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नमक में फ्लेमिंगो

पहली नजर में सांभर झील का विस्तार किसी दूसरे ग्रह का इलाका सा लगता है। दूर तक छिछला पानी, उसमें सफेद नमक के ढेर, पानी में डूबती-निकलती रेल पटरियां जो नमक से लगे जंग के कारण बाबा आदम के जमाने की लगती हैं और उस पानी में जहां-तहां बैठे प्रवासी परिंदे। कोई हैरत की बात नहीं कि बॉलीवुड की मशहूर फिल्म पीके में आमिर खान के दूसरे ग्रह से धरती पर अवतरित होने वाले दृश्य को यहां फिल्माया गया था। हालांकि सांभर झील की खूबसूरती और अहमियत, दोनों ही उससे कहीं ज्यादा हैं।

सांभर झील में फ्लेमिंगो

राजस्थान में अजमेर, जयपुर और नागौर के बीच करीब 230 वर्ग किमी इलाके में फैली भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील सांभर को आमतौर पर नमक उत्पादन के लिए ही जाना जाता रहा है। हालांकि बर्फ के मैदानों सा अहसास कराते इसके नमक के भंडार और पानी पर कई हजारों की तादाद में दिखने वाले गुलाबी फ्लेमिंगो पक्षी इसे राजस्थान के सबसे खूबसूरत स्थलों में से एक बनाते हैं। जयपुर से अस्सी किलोमीटर दूर पृथ्वीराज चौहान की राजधानी रहा सांभर प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा जगहों में एक है। हालांकि प्रवासी परिंदों के अड्डे के रूप में इसे संभवतया उतनी चर्चा नहीं मिली जितनी राजस्थान में ही भरतपुर के केवलादेव घना पक्षी अभयारण्य को मिल गई।

यहां किए गए अध्ययनों के अनुसार सांभर झील इलाके में जीव-जंतुओं की 212 प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं। पक्षी प्रेमियों के लिए सबसे आकर्षक बात यही है कि सांभर झील फ्लेमिंगो पक्षियों के लिए भारत में शीत-प्रवास और प्रजनन की दूसरी सबसे बड़ी जगह है। स्वाभाविक तौर पर सबसे पहले नंबर पर कच्छ का रण है जिसे भारत में फ्लेमिंगो की भूमि कहा जाता है।

सांभर में जब आप सर्दियों के मौसम में जाएं तो दूर से पानी के सुदूर किनारे पर कतार से खड़े हजारों की तादाद में फ्लेमिंगो पक्षियों का गुलाबी रंग पानी के किनारे पर फैली किसी आग की लपट सा दिखाई देता है। यह खूबसूरत पक्षी छिछले नमकीन पानी में मिट्टी के ढेर पर अंडे देता है। इसीलिए सांभर का इलाका उन्हें पसंद है।

फ्लेमिंगो के अलावा भी सांबर इलाके में कई तरह के प्रवासी पक्षी हर साल सर्दियों में आते हैं। इनमें हंसावर (फ्लेमिंगो) के अलावा जल बत्तखों में पिनटेल, शाउलर, डेबचिक, कूट्स, स्नेक बर्ड, स्फून, मेलार्ड, पोचार्ड, बगुले, टिटहरी आदि यहां चार-पांच माह प्रवास करती हैं। वैसे यहां नम इलाकों के पक्षियों की कुल 71 किस्म पाई गई हैं। इन पक्षियों के लिए यह आदर्श ठिकाना है। पानी का विस्तार तमाम तरह के परिंदों के झुंड को यहां आकर अपनी-अपनी जगह बनाने की गुंजाइश देता है। वे बिना किसी बाधा या छेड़छाड़ के यहां बस्तियां बनाते हैं और खाते-पीते हैं।

