मैं काठमांडू उस समय पहुंचा जब मैं एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक करने के लिए नेपाल गया था। यहां पहुंचने के बाद मैंने सोचा कि ट्रेक के लिए रवाना होने से पहले दो-एक दिन खुद को यहां के मौसम का अभ्यस्त कर लेना चाहिए। चूंकि मेरा स्वभाव शुरू से घुमक्कड़ों वाला रहा है, इसलिए मैं अब काठमांडू को अपने हिसाब से देखना चाहता था। मेरे पास पूरे दो दिन थे इसके लिए, इसलिए मैंने तय किया कि मैं जितना हो सकेगा घूमने के लिए सार्वजनिक परिवहन का ही इस्तेमाल करूंगा। इसलिए मैंने पहले यह पता कर लिया कि ट्रेक शुरू करने के लिए लुकला पहुंचाने वाली मेरी फ्लाइट कब है। और, उसके बाद में काठमांडू में तफरीह के लिए निकल पड़ा।
मैंने सबसे उन जगहों की सूची बनाई जो मुझे देखनी थीं और इस सूची में पशुपतिनाथ मंदिर , थामेल, हनुमान धोका, दरबार स्क्वायर (या बसंतपुर दरबार), बौध स्तूप व शांति स्तूप शामिल थे। काठमांडू दरबार (हनुमान धोका) के साथ ही मैं काठमांडू के आसपास के बाकी दो दरबार- भक्तपुर दरबार और पाटन दरबार भी देख लेना चाहता था। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, मैं एक मिनी बस से दूसरी मिनी बस में और एक टेंपो से दूसरे टेंपो में चढ़ता गया और नेपाल के इतिहास, संस्कृति, कला व परंपराओं का अनमोल खजाना मेरे सामने परत-दर-परत खुलता चला गया।
मेरा होटल चूंकि थामेल इलाके में ही था, इसलिए मैंने अपने दिन की शुरुआत काठमांडू के इस खासे लोकप्रिय सैलानी स्थल के साथ की। एक के अंदर एक घुसी पतली सी गलियों में सोवेनियर की दुकानें थीं और, ऊपर जाना-पहचाना सा इधर से उधर जाते बिजली के तारों का जाल था। उन्हीं गलियों में से कारें, साइकिल रिक्शा, दोपहिया, टैक्सी गुजर रहे थे जिनसे बचते हुए मुझ जैसे पैदल यात्रियों को अपना रास्ता खोजना था।
थामेल काठमांडू में पर्यटन उद्योग का केंद्र होने के साथ-साथ बड़ा वाणिज्यिक केंद्र भी है। मुझे महसूस हुआ कि यह एकदम हमारे पहाड़गंज बाजार की डुप्लीकेट कॉपी है। वैसा ही भीड़ भरा बाजार, संकरी गलियां, होटलों की कतारें, ट्रैवल एजेंटों की दुकानें और हर तरह की असली-नकली कलाकृतियां बेचते लोग
दरअसल, काठमांडू की सबसे रंगीन जगहों में से है थामेल और मुझे यहां आकर बड़ा मजा आया। मेरा कैमरा लगातार क्लिक करता रहा और मैंने वहां ढेर सारी तस्वीरें खींची। दोपहर के खाने का वक्त हो चुका था और मैं कुछ स्थानीय व्यंजनों की तलाश में निकल पड़ा। यहां कई रेस्तरां हैं जो पारंपरिक और कांटिनेंटल, दोनों किस्म के भोजन परोसते हैं। मैंने पारंपरिक दाल-भात-तरकारी की थाली खाना पसंद किया और थामेल में अपने खाने का जमकर लुत्फ उठाया। थामेल में कई सारे पब व बार हैं और मुझे बताया गया कि कई सारे नाइटक्लब होने की वजह से यहां की नाइटलाइफ भी बड़ी रंगीन होती है। इसलिए दोपहर का खाना खाने के बाद मैं दूसरी जगहों की तरफ मुड़ गया ताकि देर शाम यहां फिर से आकर यहां की नाइट लाइफ का अनुभव कर सकूं।
