लगभग 7000 ईसा पूर्व में जब हिमनदों का सिकुड़ना शुरू हुआ तो अनावृत हुई धरती पर शिकारी जंगली रेनडियरों के पीछे उत्तर की ओर बढ़े। तकरीबन 2500 ईपू के बाद जनजातियों ने खेती करना सीखा। वे 1500 ईपू के आसपास काँसे के औज़ार और हथियार बनाने लगे थे। फिर 500 ईपू में वे लोहा इस्तेमाल में ले आए थे। उस आदिम जाति का नाम अब विलुप्त हो चुका शब्द कोमसा था। इस इलाके के शिकारियों के मौजूदा वंशज लाप्प या उनके अपने शब्द सामी से जाने जाते हैं। वे अब रेनडियरों का पालन करते हैं। उनकी भाषा उराल-अल्ताइक समूह की फिन्नो-उग्रिक परिवार से है जो फिन लोगों से संबंधित है। ये फिन लोग लगभग सौ वर्ष ईस्वी में बाल्टिक समुद्र पार करके आए और धीरे-धीरे उन्होंने सामी लोगों को उत्तर ध्रुवीय इलाकों की ओर धकेल दिया।
पहली सदी ईस्वी में फिन्नो-उग्रिक बोलने वाले क़बीले बाल्टिक के पूर्वी तटीय क्षेत्रों में खेती करने लगे। इनमें स्वयं फिन और दो निकट से जुड़े समूह तवास्तियन और कारेलियन थे। दूसरे क़बीले उस इलाके में ही रह गए जिसे आज एस्तोनिया कहा जाता है। आज उस घटनाक्रम के दो हज़ार साल बाद फिऩलैंड और एस्तोनिया यूरोप के अंदर फिन्नो-उग्रिक जातियों से जुड़े लोगों के तीन प्रमुख क्षेत्रों में से दो हैं। तीसरा इलाका हंगरी है।
12वीं सदी से 17वीं सदी तक फिऩलैंड को लेकर स्वीडन और रूस के बीच खींचातानी चलती रही— स्वीडन के रोमन कैथोलिक और नोवगोरोद के रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के बीच। रूसी चर्च कारेलिया के कुछ लोगों का धर्म परिवर्तन करने में सफल रहा और बाकी ज्यादातर को स्वीडन रोमन कैथोलिक बनाने में कामयाब रहा। 16वीं सदी के मध्य में तुर्कू के धर्म सुधारक बिशप मीकाएल अग्रीकोला के गहरे प्रभाव में पूरा फिऩलैंड लूथर का अनुयायी हो गया। मीकाएल अग्रीकोला को फिनिश भाषा को आधुनिक लिपि प्रदान करने का श्रेय भी जाता है। उन्होंने ही बाइबिल का फि़निश में अनुवाद किया था। 14वीं सदी के अंत तक फिऩलैंड का स्वीडिश राजशाही में पूरी तरह से विलय हो गया था और वह लगभग दो सौ साल उसके आधीन रहा। उस काल में यहां की राजधानी स्वीडन के नजदीक होने के कारण तुर्कू शहर में हुआ करती थी जिसे स्वीडिश में ओबू कहते थे।
तुर्कू का दुर्ग
1280 ईस्वी में स्वीडन के सम्राट के आदेश पर तुर्कू के दुर्ग का निर्माण शुरू हुआ। 1556 में गुस्ताफ वासा ने अपने बेटे जोहेन को फिऩलैंड का गवर्नर निर्धारित किया जिसके शासन काल में दुर्ग के निर्माण का एक नया चरण शुरू हुआ। यह दुर्ग विभिन्न कालों में कभी गैरिसन पोस्ट, कभी राजमहल तो कभी बन्दीगृह और प्रबंधन केंद्र आदि के रूप में इस्तेमाल होता रहा। गवर्नर जनरल पीटर ब्राहे 1600 ईस्वी में इसी के अगले हिस्से में दरबार लगाया करते थे। 1941 में रूसी बमबारी में दुर्ग बुरी तरह से तबाह हो गया था। युद्ध के बाद इसकी मर मत की शुरूआत हुई जो 1961 में पूरी हो सकी। पुनर्निर्माण में सारे कक्षों को अपने मूल रूप में ले आया गया। 1981 से दुर्ग में तुर्कू नगर का ऐतिहासिक संग्रहालय है और यह तुर्कू नगर का प्रतीक है और यहां आने वाले सैलानियों के लिए प्रमुख आकर्षण।
