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झील, फुमदियां और संगई

सपनों की नगरी सा है ये सफर। दुनिया में अपने आप में अजूबा है। इसे दुनिया की एकमात्र तैरती हुई झील कहा जाता है। ऐसी झील जिसमें जमीन के टुकड़े, द्वीप या भूखंड तैरते रहते हैं, जिन्हें फुमदी कहा जाता है। इस टुकड़ों पर घर हैं, टूरिस्ज लॉज हैं, और तो और, इस झील के एक किनारे पर तैरता हुआ नेशनल पार्क है। पूरी दुनिया में कहीं भी तैरती झील के भूखंड में जानवरों का डेरा नहीं है। इस अनूठी झील का पता कोई दूर-दराज का देश नहीं है, बल्कि अपना भारत है। चौंक गए न आप, चौंकने की बात ही है, ये खूबसूरत, अचंभों से भरी झील देश के एक छोटे से राज्य मणिपुर में है। इसका नाम है लोकटक झील और यह बिशनपुर जिले में है। मणिपुर की राजधानी इंफाल से महज 53 किलोमीटर की दूरी पर। और तो और, इसी झील में इस साल देश का पहला तैरता स्कूल भी खुल गया है।

बेहद दिलकश नजारों को अपने इर्द-गिर्द समेटे इस झील का क्षेत्रफल 300 वर्ग किलोमीटर है और भारत में ताजा पानी वाली सबसे बड़ी झील मानी जाती है। इस झील को दुर्लभ बनाते है जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े जो इसमें तैरते रहते हैं। दूर से देखने पर आपको आभास होगा कि आपके सामने किसी फिल्म की रील चल रही है। ऐसा नजारा पूरी दुनिया में कहीं भी और देखने को नहीं मिलता। यह अड्डा है दुनिया के सबसे लुप्तप्राय जानवरों और पक्षियों का भी। यानी आपको अपने पास बुलाने के लिए इस मनमोहक झील ने बहुत कुछ संजो कर रखा हुआ है। दुनिया के इकलौते तैरते (फ्लोटिंग) नेशनल पार्क का नाम है केबुल लामजाओ नेशनल पार्क। फुमदी का सबसे बड़ा भाग झील के दक्षिण पूर्व भाग में स्थित है, जो 40 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस सबसे बड़े भाग में ही दुनिया के सबसे लंबा और एकमात्र तैरता हुआ यह पार्क है। एक बार जो पर्यटक यहां आ जाता है, जल्दी उसका वापस जाने का मन नहीं करता और वापस जाने के बाद अपने अनूठे अनुभव को सबके साथ बांटता है।

इस तैरते नेशनल पार्क में लुप्तप्राय बेहद दुर्लभ हिरन-संगई का निवास है। ये हिरन अभी दुनिया में कई और नहीं पाया जाता है। एक तरह से कहा जाता सकता है कि उसने खुद को बचाने के लिए एक छोर में बसी इस तैरती झील को अपने अड्डे के तौर पर चुन लिया है। इस हिरन को, जिसे मणिपुरी अपनी शान मानते हैं, बचाने की तमाम कोशिशें रंग ला रही हैं। वर्ष 2013 में संगई हिरन की संख्या महज 204 थी, जो 2016 में तक बढ़कर 260 हो गए थे।

तैरते हुए द्वीप बरबस ही आपको अपनी ओर बुलाते हैं। इन भूखंडों पर आप जा सकते हैं। कई बड़े भूखंडों पर स्थानीय लोगों ने अपने रहने, कुछ समय के लिए टिकने के ठिकाने भी बना रखे हैं। हालांकि ऐसा बड़े फुमदी पर ही संभव है, लेकिन पर्यटक अक्सर नाव से उतर कर फुमदी पर चले जाते हैं और तैरते द्वीप का लुत्फ उठाते हैं। रहने के लिए इन फुमदियों पर टूरिस्ज लॉज भी बने हुए है। अब इन टूरिस्ज लॉजों में रहने का अनुभव कश्मीर की डल झील में रहने के अनुभव सरीखा है, उससे बेहतर है या… इस तुलना में मैं तो नहीं पडूंगी, आप जब जाएं तो खुद ही इसका फैसला कीजिएगा। वैसे प्रकृति में ऐसी तमाम दुर्लभ जगहों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि हरेक अपने आप में अलग दुनिया का अनुभव कराती हैं।

ये फुमदी बहुत खास है और इनकी इस इलाके की इकोलॉजी (पारिस्थतिकी) में अहम भूमिका है। ये फुमदियां मिट्टी, पेड़-पौधों और जैविक पदार्थों से मिलकर बनती है। इसकी खास बात यह होती है कि यह धरती की तरह सख्त हैं। इसके बनने की पूरी प्रक्रिया का रिश्ता यहां के पर्यावरण से है। फुमदियों की बनी इस झील को देखने के लिए आपको दुनिया भर से यहीं आना पड़ेगा। इन फुमदियों ने झील के काफी बड़े भाग को कवर किया हुआ है।