बसंतपुर थामेल के काफी नजदीक है और दरअसल आप चाहें तो भीतर-भीतर ही गलियों से होते हुए पैदल चलकर भी काठमांडू दरबार स्क्वायर पहुंच सकते हैं। हिंदू व बौद्ध मंदिरों व धार्मिक स्थानों का यह परिसर नेपाल के लोगों के धार्मिक व सांस्कृतिक जीवन का परिचायक है।
काठमांडू का दरबार स्क्वायर काठमांडू घाटी के तीन दरबारों में से एक है और उसे हनुमान की घुटने टिकाकर बैठी हुई मूर्ति की वजह से हनुमान धोका पैलेस कांप्लेक्स भी कहा जाता है। मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि भारत व नेपाल की दो अलग-अलग शैलियों के मंदिर यहां साथ-साथ मौजूद हैं- शिखर शैली के और पैगोडा शैली के। आगे बढ़ा तो मैंने काल भैरव की विशाल मूर्ति देखी- शिव अपने विनाशकारी स्वरूप में खुले मंदिर में विराजमान थे। मेरे थके हुए चेहरे पर उस समय मुस्कान छा गई जब मुझे यह पता चला कि मंदिर के ठीक पीछे स्थित पुलिस स्टेशन के कर्मचारी इस मंदिर का इस्तेमाल लोगों को सच बोलने की कसम दिलाने के लिए करते हैं- ठीक उसी तरह से जैसे हमारे यहां कहा जाता है कि “मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि…” मेरा ख्याल है कि पुलिस अपराधों को सुलझाने में हर मुमकिन दैवीय शक्ति का इस्तेमाल करती है।
इसके बाद वक्त था शहर के बौद्ध स्थानों को देखने का। मेरा पहला पड़ाव था स्वयंभू मंदिर। दोपहर बाद ही मुझे अच्छी कवायद करनी पड़ गई क्योंकि पहाड़ की चोटी पर स्थित एक प्राचीन बौद्ध स्तूप यानी स्वयंभू मंदिर तक पहुंचने के लिए मुझे 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ी। यह नेपाल के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से है। ऊपर तक पहंचने के लिए बने सीढ़ियों वाले रास्ते के दोनों तरफ भी अन्य छोटे मंदिर मौजूद थे। मंदिर का शिल्प बेहद प्रभावशाली है और विशाल वज्र आकार का शिखर बिलकुल चमत्कारिक सा लगता है। स्तूप के चारों तरफ स्तंभ पर बुद्ध की आंखें बनी हैं मानो वह हर श्रद्धालु पर निगाह रखे हुए हों। ऊपर से काठमांडू शहर का भी विहंगम नजारा देखने को मिलता है।
महान बौद्ध स्तूप मेरा अगला मुकाम था। यह तिब्बती बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्तूप माना जाता है और अब इसे यूनेस्को की विश्व विरासत स्थलों की सूची में रखा गया है। बताया जाता है कि बौधनाथ का निर्माण बुद्ध के निर्वाण हासिल करने के कुछ ही समय बाद किया गया था और यह नेपाल में तो सबसे बड़ा स्तूप है ही, पूरी दुनिया में भी सबसे बड़े स्तूपों में से एक माना जाता है। कथित रूप से इस स्तूप में कसापा बुद्ध के अवशेष सुरक्षित हैं। जब मैं इस जगह पर पहुंचा तो कई श्रद्धालु व भिक्षु स्तूप के चारों तरफ बैठकर प्रार्थना चक्र घुमा रहे थे। “ओम मने पद्मे हुम” की मंत्रध्वनि पूरे इलाके को गुंजायमान किए हुए थी। सब तरफ एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला माहौल था। स्तूप के मध्य में जब मैं पहुंचा तो वहां एक जगह बनी हुई थी जहां लोग अगरबत्ती जलाकर पूजा कर सकते थे। एक तिब्बती श्रद्धालु बड़ी तन्मयता से वहां प्रार्थना कर रहा था।