तुर्कू कैथेड्रल
तुर्कू कैथेड्रल इवांगेलिय लूथरी चर्च का मातृ चर्च है। यह तुर्कू की आर्कबिशपीय का केंद्रीय चर्च है और फिऩलैंड के आर्कबिशप की गद्दी है। यह भी शहर का सुपरिचित प्रतीक है जो शहर के बीच पुराने केंद्र में स्थित है। चर्च 13वीं सदी के अंत में मूलत: लकड़ी से निर्मित हुआ था और इसे 1300 ईस्वी में फिऩलैंड के प्रमुख कैथेड्रल और तुर्कू के बिशप की गद्दी के बतौर समर्पित किया गया। प्रमुख रूप से पत्थर का इस्तेमाल करते हुए 14वीं और 15वीं सदियों में इसका व्यापक विस्तार किया गया। 1827 में तुर्कू की महान आगजऩी में कैथेड्रल को भारी नुक़सान पहुंचा। बाद में इसका बहुत हद तक पुनर्निर्माण किया गया। यहां हर दोपहर को बजते घंटों का स्वर राष्ट्रीय रेडियो से भी प्रसारित किया जाता है। इस इमारत का ऐतिहासिक महत्त्व है क्योंकि 1918 के क्रांति के प्रयास के दौरान जब तुर्कू पर रेड गार्डों का अधिकार हो गया था तो चौकसी पर्वत वेधशाला कहलाने वाली इस इमारत पर उनका अधिकार हो गया था क्योंकि ऊँची जगह पर होने के कारण पूरे शहर पर नजऱ रखी जा सकती थी।
तुर्कू कला संग्रहालय
ग्रेनाइट से बनी यह इमारत अपने आप में एक स्मारक है। यह 1904 में बनकर पूरी हुई थी। इसका डिजाइन प्रोफ़ेसर गुस्ताफ निस्ट्रेम ने तैयार किया था। इसके संग्रह अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं और लगातार आधुनिक कलाकारों की कृतियां इसके संग्रह में ली जाती हैं।
अन्य प्रमुख शहर
हेलसिंकी
बाल्टिक समुद्र के तट बसा सवा छह लाख की आबादी वाला यह शहर फिऩलैंड की राजधानी है। अर्काडिया पहाड़ी पर वास्तुकार जेएस सिरेन द्वारा डिजाइन किया गया, 1931 में बना फिऩलैंड का संसद भवन स्थित है।
फिऩलैंडिआ भवन: विश्व विख्यात वास्तुकार अल्वर आलतो ने फिऩलैंडिया भवन की रूपरेखा 1962 में तैयार की और वह 1971 में बन कर तैयार हुआ। 1973 में यूरोपीय सुरक्षा एवं सहयोग स मलेन के विदेश मंत्रियों की बैठक यहां हुई। फिर 1975 में फिऩलैंडिया भवन में तीसरा शिखर स मलेन संपन्न हुआ जिसमे 35 देशों के प्रमुखों ने भाग लिया था।
तामपेरे नगर
स्वीडन के सम्राट गुस्ताव तृतीय ने 1775 में ता मेर धारा-नहर के किनारे तामपेरे की स्थापना की थी। 19वीं सदी में यह एक बड़े व्यवसायी और औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में शहर के औद्योगिक स्वरूप के कारण इसे उत्तर का मैनचेस्टर, फिनिश में संक्षिप्त रूप से मानसे कह कर पुकारा जाने लगा। 1918 में कुछ समय तक वामपंथी क्रांतिकारियों के अधिकार में भी रहा था। इस समय इसकी जनसं या लगभग साढ़े तीन लाख है।