गुजरती रेल के पास बैख़ौफ़ बैठे परिंदे

सांभर झील भारत के उन नम इलाकों में से है जो नम इलाकों के अंतरराश्ट्रीय रामसर कनवेंशन के तहत आते हैं। रामसर की परिभाषाओं में जल पक्षियों के लगभग बीस ऐसे परिवारों को चिन्हित किया गया था जो पारिस्थितिकीय लिहाज से नम इलाकों पर निर्भर हैं। इन बीस परिवारों में से 15 सांभर झील इलाके में पाए जाते हैं।

लेकिन इतनी जैव संपदा और संपन्न इतिहास के बावजूद सांभर झील और उसके परिंदों के लिए भविष्य की सूरत कोई बहुत उत्साहजनक नहीं है। कई तरह की अवैध गतिविधियां और मनमाने इस्तेमाल से सांभर का इलाका सिकुड़ रहा है और पानी लगातार कम हो रहा है। जाहिर है कि उससे यहां आने वाले पक्षियों की तादाद भी कम होगी। नियमित रूप से होने वाले एशियाई वैटलेंड सेंसस से यह हकीकत सामने आई है कि यहां आने वाले फ्लेमिंगो की संख्या घट रही है। लगातार सूख रही गीली जमीन से यहां फ्लेमिंगो के अलावा यूरोप-अमेरीका से आने वाले जल पक्षी और ब्लैक टैल्ड गोडविट भी कम हो रहे हैं।

हर साल हजारों की तादाद में प्रवासी पक्षी यहां आते हैं

पहले सांभर झील में बारिश होने से लेकर अगले वर्ष मार्च तक बड़ी तादाद में पक्षी रहा करते थे। छह से सात माह तो यहां हजारों की संख्या में पक्षी रहते थे, लेकिन अब यह प्रवास का समय घटकर दो से तीन माह ही रह गया है। यदि फ्लेमिंगो को पलायन से बचाना है तो यहां पानी की कमी को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। सांभर झील में बन रहे नमक के कारण लोग पानी का ज्यादा दुरुपयोग कर रहे हैं, इसे भी रोकना होगा। इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के दो साल पहले हुए सर्वे में भी फ्लेमिंगो की संख्या काफी कम आई थी।

यह झील समुद्र तल से 1,200 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। जब यह भरी रहती है तब इसका क्षेत्रफल 90 वर्ग मील रहता है। इसमें तीन नदियाँ आकर गिरती हैं। इस झील से बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन किया जाता है। अनुमान है कि अरावली के शिष्ट और नाइस के गर्तों में भरा हुआ गाद ही नमक का स्रोत है। गाद में स्थित विलयशील सोडियम यौगिक वर्षा के जल में घुसकर नदियों द्वारा झील में पहुँचाता है और जल के वाष्पन के पश्चात झील में नमक के रूप में रह जाता है।

प्रवासी गोडविट उड़ान भरते हुए

कुछ साल पहले केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने सांभर झील के लिए स्वदेश दर्शन योजना में 64 करोड़ रुपए की योजना मंजूर की थी। इसके साथ ही दो वर्ष में सांभर को राजस्थान का सबसे बड़ा पर्यटन क्षेत्र बनाने की योजना पर काम शुरू किया गया था। सांभर और आसपास के 99 किलोमीटर क्षेत्र को पर्यटन का नया हब बनाया जाना था। यहां वो सब होने की बात कही गई थी जिसकी पर्यटक कल्पना करते हैं। नमक ढोने वाली ट्रेन में हाईक्लास सुविधाएं विकसित कर पर्यटकों को घुमाने की बात है,  झील के चारों ओर एक वाटर डिच तैयार कर बोटिंग कराई जानी है, देवयानी और शांकभरी मंदिर का जीर्णोद्धार होना है, झील के किनारे घूमने के लिए 16 किलोमीटर लंबा साइकिल ट्रेक बनना है और प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए शानदार व्यवस्था की जानी है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना में देश की आठ में से राजस्थान की एक मात्र रामसर साइट के तौर पर सांभर को चुना था। लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी इन योजनाओं को परवान चढ़ना अभी बाकी है।

