Sunday, November 24
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देश-दुनिया के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र ही कुल्लू घाटी में पसरी बर्फ। इसलिए मनाली से रोहतांग तक पर्यटकों की आमद यहां लाखों लोगों के रोजगार का जरिया बन जाती है। बर्फ मानो चांदी की बरसात लेकर आती है।

बसंत के बाद मैदानों की तपिश जैसे-जैसे बढ़ने लगती है, देश भर का पर्यटक इससे कुछ निजात पाने के लिए पहाड़ों की ओर रुख करने लगता है। ज्यों ज्यों मैदान ज्यादा गर्म होने लगते हैं त्यों त्यों पर्यटकों का यह रेला बढ़ता जाता है, मगर फिर जैसे ही मानसून दस्तक दे देता है तो यह सिलसिला एकदम से रुक जाता है, पूरी घाटी सूनी हो जाती है।

यहां की खूबसूरती मन मोहने वाली है

लेकिन बदलते हालात में अब पर्यटकों की पसंद भी बदलने लगी है और वह जहां गर्मी से निजात पाने के लिए पहाड़ों की ओर रुख करते हैं, वहीं उनकी पसंद बर्फ पर कूदना, भागना, गिरना, पड़ना, फिसलना, उड़ना और अठखेलियां करना भी हो गया है। बर्फ के फाहों को गिरते हुए देखना या जमीन पर बर्फ की बिछी सफेद चादर को देख कर रोमांचित होना युवा पर्यटकों व जोड़ों के लिए सबसे पसंदीदा बनने लगा है और इसके लिए हिमाचल प्रदेश की कुल्लू-मनाली घाटी सबसे अधिक पसंद देश व दुनिया के पर्यटकों के लिए बनती जा रही है।

इस घाटी में शीतकालीन रोमांचिक खेलों की बात हो या फिर निजी तौर पर घाटी के हजारों युवाओं द्वारा अपनाए गए स्वरोजगार के माध्यम से पर्यटकों को लुभाने के लिए किए गए प्रयास हों, हर साल करोड़ों की आमदनी का जरिया बन गया है। इसकी शुरुआत विश्व प्रसिद्ध सोलंग नाला घाटी से होती है जहां पर पहली ही बर्फबारी में बर्फ की मोटी तह बिछ जाती है और फिर यहीं से जनवरी महीने में शुरू हो जाता है शीतकालीन रोमांचक खेलों व मनोरंजन का सफर।

सोलंग नाला तो हिमाचल में पर्यटकों की पहली पसंद बन गया है क्योंकि यहां की ढलानदार पहाड़ी, उसके आंचल में पसरा लंबा चौड़ा मैदान, पीछे दूर-दूर तक नजर आतीं आसमान को छूती बर्फ से लक दक चोटियां, बीच में देवदार के पेड़ों की क्रमबद्ध श्रृंखला यह सब मिल कर किसी स्वर्ग लोक की कल्पना का दृश्य बना देते हैं और यही पर्यटकों के लिए रोमांच बन जाता है।

इसी सोलंग नाला से शुरू होता है चार से पांच महीनों तक चलने वाले बर्फ पर रोमांचक खेलों व पर्यटकों को रिझाने का क्रम। एक नहीं, अनेकों तरीकों से यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को रोमांचित किया जाता है। हवा में उड़ते ग्लाइडर हों या बर्फ पर तेजी से चलते हुए स्नो स्कूटर, उपर ढलान से तेजी से नीचे आते स्कीयर हों या फिर बड़े टायर टयूब में हवा भर कर उसमें बिठाए जोड़ों को ढलान से सरपट उतारने का नजारा, कहीं याक पर बैठ कर बर्फानी सफर का आनंद लेने की बात हो या फिर बर्फ से बनाए गए प्रेम स्थल में बैठकर फोटो खिचवाने की बात हो, कुल्लू के पट्टीदार शॉल को पहनकर पहाड़ी वेशभूषा में पीठ पर किरटू डाल कर चित्र उतारने का शौक हो या फिर अंगोरा खरगोश को गोद में लेकर मन रोमांचित करने का, बर्फ की तह पर हर सुविधा पर्यटकों के लिए हाजिर होती है।

मनाली जाने वालों के लिए नया आकर्षण है सोलंग घाटी

यह सब जहां एक तरफ ग्रामीण स्वरोजगार में बड़ा योगदान करती है तो दूसरी तरफ दूर देश से आए पर्यटक की हर इच्छा को पूरा कर देती है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिए बर्फ के इस खेल में हर रोमांच मौजूद रहता है।

सोलंग नाला से आगे चलते हुए ज्यों ज्यों नीचे बर्फ पिघलने लगती है यह सारा रोमांच भी आगे से आगे ऊपर से ऊपर खिसकता चला जाता है। सोलंग नाला के बाद एक घाटी धुंधी और वहां से होकर ब्यास कुंड तक जाती है और दूसरी घाटी पलचान से रोहतांग तक जाती है। उसमें हर रोज यह स्नो प्वाइंट बदलता जाता है। कोठी, फिर गुलाबा और वहां से आगे राहला फाल फिर ब्यास नाला। निचले इलाकों में जब मौसम गर्म होने लगता है तब भी इस घाटी में बर्फ की यह चादर उसी रूप में ऊपर से ऊपर चढ़ते हुए कायम रहती है, जैसे सर्दियों में होती है। मई महीने तक मढ़ी, रानी नाला और रोहतांग दर्रे तक यह रोमांच बना रहता है।

