कोरोना के बाद के दौर में घूमने के लिए यदि आप किसी भीड़-भाड़ व कोलाहल से मुक्त अनसुनी लेकिन निहायत खूबसूरत जगह की तलाश में हों तो हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित देवीदहड़ एक ऐसी ही जगह है
दुनिया में ऐसी बहुत सी जगहें हैं जो हमेशा सैलानियों से गुलज़ार रहती हैं। ये वे जगहें हैं जो विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपना स्थान बना चुकी हैं। परंतु ऐसे ही सुंदर पर्यटन स्थलों का किस्सा यहीं पर ही नहीं रुक जाता है। इन स्थलों की फेहरिस्त तब और लंबी हो जाती है जब हम उन स्थलों से रुबरु होते हैं जहॉं अभी दुनिया की नजर ढंग से पहुंच ही नहीं पाई है। ऐसे ही स्थानों में से एक है हिमाचल प्रदेश का देवीदहड़, जिसकी अनछुई खूबसूरती को देखकर सैलानियों के मुंह से बस ‘वाह-वाह’ के शब्द ही निकलते हैं।
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खजियार जैसी खूबसूरती
देवीदहड़ का नैसर्गिक सौंदर्य लोगों को इस कदर आकर्षित करता है कि एक बार यहॉं पहुंचने वाला बार-बार यहॉं आने की तमन्ना दिल में पाल लेता है। जिला मण्डी की ज्यूणी घाटी में स्थित यह छोटा-सा पर्यटक स्थल चम्बा के खजियार का भौगोलिक परिवेश याद दिला देता है। छोटी-सी ढलान पर बसा यह स्थल समुद्रतल से लगभग 7800 फुट की ऊॅंचाई पर स्थित है। इसे ‘मिनी खजियार’ की संज्ञा से भी नवाजा जाता है।
ज्यूणी घाटी
देवीदहड़ पहॅुंचने के लिए हमें बग्गी नामक जगह से होते हुए चैलचैक तक पहॅुंचना होता है। चैलचैक से थोड़ा-सा आगे गणेश चैक से सड़क दो हिस्सों में बॅंट जाती है। एक रास्ता जंजैहली घाटी तथा दूसरा देवीदहड़ के लिए मुड़ जाता है। जंजैहली घाटी के सौंदर्य के तो क्या कहने! जैसे धरती पर स्वर्ग। परंतु अभी हमें देवीदहड़ के रास्ते को चुनना है। देवीदहड़ के इस रास्ते पर हमें जिस प्रकार के प्राकृतिक सौंदर्य का दीदार होता है वह हमें इस इलाके का कायल बना देता है।
देवीदहड़ तक पहुंचने के लिए हमें कोट, शाला, जाछ, तुन्ना, धंग्यारा, जहल छोटे-बड़े गॉंव के बीच से होकर गुजरना होता है। इन सभी गॉंव की खूबसूरती, यहॉं का रहन-सहन, यहॉं की दिनचर्या हमें शहर के शोर-शराबे से कोसों दूर एक शांत इलाके की सैर करवाती है जो उम्र भर की सारी थकानों को जैसे छूमंतर कर देती है। यह सारा इलाका ज्यूणी घाटी में बसा है। इस पूरे इलाके से ज्यूणी खड्ड बहती है जिसके कारण इस पूरे इलाके को ‘ज्यूणी घाटी’ के नाम से संबोधित किया जाता है। यह पूरी घाटी बहुत ही ऊपजाऊ है। सीढ़ीनुमा खेत यहां की खूबसूरती में चार चॉंद लगाते हैं। इन खेतों में जहॉं हर साल गेंहू, मक्का, धान आदि की परंपरागत फसलें उगाई जाती हैं वहीं अब इन खेतों में लोग बहुतायत मात्रा में नकदी फसलें भी उगाने लगे हैं। आलू और मटर की फसल के लिए यह इलाका खूब जाना जाता है। सबसे स्वादिष्ट माने जाने वाला लाल चावल भी इसी घाटी में होता रहा है। यही नहीं इस पूरे इलाके में हमें ढेरों जड़ी-बूटियॉं मिलती हैं। बस, इनकी पहचान करने वाला होना चाहिए।
हर जगह खूबसूरती
चैलचैक से 17 किमी दूर बसे देवीदहड़ तक पहुंचते-पहुंचते हम प्रकृति की बेइन्तहा खूबसूरती को आत्मसात करते चले जाते हैं। इस रास्ते पर कहीं-कहीं बने लकड़ी के छोटे-छोटे पुल बहुत ही आकर्षित करते हैं। पहाड़ी से प्रस्फुटित छोटी-छोटी धाराएं, देवदार के जंगल, लहलहाते खेत, गॉंव का जनजीवन हमें असीम आत्मसंतुष्टि से भर देता है। सड़क मार्ग बेशक कई जगहों पर कच्चा भी है लेकिन इस प्राकृतिक सौंदर्य का सम्मोहन हमें इस कच्चे रास्ते की परेशानियों को भुलाता चला जाता है। जहल गॉंव के उपरांत जब हम देवीदहड़ की सीमा पर पहुंचते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम किसी काल्पनिक दुनिया में आ गए हों। ढलानदार सुंदर मैदान जो चारों ओर से देवदार के वृक्षों से घिरा है चम्बा के खजियार की खूबसूरती को ताजा कर देता है।
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दिलचस्प कथा