दोपहर बाद का वक्त हुआ था और मैंने काठमांडू की चार प्रमुख जगहें पहले ही देख ली थीं। जब तक मुझे भूख लग आई थी, आखिर दिन के खाने में खाया चावल पचने में कितनी देर लगती। मैं चार मंजिल चढ़कर एक रूफटॉप रेस्तरां में पहुंचा जहां से बौध स्तूप के सौ फुट ऊंचे गुंबद और नीचे के परिसर का भव्य नजारा दिख रहा था। मैंने नेपाली स्नैक्स सेट-खाज़ा को आजमाया और उसे बिलकुल माफिक पाया। वैसे खाज़ा सेट की तमाम चीजों को मैं पहले नेपाल से सटे बिहार के अपने पैतृक गांव में खा चुका था, लेकिन यहां भी उनका स्वाद बहुत बढ़िया था।
शाम हो चली थी और अचानक आसमान बरस पड़ा। लिहाजा मैंने तय किया कि जल्दी से कैब पकड़कर पशुपतिनाथ मंदिर पहुंच जाऊं। बागमती नदी के किनारे स्थित पशुपतिनाथ मंदिर जाने का मेरा मन बहुत समय से था। इसे शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और इस लिहाज से यह दुनियाभर के हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। वर्ष 400 ई.पू. में बने इस मंदिर का गर्भगृह पैगोडा शैली में बना है और यह काफी अलंकृत हे। मंदिर परिसर कुल 264 एकड़ में फैला हुआ है और यहां कई मंदिर, मठ, आश्रम, व मूर्तियां स्थापित हैं। बताया जाता है कि इसमें कुल 518 मंदिर व धर्मस्थल हैं। मंदिर परिसर के चार प्रवेश द्वार हैं- एक हर दिशा में। इन सब दरवाजों पर चांदी की परत चढ़ी हुई है। मुख्य मंदिर के ऊपर बने पैगोडा पर कांसे की बनी छत है जिसपर सोने की परत चढ़ी हुई है। पास ही बागमती नदी के किनारे श्मशान घाट भी है। मैंने मंदिर में शाम को होने वाली दोनों आरतियों में हिस्सा लिया। यह एक अद्भुत अनुभव था।
पशुपतिनाथ मंदिर में रोजाना शाम को दो आरतियां होती हैं। एक मंदिर के गर्भगृह में और दूसरी बागमती नदी के घाट पर। इस नदी को नेपाली गंगा भी माना जाता है। नेपाल में इस नदी का उतना ही महत्व है जितना हमारे यहां गंगा नदी का माना जाता है
मंदिर से बाहर आने तक अंधेरा हो चुका था। मुझे खूब थकान भी हो चली थी। दिनभर में मैंने काफी कुछ कर लिया था- खरीदारी कर ली थी, स्थानीय व्यंजनों का स्वाद ले लिया था और स्थानीय लोगों जमकर गपशप भी कर ली थी। अब तो बस होटल जाकर बिस्तर पर पसर जाने का मन कर रहा था। लेकिन अभी तो बार व नाइटक्लब मेरा इंतजार कर रहे थे। लिहाजा थोड़ी मस्ती के लिए मैं थामेल फिर से पहुंच गया।
रोमांचक पहले दिन और उतनी ही आनंददायक नाइटलाइफ के बाद मैं दूसरे दिन काठमांडू के पास स्थित बाकी दो दरबारों की सैर करने के लिए तैयार था। फिर से सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करके मैं पहले पाटन दरबार स्क्वायर पहुंचा जो काठमांडू से महज सात किलोमीटर दूर ललितपुर शहर के मध्य में स्थित है। यह भी यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है।
