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कोलाहल से दूर लाख-बहोसी पक्षी विहार

अगर आप शहर की भीड़-भाड़ से ऊब चुके हैं या आप पक्षी प्रेमी हैं या प्रकृति के सानिध्य में शांतिमय दिन (रात नहीं) गुजारना चाहते हैं और अगर आप सुविधा प्रेमी नहीं हैं, तो  आप ‘लाख बहोसी पक्षी विहार’ का रुख कर सकते हैं। सुविधाओं का न होना ही इस पक्षी विहार को विशिष्ट बनाता हैं। बड़े नगरों और मुख्य मार्गों से दूर होने के कारण सामान्य पर्यटक और मोटर गाडिय़ों का शोर व प्रदूषण इस स्थान तक नहीं पहुंचता। पक्षियों के लिए यह एक प्राकृतिक आवास है। इस पक्षी विहार को अपना नाम दो ग्रामों के नाम के युग्म से मिला है।

लाख व बहोसी तालाबों को मिला कर इस पक्षी विहार की स्थापना 1988 में की गई थी। फिर 2007 में इसे ‘राष्ट्रीय नम भूमि संरक्षण कार्यक्रम’ के 94 स्थानों में चिह्नित किया गया। बहोसी तालाब का मार्ग सुगम हैं और पर्यटक बहोसी तालाब का भ्रमण ही करते हैं। तुलनात्मक रूप से बहोसी से लाख तालाब का मार्ग दुर्गम हैं।

इस पक्षी विहार की कन्नौज से दूरी 40 किलोमीटर और औरेया जनपद के दिबियापुर नगर से बहोसी तक की दूरी 38 किलोमीटर है। यहां पक्षियों से संबंधित ज्ञानवर्धन के लिए एक ‘पक्षी ज्ञान विज्ञान केंद्र’ भी हैं। यहां पर प्रवासी पक्षियों में बार-हेडेड गूस, पिन-टेल, कॉमन टील, गैडवाल, शॉवलर, कूट, ब्राह्मणी डक (सुर्खाब), सैंड पाइपर, सफेद स्टोर्क आदि पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त ओपन बिल स्टोर्क, श्वेत कंठ स्टोर्क, श्याम कंठ स्टोर्क, श्वेत आइबिस, श्याम आइबिस, पन कौव्वा, किंगफिशर, स्पून बिल, ब्लैक द्रोंगो, व्हिसलिंग डक, श्वेत उदर जल मुर्गी, जल मुर्गा, स्विफ्ट उल्लू, हूपू, मैना, बगुला, बुलबुल, बैबलर, सारस क्रेन की कई प्रजातियां पाई जाती हैं।

इस पक्षी विहार का कुल क्षेत्रफल 80 वर्ग किलोमीटर है, समीप के शहर तिर्वा और दिबियापुर हैं, निकट के रेलवे स्टेशन कन्नौज (40 किमी) और फफूंद (38 किमी) हैं।

15 मार्च तक रहते हैं पक्षी

हर साल अक्तूबर से पक्षियों के बाहर से आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। 15 मार्च तक पक्षी यहां रुकते हैं। इसके बाद मौसम में तब्दीली आने की वजह से वह अपने घरों को चले जाते हैं। सर्दियां शुरू होने के साथ ही पक्षी भी आ जाते हैं। वन विभाग का दावा है कि भारत में पाए जाने वाले कुल 97 किस्म के पक्षी-परिवारों में से 49 परिवारों को लाख-बहोसी इलाके में देखा जा सकता है। यह इलाका वन क्षेत्र भी है। इसलिए यहां नील गाय, लोमड़ियां व जंगली बिल्लियां भी कई मर्तबा देखने को मिल जाती हैं।

केंद्र सरकार के वन व पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ साल पहले एक अधिसूचना जारी करके लाख-बहोसी पक्षी विहार के चारों तरफ सौ मीटर के दायरे को इको-सेंसेटिव क्षेत्र के रूप में चिन्हित कर दिया था। उसके अनुरूप इस इलाके के विकास व संरक्षण के लिए कार्ययोजना तैयार की जानी है। इसी में इस इलाके में पर्यटन सुविधाओं को विकसित करने के भी नियम तय कर दिए गए हैं। इससे यहां नियोजित तरीके से सुविधाएं विकसित करने में मदद मिलेगी।

