Wednesday, December 25
Home>>सैर-सपाटा>>भारत>>थार में गोडावण के पीछे-पीछे
भारतराजस्थानसैर-सपाटा

थार में गोडावण के पीछे-पीछे

यह किसी ऊंटगाड़ी में जंगल सफारी का पहला और अब तक का अकेला अनुभव मेरे लिए था। अब यह दीगर बात है कि यह जंगल कोई प्रायद्वीपीय भारत के घने जंगलों (ट्रॉपिकल फॉरेस्ट) जैसा नहीं था। यहां जंगल के नाम पर लंबी सूखी घास, झाड़ियां, बबूल के पेड़, कैक्टस और रेत के टीले थे। फिर भी सफारी के लिए यहां बड़ी और खुली छत वाली बसें हैं। बसों में सफारी का यह फायदा है कि आप कम समय में ज्यादा रास्ता तय कर सकते हैं। आखिरकार हम उस नेशनल पार्क की बात कर रहे हैं जो तीन हजार वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा इलाके में फैला है और क्षेत्रफल के मामले में भारत में दूसरा सबसे बड़ा नेशनल पार्क है। (सबसे बड़ा हिमालयी इलाके का हेमिस नेशनल पार्क है।)

डेजर्ट नेशनल पार्क में गोडावण और ब्लैक बक

ऊंटगाड़ी में सफारी के भी अपने फायदे हैं। मोटर इंजन की आवाज न होने से आप जानवरों को शोर से डराए बिना उनके नजदीक जा सकते हैं। फिर ऊंट के बिना रेगिस्तान का क्या मजा। यह खालिस देहाती स्टाइल तो लगता ही है। ऊपर से सड़क से नीचे उतरकर भीतर घने में घुस जाता है। जहां चाहें, वहां रोक लीजिए। आप जमीन के भी ज्यादा नजदीक रहते हैं। जानवर आप ज्यादा अच्छे से देख सकते हैं। रेत के टीलों व पीली-भूरी घास के बीच छिपे जानवर बस की ऊंचाई से कई बार नजर नहीं आते। डर किसी किस्म का होता नहीं क्योंकि यहां कोई हमलावर जानवर नहीं होता। बाघ और तेंदुए यहां होते नहीं। अफ्रीका से चीते लाकर भारत में फिर से बसाने की योजना डेजर्ट नेशनल पार्क को ध्यान में ही रखकर कई सालों पहले बनी थी जो कभी सिरे नहीं चढ़ी।

बस में बैठकर ज्यादा इलाका कवर करने की कोई मंशा भी हमारी नहीं थी क्योंकि यहां बाघ की तलाश करनी नहीं थी और भौगोलिक लिहाज से भी सारा इलाका कमोबेश एक जैसा था। पार्क का काफी बड़ा हिस्सा लुप्त हो चुकी नमक की झीलों की तलहटी और कंटीली झाड़ियों से भरा-पूरा है। इसके साथ ही रेत के टीलों की भी बहुतायत है। पार्क का बीस फीसदी हिस्सा रेत के टीलों से सजा हुआ है।

गोडावण की उड़ान ज्यादा ऊंची नहीं हो पाती

हमारे लिए एक और फायदा मौसम के लिहाज से भी था। रेगिस्तान में अलस्सुबह का समय खासा ठंडा हो जाता है। सफारी के समय बस में जितनी तेज हवा लगती है उतनी ऊंटगाड़ी में नहीं लगती। ऊंटगाड़ी में तो आपके पास कंबल में लिपटकर बैठने का भी मौका रहता है। अनुभव के लिहाज से भी यह एकदम अलग है जो आपको भारत के और किसी नेशनल पार्क में नहीं मिल सकेगा।

