उत्तर भारत के हिमालयी राज्यों में बसे उन खूबसूरत छावनी नगरों में से एक है लैंसडौन जिन्हें अंग्रेजों ने स्थापित किया था। इसलिए लैंसडौन का इतिहास तो पुराना नहीं, लेकिन फिर भी वह पहाड़ में बसे बाकी हिल स्टेशनों की तुलना में शांत है। लेकिन हकीकत यह भी है कि अंग्रेजों ने छावनियां बनाने के लिए उन्हीं जगहों को चुना भी था जहां प्रकृति ने भी जमकर खूबसूरती बिखेरी थी। इसीलिए उत्तराखंड में लैंसडौन शहर बसाने की इंसानी मेहनत के साथ कुदरत की नियामत का बढ़िया मेल है दिल्ली से निकटता के अलावा लैंसडौन की कई खूबियां बार-बार यहां आने को आमंत्रित करती हैं। अन्य हिल स्टेशनों में चौतरफा कंक्रीट के जंगलों के उगने से वह उतने नैसर्गिक नहीं रहे जितना कि गढ़वाल के पौड़ी जिले में स्थित लैंसडौन। यहां प्रकृति को उसके अनछुऐ रूप में देखा जा सकता है। आज भी यह सैलानियों व वाहनों की भीड़ और शोर व प्रदूषण से दूर यह एक बेह...
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Goddess Nanda Devi dancing through her priests and followers at Latu temple in Waan village of Uttarakhand during the Nanda Devi Rajjat Yatra. Much awaited event of Yatra takes place at Latu temple atop a hill at Waan village. This village and the dance are one of the most important events of the Nanda Devi Rajjat Yatra, that happens once in minimum 12 years. The last of this 'Himalayan Kumbh', as it is called, started on 18th August 2014 and concluded on 7th September 2014. This 20 day, 290 km pilgrimage passes through some of the most beautiful and tough trekking routes in this part of Himalayan ranges. Latu is considered to be the brother of Goddess Nanda, and once the Yatra reaches at Waan, then on the further route its Latu who leads the yatra. https://youtu.be/KxqEkszoqe4 ...
Read Moreउत्तराखंड में चारधाम यात्रा के साथ-साथ अब फूलों की घाटी भी राज्य के बाहर से आने वाले सैलानियों के लिए खोल दी गई है। यानी अब आप इस अनूठी जगह का आनंद ले सकते हैं। इसका यही सबसे उपयुक्त समय है। बस आपको पहले से तय कोविड-19 दिशानिर्देशों का पालन करना होगा जिसमें उत्तराखंड में प्रवेश करने से ठीक पहले के 72 घंटों के भीतर कराए गए कोविड-19 के आरटी-पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट सबसे अहम है। तब तक हम आपको दिखला रहे हैं इस कुदरती करिश्मे की झलक। पुष्पावती नदी के दोनों तरफ फैली है फूलों की घाटी भारत में यूं तो कई प्राकृतिक घाटियां हैं जहां कुदरती तौर पर फूल खिलते हैं, और यह भी पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कि मध्य व दक्षिण-मध्य भारत के पठार वाले इलाकों से लेकर सुदूर उत्तर-पूर्व में निचले हिमालय के पहाड़ों तक इन तमाम घाटियों की खूबसूरती एक से बढ़कर एक है। इनमें से कई तो ऐसी भी हैं जो भले ही स...
Read MoreUnion Minister Nitin Gadkari has said that massive work is underway for highways construction and almost 85 per cent work has been completed on the Kailash Mansarovar route via Pithoragarh. In addition, work is on in full swing on the Chardham project entailing a cost of about Rs 12,000 crore, the road transport and highways minister said while addressing an event through video conferencing. Work being done on the Yatra route "85 per cent work on Kailash Mansarovar route via Pithoragarh has been completed. Once it is completed, I will take Prime Minister to Mansarovar via Pithoragarh," Gadkari said. The minister had recently complimented the Border Roads Organisation (BRO) for completing the work of road connectivity from Dharchula to Lipulekh, popularly known as Kailash Mansarovar ...
Read Moreकोरोना की वजह से उत्तराखंड के देवीधुरा के वाराही धाम में लगने वाले प्रसिद्ध बग्वाल (पाषाण युद्ध) मेले को इस साल निरस्त कर दिया गया है। इस बार न तो मेला लगेगा और न ही सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। कुछ दिन पहले तय हुआ था कि रक्षाबंधन के दिन खोलीखांड दुबचौड़ मैदान में परंपरा को जीवित रखने के लिए सांकेतिक बग्वाल खेली जाएगी। लेकिन अब यह फैसला हुआ है कि अब बग्वाल के दिन मंदिर में केवल पूजा-अर्चना ही होगी। सिर्फ मंदिर समिति को प्रवेश की अनुमति मिलेगी। वाराही धाम में सांकेतिक बग्वाल भी नहीं होगी। रक्षाबंधन पर मंदिर समिति और चार खाम से जुड़े लोग केवल पूजा अर्चना करेंगे। ग्रामीणों को घरों में देवी का प्रसाद भेजा जाएगा। चार अगस्त को देवी का डोला मुचकुंद ऋषि आश्रम जाएगा। इस डोले में भी चार से अधिक लोग शामिल नहीं हो सकेंगे। लिहाजा बग्वाल होगा नहीं, लेकिन हम आपको बता रहे हैं, इससे जुड़ी कहानी जिसन...
