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हिमालय से एकाकार कराता है चोपता तुंगनाथ

उत्तराखंड उन चंद राज्यों में से है जिन्होंने कोविड-19 के दौर में पर्यटन को फिर जिंदा करने के लिए अपने राज्य की सीमा को सैलानियों के लिए फिर से खोल दिया है। हालांकि राज्य के बाहर के लोगों को अभी चार धाम यात्रा पर जाने की इजाजत नहीं है। लेकिन उस इलाके में चार धामों के अलावा भी कई जगहें इस समय देखी जा सकती हैं, चोपता तुंगनाथ उन्हीं में से है

उत्तराखंड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिए काफी है। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी ,तरह-तरह के फूल,  कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडिय़ा और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल दुनिया का एहसास कराते हैं….चमोली की शांत फिजाओं में ऐसा ही एक स्थान है- चोपता तुगंनाथ। बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये इलाका गढ़वाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने लायक होती है। इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते। सबसे खास बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में या अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों (ऊंचाई वाले स्थानों पर मीलों तक फैले घास के मैदान) की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और सैलानियों की साधारण पहुंच में है।

तुंगनाथ मंदिर

ऋषिकेश से गोपेश्वर या फिर ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर यहां पहुंचा जा सकता है। ये दोनों स्थान बेहतर सड़क मार्ग से जुड़े हुए हैं। गोपेश्वर से चोपता चालीस किलोमीटर और ऊखीमठ से चौबीस किलोमीटर की दूरी पर है। मई से नवंबर तक यहां कि यात्रा की जा सकती है। हालांकि यात्रा बाकी समय में भी की जा सकती है लेकिन बर्फ गिरी होने की वजह से मोटर का सफर कम और ट्रैक ज्यादा होता है। जाने वाले लोग जनवरी व फरवरी के महीने में भी यहां की बर्फ की मजा लेने जाते हैं। स्विट्जरलैंड का अनुभव करने के लिए तो यह जरूरी है ही।

तुंगनाथ जाने का रास्ता

यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे सफर बढ़ता जाता है। रुद्रप्रयाग पहुंचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोड़कर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यहां से मार्ग संकरा है। इसलिए चालक को गाड़ी चलाते हुए काफी सावधानी बरतनी होती है। मार्ग अत्यंत लुभावना और खूबसूरत है। आगे बढ़ते हुए अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दीदार होने लगते हैं। चोपता की ओर बढ़ते हुए रास्ते में बांस और बुरांश का घना जंगल और मनोहारी दृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं। चोपता समुद्रतल से बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किमी की पैदल यात्रा के बाद तेरह हजार फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर है, जो पंचकेदारों में एक केदार है। सच पूछिए तो चोपता भ्रमण का असली मजा तुंगनाथ जाए बिना नहीं उठाया जा सकता। चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। यहां पर प्राचीन शिव मंदिर है। इस प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन करने के बाद यदि आप हिम्मत जुटा सके तो मात्र डेढ़ किमी. की ऊंचाई चढऩे के बाद चौदह हजार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है.. जहां ठीक सामने छू लेने लायक हिमालय का विराट रूप किसी को भी हतप्रभ कर सकता है। चारों ओर पसरे सन्नाटे में ऐसा लगता है मानो आप और प्रकृति दोनों यहां आकर एकाकार हो उठे हों।

तुंगनाथ के निकट गणेश मंदिर

तुंगनाथ से नीचे जंगल की खूबसूरत रेंज और घाटी का जो नजारा उभरता है, वो बहुत ही अनूठा है। चोपता से करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवहरयिा ताल पहुंचा जा सकता है जो कि तुंगनाथ मंदिर के दक्षिण दिशा में है। इस ताल की कुछ ऐसी विशेषता है जो इसे और सरोवरों से विशिष्टता प्रदान करती है। इस पारदर्शी सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिम्ब स्पष्ट नजर आने लगते हैं। इस सरोवर का कुल व्यास पांच सौ मीटर है। इसके चारों ओर बांस व बुरांश के सघन वन हैं तो दूसरी तरफ एक खुला सा मैदान है।

चोपता से गोपेश्वर जाने वाले मार्ग पर कस्तूरी मृग प्रजनन फार्म भी है। यहां पर पर्यटक कस्तूरी मृगों की सुंदरता को करीब से निहारते हैं। मार्च-अप्रैल के महीने में इस पूरे मार्ग में बुरांश के फूल अपनी अनोखी छटा बिखेरते हैं। जनवरी-फरवरी के महीने में ये पूरा इलाका बर्फ से ढका रहता है। चोपता के बारे में ब्रिटिश कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि जिस व्यक्ति ने अपनी जिंदगी में चोपता नहीं देखा उसका इस पृथ्वी पर जन्म लेना व्यर्थ है। एटकिन्सन की यह उक्ति भले ही कुछ लोगों को अतिरेकपूर्ण लगे लेकिन यहां की खूबसूरती बेमिसाल है, इसमें किसी को संदेह नहीं हो सकता। किसी पर्यटक के लिए यह यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं है।

चोपता तुंगनाथ से आगे चंद्रशिला मंदिर

कैसे पहुंचे

सड़क मार्गः सड़क, रेल या हवाई जहाज किसी भी जरिये आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा जहां से आगे का रास्ता सड़क से पूरा करना होता है। देहरादून का जॉली ग्रांट सबसे निकट का हवाईअड्डा है और हरिद्वार मुख्य मार्ग का सबसे बड़ा निकल का रेलवे स्टेशन। आगे के लिए आप इन दो रास्तों में एक को चुन सकते हैं- ऋषिकेश से गोपेश्वर होकर या ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर। ऋषिकेश से ऊखीमठ की दूरी 212 किलोमीटर है और ऋषिकेश से उखीमठ की दूरी 178 किलोमीटर है। गोपेश्वर से चोपता चालीस किलोमीटर और ऊखीमठ से चौबीस किलोमीटर है, जो कि सड़क मार्ग से जुड़ा है। ऋषिकेश से गोपेश्वर और ऊखीमठ के लिए बस सेवा उपलब्ध है। इन दोनों स्थानों से चोपता के लिए बस सेवा के अलावा टैक्सी और जीप भी बुक कराई जा सकती है।

चोपता से हिमालय का नजारा

कहां रुकें

गोपेश्वर और ऊखीमठ, दोनों जगह गढ़वाल मंडल विकास निगम के विश्रामगृह हैं। इसके अलावा प्राइवेट होटल, लॉज, धर्मशालाएं भी हैं जो आसानी से मिल लाती हैं। चोपता में भी आपको आवासीय सुविधा मिल जाएगी यहां पर स्थानीय लोगों की दुकानें हैं।

समय और सीजनः मई से लेकर नवंबर तक यहां की यात्रा थोड़ी आसान है। यात्रा के लिए सप्ताह भर का वक्त काफी है। यूं तो गर्म कपड़े साथ हो चाहे महीने कोई भी हो क्योंकि ऐसी जगह पर हर महीने का अपना रंग है और अपना मजा है।

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