Wednesday, May 15
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रुई के फाहों सी बर्फ में केदारकांठा ट्रेक

जब घुमक्कड़ी की बात आती है तो मुझे सबसे ज्यादा हिमालय पसंद हैं। मुझे हिमालय की गोद में जाकर जितना रोमांच मिलता है उतना किसी और बात में नहीं मिलता। उसी तरह जितना सुकून मुझे वहां मिलता है, उतना सुकून भी कहीं और नहीं मिलता। इसलिए कोई हैरत की बात नहीं कि हर थोड़े महीनों के बाद, मुझे जब भी मौका मिलता है, मैं हिमालय की तरफ भाग लेता हूं। यही वजह थी कि जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ी तो मैं भारत के उत्तर-पूर्व इलाके की ओर जाकर जम गया। और जहा सोचिए कि नौकरी छोड़ने के बाद मैंने पहला काम क्या किया?

मैं तुरंत ही सबसे पहले हिमालय की तरफ भाग लिया और मैं केदारकांठा के लिए सर्दियों में ट्रेक पर निकल पड़ा। सर्दियों में ट्रेकिंग के शौकीन काफी लोग दिसंबर में केदारकांठा जाना पसंद करते हैं लेकिन मैंने जनवरी में जाना पसंद किया क्योंकि केदारकांठा का ट्रेक साल के किसी भी औऱ वक्त की तुलना में जनवरी के महीने में एकदम अलग होता है। इस समय आपको सब तरफ ताजी बर्फबारी की झक सफेदी मिलेगी। सब तरफ का नजारा अलौकिक सरीखा होता है।

इससे पहले हिमालय में मेरा आखिरी ट्रेक हम्पटा पास का था और अभी तक का सबसे शानदार भी। केदारकांठा के ट्रेक में उस तरह के रंग नजर नहीं आए लेकिन फिर केदारकांठा ने उन सर्दियों में जो रंग ओढ़ा हुआ था, वह मेरा हिमालय में सबसे पसंदीदा रंग था-सफेद। सफेद में भी वह सबसे शानदार सफेद होता है, जिसे में सुनहरा सफेद कहता हूं, एकदम सोने माफिक सफेदी। मुझे यही सबसे ज्यादा पसंद आती है।

देहरादून के मैदानी इलाके से छोटे से पहाड़ी गांव सांकरी तक का सफर बहुत लंबा था। मैं थका तो था लेकिन फिर भी खुश था कि फिर से हिमालय के साये में था। थकान के साथ-साथ भूख भी लगी थी। उस समय तो मुझे बस यह चाहिए था कि एक गरमागरम प्लेट मैगी मिल जाए और फिर कुछ देर मैं अपनी पीठ सीधी कर सकूं। ट्रेक अगले दिन शुरू होना था। पहाड़ों में ट्रेक करने वाले मैगी के स्वाद को सबसे बढ़िया महसूस कर सकते हैं। मैं रेस्ट हाउस की डॉरमेटरी में अपना सामान पटककर तुरंत बाहर निकल आया। कुछ दूर चलकर पहाड़ी के किनारे पहुंचा तो सामने का नजारा देखकर सुध-बुध खो बैठा।

सूरज डूबने को था। सफेद घाटी में नारंगी सूरज की रोशनी एक अलग ही छटा बिखेर रही थी। सूरज की रोशनी हर सफेदी में अलग तरह से चमक रही थी- चोटियों के शिखर पर अलग, चीड़ के पेड़ों पर जमीन बर्फ पर अलग और सांकरी गांव के घरों की छतों पर जमा बर्फ पर अलग। मुझे अचानक लगा मानो मैं किसी सपनीली दुनिया में हूं। सूरज डूबने लगा तो घाटी में घरों की रोशनियां भी चमकने लगीं। तब रंगत अचानक बदल गई। मुझे सांकरी गांव की छटा नेपाल में एवरेस्ट बेस कैंप के रास्ते में स्थित नामचे बाजार कस्बे की सी लगने लगी।

इस नजारे का ही कमाल था कि मैं अपनी भूख भी भूल बैठा था। इसी तरह बेमकसद टहलता रहा। सूरज की रोशनी कम होने लगी तो घाटी में अंधेरा आने लगा, लेकिन दूर स्वर्गारोहिणी चोटी का शिखर अब भी डूबते सूरज की चमक में लाल था। कुछ देर यह नजारा कायम रहा लेकिन जब गहराती शाम ने नजरों में समाने वाले पूरे इलाके को अपने आगोश में ले लिया तो मैं फिर लौट पड़ा। मुझे अपनी मैगी की याद फिर से सताने लगी।

