साल की आखिरी शाम को विदा करने और नए साल की पहली सुबह का स्वागत करने का ख्याल कुछ अलग ही तरीके से रोमांचित करता है। लेकिन हममें से ज्यादातर अपने आसपास की होटलों या रेस्तराओं की न्यू ईयर पार्टियों या डिनर से आगे सोच ही नहीं पाते। आखिरकार जाते साल की आखिरी शाम हमारे लिए बीते वक्त को याद करने की और नए साल की पहली सुबह नई उम्मीदें जगाने की होती है। छोड़िए होटलों की पार्टीबाजी और नाच-गाना। इस बार तो वैसे भी कोविड-19 के कारण पार्टियों का दौर कम रहेगा। हम आपको बता रहे हैं उन जगहों के बारे में, जहां भीड़-भड़क्के से दूर ढलते या उगते सूरज की लालिमा आपको भीतर तक आह्लादित कर देती है। सूरज के क्षितिज में समा जाने या उसे वहां से बाहर निकलते देखना सबसे सुकूनदायक पलों में से एक होता है। इनमें से कुछ जगहें ऐसी हैं जहां आप एक ही स्थान पर केवल अपनी नजरें घुमाकर शाम को सूर्यास्त और सवेरे सूर्योदय देख सकते हैं।
दार्जीलिंग में टाइगर हिल
यूं तो हिमालय में किसी भी जगह से बर्फीले पहाड़ों के पीछे से या घाटी में फैले बादलों में से उगते सूरज को देखना बेहद रोमांचकारी अनुभव होता है। लेकिन बहुत ही कम जगहों को इसके लिए उतनी ख्याति मिलती है जितनी दार्जीलिंग में टाइगर हिल को मिली है। टाइगर हिल दार्जीलिंग शहर से 11 किलोमीटर दूर है। दार्जीलिंग से यहां या तो जीप से पहुंचा जा सकता है या फिर चौरास्ता, आलूबारी होते हुए पैदल, लेकिन इसमें दो घंटे का समय लग सकता है। टाइगर हिल से सूर्योदय देखने की ख्याति इतनी ज्यादा है कि अल्लसुबह दार्जीलिंग से हर जीप सैलानियों को लेकर टाइगर हिल की ओर दौड़ लगाती नजर आती है ताकि वहां चोटी पर बने प्लोटफार्म पर सूर्योदय का नजारा देखने के लिए अच्छी जगह खड़े होने को मिल सके। हैरत की बात नहीं कि देर से पहुंचने वाले सैलानियों को यहां मायूस रह जाना पड़ता है। सूरज की पहली किरण जब सामने खड़ी कंचनजंघा चोटी पर पड़ती है तो सफेद बर्फ गुलाबी रंग ले लेती है। धीरे-धीरे यह नारंगी रंग में तब्दील हो जाती है। टाइगर हिल से मकालू पर्वत और उसकी ओट में थोड़ी छाया माउंट एवरेस्ट की भी दिखाई देती है। 1 जनवरी को बेशक थोड़ी सर्दी होगी, लेकिन टाइगर हिल से साल की पहली सुबह को प्रणाम करना एक बड़ा ही रोमांचक अनुभव होगा।
गोवा में गोता
निर्विवाद रूप से गोवा देश का सबसे लोकप्रिय तटीय डेस्टिनेशन है। दुनियाभर से सैलानी पूरे सालभर यहां जुटते हैं। गोवा की मौजमस्ती व खुलापन प्रेमी युगलों और नवदंपतियों को भी खासा लुभाता है। चूंकि गोवा पश्चिमी तट पर है इसलिए यहां आप अरब सागर में साल के आखिरी सूरज को सलाम कह सकते हैं। गोवा में कई लोकप्रिय बीच हैं और आप उनमें से किसी पर भी रेत पर पसर कर सूरज को धीरे-धीरे गहरे समुद्र में धंसता देख सकते हैं। और यकीन मानिए, गोवा के हर बीच पर आपको इस नजारे की खूबसूरती और उसके रंग अलग-अलग मिलेंगे। हर जगह समुद्र नई रंगत में होगा। पुर्तगाली संस्कृति का प्रभाव होने के कारण क्रिसमस व नया साल वैसे भी गोवा में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दियां होने के कारण भी गोवा में सैलानी खुशनुमा मौसम का मजा लेने ज्यादा आते हैं। इसलिए वहां जाने या रुकने की तैयारी अभी से कर लेनी होगी, देर की तो हो सकता है जगह ना मिले।
कन्याकुमारी का संगम