मैदान के ऊपर वाले हिस्से में हमें दर्शन होते हैं माता मुंडासनी के खूबसूरत मंदिर के। माता का यह मंदिर धार्मिक पर्यटन का खास आकर्षण है। मुंड नामक राक्षस को मारने के कारण देवी को माता मुंडासनी के नाम से पुकारा जाता है। यूं माता दुर्गा का रूप है। मंदिर के साथ बने इस ढलानदार मैदान के बनने के पीछे की एक दिलचस्प कथा का जिक्र यहॉं के लोग कुछ इस तरह से करते हैं- भीम ने सत्तु का लड्डू पाने के लिए दौड़ती राक्षसी को मारने के लिए अपनी गद्दा से जोरदार वार किया। गद्दा के वार से संभलती राक्षसी के हाथ का पंजा लगने के कारण इस बड़े से ढलानदार मैदान का निर्माण हुआ है। यहॉं थोड़ा-सा नीचे जहल की ओर जाने पर एक बड़ा गोल पत्थर भी है जिसके बारे में बताया जाता है कि यह वही सत्तु वाला लड्डू है जिसको राक्षसी ने श्राप देकर पत्थर का बना डाला था।
खास आकर्षण
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माता मुंडासनी के दाहिनी ओर एक अन्य आकर्षण आपकी बाट जोहता नजर आता है। यह है देवदार का वह विशालकाय पेड़ जिसके एक तने पर चार अन्य पेड़नुमा बड़े-बड़े तने उगे हुए हैं। इस पेड़ की संरचना सबको अचरज में डाल देती है। इसका धार्मिक महत्व भी है। जब वर्षा के देवता कमरुनाग कभी रूठ जाते हैं तो वे कमरुघाटी से आकर इसी पेड़ के नीचे विराजते हैं। फिर माता मुंडासनी उनको मना कर वापिस अपने स्थान पर भेजती है। यह धार्मिक परंपरा का एक खास हिस्सा है। आपको बता दें कि माता मुंडासनी कमरुनाग की बड़ी बहन मानी जाती हैं। हर साल 11 से 15 अगस्त तक यहॉं मेला लगता है जिसमें आस-पास के इलाकों के देवी-देवता और खूब सारी संख्या में आस-पास के लोग पहुंचते हैं।
रोमांच को जीने वालों के लिए
रोमांच के नए फलसफों को लिखने वालों के लिए यह स्थल एक तोहफा है। यह स्थान ट्रैकिंग के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके मुख्यत: दो ट्रैकिंग रुट हैं। एक, जहल-देवीदहड़-शिकारी देवी तथा दूसरा जाछ-जहल-कमरुनाग झील। रोमांच को जीने वालों के लिए ये दोनों रुट बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। यदि आप मंडी जिले के सबसे खूबसूरत क्षेत्र जंजैहली से कमरुनाग रोहांडा तक की तीन दिन का ट्रेक करना चाहते हों तो देवी दहड़ इस यात्रा का बेस कैंप हो सकता है। पहले दिन जंजैहली में ठहर कर दूसर दिन सुबह यात्रा शुरू की जा सकती है। शिकारी देवी में दोपहर को पहुंच कर शाम को आराम से देवी दहड़ पहुंचा जा सकता है। देवी दहड़ में रात्रि ठहराव करके अगले दिन कमरुनाग के लिए रवाना होकर रोहांडा पहुंचा जा सकता है। यह एक सुंदर ट्रेक है।
पिछले कुछ सालों से देवीदहड़ एक सैलानी स्थल के रूप में उभरा है। इसकी सुंदरता को निहारने आसपास के इलाके के लोग ही नहीं बल्कि देशी-विदेशी सैलानी भी अब खूब आने लगे हैं। सभी इस इलाके की खूबसूरती को जहॉं अपने कैमरों में कैद करते हैं वहीं इसके सौंदर्य को अपने मानसपटल में एक सुनहरी याद के रूप में बसा कर ले जाते हैं।
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अन्य आकर्षण
देवीदहड़ के नजदीक जो अन्य स्थान घूमने के लिए आकर्षित करते हैं, वे हैं शिकारी देवी पर्वत, कमरुनाग झील, पूरी जंजैहली घाटी, सरोआ माता मंदिर और धुमादेवी इलाके का सौंदर्य। देवीदहड़ तक पहुंचने वाले सैलानियों को इन स्थानों का अवश्य ही दीदार करना चाहिए।
सही समय
अप्रैल से अक्तूबर तक का समय देवीदहड़ आने के लिए बहुत बढिय़ा है। यह ठंडा इलाका है और सर्दियों में यह बर्फ से ढक जाता है।
कहॉं ठहरें
मुंडासनी माता मंदिर के साथ ही वन विभाग का रेस्ट हाऊस है। साथ ही यहॉं निजी गेस्ट हाऊस भी हैं जहॉं सैलानी आराम से ठहर सकते हैं। देवी दहड़ वन्य प्राणी विहार क्षेत्र में आता है और ऐसे में यहां ठहरने के लिए विश्राम गृह की बुकिंग डीएफओ वाइल्ड लाइफ कुल्लू से या फिर रेंज कार्यालय करसोग से करवाई जा सकती है।
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कैसे पहुंचें
जिला मुख्यालय मंडी से सड़क मार्ग द्वारा इस रास्ते की दूरी लगभग 56 किमी और सुन्दरनगर से 44 किमी है। कुल्लू से आने वालों के लिए वाया पंडोह का रास्ता भी सूट करता है। नजदीक का रेलवे स्टेशन जोगिनंदर नगर (मंडी) और हवाई अड्डा भुंतर (कुल्लू) है। जहल तक बसें भी जाती हैं जबकि अपने वाहन से सीधे देवीदहड़ तक पहुंचा जा सकता है।
तो फिर देर किस बात की है। आइए, चलते हैं देवीदहड़ की अनछुई खूबसूरती को जीने अपने परिवार, दोस्तों के संग।
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