डेजर्ट सर्किट के तहत विकास की इस योजना को 30 सितंबर 2017 तक योजना को पूरा किया जाना था और इसके लिए केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने पहली किस्त के तौर पर राजस्थान पर्यटन विकास निगम को 12 करोड़ 80 लाख रुपये हस्तांतरित भी कर दिए थे। योजना के तहत अन्य बातों में कारवां पार्क बनाया जाना है, मेले उत्सव के लिए ग्राउंड तैयार होना है, शर्मिष्ठा सरोवर का विकास करा यहा कैफेटेरिया भी बनाया जाना था। नालीसर में मिनी डेजर्ट सफारी, पर्यटक सूचना केंद्र, ओपन एयर थिएटर बनाए जाने हैं। कुल मिलाकर दावा किया गया था कि सांभर अब नमक से ज्यादा पर्यटन के लिए मशहूर होगा और पुरानी विरासत को नए कलेवर में ढालकर पर्यटकों को एक ऐसा अनुभव कराया जाएगा जिसे वे वर्षों तक याद रखेंगे। हालांकि झील को इन तमाम सुविधाओं से ज्यादा दरकार पानी की उपलब्धता और प्रवासी पक्षियों के लिए अनुकूल माहौल बनाए रखने की है।

बार-हेडेड गूज पक्षियों का झुंड

समृद्ध इतिहास

उत्तर भारत के चौहान राजाओं की प्रथम राजधानी सांभर पौराणिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां पर शाकंभरी देवी का मंदिर है। शाकंभरी का प्राचीन नाम सपादलक्ष था। सपादलक्ष का अर्थ सवा लाख गांवों का समूह। यहीं पर वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नीव डाली। इसने शांकभरी/सांभर को अपनी राजधानी बनाया। सांभर झील का निर्माण भी इसी शासक ने करवाया। इसकी उपाधि महाराज की थी। अत: यह एक सामंत शासक था। इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक पृथ्वीराज प्रथम था जिसकी उपाधि महाराजाधिराज थी। पृथ्वीराज प्रथम ने गुजरात के भडौच पर अधिकार कर वहां आशापूर्णा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। पृथ्वीराज के बाद अजयराज शासक बना। अजयराज ने 1113 ई. में पहाडियों के मध्य अजमेरू (अजमेर) नगर की स्थापना की और इसे नई राजधानी बनाया। अजयराज ने पहाडियों के मध्य अजमेर के दुर्ग का निर्माण करवाया। मेवाड़ के पृथ्वीराज सिसोदिया ने 15 वीं सदी में इसका नाम तारागढ़ दुर्ग कर दिया। इस दुर्ग को पूर्व का जिब्राल्टर कहा जाता है। अजयराज के पुत्र अर्णोराज ने 1137 ई. में आनासागर झील का निर्माण करवाया।

नमक की ढेरियां

जयपुर बसने के पहले करीब 90 वर्ग मील की सांभर झील पर मुगल सम्राट बहादुरशाह के नियुक्त नवाब का अधिकार रहा। वर्ष 1709 में जयपुर व मारवाड़ की सेनाओं ने मिलकर सांभर के नवाब पर हमला कर झील पर कब्जा किया। वर्ष 1949 तक जयपुर व मारवाड़ के संयुक्त अधिकार में रही झील की आमदनी को दोनों रियासतें आधा-आधा बांटती रहीं। दोनों रियासतों के कोतवाली व अधिकारी सांभर में रहते। मानसिंह द्वितीय की नाबालिगी के दौर में सांभर झील के लिए जयपुर व मारवाड़ का शामलात बोर्ड गठित हुआ। जयपुर से मुंशी प्यारे लाल कासलीवाल व जोधपुर से चैन सिंह बोर्ड सदस्य बने। उस समय सांभर के नामक से जयपुर रियासत को सालाना 40,136 रुपये की आमदनी होती थी। सियाशरण लश्करी के मुताबिक झील पर जयपुर का आधा हिस्सा होने से जयपुर के महाराजा की मृत्यु होने पर कई बुजुर्ग सिर में दाहिने हिस्से के बाल कटवाते।

