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बाली में कला व कुदरत का मेल

बाली आर्ट सेंटर के खुले थियेटर- कलांगन में मंच पर पीछे की तरफ बनी सीढिय़ों पर एक बेहद खूबसूरत युगल खालिस बाली की वेशभूषा में था। फोटोग्राफरों का एक पूरा दल अलग-अलग पोज में उनकी फोटो उतार रहा था। साथ में उनके मेकअप के लिए भी एक पूरी टीम थी। हमें अहसास हुआ कि शायद कोई शूटिंग हो रही है। हम भी अपने कैमरे लेकर वहां लपक लिए। बात हुई तो पता चला कि यह किसी परदे के लिए कोई शूटिंग नहीं थी, बल्कि वह युगल जल्दी ही विवाह के बंधन में बंधने वाला था। बाली में विवाह से पहले लड़के व लड़की का बाहर किसी खूबसूरत जगह पर जाकर इस तरह के फोटो खिंचाना, परंपरा का हिस्सा है। ये तस्वीरें न केवल एलबम का हिस्सा बनती हैं बल्कि विवाह के आमंत्रण पर छपती हैं, विवाह स्थल पर भी कई जगह लगाई जाती हैं। हमारे लिए यह नई जानकारी थी। हमने विवाह के तत्काल बाद एक बंद कमरे में फोटोग्राफर द्वारा दूल्हा-दुल्हन को लेकर अपनी फोटो कलात्मकता का प्रदर्शन करना तो अक्सर देखा है, लेकिन यह एक अलग ही नजारा था। उससे भी ज्यादा हैरानी की बात तो यह थी कि उस दोपहर में बाली आर्ट सेंटर में घूमते वक्त हम इस तरह के कई जोड़े नजर आ गए जो पूरा क्रू लेकर फोटो शूट करवा रहे थे, मानो यह भी कोई इवेंट मैनेजमेंट था। पता चला कि बाली आर्ट सेंटर की कलात्मक पृष्ठभूमि कई युवाओं को अपने फोटोशूट के लिए बेहद पसंद आती है।

बाली में कई खूबसूरत समुद्र तट हैं
पारंपरिक वेशभूषा में प्री-वेडिंग शूट करता एक स्थानीय जोड़ा

हालांकि बाली आर्ट सेंटर ने हमें इन फोटोशूट के अलावा और कई तरीकों से बेहद प्रभावित किया। अपनी संरचना और सोच, दोनों में बाली आर्ट सेंटर काबिलेतारीफ है। यह सेंटर दरअसल बाली में कला का केंद्र है या इसे यूं भी कहा जा सकता है कि यह बाली की पारंपरिक कलाओं को जिंदा रखने और उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते रहने की व्यवस्था का अंग है। यह इस बात का भी सुबूत है कि कैसे वहां के लोग अपनी पारंपरिक कलाओं को सक्रिय रखने के प्रति सचेत हैं। यहां थियेटर, नृत्य, संगीत, शिल्प व चित्रकला आदि तमाम कलाओं को बचपन से सरकारी खर्च पर सिखाने की व्यवस्था है- एक ही प्रांगण तले। साथ ही साथ, यह बाली की कला का अभिलेखागार भी है। यहां बाली की कला के उत्तरोतर विकास से जुड़ी कई स्थायी प्रदर्शनियां भी हैं। यहां कलाएं सिखाई भी जाती हैं और उन्हें मंच भी प्रदान किया जाता है। अद्भुत बात यह है कि यहां बच्चों को कला उन्हें कलाकार बनाने या कला को पेशे के तौर पर अपनाने के लिए नहीं सिखाई जाती। बल्कि इसलिए सिखाई जाती है कि वे अपने इलाके की कला को जानें, ताकि यह कला आगे बढ़ती रहे। बाली के लोगों में इन कलाओं को जानना भी एक गौरव पैदा करता है। इस आधुनिक दौर में भी बच्चे इस बात को कहने में फख्र महसूस करते हैं कि उन्हें इन कलाओं का ज्ञान है। इसीलिए पूरी तरह सरकारी संरक्षण में चलने वाले इस केंद्र में जहां एक तरफ बच्चे बाली के पारंपरिक लेगोंग नृत्य की मुद्राएं सीखते नजर आ जाएंगे तो कहीं छोटे-छोटे बच्चे तस्वीरें बनाते नजर आ जाएंगे तो कहीं पारंपरिक वाद्य सीखते नजर आएंगे। हमें अपने देश में कोने-कोने में बिखरी पारंपरिक कलाओं को सहेजने की ऐसी कोई व्यवस्था नजर नहीं आती। बाली आर्ट सेंटर तो एक प्रीमियर संस्थान सरीखा है, लेकिन हकीकत यह है कि बाली के गांवों तक में इस तरह के सामुदायिक मंच हैं, जहां गांव के बच्चे अपनी पारंपरिक कलाओं का ज्ञान ले सकते हैं, उन्हें सीख सकते हैं।

