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कुदरत और कला के बीच नग्गर

इस ऐतिहासिक कस्बे को देखे बिना कुल्लू-मनाली की यात्रा अधूरी समझी जाती है। दरअसल कई मायनों में इसकी अहमियत आसपास की बाकी प्रमुख जगहों के बराबर ही है          

कुल्लू-मनाली को दुनिया भर में अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है। हर पर्यटक अपने जीवन में इन जगहों को एक बार तो जरूर निहारने की इच्छा रखता है। यही कारण है कि अमूमन पूरे साल भर यहां सैलानियों का तांता लगा रहता है। कुल्लू से मनाली की ओर थोड़ा सा आगे ही राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 पर पतली कुल्ह से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर व्यास नदी को पार करके हम एक ऐतिहासिक स्थान ‘नग्गर’ पहुंचते हैं। यह वह जगह है जिसे देखे बिना आपकी कुल्लू-मनाली की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। दरअसल माना जाता है कि कुल्लू के इतिहास और सांस्कृतिक पहलुओं की जड़ें इसी जगह पर विद्यमान हैं। 

तो आइए, फिर देर किस बात की है। चलो, चलते हैं नग्गर की खूबसूरती और इसके इतिहास को करीब से निहारने के लिए।

नग्गर गाँव का पहाड़ी से नजारा

नग्गर गांव

ऐतिहासिक गांव नग्गर में आपको आज भी प्राचीन काष्ठकुणी शैली (केवल लकड़ी और पत्थर से निर्मित) में बने परंपरागत मकान मिलेंगे जो इसके आकर्षण को और बढ़ा देते हैं। नग्गर को राजा विशुद्ध पाल ने बसाया था और लगभग चार सौ सालों तक यहां कुल्लू की राजधानी रही। गांव को निहारने के बाद आप स्वंय महसूस करेंगे कि कुल्लू का सारा इतिहास और संस्कृति नग्गर के ही इर्द-गिर्द घूमती है।

नग्गर कैसल

नग्गर कैसल नग्गर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। काष्ठकुणी शैली में बना यह किला जहां हिमाचल की विश्व धरोहरों में से एक है और वहीं यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। लगभग चार सौ सालों तक कुल्लू के राजाओं ने यहां से अपना शासन चलाया। यह ऐसी जगह पर बसाया गया था जहां से राजा पुरी कुल्लू घाटी पर निगाह रख सकता था। कहा जाता है इसे बनाने में देवदार के लगभग दो हजार पेड़ों का इस्तेमाल हुआ था। इस समय हिमाचल पर्यटन विकास निगम ने इसे एक होटल का रूप दे दिया है जो पर्यटकों को यहां ठहरने पर राजसी ठाठ का अनुभव करवाता है।

नग्गर में काष्ठकुणी शैली के परंपरागत निर्माण

किले के परिसर में ही एक चौड़ी शिला भी है जो ‘जगती पौट’ अर्थात जगत का पाट (शिला) के नाम से जानी जाती है। स्थानीय लोगों में इस शिला की देवताओं के सिंहासन के रूप में मान्यता है। कहते हैं कि देवताओं ने स्वंय इस शिला को यहां स्थापित करके एक समय नग्गर को भीषण अकाल से बचाया था। 

धार्मिक स्थल

नग्गर में बहुत सारे मंदिरों का समावेश है। यहां आपको देवी त्रिपुरा सुंदरी, गौरीशंकर का पाषाण मंदिर, चामुंडा देवी, वासुकी नाग, मुरलीधर मंदिर आदि मंदिरों के दर्शन किए जा सकते  हैं। नग्गर में आपको स्थानीय से लेकर मध्यकालीन पहाड़ी शिखर शैली के मंदिर मिलेंगे। इनकी खूबसूरती और अनूठा वास्तु शिल्प हमें अपनी ओर खींचते हैं।

नग्गर में देवी त्रिपुरासुंदरी का मंदिर

नग्गर के आस-पास

नग्गर के एक तरफ कुल्लू शहर है तो दूसरी तरफ मनाली। नग्गर इनके लगभग बीच में स्थित है। लिहाजा नग्गर के आसपास घूमने लायक कई सारी जगहें हैं और करने को भी बहुत कुछ। कुल्लू-मनाली के अलावा मनाली से आगे वशिष्ठ, सोलंग नाला, रोहतांग पास जा सकते हैं तो कुल्लू की तरफ बिजली महादेव, मनीकर्ण तक।