मेरी अपनी दिलचस्पी सबसे ज्यादा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड देखने की थी जिसे यहां गोडावण कहा जाता है। जितनी तेजी से इस पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है, उसमें यह डर लगा ही रहता है कि अगली बार पता नहीं कितने गोडावण देखने को मिलेंगे। उस लिहाज से यह संतोष ही रहा कि गोडावण ने हमें निराश नहीं किया। पार्क में घुसते ही उनका झुंड देखने को मिल गया- तफरीह करते हुए भी और उड़ते हुए भी। उसे उड़ते देखना इसलिए भी रोमांचक था क्योंकि भारी वजन वाला यह जानवर अक्सर ज्यादा ऊंचा नहीं उड़ पाता। गोडावण बार-बार दिख जाने से सफारी का मुख्य मकसद तो पूरा हो ही गया था। दूसरी संतुष्टि मिली लाल सिर वाले काले गिद्धों (रेड हेडेड वल्चर या एशियन किंग वल्चर या इंडियन ब्लैक वल्चर- इसके कई नाम हैं) को देखकर। गोडावण की ही तरह यह पक्षी भी लुप्त होने के गंभीर खतरे को झेल रहा है।

डेजर्ट नेशनल पार्क में इंडियन ब्लैक वल्चर

वैसे कई और तरह की चीलें और पक्षी भी यहां देखने लायक हैं। राजबाग झील, मिलक झील और पद्मतलाव झील जैसे कुछ जलाशय पार्क के इलाके में आते हैं। रेगिस्तानी समुद्र में पानी के ये टापू अक्सर जानवरों और परिंदों का अड्डा बन जाते हैं। सर्दियों में कई प्रवासी पक्षी भी इस इलाके में रिहाइश के लिए आते हैं, इनमें चीलों व गिद्धों की प्रजातियां प्रमुख हैं। इकोलॉजी के हिसाब से बेहद नाजुक इलाका होने के बावजूद यह पार्क कई तरह के परिंदों को संरक्षण दे रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में यह अपनी तरह का अकेला इस तरह का इलाका है। बाकी पश्चिमी राजस्थान की ही तरह हिरणों में यहां ब्लैकबक (कृष्णमृग) ही ज्यादा नजर आते हैं। वैसे यहां चिंकारा भी खूब हैं। अन्य खालिस रेगिस्तानी जानवरों में यहां रेगिस्तानी मुर्गी भी है, रेगिस्तानी लोमड़ी और रेगिस्तानी बिल्ली भी। यहां सांप भी काफी हैं, जिनमें रसेल्स वाइपर व क्रैट जैसे जहरीले सांप भी हैं। इसके अलावा कई तरह की छिपकलियां भी हैं। यहां बड़ी मॉनिटर लिजार्ड भी हैं और खास रेगिस्तानी इलाके की थोड़ी छोटी इंडियन डेजर्ट मॉनिटर भी। पहाड़ी भूरा खरगोश भी यहां उछलता-कूदता देखा जा सकता है।

पार्क की वनस्पतियों और पेड़-पौधों की प्रजातियों में धोक, रोंज, सलाई, खेजड़ी और ताड़ के वृक्ष खास हैं। वनस्पतियां बिखरी और छितरी हुई हैं। आक की झाड़ियों और सेवान घास से भरे छोटे-छोटे इलाके भी जहां-तहां दिखाई दे जाते हैं। खेजड़ी तो पश्चिमी राजस्थान का खास पेड़ है जिसका संरक्षण विश्नोई समुदाय के लोग कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं।

ऊंटगाड़ी में नेशनल पार्क की सफर का आनंद अलग ही है

डेजर्ट नेशनल पार्क का आधे से थोड़ा ज्यादा हिस्सा जैसलमेर जिले में आता है और बाकी बाड़मेर जिले में। डेजर्ट नेशनल पार्क की एक अन्य खासियत इसी के दायरे में मौजूद वुड फॉसिल पार्क भी है। यह जैसलमेर की दूसरी तरफ 17 किलोमीटर दूर बाड़मेर के रास्ते में आकल गाव में स्थित है। यह फॉसिल पार्क 18 करोड़ वर्ष पुराने जानवरों और पौधों के जीवाश्म का एक संग्रह है। इस क्षेत्र में डायनोसोर के कुछ जीवाश्म तो ऐसे पाए गए हैं जो 60 लाख साल पुराने हैं। इस फॉसिल पार्क से डेजर्ट नेशनल पार्क को गजब की विविधता मिल जाती है।