कन्याकुमारी हमारे देश की मुख्यभूमि का आखिरी सिरा है। यहां अद्भुत समुद्री संगम है। यहां पर बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर मिलते हैं। इसीलिए इसकी अहमियत किसी तीर्थ से कम नहीं। अंग्रेज इसे केप कोमोरिन के नाम से जानते थे। तमिलनाडु में नागरकोइल व केरल में तिरुवनंतपुरम यहां के सबसे नजदीकी शहर हैं। देश का आखिरी सिरा होने का भाव भी इसे देशभर के सैलानियों में खासा लोकप्रिय बना देता है। लेकिन यहां की सबसे अनूठी बात यह है कि यहां आप एक ही जगह खड़े होकर पूरब से समुद्र में सूरज को उगता हुआ भी देख सकते हैं और पश्चिम में समुद्र में ही सूरज को डूबता हुआ भी देख सकते हैं। यह अद्भुत संयोग आपको देश में और कहीं नहीं मिलेगा। इसीलिए हर साल 31 दिसंबर को बहुत सैलानी जुटते हैं। साल की आखिरी किरण को विदा करने और नए साल की पहली किरण का स्वागत करने के लिए। मौका मिले तो आप भी नहीं चूकिएगा अपने साथी के साथ यहां जाने से।
नंदा देवी का नजारा
बात सूरज के उगने या डूबने की हो तो उसकी किरणों से फैलते रंगों का जो खेल पानी में या बर्फीले पहाड़ पर देखने को मिलता है, वो कहीं और नहीं मिलता। इसीलिए सूर्योदय या सूर्यास्त देखने के सबसे लोकप्रिय स्थान या तो समुद्र (नदी व झील भी) के किनारे हैं या फिर ऊंचे पहाड़ों में। उत्तराखंड में कौसानी उन जगहों में से है जहां से आप नंदा देवी का खूबसूरत नजारा देख सकते हैं। यहां अनासक्ति आश्रम के प्रांगण से सूर्योदय का अद्भुत नजारा देखने के लिए अलस्सुबह पर्यटकों की भीड़ जमा हो जाती है। कौसानी का सूर्योदय दृश्य जग विख्यात है। अंधेरे को चीरता हुआ जब सूर्य एक प्रकाश पुंज की शक्ल में हिमशिखरों के पीछे से क्षितिज में उभरता है तो सूर्य के बढ़ते आकार के साथ पल-पल रंग बदलता दृश्य देखने लायक होता है। पर्यटक भी प्रकृति के इस अद्भुत नजारे को अपने कैमरे में कैद करने से नहीं चूकते। कन्याकुमारी की ही तरह कौसानी भी उन जगहों में से है जहां आप सूर्यास्त व सूर्योदय, दोनों का नजारा ले सकते हैं। नंदा देवी, त्रिशूल व चौखंभा जैसी चोटियां उत्तर की तरफ हैं, इसलिए आप यहां सवेरे पूर्व से सूरज के उगते समय हिमशिखरों पर लालिमा देख सकते हैं तो शाम को सूर्यास्त के समय इन्हीं चोटियों का पश्चिम की तरफ का हिस्सा रक्तांभ हो जाता है।
सम के टीलों पर आखिरी शाम
यह हमारे देश की भौगोलिक विविधता का ही करिश्मा है कि समुद्र व हिमशखिरों के बाद हम रेगिस्तान की बात कर रहे हैं। राजस्थान में जैसलमेर से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सम के टीले सूर्यास्त देखने के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं। खास तौर पर साल की आखिरी शाम को तो यहां टीलों पर मानो मेला सा लग जाता है। दूर-दूर से लोग यहां जुटते हैं। जैसे पानी के समंदर में डूबते सूरज की शान होती है, रेत के समंदर में डूबते सूरज का ठाठ भी कोई कम नहीं होता। भारत में यह सबसे खूबसूरत सूर्यास्त के नजारों में से एक माना जाता है। वैसे भी रेगिस्तान को देखने के लिए यही सबसे बेहतरीन समय माना भी जाता है।
अंडमान की पहली लालिमा
सुदूर दक्षिण-पूर्व में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के बीच भारत के सबसे खूबसूरत बीचों में गिने जाते हैं। अंडमान के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वे समुद्र के भीतर इतना दूर हैं कि वहां केवल जहाज से पहुंचा जा सकता है- चाहे वो हवा का हो या पानी का। चेन्नई व कोलकाता से सीधी उड़ान हैं और जहाज भी। नए साल की पहली सुबह को भारत में सबसे पहले समुद्र से उगते देखने का आनंद ही कुछ और है। वैसे भी हैवलॉक के राधानगर को दुनिया के सबसे बेहतरीन समुद्र तटों में से एक माना जाता है। राधानगर बीच पर सूर्योदय देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। लेकिन इस बार तो कोविड-19 की वजह से केवल हमारे ही देश के सैलानी यहां होंगे।
