हंपी के कुछ हिस्सों में घूमते हुए कई बार लगता नहीं कि हम पांच सौ साल पुराने इतिहास के बीच हैं। सब कुछ इतना जीवंत लगता है। वहां जाकर महसूस होता है कि जीत का अहसास कितनी भव्यता प्रदान करता है और हार उस भव्यता को किस कदर मटियामेट कर देती है। हंपी में ये दोनों ही नजारे साथ-साथ देखने को मिलते हैं
हेमकुटा पहाड़ियों पर बने इक्कीस शिव मंदिरों में से एक में मैंने बारिश से बचने के लिए अपने गाइड के साथ शरण ले रखी थी। पीछे विशाल चट्टानों से बहता पानी बहुत सुंदर लग रहा था। उसने छोटे-छोटे झरनों के आकार ले लिए थे। सामने विरुपाक्ष मंदिर के तीनों शिखर एक साथ दिखाई दे रहे थे। विरुपाक्ष मंदिर हंपी के उन गिने-चुने मंदिरों में से है जिनमें आज भी विधिवत पूजा होती है। विरुपाक्ष मंदिर के भीतर जितनी चहल-पहल थी, उसके उलट हेमकुटा पहाड़ी से आसपास बने शिव मंदिरों, जैन मंदिरों और पीछे विरुपाक्ष मंदिर का नजारा बारिश से बन गए कुहासे में बिलकुल किसी प्राचीन सभ्यता की झलक दे रहा था। ऐसा लग रहा था मानो आप म्यांमार के बागान मंदिरों को देख रहे हों।
विजयनगर साम्राज्य के बारे में इतिहास की किताबों में पढ़ा था। लेकिन राजा कृष्णदेव राय को सबसे ज्यादा जाना तेनालीरामन के किस्सों से। जेहन में इन दोनों का नाम हमेशा से साथ-साथ ही अंकित रहा। उसी विजयनगर और उसी राजा कृष्णदेव राय की राजधानी हंपी पहुंचा तो बरबस फिर से तेनालीराम याद आ गए।
हंपी बहुत फैला हुआ है। पुरातत्व विभाग के अनुसार 26 वर्ग किलोमीटर इलाके में। होसपेट से आते हुए रास्ते में कई जगह उस दौर के मंदिर मिल जाते हैं। विरुपाक्ष मंदिर व हेमकुटा पहाड़ी के मंदिरों की अहमियत दो अर्थों में सबसे ज्यादा है- एक तो वहां अब भी पूजा होती है। दूसरा, हंपी की मौजूदा आबादी इसी के इर्द-गिर्द है। गांव, बाजार, रेस्तरां, गेस्ट हाउस, पार्किंग, सभी कुछ यहीं है। हंपी आने वाले सैलानी सबसे पहले इसे ही घूमते हैं।
वैसे शिल्प की दृष्टि से विट्ठल मंदिर परिसर सबसे समृद्ध है। इस मंदिर में कोणार्क के सूर्य मंदिर का प्रभाव जमकर दिखाई देता है। जाहिर है, उड़ीसा के राजा गजपति को हराने के बाद कृष्णदेव राय ने वहां के शिल्प का जमकर अनुसरण किया होगा। विट्ठल मंदिर में स्थित पत्थर का रथ हंपी के सबसे बड़ी पहचानों में से है (और अब तो यह हमारे नोटों पर भी अंकित है)। हंपी का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण परिसर शाही अहाते और हजारराम मंदिर वाला है। शाही अहाता में तो पुष्करणी अभी तक अक्षुण्ण है। यह दरअसल सीढ़ीदार कुंड की तरह है। इसके अलावा खुला मंडप है जहां बैठकर राजपरिवार विभिन्न आयोजन देखता होगा। हजारराम मंदिर का नाम ही बताता है कि वहां हजार राम अंकित हैं। हंपी में कई अन्य मंदिर व इमारतें हैं और दूर-दूर फैली हैं। उन सभी को तसल्ली से देखने के लिए कम से कम तीन-चार दिन का समय तो अवश्य ही चाहिए।
हंपी जाकर एक मध्यकालीन नगर की संरचना का अहसास होता है। मंदिरों के भीतर धर्मशालाएं, रसोई, विवाह मंडप, सब कुछ थे। शाही अहाते में पानी की सप्लाई के लिए रोमन शैली के एक्वाडक्ट देखे जा सकते हैं। हर प्रमुख मंदिर परिसर के बाहर एक विशाल बाजार हुआ करता था। जैसे विट्ठल मंदिर के बाहर घोड़ों का बाजार था तो हजारराम मंदिर के बाजार पान-सुपारी का बाजार था। मंदिर के शिल्प में मध्यकालीन भारत के शिल्प की तमाम प्रवृत्तियां देखने को मिल जाती हैं। जैसे यहां के कई मंदिरों में मिथुन क्रिया व श्रृंगार की मूर्तियां मिल जाएंगी।