यह इलाका ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए भी बहुत खास है। यहां आसपास कई छोटे-लंबे, आसान व दुर्गम दोनों तरह के ट्रैक हैं। जलोड़ी व पिन पार्वती पास के ट्रैक भी यहां से किए जा सकते हैं। इस इलाके के सबसे लोकप्रिय चंद्रखनी पास की स्नो लाइन (हिम-रेखा) तो नग्गर से महज पांच ही किलोमीटर की दूरी पर है। इसलिए बहुत लोग ट्रैकिंग के शौक को पूरा करने के लिए भी नग्गर आना पसंद करते हैं। नग्गर के आसपास कई सारी कैंपिंग साइट भी हैं। पार्वती घाटी के सबसे जाने-माने और अनूठे गांवों में से एक मलाना के लिए भी यहां से ट्रैक किया जा सकता है।  

नग्गर से ऊपर चद्रखनी पास के निकट ट्रेकर्स

रोरिख आर्ट गैलरी

जिस तरह से नग्गर को देखे बिना कुल्लू-मनाली इलाके की सैर पूरी नहीं मानी जा सकती, उसी तरह से नग्गर की कोई भी चर्चा रोरिख आर्ट गैलरी के बिना पूरी नहीं हो सकती। दरअसल, यह हकीकत है कि दुनियाभर में आज कई लोग नग्गर को रोरिख आर्ट गैलरी की वजह से पहचानते हैं। इसलिए इसे नग्गर के प्रमुख आकर्षणों में से एक भी कहा जा सकता है और आप चाहें तो इसे नग्गर का सबसे प्रमुख आकर्षण भी कह सकते हैं।

यह आर्ट गैलरी महान रूसी चित्रकार निकोलाई रोरिख की देन है। जब वे कुल्लू आए तो उन्हे नग्गर गांव ऐसा भाया कि वे यहीं के ही होकर रह गए। अब यह तो इस इलाके की खासियत है ही। हम देख-सुन ही रहे हैं कि देश की कई जानी-मानी हस्तियां इस इलाके में भी अपना एक बसेरा बनाने की फिराक में रहती हैं, कई बना भी चुकी हैं। 

रोरिख आर्ट गैलरी का रास्ता

बहरहाल, हम निकोलाई रोरिख की बात कर रहे थे। निकोलाई कोंस्टेनटिनोविच रोरिक कलाकार के साथ-साथ पुरातत्ववेत्ता, लेखक, दार्शनिक व घुमक्कड़ भी थे। उनकी पत्नी एलेना इवानोव्ना रोरिख भी उन्हीं की भांति दार्शनिक व लेखक थी। निकोलाई रोरिख वह शख्स थे जिन्होंने दुनिया में सांस्कृतिक स्मारकों के संरक्षण का एक आंदोलन छेड़ा था। बाद में यही जाकर रोरिख अंतरराष्ट्रीय संधि में तब्दील हो गया जिसपर दुनिया के कई देशों ने हस्ताक्षर किए। रोरिख दंपत्ति के दो पुत्र थे- यूरी (जॉर्ज) निकोलेविच रोरिख और स्वेतोस्लाव निकोलेविच रोरिख। दरअसल छोटे बेटे स्वेतोस्लाव रोरिख को ही हम भारत में ज्यादा जानते हैं। यह वही शख्स हैं जिन्होंने भारतीय सिनेमा की पहली अदाकारा मानी जानी वाली और रिश्ते में गुरु रबींद्रनाथ टैगोर की पौत्री देविका रानी से विवाह किया था। स्वेतोस्लाव द्वारा नेहरू और इंदिरा गांधी के बनाए गए पोर्ट्रेट आज भी भारतीय संसद की दीवारों को सुशोभित कर रहे हैं। उन्होंने देविका रानी के भी कई मनमोहक पोट्रेट बनाए। माता-पिता के गुजर जाने के बाद स्वेतोस्लाव ने ही कुल्लू में इस जगह को आबाद रखा। उनका स्टूडियो आज भी यहां सलामत है। यहां निकोलाई रोरिख की समाधि भी बनी हुई है, जहां दिसंबर 1947 में उनके गुजर जाने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया था। रोरिक परिवार में वह अकेले थे जिन्होंने अंतिम सांस नग्गर में ली थी। स्वेतोस्लाव की मृत्यु 1993 में बैंगलोर में हुई थी।