बाली आर्ट केंद्र में पारंपरिक नृत्य सीखते युवा

बाली के लिए अपने कला को बचाए रखना बहुत अहम है। हिंदू रीति-रिवाजों से उपजी उसकी तमाम कलाएं उसे एक अलग स्थान देती हैं। यूं तो  मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में हिंदू बहुल बाली प्रांत की अहमियत एकदम अलग है। लेकिन जकार्ता या बांडुंग या योग्यकर्ता से बाली आते हुए आपको इस बात का कोई खास आभास नहीं होता कि आप किसी मुस्लिम बहुल इलाके से किसी हिंदू बहुल इलाके में पहुंच गए हैं- दोनों ही तरफ संस्कृतियों का इतना खूबसूरत समायोजन जो देखने को मिलता है। यही इंडोनेशिया की सबसे बड़ी खासियत भी है। यहां कोई किसी पर कुछ नहीं थोपता।

महाभारत के मैदान में कृष्ण व अर्जुन

बाली अपनी संस्कृति के लिए तो लोकप्रिय है, प्राकृतिक खूबसूरती की वजह से भी दुनियाभर के सैलानियों का पसंदीदा है। इसीलिए इंडोनेशिया में सबसे ज्यादा विदेशी सैलानी बाली में आते हैं। ऊपर से आस्ट्रेलिया से नजदीकी के कारण भी यहां सैलानियों की आवक खूब रहती है। बाली से  दो-ढाई घंटे की उड़ान में आस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी छोर पर पहुंचा जा सकता है। बाली छोटा सा द्वीप है- आप चाहें तो दिनभर में उसके समूचे तट का चक्कर लगा सकते हैं। लेकिन एक तो कुदरत ने इस छोटे से द्वीप को इतनी सारी खूबसूरती बख्शी है, दूसरे पर्यटन स्थल के रूप में उसकी लोकप्रियता ने यहां इतना कुछ खड़ा कल लिया है कि इस छोटी सी जगह का पूरा लुत्फ लेने के लिए कई दिन चाहिए। इसीलिए जितना यहां का तटीय इलाका लोकप्रिय है, उतना ही उबुद का भीतरी इलाका भी।

बाली लग्जरी टूरिज्म का भी बड़ा अड्डा है। दरअसल यहां का नुसा दुआ इलाका एक तरह का विशिष्ट क्षेत्र है। बाली के बिलकुल दक्षिणी छोर पर स्थित यह इलाका सिर्फ लग्जरी होटलों के लिए है। इस पूरे इलाके में कोई आम रिहाइश नहीं है। यहां समुद्र तट हैं और आलीशान होटलें हैं।

