जा सकता है। हवाई जहाज से आने के लिए देहरादून के निकट जौली ग्रांट हवाई अड्डा सबसे नजदीक है। ऋषिकेश से जोशीमठ लगभग 250 किलोमीटर दूर है।
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