रोरिख आर्ट गैलरी की कुछ पेंटिंग

रोरिख परिवार की दुलर्भ पेंटिग्स रोरिख आर्ट गैलरी में रखी गई हैं जो यहां रोजाना आने वाले पर्यटकों को अपने मोहपाश में बांध देती हैं। इन पेंटिग्स की खास बात यह है कि इन्हें बनाने में रोरिक ने उन प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया है जो उन्होने यहां की वनस्पति से स्वयं तैयार किए थे। 

उन्होंने यहां ‘उरुस्वाति’ नामक संस्था की नींव भी रखी। यह संस्था जहां चित्रकारिता के विकास के प्रति वचनबद्ध है वहीं यह आध्यात्मिक और नैतिक विकास से जुड़ी गतिविधियों में भी अपना योगदान देती है। यहां हिमालय लोक व जनजातीय कला संग्रहालय भी स्थापित किया गया है। यहां उन पुरानी चीजों को रखा गया है जो उन्हें उनके मित्रों ने तोहफे के रूप में दी थी और जो रोरिख और उनका परिवार कभी अपने दैनिक जीवन के उपयोग में लाता था। इसके अलावा यहां देश-विदेश के चित्रकारों की पेंटिग्स भी रखी गई हैं जो अवश्य ही यहां आने वाले हर शख्स को लुभाती हैं। यहां पर हाल ही में एक ड्राइंग स्कूल भी खोला गया है जिसमें चित्रकार कला की बारीकियों को सीख रहे हैं। अभी इसमें 6 से 16 साल के बच्चों को ही शिक्षा दी जा रही है।

कब और कहां

वैसे नग्गर आप पूरे साल भर कभी भी आने का प्रोग्राम बना सकते हैं। आप अपनी पसंद के हिसाब से मौसम का चयन कर सकते हैं। सर्दियों में आएं तो गरम कपड़ों का खास ध्यान रखें क्योंकि यहां बर्फ भी खूब गिरती है। उस मौसम का भी अलग ही लुत्फ है। गर्मियों में यहां सैलानी खूब आते हैं। चूंकि सैलानी खूब आते हैं, इसलिए अब यहां उनके लिए रुकने के भी कई सारे ठिकाने हो गए हैं। यहां हर बजट के हिसाब से रुकने की माकूल व्यवस्था है। आप यहां किसी होमस्टे में भी रुक सकते हैं।  वह कम खर्चीला भी होगा और उससे आपको यहां के जनजीवन को जानने का मौका भी मिलेगा।

शरद के मौसम में नीचे नदी के पास का शानदार नजारा

कैसे पहुंचें

नग्गर आने के लिए पहले आपको कुल्लू पहुंचना होगा। कुल्लू के लिए बरास्ता मंडी दिल्ली, शिमला, चंडीगढ़, पठानकोट से सीधी व नियमित बस सेवा है। कुल्लू तक फिलहाल रेलगाड़ी नहीं पहुंची है। सबसे नजदीक के लिहाज से देखा जाए तो 146 किलोमीटर दूर जोगिंदरनगर का रेलवे स्टेशन सबसे पास है। जोगिंदरनगर छोटी लाइन से पठानकोट से जुड़ा है। लेकिन दिल्ली-चंडीगढ़ की तरफ से जाने वालों के लिए वह लंबा रास्ता है। कुल्लू से सटे भुंतर में हवाई अड्डा है, जहां दिल्ली-चंडीगढ़ से उड़ानें आती हैं। कुल्लू से नगर जाने के लिए परिवहन निगम और निजी बसों की सुविधा भी है या फिर कोई निजी वाहन भी किया जा सकता है। दिल्ली से नग्गर 512 किलोमीटर, चंडीगढ़ से 272 किलोमीटर और शिमला से 241 किलोमीटर की दूरी पर है।

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