यहां मिलती है हर किस्म की शानो-शौकत

बाली के बारे में एक और रोचक तथ्य लोकप्रिय है। इंडोनेशिया के बाकी इलाकों में आपको आसमान छूती बहुमंजिला इमारतें मिल जाएंगी, लेकिन बाली में ऐसा नहीं मिलेगी। यहां इमारतों का नियम यह है कि कोई भी इमारत नारियल के पेड़ की ऊंचाई से ऊंची नहीं हो सकती। अब इस ऊंचाई का कोई तय पैमाना तो नहीं लेकिन साफ है कि यहां ज्यादा ऊंची इमारतें नहीं बन सकती।  इतने सख्त नियम बनाने से ही शायद बाली की सुंदरता को कायम रखा गया है। यानी अपनी कला के साथ-साथ प्रकृति को बचाने को लेकर भी यहां उतनी ही जागरूकता है।

कुंभकर्ण की मूर्ति

बाली के आर्ट सेंटर में कुंभकर्ण की मूर्ति लगी है जिसे कुंबकर्ण करेबुत कहा जाता है। यह मूर्ति अलेंग्का (लंका) के प्रति उसकी निष्ठा का प्रतीक है। पांच मीटर ऊंची यह मूर्ति लकड़ी की बनी है और इसे 1975 में गढ़ा गया था। रोचक बात यह है कि बाली में कुंभकर्ण की मूर्तियां कुछ और जगहों पर हैं। इसकी कथा यहां भी वही प्रचलित है जो वाल्मीकि रामायण में है लेकिन यहां कुंभकर्ण को खास तौर पर सम्मान के साथ देखा जाता है क्योंकि वह अपने राज्य के लिए निष्ठावान था। बाली के प्रसिद्ध उलुवतु मंदिर में भी कुंभकर्ण की एक मूर्ति है। इसके विपरीत, भारत में हमें कुंभकर्ण के मंदिर या उसकी मूर्तियां देखने को नहीं मिलतीं।

बाली के डेनपसार में शाम को पछाड़े मारती लहरें

आर्ट सेंटर से हम बाली के बिलकुल दूसरे स्वरूप को देखने के लिए निकल गए। आर्ट सेंटर डेनपसार के निकट है, जहां बाली का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। उबुद का इलाका बाली द्वीप के ठीक मध्य में है। यहां पास ही में मंकी फॉरेस्ट भी है, जहां बाली के लंगूरों की बहुतायत है। उबुद में सैलानियों की भीड़ उतनी ही थी जितनी कुता जैसे  प्रमुख तटीय इलाके में मिल जाती है। जो सैलानी समुद्र तटों से या उनका उमस से परेशान हो चुके हों, वे उबुद की तरफ आ जाते हैं। हालांकि यहां आने वाली विदेशी सैलानियों में अच्छी खासी तादाद ऐसे सैलानियों की है जो यहां कई दिन रुकते हैं। इसलिए वे कुछ दिन तटीय इलाके में बिताते हैं तो कुछ दिन भीतरी इलाके में पहुंच जाते हैं। उबुद से थोड़ा ही आगे आगुंग पर्वत है।