तुंगभद्रा और किष्किंधा
दो सौ साल से भी ज्यादा समय (सन 1343 से 1565) तक हंपी ने अपना वैभव देखा। हालांकि उसे सबसे ज्यादा भव्यता कृष्णदेव राय के शासनकाल में ही मिली। हंपी तुंगभद्रा नदी के किनारे बसाया गया था। हंपी का चयन इसी लिए किया भी होगा कि एक तरफ से तुंगभद्रा इसकी हिफाजत करती थी तो बाकी तरफ भारी-भरकम व विशालकाय चत्रनों से बनी पहाडि़यां इसको घेरे हुई थीं। दरअसल हंपी में जाकर वहां के शिल्प के साथ-साथ ये पहाडि़यां और उनके पत्थर भी चमत्कृत करते हैं। माना जाता है कि रामायणकाल में बाली-सुग्रीव की किष्किंधा नगरी इन्हीं पहाडि़यों में थी। यहीं पर हनुमान की मां अंजना के नाम पर अंजेनाद्री पहाड़ी भी है।
खास बातें
कैसे: हंपी उत्तरी कर्नाटक के बेल्लारी जिले में स्थित है। यह वही बेल्लारी जिला है जो माइनिंग के विवाद के चलते सुर्खियों में रहा था। वैसे हंपी के निकट का बड़ा शहर 12 किलोमीटर दूर होसपेट है। होसपेट में रेलवे स्टेशन भी है। होसपेट दरअसल अंकोला से हुबली होते हुए बेलारी जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 63 पर स्थित है। हुबली ही हंपी के निकट का सबसे बड़ा शहर है। धारवाड़ जिले में स्थित हुबली कर्नाटक में राजधानी बेंगलुरू के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है। बेंगलुरू हंपी से 335 किलोमीटर दूर है। वहीं हुबली की दूरी हंपी से लगभग 160 किलोमीटर है। हुबली में रेलवे स्टेशन भी है और छोटा हवाई अड्डा भी जहां के लिए बेंगलुरू से रोजाना उड़ानें हैं। गोवा (मडगाव) से आने वाला रेलमार्ग हुबली होते हुए होसपेट जाता है। इसी तरह पूना-कोल्हापुर होते हुए भी रेलमार्ग से हुबली और वहां से होसपेट पहुंचा जा सकता है।
कब: हंपी का समूचा इलाका पथरीली पहाडि़यों और बड़ी-बड़ी चट्टानों से घिरा हुआ है। गर्मियों में यह इलाका बेहद गरम हो जाता है। उस समय जाने से बचें। सर्दियों में जाया जा सकता है, क्योंकि यहां की सर्दियां उत्तर भारत जितनी सख्त नहीं होती। लेकिन बारिशों में यहां जाने का मजा कुछ और ही है। हंपी तुंगभद्रा नदी के किनारे है और नदी के प्रवाह का मजा बारिशों में ही है। वैसे भी उत्तरी कर्नाटक के इस इलाके में कई नदियां हैं और जब तरफ जमकर हरियाली है। नारियल के पेड़ और ज्वार व गन्ने के खेत हैं। इस हरियाली की असली रंगत बारिश के मौसम में ही देखने को मिलती है।
कहां: हंपी में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी आते हैं। रुकने के लिए हंपी में कई सस्ते गेस्ट हाउस व होमस्टे विकल्प उपलब्ध हैं। लेकिन वहां बड़े रिजॉर्ट नहीं। थोड़े अच्छे होटलों के लिए होसपेट शहर को टटोला जा सकता है। चूंकि निकट का सबसे बड़ा शहर हुबली है, इसलिए वहां अच्छे, सुविधाजनक होटल मिल जाएंगे, जैसे कि द गेटवे, हुबली झील के किनारे है। वैसे हुबली को बेस बनाया जाए तो वहां से हंपी, के अलावा पश्चिम में गोकरणा उत्तर में डांडेली टाइगर रिजर्व और दक्षिण में कई खूबसूरत फॉल्स को घूमा जा सकता है।
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