देश का पहला सूर्योदय डोंग में
हालांकि अंडमान से भी पहले देश में सूरज की लालिमा कहीं और पहुंचती है। अरुणाचल प्रदेश के डोंग को भारत के सबसे पूर्व का गांव माना जाता है। जाहिर है कि भारत में सबसे पहले सूरज की किरण इसी गांव में पड़ती है। और अगर यह किरण साल के पहले सूर्योदय की हो तो क्या कहने। देश में सबसे पहले नए साल का स्वागत करने का रोमांच ही निराला है। यह गांव भारत, चीन व म्यांमार के मिलबिंदु पर करीब 1,240 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, सामने डोंग घाटी पसरी है। यहां करीब 5 बजे सूरज उग जाता है। पहाड़ की ऊंचाई पर होने से सूर्योदय का रोमांच और बढ़ जाता है। पिछले दो दशकों से हर साल पहली जनवरी को यहां आने वाले सैलानियों की तादाद बढ़ती जा रही है।
चिलिका का अस्ताचल
ओडिशा के तीन जिलों- पुरी, खुर्दा व गंजम में फैली चिलिका झील भारत का सबसे बड़ा तटीय लैगून और दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा लैगून है। इसके अलावा भारतीय उपमहाद्वीप में सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों का सबसे बड़ा बसेरा है। कई पक्षी तो सुदूर रूस व मंगोलिया से 12 हजार किलोमीटर तक का सफर तय करके यहां पहुंचते हैं। झील दुर्लभ इरावडी डॉल्फिनों का भी घर है। बेहद खूबसूरत झील में पुरी या सातपाड़ा से नाव से जाया जा सकता है। कहने को यह झील है, लेकिन बीच झील में कई बार आपको चारों तरफ केवल समुद्र दिखाई देगा। चिलिका के सूर्यास्त की बात ही कुछ और है। नाव पर आप अपने साथी के साथ हों, चारों तरफ पक्षियों का कोलाहल हो और साल का आखिरी सूर्य पानी में लाल रंग भर रहा हो तो क्या नजारा होगा। जरूर सोचिएगा।
गंगा की निर्मल धारा
हालांकि हरिद्वार से नीचे गंगा का पानी अब ज्यादातर जगहों पर निर्मल नहीं रह गया है लेकिन ऋषिकेश अब भी इस लिहाज से सुकून देता है। चूंकि ऋषिकेश में गंगा के दोनों किनारों पर घाट व आश्रम हैं, इसलिए यहां आपको गंगा की धारा में सूरज को डूबते देखने का सुख तो नहीं मिलेगा, लेकिन सूरज की लालिमा में गंगा के पानी के बदलते रंगों का खूबसूरत नजारा बेशक देखने को मिलेगा। ऋषिकेश में सैलानियों का होहल्ला नहीं। वहां एक शांति है और सुकून है। अपने बीते साल पर नजर डालने और नए साल की उम्मीदें जगाने का इससे बेहतर स्थान और क्या हो सकता है। किसी शाम गंगा के किनारे किसी घाट पर बैठकर पानी को ताकते हुए आप घंटों गुजार सकते हैं। इसलिए अगर देश की एक-तिहाई आबादी से ज्यादा की जीवनदायिनी इस नदी के साये में या गंगा आरती देखते हुए इस साल को विदा करना चाहते हैं तो फिर ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन की तरफ से सूर्यास्त देखने का अनुभव अलग ही है।
एक रण कच्छ का
सबसे अंत में जिक्र देश में एक अनूठी जगह का और वह गुजरात में कच्छ का रण। हमने पहले थार के रेगिस्तान का जिक्र किया था, उसी के अनुरूप रण का सफेद नमक का रेगिस्तान भी खूबसूरती में एकदम अलग है। यहां आपको सब तरफ सफेद जमीन दिखाई देती है। शाम ढलते-ढलते यहां का नमक का रेगिस्तान कई रंग बदल लेता है। हमने देश के पहले सूर्योदय का जिक्र किया था, उसी तरह गुजरात में कच्छ में देश का आखिरी सूर्यास्त होता है, सर क्रीक में। बीते साल को याद करते हुए साल के आखिरी सूर्यास्त को यहां देखने का अलग अनुभव है।
साल की आखिरी शाम और नए साल की पहली सुबह ऐसी किसी सुहानी जगह पर बीते तो भला क्या बात होगी। पसंद है आपकी क्योंकि आखिर दिल है आपका।
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