उबुद में आयुंग नदी में राफ्टिंग का रोमांच

उबुद का इलाका घने जंगलों (रेनफॉरेस्ट) से घिरा हुआ है। इन्हीं में आयुंग नदी बहती है। यह नदी व्हाइट वाटर राफ्टिंग के लिए बहुत लोकप्रिय ठिकाना है। इस नदी में लगभग दो घंटे की राफ्टिंग हमारे लिए बेहद रोमांचकारी रही। इसमें क्लास 2 व 3 के रैपिड हैं, जो ज्यादा जोखिम भरे नहीं, लेकिन इलाका बेहद खूबसूरत है। खड़ी पहाडिय़ां, घने जंगल और चट्टानों पर से उछलती-बल खाती नदी। राफ्टिंग करते-करते कई झरनों से सामना हो जाता है और आप बड़े आनंद के साथ अपने राफ्ट को झरने के ठीक नीचे ले जाकर प्रपात में भीगने का मजा ले सकते हैं। कहा जाता है कि यह बाली के सबसे खूबसूरत इलाकों में से एक है। आयुंग को स्थानीय लोगों के बीच काफी अहमियत दी जाती है। कहा जाता है कि इसके पानी में औषधीय गुण हैं। अब इसके पीछे स्थानीय किवंदतियों में तो एक प्राचीन हिंदू कहानी छिपी है। माना यह भी जाता है कि इन जंगलों में इतनी जड़ी-बूटियां मौजूद हैं कि उनके बीच से आते पानी में उनके औषिधीय गुण आ जाते हैं। खास तौर पर जोड़ों के दर्द व चर्म रोगों के लिए इस पानी को लाभकारी माना जाता है। स्थानीय लोग, खास तौर पर अधेड़ या उम्रदराज घंटों इस नदी के पानी में बैठे रहते हैं। राफ्टिंग के दौरान किनारों की तरफ हमने कई स्थानीय लोगों को नंगधड़ंग पानी में घुसकर बैठे देखा ताकि उनके शरीर के ज्यादातर हिस्से पर पानी का प्रभाव हो सके। आयुंग नदी के अलावा तेलागा वजा नदी में भी रोमांचक राफ्टिंग होती है। उबुद इलाके को सैलानी ट्रैकिंग, हाइकिंग व साइक्लिंग के लिए भी पसंद करते हैं। यहां से बातुर पहाड़ी के लिए भी ट्रैकिंग की जाती है जो बाली का सक्रिय ज्वालामुखी है। खास तौर पर सवेरे सूर्योदय के समय यहां का ट्रैक काफी लोकप्रिय है। रोमांचप्रेमियों के लिए नुसा दुआ में पैराग्लाइडिंग की भी गुंजाइश है।

इसके अलावा लग्जरी के शौकीनों के लिए बाली में क्रूज भी है लेम्बोंगान  व नुसा पेनिदा द्वीपों तक लेकर जाते हैं और कुछ थोड़ा दूर भी। पानी के भीतर रोमांच की भी यहां काफी गुंजाइश है- डाइविंग व स्नोक्र्लिंग से लेकर पनडुब्बी में बैठकर पानी के नीचे की दुनिया देखने और अंडरवाटर ऑब्जर्वेटरी तक। यहां एक सफारी व मैरिन पार्क भी है जिसमें उन जानवरों को देखा जा सकता है जो कुदरती तौर पर यहां के जंगलों में नहीं पाए जाते।

बाली के तमाम धार्मिक व मिथकीय प्रतीक हिंदू धर्म से आए हैं

समुद्री मंदिर

बाली के मंदिर भी बहुत लोकप्रिय हैं- अपनी बनावट और जगह के कारण। इनमें तनाह लोत और उलुवतु खास हैं। पुरा तनाह लोत डेनपसार से बीस किलोमीटर की दूरी पर है। तनाह लोत के पीछे समुद्र में डूबते सूरज की छवियां बाली की सबसे जानी-मानी छवियों में गिनी जाती है। तनाह लोत और उलुवतु दरअसल उन सात समुद्री मंदिरों में से हैं जो बाली में तट के किनारे बने हुए हैं। ये सातों मंदिर इस तरह से बने हुए हैं कि एक मंदिर से दूसरे मंदिर को देखा जा सके। कहा जाता है कि हिंदू मान्यताओं पर बने इन मंदिरों का निर्माण बाली को बुरी ताकतों से बचाने के लिए और समुद्री देवता का सम्मान करने के लिए किया गया था।

बाली की हिंदू संस्कृति के भीतर भी यहां के कई छोटे-छोटे इलाके अपनी अलग संस्कृति को बचाए हुए हैं, ठीक यहां की प्रकृति की तरह, जो अलग-अलग जगहों पर अपनी खासियत बनाए हुए हैं।

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