लाख-बहोसी के आसपास के अन्य प्रमुख पक्षी विहारों में राजधानी लखनऊ के पास का नवाबगंज पक्षी विहार भी प्रमुख है।

कैसे पहुंचे

1. यहां पहुंचने के लिए दिबियापुर-कन्नौज मार्ग पर 25 किमी चलने के बाद (बेला से 1 किमी आगे से) उत्तर दिशा में कल्याणपुर मार्ग की ओर 12 किमी चलने पर एक नहर के पुल को पार करते ही बाएं तरफ पक्षी-विहार का क्षेत्र शुरू हो जाता है।

2. कन्नौज की ओर से जाने के लिए कन्नौज-तिर्वा-इंदरगढ़-बहोसी मार्ग से यहां पहुंच सकते हैं, इंदरगढ़ के थाना के आगे लाख-बहोसी पक्षी विहार के मार्ग निर्देशक साइन-बोर्ड मार्ग दर्शन करते रहते हैं।

क्या करें

यहां चाय-नाश्ते की कोई व्यवस्था नहीं हैं, पीने के पानी के लिए हैंडपंप उपलब्ध हैं। पक्षियों के देखने के लिए छायादार स्थान और बैठने की व्यवस्था हैं। वाच-टॉवर के ऊपर से भी पक्षियों को देखा जा सकता है। भ्रमण के दौरान कैमरा, दूरबीन, टोपी, खाने का सामान, थर्मस में चाय आदि लेकर जाएं।

क्या न करेः धूम्रपान न करें, आग न जलाएं, पक्षियों को परेशान न करें, शोर न करें, होर्न न बजाएं, म्यूजिक सिस्टम न बजाएं और पोली बैग्स, कचरा आदि न फैलाएं।

टिकट भी है निर्धारितः घूमने के लिए 30 रुपये की टिकट प्रति व्यक्ति के हिसाब से निर्धारित है। विदेशियों से टिकट अधिक लगती है। इसके अलावा बाइक का 20 रुपये लिया जाता है। चौपहिया वाहनों की दरें अधिक हैं।

नवाबगंज पक्षी विहार

यह पक्षी विहार लखनऊ और कानपुर राजमार्ग के लगभग बीच में स्थित है। सर्दियों के मौसम में प्रवासी पक्षियों के साथ साइबेरियन मेहमानों से यह स्थान गुलजार हो जाता है। यहां एक विशाल झील और उसके चारों ओर दूर तक फैला हुआ हरा जंगल है। यहां पर जाड़े के मौसम में साइबेरियन क्रेन और तमाम अन्य प्रकार के प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं। यहां की झील में सैकड़ों प्रकार के पक्षियों का कलरव बहुत मनोरंजक होता है। इस पक्षी विहार में एक हिरण पार्क, वॉच टावर और नौकायन की सुविधा भी मौजूद है।

यहां हर साल नवंबर से मार्च के बीच हजारों पंछी हजारों किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर तय करके यूरोपीय देशों से यहां आते हैं। पिछले कुछ बरसों में नेपाल, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के भी पक्षियों की कुछ प्रजातियां यहां बसने लगी हैं। इसकी वजह यहां मौजूद झील है, जहां पंछी बसेरा बनाना पसंद करते हैं।

अगर आप फोटोग्राफी के शौकीन हैं, तो यह जगह आपके लिए जन्नत सरीखी हो सकती है। उगते-ढलते सूरज के बीच पंछियों की कलाबाजियों को कैमरे में कैद करना फोटोग्राफरों के लिए अलौकिक अनुभव हो सकता है।

पिकनिक के लिहाज से भी यह जगह उम्दा है, तो ज्ञान का भंडार भी यहां मौजूद है। अभयारण्य में मौजूद बर्ड इंटरप्रेटेशन सेंटर से आपको कई रोचक जानकारी भी हासिल हो सकती हैं। यहां आने वाले प्रवासी पंछियों की फेहरिस्त में ग्रेलैग गूज, पिनटेल, कॉटन टील, रेड क्रेस्टेड पोचर्ड, गैडवाल, कूट और मैलर्ड शामिल हैं।