पाटन सबसे पुरानी बौद्ध नगरियों में से एक है और उसे ललितपुर कहा जाता है। ललितपुर यानी ललित कलाओं (लालित्य) की नगरी। वैसे यह हिंदुओं व बौद्धों, दोनों के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। पूरा परिसर खासा बड़ा है जिसमें कई चौक, 50 से ज्यादा मंदिर और महल हैं। मूल चौक, सुंदरी चौक और केशव नारायण चौक सबसे प्रमुख माने जाते हैं। समूचे इलाके में लकड़ी पर बड़ा बारीक काम है जिसे प्राचीन नेवारी शिल्प का नमूना बताया जाता है।
तीसरी सदी ईस्वी में बना पाटन दरबार स्क्वायर काठमांडू घाटी के तीन शहरों में सबसे पुराना है। चौसर टाइल्स और लाल ईंटों से बने दरबार चौक में नेवार शिल्प की शानदार कारीगरी देखने को मिलती है। चौक में पुराने नेवारी घर भी देखने को मिल जाएंगे। पाटन की खास जगहों में शाही महल चौक, उसके आसपास के मंदिर व चौक, कई पैगोडा, पत्थर का बना शिखर शैली का कृष्ण मंदिर, पांच मंजिला कुंभेश्वर मंदिर व स्वर्ण मंदिर शामिल हैं। ललितपुर के मल्ला राजाओं का प्राचीन शाही महल पाटन का प्रमुख आकर्षण है। ज्यादातर इमारतें शिखर शैली में पत्थऱों व लकड़ी से मिलकर बनी है। यहीं लकड़ी का काम तो देखते ही बनता है जो सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इसमें खास तरह की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है
यहां के बाद में काठमांडू से 20 किलोमीटर दूर भक्तपुर दरबार स्क्वायर की तरफ निकल पड़ा। मैं तमाम महल, दालान, शाही हम्माम, शिल्प, पैगोडा, मंदिर व मोनेस्ट्री आदि देखकर हैरान था। सब पर लकड़ी, पत्थर व धातु के काम में जबरदस्त सांस्कृतिक छटा निखर रही थी। भक्तपुर का मतलब ही है भक्तों की नगरी। इसे भदगांव या नेवारी नाम ख्वोपा से भी जाना जाता था। भक्तपुर का बहुत सांस्कृतिक महत्व भी है और यह काठमांडू घाटी के तीन मघ्यकालीन शाही शहरों में से एक है। यहां की सांस्कृतिक विरासत हर गली में बिखरी नजर आ रही थी- कहीं कपड़ों की बुनाई हो रही थी, तो कहीं सुथार लकड़ी पर जुटे हुए थे, कहीं मिट्टी के बर्तन सूख रहे थे। चौक में स्थानीय लोगों की चहल पहल थी- खेल, गपशप सब चल रहा था। हैरत से मेरा मुंह खुला रह जा रहा था।
डेढ़ दिन की सैर में ही मुझे काठमांडू के कई रंग दिख गए थे। आप भी जब काठमांडू जाएं तो कुछ ऐसी ही तसल्ली की सैर करें, बड़ा आनंद आएगा।
भारत के बाहर जाने के लिए काठमांडू सबसे आसान व आरामदेह जगहों में से है। भारत में कई जगहों से यहां के लिए उड़ानें मिल जाती हैं। और तो और, आप कई तरफ से सड़क के रास्ते भी यहां पहुंच सकते हैं। किसी भारतीय सैलानी के लिए तो नेपाल आना भारत में घूमने जैसा ही है क्योंकि जैसे ही आप वहां के हवाई अड्डे या बस अड्डे से बाहर निकलेंगे आपको ठीक उसी तरह का नजारा दिखाई देगा जैसा कि भारत में दिखाई देता है, वैसे ही लोग भी नजर आएंगे।
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