कुओपिओ नगर
मध्य-पूर्व फिऩलैंड में स्थित 112,158 जनसं या वाला एक सुन्दर शहर है। उन्नीसवीं सदी के मध्य की फिनिश साहित्य की प्रथम महिला लेखिका मिन्ना कांथ ने अपने जीवन का एक बड़ा भाग इसी शहर में लेखन करते हुए बिताया था।
रोवानिएमी नगर
यह फिऩलैंड के सबसे उत्तर प्रान्त लैपलैंड की प्राबंधिक राजधानी है जो उत्तर ध्रुवीय घेरे से 10 किलोमीटर दक्षिण में है। इसकी आबादी 62,000 है और इसके पास ही में सांता क्लॉज का प्रमुख कार्यालय स्थित है। दूसरे विश्व युद्ध में रूस-फिऩलैंड शांति समझौते के तहत फिऩलैंड को अभी तक के अपने सैन्य सहयोगी जर्मनी के साथ युद्ध में उलझ गया क्योंकि रूस की मांग थी कि फिऩलैंड लैपलैंड से जर्मन सेना को खदेड़े जिसपर पीछे हटती जर्मन सेना ने पूरे रोवानिएमी को फूंक डाला था।
सांता का दफ्तर : फिनलैंड के उत्तरी भाग में स्थित लेपलैंड सांताक्लाज का घर माना जाता है। यहां चार सौ बरस से सांताक्लाज का द तर बाकायदा चलता है। इसके पते पर डाक दुनिया भर से आती है और लाल वस्त्र धारी दढिय़ल सांताक्लाज हर खत का जवाब भी देते हैं। यहां की बर्फीली जमीनों पर भले ही सांताक्लाज की रेनडियर जुड़ी गाड़ी अब न फिसलती हो पर लेपलैंड के जंगलों में आज भी हजारों रेनडीयर्स कुलांचें भरते नजर आ जाते हैं। इस क्षेत्र में रह रहे पांच हजार सामी आदिवासी रेनडीयर्स की अस्थियों और जंगल की लकडिय़ों से बहुविध चीजें बनाने में कुशल हैं। सर्दियों में लेपलैंड जाएंगे तो उन्मुक्त विचरते रेनडियर्स के झुंडों और नार्दन लाइट्ïस की नरम मुलायम रोशनी का जी भर कर नजारा ले सकेंगे और यदि आपका चक्कर गर्मियों में लगे तो भी चौबीस घंटों चमकती धूप और सूरज की रोशनी का अद्भुत नजारा आपको चमत्कृत कर देगा। वहीं फिनलैंड के दक्षिणी पूर्वी भाग में स्थित लेपलैंड तो जंगलों, झीलों और द्वीपों की ऐसी रमणीक छटाओं से भरा है कि सदियों तक स्वीडन और रूस के बीच यह विवाद की जड़ बना रहा।
राजनीतिक उथल-पुथल
स्वीडन और रूस के बीच हुए क्रीमिया के समुद्री युद्ध में स्वीडन की पराजय के बाद फिऩलैंड रूस के ज़ार के आधीन हो गया और परिणामस्वरूप हेलसिंकी को फिऩलैंड की राजधानी घोषित कर दिया गया क्योंकि वह रूस के निकट था। हेलसिंकी की स्थापना बतौर एक मछुआरे गाँव के हुई थी। 1809 में फिऩलैंड ने रूस के ज़ार अलेक्ज़ांद्र को अपना शासक स्वीकार कर लिया।
