कास के पठार में फूल खिलने लगे हैं। लेकिन अभी हम उन्हें देखने नहीं जा सकते क्योंकि कोविड-19 के कारण लॉकडाउन लगाए जाने के बाद से यह जगह अभी सैलानियों के लिए फिर से खुली नहीं है। वैसे भी महाराष्ट्र दश में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला राज्य है। लेकिन अभी वक्त है। फूल अक्टूबर तक खिले रहेंगे। हो सकता है आपको जाने का मौका मिल जाए। तब तक जानिए इस अनूठी जगह के बारे में... कास हमारे मध्य भारत की फूलों की घाटी है। जब भी हम फूलों की घाटी की बात करते हैं तो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हिमालयी फूलों की घाटी नेशनल पार्क की याद आती है या फिर हम हर की दून में स्थित फूलों की भी बात कर लेगे हैं, औऱ हो सकता है कि सिक्किम में युमथांग को भी याद कर लें। लेकिन कास हमारे जेहन में नहीं आता। अब कहने वाले कह सकते हैं कि बात घाटियों की हो तो कास तो पठार है। लेकिन कास के पठार होने की वजह से ही यह...
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किसी भी जगह की किसी दूसरे देश की जगह से तुलना करना बड़ा अजीब लगता है, खासकर प्रकृति के संदर्भ में। लेकिन कई बार किसी कम लोकप्रिय जगह को किसी जानी-मानी जगह के बरक्स रखना दरअसल उसे पहचान दिलाने में मदद जरूर करता है। आंध्र प्रदेश में गांडिकोटा ऐसी ही जगह है, जिसे लोग भारत का ग्रांड कैनयन कहते हैं। जाहिर है, यह नाम देने वालों को ग्रांड कैनयन के बारे में पता होगा। जिन्हें न बता हो, वो इतनाभर जान सकते हैं कि अमेरिका के एरिजोना में स्थित ग्रांड कैनयन प्रकृति का नायाब करिश्मा है, जिसमें चट्टानी पहाड़ों के बीच गहरी खाइयां बनी हैं और सैकड़ों-हजारों सालों में हवा व पानी के प्रवाह से इन खड्ड में चट्टानों पर प्रकृति की मानो चित्रकारी सी हो गई है। कुछ इस तरह से यहां बहती है पेन्नार नदी गांडिकोटा में भी कुदरत ने ऐसा ही करिश्मा दिखाया है। कुछ ऐसा कि वहां जाकर आपको यकीन नहीं होगा कि भारत में किसी जग...
Read MoreKhushvinder Singh is part of a 12-member group from Jammu who reached Katra before dawn to pay obeisance at the famous Mata Vaishno Devi Shrine atop Trikuta hills in Reasi district of Jammu and Kashmir.The shrine along with other religious places across the Union Territory reopened for devotees on Sunday morning after remaining closed for almost five months due to the COVID-19 outbreak. "I used to come to the shrine at least once every month to offer my prayers. I feel blessed to be back on the first day of the reopening of the shrine," the 48-year-old Singh said. Singh had reached Katra, the base camp for the pilgrims visiting Vaishno Devi shrine, around 4 am and was among the first batch to offer prayers at the sanctum sanctorum - the holy cave which is the ultimate destination of th...
Read Moreपहले के कालिकट और आज के कोझिकोड के आसपास के इलाके को केरल के बाकी हिस्सों की ही तरह कुदरत ने काफी नियामतें बख्शी हैं। उनको काफी सहेजकर रखा भी गया है। मलाबार के इस इलाके में जाएं तो इन कुछ जगहों की सैर करना न भूलें, हम बता रहे हैं आपको टॉप 10 विकल्प। धुंध से ढका तुषारागिरी वाटरफॉल्स तुषारागिरी यानी धुंध से ढका पहाड़। कोझिकोड से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह वाटरफॉल्स बहुत खूबसूरत है। लगातार गिरते पानी से उठती ओस यहां पहाड़ पर कुहासा सा बना देती हैं। यह इलाका केरल के पारंपरिक मसालों की खेती से भरपूर है। यह ट्रैकिंग के शौकीन भी बहुत आते हैं जो यहां से वायनाड जिले में वाइतिरी तक ट्रैक के लिए जाते हैं। सांस्कृतिक चेतना का ताली मंदिर कोझिकोड शहर के भीतर स्थित 14वीं सदी में बना यह मंदिर मलाबार के इस इलाके की सांस्कृतिक चेतना का एक प्रमुख केंद्र है। इसका केरल शैली का पारंपरि...