डेजर्ट नेशनल पार्क विशाल है, रेगिस्तानी इलाके में है और पाकिस्तान से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के बेहद नजदीक है। पार्क की अपनी कोई घेरेबंदी नजर नहीं आती लेकिन पार्क के भीतर कई जगहों पर वन विभाग के अलग-अलग घेरे नजर आते हैं। यहां ज्वार-बाजरा की खेती भी दिख जाती है और चरते हुए मवेशी भी। कहीं थोड़ी-बहुत रिहाइश नजर आ जाती है तो कहीं मीलों तक न कोई इंसान नजर आता है, न कोई जानवर और न ही कोई पेड़-पौधे। वैसे पार्क के भीतर सत्तर से ज्यादा गांव हैं और कई ढाणियां भी। इस सारे लिहाज से इसकी संरचना बड़ी विचित्र सी नजर आती है। नेशनल पार्क होने के बावजूद यह अभयारण्य सरीखा नजर नहीं आता। हालांकि पहले यह डेजर्ट सैंक्चुअरी के नाम से ही जाना जाता था, इसकी जैविक अहमियत के कारण 1980 में ही इसे नेशनल पार्क का दर्जा मिला।

यहां खुली बस में भी सफारी की जा सकती है

रेत जल्दी गर्म होती है और जल्द ही ठंडी। इसलिए यहां जाने का सबसे बेहतरीन समय नवंबर से फरवरी के बीच का ही है। सवेरे जल्दी सफारी पर जाना ठंड के मारे कंपकंपी तो पैदा कर सकता है लेकिन सर्दी के मौसम में ही सूरज निकलने के बाद की तपिश बरदाश्त की जा सकती है। सुबह की धूप में जानवरों के भी नजर आने की गुंजाइश ज्यादा रहती है। जैसलमेर आने वाले सैलानियों में बहुत लोकप्रिय सम के रेत के टीलों के बेहद नजदीक तक इस नेशनल पार्क का इलाका जाता है। लेकिन सम जाने वाले सैलानियों में से एक-चौथाई भी डेजर्ट नेशनल पार्क नहीं जाते। सम से थोड़ा पहले ही बाईं ओर रास्ता कटता है जो डेजर्ट नेशनल पार्क के भीतर सुदासरी के लिए ले जाता है। सुदासरी में वन विभाग की चौकी भी है, सैलानियों के लिए हट भी। यहीं से आम तौर पर सफारी शुरू होती है। इस पार्क में दिखने वाले जानवरों में से ज्यादातर के दीदार भी यहीं आसपास हो जाते हैं। बाकी तो किस्मत की बात है। वैसे दिन में डेजर्ट नेशनल पार्क की सैर करके शाम को सूर्यास्त से पहले सम के टीलों तक पहुंचा जा सकता है। रेत के समदंर में डूबते सूरज को देखने के बाद खड़ताल की लय पर कालबेलिया नाच देखते हुए दिन का खुशनुमा अंत किया जा सकता है।

द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

‘द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ यानि गोडावण राजस्थान का राज्य पक्षी है। रेगिस्तानी इलाकों पाया जाने वाला यह पक्षी अब दुर्लभ है। बड़े आकार और अपने वजन के कारण यह भारी होने के चलते ज्यादा ऊंचा उड़ नहीं सकता लेकिन लंबी और मजबूत टांगों के सहारे बहुत तेजी से दौड़ सकता है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। गोडावन को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने कुछ साल पहले एक प्रोजेक्ट तैयार किया था। तब गोडावण के संरक्षण के लिए विशेष योजना बनाने वाला राजस्थान पहला राज्य बना। जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क के अलावा गोडावण सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया इलाके में भी पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और लंबी सूखी घास में रहना इसका स्वभाव है। यह ‘सोहन चिडिया’ और ‘शर्मिला पक्षी’ के उपनामों से भी जाना जाता है। चिंता की बात यह है कि गोडावण का अस्तित्व खतरे में है और इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। यह सर्वाहारी पक्षी है। इसकी खाद्य आदतों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है किंतु इसका प्रमुख भोजन टिड्डे आदि कीड़े है। यह साँप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है। यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है।