अक्तूबर 1917 में फिऩलैंड में एक दक्षिणपंथी सरकार का गठन हुआ। लेकिन रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित हो कर यहां भी क्रांति की कोशिशें हुईं। उसके लिए रूस से क्रांतिकारी फिऩलैंड आए। क्रांति की शुरुआत में रेड फिन गार्डों ने हेलसिंकी और दूसरे बड़े शहरों पर कब्ज़ा कर लिया। जवाब में जनरल गुस्ताफ मान्नेरहाईम ने श्वेत फिन गार्डों का नेतृत्व किया। अप्रैल 1918 में उन्होंने तामपेरे पर फिर कब्ज़ा कर लिया। उधर मान्नेरहाईम के निमंत्रण पर 15,000 जर्मन सैनिक भी फिऩलैंड आ गए और उन्होंने हेलसिंकी को अपने अधिकार में ले लिया। इस तरह मई के मध्य तक क्रांति का पूरी तरह से दमन दिया गया। परिणामस्वरूप 8,000 रेड गार्डों की हत्या की गई और बाद में बंदी शिविरों में भी 12,000 लोग अपनी जानें गवां बैठे।
लेकिन फिनलैंड और वामपंथी रूस में लगातार टकराव चलता रहा। 1929 में मध्य फिऩलैंड के लापुआ शहर में वामपंथियों ने प्रदर्शन किया जिसके जवाब में फ़ासीवादियों ने वामपंथी विरोधी आंदोलन खड़ा किया जो लापुआ आंदोलन कहलाया। स्टालिन के काल में 30 नव बर 1939 को सर्दियों के महीने में युद्ध शरू हुआ। हालांकि फिन सं या में कहीं काम थे फिर भी वे बहादुरी से लड़े। बहरहाल 12 फऱवरी 1940 को रूसी सैनिक फिनों की मन्नेरहाईम सुरक्षा लाइन को भेद कर अंदर घुस आए। फिऩलैंड शांति समझौता करने को विवश हुआ जिसके तहत उसे अपना काफी इलाका रूस को देना पड़ा। इस लड़ाई में लगभग 22 हज़ार फिन मारे गए थे।
फिर जून 1941 में फिऩलैंड ने जर्मनी के साथ मिल कर रूस पर हमला किया। उस समय तो फिनों ने तुरंत ही रूस के हाथों अपने पहले गंवाए इलाके वापस हथिया लिए। लेकिन दिसंबर 1941 में इंग्लैंड ने फिनलैंड के साथ युद्ध घोषित कर दिया और 1943 में स्टालिनग्राद में जर्मनी की पराजय के बाद फिनों ने युद्ध से बाहर निकलना ही उचित समझा। मार्च 1944 में बातचीत शुरू हुई। पहले तो फिऩलैंड ने रूस की मांगों को अस्वीकार कर दिया। लेकिन बाद में हार निश्चित देख कर फिऩलैंड ने रूस के साथ 5 सितंबर 1944 में शांति समझौता कर लिया। युद्ध के बाद फिऩलैंड को फिर एक बड़ा इलाका रूस को देना पड़ा। युद्ध का बहुत भारी मुआवज़ा भी रूस को चुकाना पड़ा। युद्ध में 85,000 फिनों ने अपनी जानें गंवाई थीं। बहरहाल 1947 में फिऩलैंड ने रूस के साथ अंतिम शांति संधि कर ली। सोवियत संघ के विघटन के बाद 1992 में इसी संधि को नया रूप दे दिया गया।
आर्थिक तरक्की
फिऩलैंड के दक्षिण-पूर्वी कारेलिया क्षेत्र को रूस को सौंपने के बाद वहां से लगभग 450,000 शरणार्थी फिऩलैंड आए जिसने उसकी अर्थव्यवस्था भारी दबाव पड़ा लेकिन उसने उसे भी झेल लिया। युद्ध का मुआवज़ा चुकाने का एक बहुत बड़ा लाभ फिऩलैंड को भी हुआ। समझौते के अनुसार मुआवज़े को औद्योगिक उत्पादों के रूप में चुकाया जाना था। इसके चलते यहां चालीस सालों में खासा औद्योगिक विकास हुआ। 1970 से फिऩलैंड की अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से उन्नति की। 1980 के दशक मध्य और अंत में फिऩलैंड की अर्थव्यवस्था ने फिर र तार पकड़ी जो 1990 के दशक की शुरुआत की मंदी से ठहर गयी। उस संकट के दौर में वहां बेकारी तेज़ी से बढ़ी। इसी तरह 2009 की विश्व्यापी मंदी ने भी फिऩलैंड की अर्थव्यवस्था को काफी कमजोर किया। कल्याणकारी राज्य की जो उसकी छवि हुआ करती थी, वह धुंधली पडऩे लगी।
दूसरे विश्व युद्ध से पहले फिऩलैंड में मुख्य व्यवसाय खेती हुआ करता था। 1945 से धातु, इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों में बढ़ोत्तरी हुई है। मोबाइल फोनों की विश्वविख्यात ब्रांड नोकिआ फिऩलैंड की ही देन है। लेकिन फिर भी स्कैंडेनेविया इलाके के अन्य देशों की तुलना में फिऩलैंड कम औद्योगिक है।फिऩलैंड में आय का प्रमुख साधन लकड़ी है। उसके कुल क्षेत्रफल का साठ फीसदी जंगलों से ढंका हुआ है। इस समय फिऩलैंड की कुल जनसंख्या 54 लाख है जिसमें से तुर्कू की जनसंख्या लगभग ढाई लाख है।
साहित्य
1835 में ग्राम चिकित्सक एलीआस लेनरूथ ने गाँव-गाँव घूम कर लोक कथाओं को एकत्रित कर कालेवाला नामक फि़निश महाकाव्य प्रकाशित किया (इसका कुछ साल पहले विष्णु खरे ने हिंदी में अनुवाद किया और राजकमल प्रकाशन ने उसे प्रकाशित किया। इसके लिए खरे को यहां सम्मानित भी किया गया था)। इसी तरह 19वीं सदी के मध्य में एस्तोनिया में एफ़आर क्रेउतज़वाल्ड ने भी वहाँ की लोककथाओं को संग्रहित करके वहाँ का महाकाव्य कलेविपोएग यानि कालेव का बेटा प्रकाशित किया था। (उसका हिंदी अनुवाद भी विष्णु खरे ने ही किया है।)
मौसम के रंग
पहली मई को फिनलैंड में बर्फ पिघलने के साथ ही बसंत का आगमन हो जाता है। इसे फिनिश उत्सव के तौर पर मनाते हैं। सारे देश में रंग-बिरंगे मेलों का आयोजन होता है महीने भर बाद पहली जून से गर्मियों की आहट होने लगती है तो ठिठुराई देहों को उष्मा का आनंद देने के लिए फिनिश समर कॉटेजों में डेरा डाल लेते हैं। जुलाई बीतते-बीतते गर्मियां बीत जाती है और अगस्त-सितंबर हार्वेस्ट सीजन के तौर पर आ जाते है। नवंबर में कड़ाकेदार सर्दी के बावजूद साहसी सैलानियों की कमी नहीं रहती क्योंकि वे ध्रुवीय जलवायु का सानिध्य पाने को लालायित रहते हैं।
खास बातें
- फिऩलैंड को फि़निश भाषा में सुओमी (suomi) कहते हैं। फिऩलैंड नाम तो स्वीडन का दिया हुआ है। फि़निश भाषा भी हिंदी की ही तरह है— जैसे लिखी जाती है वैसे ही बोली भी जाती है।
- फिनलैंड 1906 में यूरोप में पहला देश था जहाँ महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया।
- 1902 में फि़निश के साथ-साथ स्वीडिश को फिऩलैंड की राजकीय भाषाएं घोषित किया गया।
- 1995 में फिऩलैंड यूरोपीय संघ और 1999 में यूरो आर्थिक क्षेत्र का सदस्य हो गया।
- वर्ष 2000 में सोशल डेमोक्रेट तार्या हलोनेन फिऩलैंड की पहली महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुईं। उसी साल हेलसिंकी ने 450वीं साल गिरह मनाई थी। फिर वह दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुनी गईं थी।
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