Read Moreशहर की भीड़ भाड़ की जिंदगी से जब कभी मन ऊब जाए तो कुछ दिन पहाड़ों के साथ बिताने चाहिए। इससे मन तरोताजा हो जाता है और अपने निजी जिंदगी के काम में दोगुनी ताकत का एहसास होता है। इस बार तो वैसे भी कोरोना महामारी के कारण हम चार महीने घरों में कैद हो गए थे। उसके बाद उत्तराखंड उन कुछ राज्यों में से है जो सैलानियों को आने की इजाजत दे रहा है। तो क्यों न मौके का फायदा उठाया जाए। लिहाजा इस बार हम गंगोत्री और इसके आसपास की सैर को चल रहे हैं। गंगोत्री मंदिर धार्मिक महत्व के लिहाज से गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में से एक महत्वपूर्ण धाम है। गंगोत्री समुद्र तल से 3,048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक सालों में एक गोरखा कमांडर द्वारा गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था। यह मंदिर 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगा नदी के मंदिर के लिए गंगोत्री...
Read MoreA video never seen before of the mysterious Patal Bhuvaneshwar cave temple of Uttarakhand, as till now the photography or the videography was not allowed inside the cave. A video recorded for the first time. Patal Bhuvaneshwar is one of the most revered cave temples in India and perhaps the most mysterious as well. It is located near Gangolihat town in Pithoragarh district of Uttarakhand. This limestone cave is 160 metres long and 90 feet deep. It is tough to go inside as there is a narrow passage down the cave where one has to slide down with the help of chains. Oxygen inside is less, hence there is a chance of suffocation or breathlessness. Cave temple is said to have a deep association with Hindu mythology. Undoubtedly it has some very amazing stalactite and stalagmite figures carved o...
Read MoreA grand war memorial named 'Pancham Dham' will be built in Dehradun to honour martyrs from Uttarakhand, Chief Minister Trivendra Singh Rawat said on Saturday. "A piece of land has already been identified in the city for the purpose. We have not been able to lay its foundation stone due to coronavirus pandemic but it'll be done soon." "The grand war memorial named 'Pancham Dham' will be built in the memory of our martyrs," Rawat told reporters. The name 'Pancham Dham' carries a reference to char dham, the four revered Himalayan temples located in the state. Remembering heroes of the Kargil victory, Rawat said they showed unprecedented valour in the battle fought under extremely difficult conditions. "The conditions in which India won the Kargil war were extremely difficult but ou...
Read Moreभादो (भाद्रपद) के महीने में होली, वह भी रंगों से नहीं बल्कि छाछ-मक्खन से! चौंकिए मत। हमारे देश में इतनी जबरदस्त सांस्कृतिक विविधता है कि यहां तरह-तरह के अनूठे त्यौहार मनाए जाते हैं। कुछ से तो हम वाकिफ हो जाते हैं और कुछ इतने दूर-दराज के इलाके में होते हैं कि उनके बारे हम कम ही जान-सुन पाते हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में रैथल ऐसी ही एक जगह है। रोमांच प्रेमियों में रैथल की लोकप्रियता और भी वजहों से है, खास तौर पर दयारा बुग्याल के कारण। रैथल वहां के लिए बेस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। रैथल गांव अपने आप में बहुत खूबसूरत है और खासी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत भी अपने में समेटे हुए है। लेकिन फिलहाल हम बात कर रहे हैं, यहां की इस अनूठी होली की। दयारा बुग्याल को जाता रास्ता उत्तरकाशी से गंगोत्री जाने वाले रास्ते पर जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर समुद्र तल से करीब दस हजार फु...
Read MoreTraditional folk dance at Waan during Nanda Devi Rajjaat Yatra 2014. Last inhabitated village on Rajjaat route towards Bedini Bugyal, Waan is famous for its Latu temple. Latu is considered to be brother of Goddess Nanda Devi. Here onwards Latu leads the Yatra till Homkund. The video here is of traditional 'Jhora' in Nanda Devi's praise by men & women in traditional attire. Most special are women ornaments, these ornaments also reflect their social status. Sung in local dialect, group of men first recite a couplet, which is repeated by the women folk. This can go on for hours, the flow of words and rhythm (steps as well) of dance keep on changing, but tempo remains the same. Normally it is a slow paced dance. People keep on joining or moving out of the sequence as per their convenience...
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