Read Moreयह लगातार तीसरा साल है जब केरल की नौका प्रतिस्पर्धाओं की पहचान माने जाने वाली नेहरु ट्रॉफी बोट रेस को स्थगित किया गया है। यह बोट रेस एक तरह से केरल के टूरिस्ट सीजन का आगाज़ मानी जाती है, लेकिन पहले 2018 में भीषण बाढ़ की वजह से और फिर 2019 में भी उसी के अंदेशे में आगे खिसकने के बाद इस साल कोविड-19 महामारी के कारण इसका आयोजन आगे खिसका दिया गया है। इसे इस साल 8 अगस्त 2020 को होना था, और यह इसका 68वां संस्करण होता। पिछले साल से केरल ने इस दौरान होने वाली तमाम नौका दौड़ों को मिलाकर एक चैंपियंस बोट लीग (सीबीएल) का ऐलान किया था जिसमें नेहरु ट्रॉफी से शुरू होकर नवंबर तक होने वाली कुल 12 नौका दौड़ों के लिए टीमों को उनके प्रदर्शन के आधार पर अंक मिले और अंत में सबसे ज्यादा अंक पाने वाली टीम सीबीएल विजेता बनी। इस साल सीबीएल का दूसरा सीजन होना था। फिलहाल, जब तक नौका दौड़ें फिर से शुरू हों, हम आपको ले...
Read MoreThe wait is over and Madhya Pradesh tourism wants to announce it in big way. It has launched a campaign “#IntezaarKhatamHua” to build the confidence and trust amongst the travellers and to keep the audience engaged during the monsoon season by featuring the major monsoon tourism attractions of the destinations like Amarkantak, Panchmarhi, Mandu, Orchha, Tamia, Bhedaghat, and all its National Parks. In the process it also wants to promote state as next big roadtrip and caravan tourism destination. Shiva temple at Bhojpur is a big draw Madhya Pradesh already has some popular monsoon destinations like Mandu and Pachmarhi and this time around after reopening the state borders for domestic tourists in post-COVID-19 lockdown situations, it has also kept buffer zones of all its national pa...
Read Moreमलाबार का इलाका केरल की कई पारंपरिक कलाओं का केंद्र रहा है। इनमें तैय्यम और कलरिपयट्टु शामिल हैं। वहीं कर्नाटक से लगे उत्तर केरल में कासरगोड यक्षगान और पुतलियों के नाच के लिए प्रसिद्ध है। तैय्यम को कलियट्टम भी कहा जाता है। यह नृत्य परंपरा कम से कम आठ सौ साल पुरानी बताई जाती है। यह उत्तर केरल में प्रचलित रहा मूलत: धार्मिक अनुष्ठान का नृत्य है। कन्नूर व कासरगोड जिलों में इस कला की खास तौर पर परवरिश हुई। यह भी कहा जाता है कि तैय्यम दरअसल दैवम् शब्द का अपभ्रंश या देशज रूप है। इसमें नृत्य है,अभिनय है, संगीत है और प्राचीन जनजातीय संस्कृति की झलक इसमें साफ देखने को मिलती है। उसमें नायकों के यशोगान और पूर्वजों की आत्माओं के ध्यान को ज्यादा अहमियत दी जाती थी। केरल में तैय्यम की एक प्रस्तुति माना जाता है कि लगभग चार सौ किस्म के तैय्यम प्रचलन में हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय रक्त चामुंडी,...
