जोधपुर के निकट एक गांव पर्यावरण तीर्थ होने की योग्यता रखता है। सदियों पहले जब पर्यावरण संरक्षण के नाम पर न कोई आंदोलन था और न कोई कार्यक्रम, तब वृक्षों के संरक्षण के लिए सैकड़ों अनगढ़ और अनपढ़ लोगों ने यहां आत्मबलिदान कर दिया था। आत्माहुति का ऐसा केंद्र किसी तीर्थ से कम नहीं। पश्चिमी राजस्थान का विश्नोई समुदाय कई मायनों में किवंदती सरीखा है। प्रकृति के लिए अपार प्रेम उनके जीवन का हिस्सा है- जीवन-मरण का सवाल खेजड़ली कलां में पेड़ों का बगीचा राजस्थान के ऐतिहासिक शहर जोधपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के अंचल में बसा खेजड़ली गांव किसी भी पर्यावरण प्रेमी के लिए विशेष महत्व का है, जहां आज से पौने तीन सौ साल पहले इस प्रकार की चेतना पैदा हो चुकी थी कि सिर साटैं रुंख रहे तो भी सस्तो जांण, अर्थात यदि सिर देकर भी वृक्षों की रक्षा हो सके तो भी यह बलिदान सस्ता ही है। मूल चिपको आंदोल...
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