जब मैं सांकरी बेस कैंप पहुंचा तो पिछले कुछ दिनों से बर्फ गिर चुकी थी और जिस रात मैं वहां पहुंता, उस रात भी लगातार बर्फ गिरती रही। सफेद रुई के फाहे सी बर्फ अगली सुबह सूरज की रोशनी में सुनहरी हो गई थी। उस अहसास को शब्दों में पिरो पाना बहुत मुश्किल काम है।

उसके बाद जब हम एक दिन का ट्रेक करके जुडा का तालाब में पहुंचे तो वह पूरी तरह जम चुका था। उस रात भी उस ऊंचाई पर बर्फ गिरती रही। हालांकि बाकी लोग बर्फ गिरने से परेशान थे लेकिन मेरा तो मन कर रहा था कि बर्फ गिरती रहे। और ऐसा ही हुआ भी कि बर्फ गिरती रही। हर थोड़ी-थोड़ी देर में हमें बाहर जाकर टेंट पर से बर्फ गिरानी पड़ती थी ताकि टेंट पर बर्फ को बोझ न बन जाए। रात उसी में बीत गई लेकिन मुझे उससे कोई शिकायत नहीं थी। मैं भी दो-तीन बार बाहर निकला ताकि बर्फ को महसूस कर सकूं। जुडा तालाब से लुहासु और फिर केदारकांठा और उसके बाद वापसी का सफर। मौसम खराब हो और अगर बर्फ या बारिश गिर रही हो तो यह ट्रेक आगे थोड़ा मुश्किल हो जाता है। लेकिन जब सारा मोह बर्फ के गिरने में ही अटका हो तो फिर किस बात का डर।

सांकरी से केदारकांठा

केदारकांठा का ट्रेक बर्फ से ढके पर्वतों, चोटियों, घने जंगलों, झरनों और बुग्यालों का शानदार नजारा देता है। दिसंबर-जनवरी के महीनों में यहां सब तरफ बर्फ मिलने की ही उम्मीद रहती है। इस इलाके में स्वर्गारोहिणी के अलावा बंदरपूछ व काला नाग चोटियों का भी बेहद नजदीक से नजारा मिलता है। यह इलाका मिथकीय रूप से महाभारत से भी काफी जुड़ा है। यह उत्तराखंड के उस जौनसर इलाके से जुड़ा है जहां ज्येष्ठ कौरव दुर्योधन की पूजा होती है। दरअसल स्वर्गारोहिणी वही चोटी मानी जाती है जिससे पांडवों ने सीधे स्वर्ग में प्रवेश किया था। इसी से उसका नाम स्वर्गारोहिणी है। यह इलाका वन्य प्राणियों से भी भरापूरा है और यहां कहीं दुर्लभ हिमालयी पक्षी भी देखने को मिल जाते हैं।

यह ट्रेक पेड़-पौधों में रुचि रखने वालों, पक्षी प्रेमियों, फोटोग्राफरों, प्रकृति-प्रेमियों, घुमक्कड़ों के लिए वाकई स्वर्ग सरीखा है। यहां आम तौर पर पांच से सात दिन का ट्रेक सर्दियों में होता है जिसकी शुरुआत सांकरी से होती है। सांकरी पहुंचने में मसूरी से लगभग आठ-नौ घंटे का वक्त सड़क मार्ग से लग जाता है। यानी यहां का सबसे निकट का रेल व हवाई संपर्क देहरादून से ही है। ट्रेक सांकरी से ही शुरू होता है और सांकरी पर ही खत्म। यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अलावा भी सर्दियों में कई ट्रेक ऑपरेटर केदारकांठा का ट्रेक कराते हैं। आप अपने समय, सुहूलियत और खर्च के हिसाब से इनमें से किसी के भी साथ ट्रेक कर सकते हैं। इस ट्रेक पर केदारकांठा की ऊंचाई अधिकतम है लगभग 12,500 फुट। ध्यान रखें कि चार-पांच दिन आपको बर्फ के बीच ही बिताने पड़ सकते हैं।

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