इस झील के किनारे रंग-बिरंगी नांवों का जमघट लगा रहता है। पर्यटकों को आकर्षक कीमतों पर नाविक पूरी झील की सैर कराने के लिए एक-दूसरे से होड़ लगाए रहते हैं। फुमदी पर बने ठिकानों पर बुकिंग कराने के काउंटर भी है, नहीं तो नाववाले ही टूरिज्ट लॉज के एजेंट के तौर पर काम करते हैं। नाव पर बैठने के बाद आपकी पूरी दुनिया ही बदल जाती है। हर फुमदी को छूने के लिए मन बावला सा होने लगता है। लगता है कि वह बड़ी फुमदी पर नाव को नाविक रोक ले और हम छंलाग मार पर उस पर एक चक्कर काट कर आएं। इस मोह पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जैसे-जैसे आप झील के भीतर बढ़ते जाते है। सामने सघन नीला आसमान, पानी की नीलाई पर पसरी हरियाली और पसरा सन्नाटा। बरबस ही दिल कहता है, यहीं बस जाएं तो क्या ही बेहतर हो। ये भाव पर्यटक के तौर पर तो आपके जेहन में आना स्वाभाविक है, लेकिन यहां स्थानीय लोग भी इस झील के प्रेम में फंसे दिखाई देते हैं। उनके लिए यह उनकी आजीविका का बड़ी स्रोत जो है।

कब जाएं: वैसे तो इस इलाके में कभी भा जाया जा सकता है लेकिन केबुल लामजाओ व लोकटक झील की यात्रा के लिए अक्टूबर से अप्रैल का समय सबसे माफिक है। इस मौसम में केबुल लामजाओ का सौन्दर्य और भी निखर उठता है।

ये झील कई मायनों मणिपुर के लिए वरदान साबित होती है। इसे मणिपुर की जीवन रेखा कहा जाता है। यह राज्य के लिए कमाई का बड़ी जरिया है। राज्य की अर्थव्यवस्था में इसका बड़ा योगदान है। ये झील जलविद्युत परियोजनाओं से लेकर हजारों मछुआरों की गतिविधियों का केंद्र हैं। सिंचाई और पीने के पाने के लिए भी झील का सहारा लिया जाता है। मणिपुरी भाषा में मछुआरों को फुमशोंग्स कहते हैं। पर्यटकों के बाद सबसे ज्यादा जो लोग यहां नजर आते हैं वे हैं फुमशोंग्स। ये मछुआरे फुमदी का इस्तेमाल मछली पडऩे के लिए करते है। उनको मछली पकड़ते देखना भी एक मनोहर अनुभव होता है। इन मछुआरों की मछली पकडऩे की कला भी अनोखी है। ये लोग मछली पकडऩे के लिए फुमदी का नकली गोल घेरा बनाते हैं। हैरानी की बात यह है कि इस सुंदर झील पर करीब एक लाख लोगों का जीवन-जीविका आश्रित है।

कहां रुकें: सैलानियों के रुकने के लिए कई ठिकाने हैं। वन विभाग की ओर से दो विश्रामगृह बने हैं। इसके अलावा झील के बीच में बना सैन्द्रा टूरिस्ट सेंटर भी है और मोइरंग में भी ठहरने की व्यवस्था है। वैसे आप इंफाल में रहकर भी लोकटक झील या केबल लामजाओ तक जा सकते हैं। मणिपुर स्टेट ट्रांसपोर्ट की ओर से सैलानियों के भ्रमण के लिए इंफाल से लोकटक तक टूरिस्ट बस अथवा टैक्सी की भी व्यवस्था है।

इस झील में और खासतौर नेशनल पार्क में 233 जलीय -पौधे हैं। 100 से अधिक बेहद खूबसरत किस्म के पक्षी है। जानवरों की भी भरमार है जिनमें इंडियन पायथन और सांभर शामिल है। संगई तो मणिपुर का राज्य पशु है। सबसे पहले इस पार्क को 1966 में सेंचुरी घोषित किया गया था और इसके बाद 1977 में इसे नेशनल पार्क घोषित किया गया। 1990 में लोकटक झील को रामसर स्थल के रूप में घोषित कर दिया गया। लोकटक झील चिडिय़ाओं का स्वर्ग मानी जाती है।  छोटी-बड़ी-प्रवासी और देसी चिडिय़ा की इतनी प्रजातियां यहां दिखाई देती हैं कि पक्षी प्रेमियों का दिल बाग-बाग हो जाता है। ढेरों पक्षी प्रेमी दूरबीन और कैमरों के साथ आंख गाड़े बैठे दिखाई देते हैं। यहां ब्लैक काइट, नार्दन हिल मैना, इस्ट हिमालयन पाइड किंगफिशर, लेसर स्काईलार्क, लेसर इस्टर्न जंगल कौंवा, बर्मीज पाइड मैना आदि खूब दिखाई देती हैं।

लोकटक झील में स्थित नेशनल पार्क में संगई हिरण

कैसे जाएं: केबुल लामजाओ जाने के उत्सुक पर्यटकों के लिये दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी से इंफाल तक वायुसेवा उपलब्ध है। इंफाल से दीमापुर का निकटतम रेलवे स्टेशन 125 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा आप गुवाहाटी तक ट्रेन से आने के बाद वहां से डीलक्स बस अथवा टैक्सी के जरिये भी इंफाल पहुंच सकते हैं। इंफाल लोकटक झील से केवल 48 किलोमीटर है। लोकटक झील मोइरंग में है।

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