यहां हर तरह का रोमांच उपलब्ध है

शीतकालीन खेलों के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन विभाग की कोशिशें भले ही उतनी कामयाब नजर नहीं आती हों, मगर पूरी घाटी में दिसंबर के अंत से मई के मध्य तक पर्यटकों के लिए रोमांच से भरी आकर्षक और मनोरंजक सुविधाएं उपलब्ध करवाने वाले हजारों लोग ही इस घाटी में पर्यटकों को लुभाने के लिए बहुत बड़ा जरिया बन गए हैं। अपने ही स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों के बीच कहीं नहीं लगता कि सरकार को ही यह काम करना चाहिए। स्वरोजगार के साथ साथ पर्यटकों का मनोरंजन जिस तरह से कुल्लू-मनाली घाटी में हर साल होने लगा है, वह यही साबित करता है कि यहां के लिए बर्फ महज खेत खलिहानों में खुशहाली तक सीमित नहीं है, गर्मियों के लिए पानी का जरिया मात्र भी नहीं है, बल्कि यहां तो बर्फ जीवन का जरूरी हिस्सा है, जिसके साथ देश-विदेश के लाखों पर्यटक और घाटी के हजारों नौजवान व हर वर्ग के लोग जुड़े हैं।

बर्फीले वीराने की सैर

सोलंग घाटी चूंकि पहाड़ों के ज्यादा नजदीक है इसलिए यहां बर्फ मनाली से भी काफी ज्यादा पड़ती है। सोलंग घाटी की लोकप्रियता में इजाफा यहां के बर्फ के ढलानों की वजह से हुआ है। इनकी वजह से इस जगह को स्कीइंग के लिए कश्मीर में गुलमर्ग और उत्तराखंड में ऑली के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। गुलमर्ग के लिए चूंकि श्रीनगर होकर जाना होता है और कश्मीर घाटी में राजनीतिक स्थिति को लेकर हमेशा संशय बना रहता है, इसलिए वहां का सीजन किसी भी उठापटक की स्थिति में तुरंत डांवाडोल हो जाता है। उधर उत्तराखंड में ऑली के लिए समय पर व सुरक्षित पहुंच अब भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि वहां से हवाई अड्डा ढाई सौ किलोमीटर दूर है और सड़कों के हाल भी उतने अच्छे नहीं हैं। इसीलिए सोलंग घाटी तेजी से स्कीइंग प्रेमियों के लिए भी पसंदीदा बनती जा रही है, यहां पहुंचना भी आसान है। सर्दियों में अब यहां स्कीइंग के कोर्स भी होने लगे हैं और कई निजी ऑपरेटर स्कीइंग का साजो-सामान लेकर यहां सैलानियों के लिए मौजूद रहते हैं। सैलानियों की आवक बढऩे से अब यहां आसपास और मनाली से सोलंग के रास्ते के गांवों में कई रिजॉर्ट व होटल भी बन गए हैं। मनाली की भीड़ से बचने के लिए भी अब सैलानी थोड़ा ऊपर की ओर चले जाते हैं।

कैसे पहुंचें: शिमला या चंडीगढ़ से मनाली के लिए सीधी बसें उपलब्ध हैं। चंडीगढ़ से मनाली 310 किलोमीटर, शिमला से मनाली 250 किलोमीटर दूर है। कुल्लू से 10 किलोमीटर पहले भुंतर हवाई अड्डे पर उतर कर आसानी से 50 किलोमीटर दूरी पर मनाली पहुंच सकते हैं। भुंतर के लिए दिल्ली-चंडीगढ़ से उड़ानें हैं। मनाली से सोलंग घाटी 13 किमी की दूरी पर है।

बर्फ में श्रद्धा का शिवलिंग

खास बातें

सोलंग नाला से तीन किलोमीटर ऊपर नाले में एक शिवलिंग प्वाइंट भी है, जहां बर्फ का 50 फुट ऊंचा प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। यह होली तक ही रहता है। उसके बाद पिघलना शुरू हो जाता है। मार्च मध्य से स्नो प्वाइंट पलचान से उपर कोठी, फिर गुलाबा और अप्रैल-मई तक यह ब्यास नाला होकर मढ़ी तक पहुंच जाता है। मई के मध्य व जून तक यह रोहतांग जोत तक पहुंच जाता है। स्नो प्वाइंट तक जाने के लिए अपनी गाड़ी ले जाने का जोखिम न उठाएं, शरीर को गर्म से गर्म कपड़ों से ढंक कर रखें। बर्फानी हवाओं से बचने के लिए सिर पर गर्म टोपी व गले में मफलर आदि भी बांध रखें। पहाड़ों में दोपहर बाद से मौसम तेजी से बदलता है। हवा तेज हो जाती है। सूरज ढलते-ढलते आप कंपकंपाने लगते हैं। बहुत जरूरी है कि जब आप पहाड़ पर बर्फीले इलाकों में जाएं तो वहां की कुदरत की तासीर को समझें और उस हिसाब से एहतियात बरतें। बर्फ में नाले की ओर ढलान की तरफ जाने का जोखिम न उठाएं।

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