Read Moreहिंदुस्तान में पतझड़ का रंग अगर कहीं अपने पूरे शबाब पर दिखता है तो वह कश्मीर है। अब मौजूदा माहौल में कश्मीर जाने की बात करना थोड़ा अखरता है, हालांकि कश्मीरी कभी अपने मेहमान सैलानियों पर आंच नहीं आने देते। लेकिन बात पतझड़ के रंगों की हो तो कश्मीर का जिक्र किए बिना रहा भी तो नहीं जाता। कश्मीर की बात ही कुछ ऐसी है। कश्मीर में पतझड़ के मौसम को हारुद कहते हैं (याद है न, आमिर बशीर की बनाई चर्चित फिल्म इसी नाम की थी)। हारुद का मौसम यूं तो कई खासियतें लेकर आता है, लेकिन इसका सबसे अलहदा, खास रंग चिनार की पत्तियों से आता है। वादी के चारों तरफ खड़े पहाड़ भी मानो चिनार के रंग में खुद को रंगने के लिए भूरे हो जाते हैं, बस इससे पहले कि वे बर्फ से सफेद हो जाएं। दरअसल कश्मीर में दोनों ओर कतार में खड़े चिनार के पेड़ और बीच में नीचे बिखरी हुई सुनहरे या सुर्ख लाल रंग की चिनार की पत्तियों की तस्वीर हमेशा स...
Read Moreजोधपुर के निकट एक गांव पर्यावरण तीर्थ होने की योग्यता रखता है। सदियों पहले जब पर्यावरण संरक्षण के नाम पर न कोई आंदोलन था और न कोई कार्यक्रम, तब वृक्षों के संरक्षण के लिए सैकड़ों अनगढ़ और अनपढ़ लोगों ने यहां आत्मबलिदान कर दिया था। आत्माहुति का ऐसा केंद्र किसी तीर्थ से कम नहीं। पश्चिमी राजस्थान का विश्नोई समुदाय कई मायनों में किवंदती सरीखा है। प्रकृति के लिए अपार प्रेम उनके जीवन का हिस्सा है- जीवन-मरण का सवाल खेजड़ली कलां में पेड़ों का बगीचा राजस्थान के ऐतिहासिक शहर जोधपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के अंचल में बसा खेजड़ली गांव किसी भी पर्यावरण प्रेमी के लिए विशेष महत्व का है, जहां आज से पौने तीन सौ साल पहले इस प्रकार की चेतना पैदा हो चुकी थी कि सिर साटैं रुंख रहे तो भी सस्तो जांण, अर्थात यदि सिर देकर भी वृक्षों की रक्षा हो सके तो भी यह बलिदान सस्ता ही है। मूल चिपको आंदोल...
Read Moreउत्तराखंड में चारधाम यात्रा के साथ-साथ अब फूलों की घाटी भी राज्य के बाहर से आने वाले सैलानियों के लिए खोल दी गई है। यानी अब आप इस अनूठी जगह का आनंद ले सकते हैं। इसका यही सबसे उपयुक्त समय है। बस आपको पहले से तय कोविड-19 दिशानिर्देशों का पालन करना होगा जिसमें उत्तराखंड में प्रवेश करने से ठीक पहले के 72 घंटों के भीतर कराए गए कोविड-19 के आरटी-पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट सबसे अहम है। तब तक हम आपको दिखला रहे हैं इस कुदरती करिश्मे की झलक। पुष्पावती नदी के दोनों तरफ फैली है फूलों की घाटी भारत में यूं तो कई प्राकृतिक घाटियां हैं जहां कुदरती तौर पर फूल खिलते हैं, और यह भी पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कि मध्य व दक्षिण-मध्य भारत के पठार वाले इलाकों से लेकर सुदूर उत्तर-पूर्व में निचले हिमालय के पहाड़ों तक इन तमाम घाटियों की खूबसूरती एक से बढ़कर एक है। इनमें से कई तो ऐसी भी हैं जो भले ही स...
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