वर्ष 1975 तक इसे प्रियदर्शनी पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। यहां मौजूद कैंटीन का उदघाटन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवंती नंदन बहुगुणा ने किया था। यह कैंटीन आजकल एक बेहतरीन रेस्तरां का रूप ले चुकी है, जिसे सुरखाब रेस्तरां के नाम से जाना जाता है। यहां एक बीयर बार भी है।

प्रवेश शुल्क: भारतीय नागरिकों के लिए 30 रुपये का टिकट है और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की एंट्री मुफ्त है। विदेशी पर्यटकों के लिए एंट्री फीस 350 रुपये है।

रुकने की सुविधा: यहां सैलानियों के ठहरने का भी पूरा इंतजाम है। अभयारण्य में ही मौजूद उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के प्रियदर्शनी मोटेल में 05143-277050 पर संपर्क करके प्री-बुकिंग करवाई जा सकती है।

वेटलैंड

दरअसल लाख-बहोसी हो या नवाबगंज, ये सभी उत्तर प्रदेश के प्रमुख वेटलैंड इलाकों में शामिल हैं। सामान्य भाषा में वेटलैंड ताल, झील, पोखर, जलाशय दलदल आदि अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं। आम तौर पर बारिश के मौसम में ये पानी से लबालब हो जाते हैं। कई वेटलैंड सालभर पानी से भरे रहते हैं। जबकि कई वेटलैंड गर्मियों के मौसम में सूख जाते हैं। इसी वजह से वेटलैंड का जलस्तर भी बदलता रहता है।

वेटलैंड अत्यंत उत्पादक जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र है। वेटलैंड न केवल जल भंडारण कार्य करते हैं, बल्कि बाढ़ के समय अतिरिक्त जल को अपने में समेट कर बाढ़ की विभीषिका को कम करते हैं। इसी से वे भूगर्भ जलस्तर को भी बनाए रखते हैं। ये पर्यावरण संतुलन में इंसानों के सहायक हैं। वेटलैंडस में कई तरह के जीव-जंतु पाए जाते हैं। इस तरह एक समृद्ध जलीय जैववविविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वेटलैंड को बायोलॉजिकल सुपर मार्केट कहा जाता है। ये एक अति महत्वपूर्ण इको सिस्टम है। ये प्राचीन काल से ही मानव के विकास क्रम का हिस्सा रहे हैं। आज भी वेटलैंड्स दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोगों को भोजन, मछली व चावल, उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। समय-समय पर समस्त मानव सभ्यता का विकास जल स्रोतों के किनारे होते आया है।

उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में पाए जाने वाले वेटलैंड्स में उत्तरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले नम व दलदली वेटलैंड्स, गंगा के मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले आक्स-बो-लेक्स और दक्षिणी विंध्य क्षेत्र व बुंदेलखण्ड क्षेत्रों मे पाए जाने वाले मानव निर्मित जलाशय शामिल है।

उत्तर प्रदेश में कुल 13 वेटलैंड हैं- नवाबगंज, समसपुर, लाख-बहोसी, सांडी-बखीरा, ओखला, समान, पार्वती अरगा, विजय सागर, पटना, सुरहाताल, सूर सरोवर और डा. भीमराव आंबेडकर पक्षी विहार।

रामसर कनवेंशन: 2 फरवरी 1971 को ईरान में रामसर में वेटलैंड पर सम्मेलन आयोजित किया गया था। दुनियाभर में वेटलैंड को लेकर तमाम  नियमन इसी कनवेंशन से संचालित होते हैं। इनमें वेटलैंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता देने के पूर्व प्राणि विज्ञान, पारिस्थितिकीय, सरोवर विज्ञान व जलीय महत्व पर आधारित मानकों का चिन्हीकरण किया जाता है। अब तक  लगभग 160 देशों ने रामसर कनवेंशन को स्वीकार किया है। भारत में अब तक अंतरराष्ट्रीय महत्व के मात्र पच्चीस वेटलैंड चिन्हित व नामित है। जिनका कुल क्षेत्रफल 6,77,131 हेक्टेयर है। उत्तर प्रदेश में फिलहाल एक वेटलैंड—ऊपरी गंगा के बृजघाट से नरोरा तक के हिस्से में 26570 हेक्टेयर इलाके—को रामसर साइट के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है।

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