पर्यटन अधिकारी रहे गुलाब सिंह मीठड़ी ने बताया कि जंगल के वन्य जीवों के शरीर में नमक की कमी को पूरा करने के लिए रियासत की तरफ से जंगल की चट्टानों में नमक डाला जाता, जिसे जानवर चाटते। फागी के पास में रेवतपुरा के जागीरदार रेवत सिंह ने नमक कारोबारियों को एक सौ बीघा जमीन का निशुल्क आवंटन किया। नमक कारोबारी बिणजारों ने कुएं-बावड़ी और तालाबों का निर्माण करवाया।

सांझ ढलते ही घरों को लौटते श्रमिक

आजादी के पहले सांभर नमक उत्पादन का केंद्र और समृद्ध कस्बा था। किसी समय में जयपुर के अजमेरी गेट के पास नमक की मंडी में सांभर झील से सबसे बढ़यिा किस्म के नमक का कारोबार होता था। नमक के सौदागर सांभर का नमक बैल गाडिय़ों से मंडी में लेकर आते। शहर के गली-मोहल्लों और रियासत के गावों में बिणजारे गधों पर लाद कर नमक बेचने जाते। सवाई रामसिंह द्वितीय के समय नमक कारोबारियों की सुरक्षा के लिए किशनपोल स्थित नमक की मंडी में प्रवेश द्वार का निर्माण करवाया गया। रामसिंह के जमाने में एक आना मण के भाव से नमक बिकता। लोग फेरी वालों से सालभर के उपयोग का नमक खरीद लेते। नमक की डली को चक्की में पीसकर घड़े में रखते। उस समय मंडी के कुएं में खारा पानी होने से सवाई रामसिंह ने मंडी में सार्वजनिक नल लगा दिया। सांभर से नमक लाने वाले मुसलमान कारोबारियों ने किशनपोल में मस्जिद बनाई, जो आज सांभरियों की मस्जिद के नाम से मशहूर है।

सांभर में दोनों तरह के फ्लेमिंगो देखने को मिलते हैं- लेसर फ्लेमिंगो और ग्रेटर फ्लेमिंगो।  वे यहां पानी के बीच मिट्टी के टीलों पर अंडे देते हैं। लेकिन सांभर झील में लगातार सूखते पानी और उसके सिकुड़ते इलाके के कारण यहां आने वाले फ्लेमिंगो की संख्या पिछले कुछ सालों से लगातार घट रही है। जल्द कुछ उपाय नहीं किए गए तो  हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में सांभर में फ्लेमिंगो आने ही बंद हो जाएं। यह बड़ा अफसोसजनक होगा।

सांभर का शर्मिष्ठा सरोवर

कैसे व कहां

सांभर झील के तीन तरफ राजस्थान के तीन जिले हैं- जयपुर, अजमेर और नागौर। झील को देखने के लिए तीनों ही तरफ से आया जा सकता है। जयपुर से यह 80 किलोमीटर और अजमेर से 64 किलोमीटर दूर है। सांभर में रेलवे स्टेशन भी है और जयपुर-फुलेरा स्टेशनों से यहां ट्रेन आती है। आप अजमेर और जयपुर से बस या टैक्सी लेकर भी सांभर आ सकते हैं। सांभर में रुकने की योजना इस लिहाज से बनाने की जरूरत है कि आप वहां पक्षियों को देखने के लिए कितना समय बिताना चाहते हैं और कितनी बार जाना चाहते हैं। आप अजमेर या जयपुर में रुककर भी सांभर देखने के लिए जा सकते हैं। सांभर कस्बे में भी रुकने के छोटे-मोटे इंतजाम हो सकते हैं।

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