यह देश का दूसरा सबसे बड़ा नेशनल पार्क है

आंकल का वुड फॉसिल नेशनल पार्क

जैसलमेर का रेगिस्तान इकॉलोजी के लिहाज से एक अलग ही तंत्र रहा है और बड़ी अहमियत रखता है। यहां 180 साल पुराना आंकल लकड़ी का जीवाश्म पार्क भी देखने लायक है। जैसलमेर से 17 किलोमीटर दूर आंकल गांव में राष्ट्रीय स्तर का यह वुड फॉसिल पार्क (जीवाश्म उद्यान) स्थित हैं। 21 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले हुए इस पार्क में 18 करोड़ वर्ष पुराने पेड़-पौधों के जीवाश्म पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने जैसलमेर में समुद्री वातावरण के बनने व उसके समाप्त होने के बारे में काफी अध्ययन किए हैं। जैसलमेर के काहला, कुलधरा, जाजिया क्षेत्रों में भी इसी तरह के जीवाश्म मिले हैं। माना जाता है कि जैसलमेर बेसिन में स्थित समुद्र कुलधरा गांव के आसपास सर्वाधिक गहरा था। जिसके कारण से यहां कई तरह के समुद्री जीवों के जीवाश्म मिलते है। जुरासिक काल के बाद यहां नदी बहने के भी प्रमाण मिले है। हालांकि अफसोस की बात यह है कि जैसलमेर जाने वाले सैलानियों में से बहुत कम ही फॉसिल पार्क देखने जाते हैं।

कहां व कैसे

वैसे तो आम तौर पर सैलानी जैसलमेर को ही बेस बनाकर डेजर्ट नेशनल पार्क में सफारी के लिए जाते हैं। इस लिहाज से पार्क शहर से दूर भी नहीं है। लेकिन जो लोग पार्क के नजदीक रहकर वहां की आबोहवा को महसूस करना चाहते हैं, उनके लिए भी इंतजाम है। जैसलमेर शहर से लेकर पार्क के बीच में भी कई रिजॉर्ट हैं जो रेगिस्तान के ज्यादा नजदीक हैं। इसके अलावा राजस्थान के वन विभाग ने सुदासरी में कुछ हट भी बना रखी हैं, जहां सैलानी रुक सकते हैं। ये पक्की बनी हट बुनियादी सुविधाओं वाली हैं यानी इनमें साफ-सुथरे बिस्तर हैं और बाथरूम। सुदासरी में ही वन विभाग की चौकी भी है। यहां के गार्ड ही रुकने वाले सैलानियों के लिए खाने का भी इंतजाम कर देते हैं। सुदासरी चेक पोस्ट, जैसलमेर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है। यहीं से पार्क के भीतर सफारी के लिए साधन भी मिल जाते हैं। लेकिन सार्वजनिक परिवहन के अभाव में सुदासरी तक अपने साधन से पहुंचना होता है।

सफर

जैसलमेर भारत का सुदूर पश्चिमी कोना है। दिल्ली से जैसलमेर के लिए सीधी ट्रेन है। जोधपुर सबसे निकट का हवाई अड्डा है, जहां दिल्ली-मुंबई से रोजाना उड़ानें आती हैं। जोधपुर से जैसलमेर तक ट्रेन से भी जाया जा सकता है और सड़क मार्ग से भी। यह दूरी लगभग तीन सौ किलोमीटर है। सड़क मार्ग साफ-सुथरा और अच्छा है। इस रास्ते में कई अन्य ऐतिहासिक महत्व की जगहों को देखने का फायदा भी लिया जा सकता है।

Discover more from आवारा मुसाफिर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading