Tuesday, November 5
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गुवाहाटी से नामेरी के रास्ते पर आवारा सफर

रात भर घने जंगल से आती हुई झिंगुरों की आवाजें और फिर सवेरे की रोशनी निकलते ही उन आवाजों की जगह सैकड़ों तरह की चिड़ियाओं की चहचहाट का ले लेना, दिल को सुकून देने के लिए यह कोई कम तो नहीं

पिछले कुछ महीनों की ही तरह वह शनिवार भी कुछ खास तरीके से बीतता प्रतीत नहीं हो रहा था। शुक्रवार की रात सोने जाते वक्त जेहन में एक और बैरंग और एकरस दिन बीतने की तैयारी थी। पिछले कुछ समय से या तो मैं व्यस्त हो जा रहा था या फिर मेरी जीवन संगिनी को कोई न कोई काम आ जाता था। लिहाजा हमें निकलने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था।

फिर अचानक शनिवार की सुबह  यह पता चला कि उस रोज हमारी लाइफ पार्टनर को काम पर नहीं जाना था। मैंने भी अपना बचा-खुचा काम छोड़ा और आधे ही घंटे के भीतर हम हाइवे पर थे। हमारे लिए छोटी ही सही लेकिन यह बहुत जरूरी रोड ट्रिप थी। हम गुवाहाटी से नामेरी नेशनल पार्क के लिए निकल पड़े।

मेरे लिए मानसून के महीने साल के सबसे पसंदीदा समय में से होते हैं। मुझे इस दौरान रोड ट्रिप करना खासा रास आता है। सब तरफ ताजगी का सा माहौल होता है। और कुछ नहीं तो, बादल नीचे तैरते नजर आते हैं और पहाड़ों में झरने अपना तेवर दिखा रहे होते हैं। जाहिर था कि ऐसे में मेरे लिए अपनी एकरसता को भगाने के लिए यह रोड ट्रिप एक नया जोश लाने वाला बदलाव था।

पूर्वोत्तर भारत में रोड ट्रिप का सबसे बढ़िया आनंद यह है कि आपको नजारे हमेशा शानदार मिलेंगे। आप चाहे किसी हाइवे पर हों या गांवों की भीतरी सड़कों पर, आपको कहीं निराशा हाथ नहीं लगेगी। गुवाहाटी से नामेरी नेशनल पार्क की रास्ता भी ऐसा ही खुशनुमा है। हां, थोड़े-बहुत शहर बीच में बेशक पड़ते हैं। लेकिन हम भी तो हम हैं। हमें तो शहरों में जाना पसंद नहीं आता। इसलिए इस बार भी हमने यही किया और हाइवे को छोड़कर गांवों की खूबसूरत सड़कों पर सफर करते रहे।

चूंकि हमारे इस ट्रिप पर निकलने की योजना पहले से नहीं बनी थी और हमने उसी दिन यह तय किया था इसलिए जाहिर था कि हमें निकलते हुए थोड़ी देर तो हो ही गई थी। अव्वल तो हम देर से निकले और फिर हमने हाइवे छोड़कर गांवों के भीतर का रास्ता लिया तो सफर तय करने में वक्त लगना ही था। जब हम तेजपुर पहुंचे तो अंधेरा हो चला था। पूर्वोत्तर भारत में वैसे भी सूर्यास्त जल्दी हो जाता है। तेजपुर से नामेरी और 40 किलोमीटर आगे है।

नामेरी एक संरक्षित इलाका है और काफी दूर-दराज का क्षेत्र भी है। लिहाजा वहां रुकने की सुविधा बहुत कम है। बस कुछ इको-कैंप हैं और इक्का-दुक्का होमस्टे। ये भी सब हाल ही में आए हैं। मैंने नामेरी के इको-कैंप में से एक में  रुकने की जगह के बारे में पता कर लिया था। वह कैंप ऑफ-सीजन में भी खुला रहता है। इसलिए हमने वही जाना तय किया। झमेला सिर्फ एक था कि ऑफ-सीजन होने के कारण वहां ज्यादा स्टाफ नहीं था और इसलिए कोई खाना पकाने वाला भी नहीं था। बाहर भी खाने-पीने के विकल्प बहुत सीमित थे। इसलिए हमने तय किया कि हम खाने का सामान-चिकन वगैरह साथ ले चलते हैं और वहां पहुंचकर तकरीबन बंद होने के कगार पर पहुंचे रहे बाजार में कहीं उसे पकवा लेंगे।

घने जंगल में घोर अंधेरे में गाड़ी चलाने का अनुभव भी अलग ही है। ऊपर से उस इको कैंप की लोकेशन तो और भी घनेरी थी। रातभर झिंगुरों की आवाज जो सवेरे की रोशनी फैलने के साथ-साथ दबती गई और उसकी जगह सैकड़ों तरह के पक्षियों की आवाज ने ले ली। हम इसी बियाबान को महसूस करने तो यहां आए थे। तिस पर, हमारे अलावा शायद ही और कोई मेहमान वहां रुका हुआ था।

अब चूंकि हमारा इरादा सड़क पर उतरकर ड्राइव का आनंद लेने और किसी शांत व दूरदराज की जगह पर रात गुजारने भर का था, इसलिए हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि उस समय वहां और कोई गतिविधियां करने की गुंजाइश नहीं थी। जैसा कि मैं बता चुका हूं कि वह ऑफ सीजन था। वैसे नामेरी में जंगल ट्रेकिंग होती हैं, जंगल सफारी होती है और जिया भोरेली नदी में राफ्टिंग भी होती है। इस नदी को कामेंग के नाम से भी जाना जाता है। भारी बारिश के मौसम के कारण ये सारी गतिविधियां फिलहाल बंद थीं। कामेंग नदी अरुणाचल में तवांग से निकलती है।

जब मौका लगे तो पहाड़ों के नजदीक जाने का मौका हम नहीं छोड़ते। इसलिए हमने सोचा कि नामेरी आकर अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ों का नजारा लिए जाने का कोई मतलब नहीं। वैसे भी अरुणाचल प्रदेश के लिए हमारी पिछली रोड ट्रिप को काफी समय बीत चुका था और अगली के जल्द होने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी। इसलिए हमने सोचा कि सबसे बढ़िया यही है कि नामेरी से भालुकपोंग निकल लिया जाए।

बारिश के कारण हमारा यह  रास्ता भी कई सारी जगहों पर रुकने के कारण लंबा हो गया। हम रुकते, आसपास का नजारा लेते, फोटो खींचते और चल पड़ते। थोड़ी  ही दूर जाकर फिर से यही सब होता। यही सिलसिला चलता रहा। जाहिर था कि हमें नामेरी से भालुकपोंग पहुंचने में सामानन्य समय से दोगुना लगा। लेकिन भला इसकी परवाह किसे थी। भालुकपोंग अरुणाचल प्रदेश के वेस्ट कामेंग जिले में है। यह तेजपुर से तकरीबन 52 किलोमीटर दूर है। यहां कामेंग नहीं का प्रवाह अच्छा है और इसलिए यह जगह एंगलिंग और राफ्टिंग के लिए काफी लोकप्रिय है। यह अका जनजाति का इलाका है। यहां आने के लिए रेलवे लाइन भी है। यहां पखुई में अभयारण्य है और यहां से पांच किलोमीटर दूर टिपि में ऑर्किड उद्यान जहां 80 से ज्यादा किस्म के ऑर्किड हैं। भालुकपोंग अभी बाकी देश में उतना चर्चित नहीं, लेकिन यह बहुत खूबसूरत जगह है। बहरहाल, उसके बारे में हम विस्तार स कभी और बात करेंगे।

भालुकपोंग पहुंचकर हमने काफी वक्त कामेंग नदी के किनारे गुजारा। हम बस बैठे रहे और पानी को बहता देखते रहे। उसके बाद हमने गुवाहाटी के लिए अपना वापसी का सफर शुरू किया। वापसी में भी हमने वही कलाकारी की जो जाते वक्त की थी। जितना हो सका, हाइवे को बाय-बाय कहा और गांवों की सड़कों से गुजरते रहे। अब देखा जाए तो हमने इस ट्रिप में कुछ नहीं किया। हमारी बाकी तमाम यात्राओं से विपरीत। लेकिन हम पिछले लंबे समय की एकरसता को तोड़ने में कामयाब हो गए। और फिर कभी-कभी बिना किसी मकसद के यूं ही घूमने निकल जाने का भी अपना लुत्फ है। जरूर आजमाइगा।

नामेरी नेशनल पार्क

नामेरी नेशनल पार्क पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है। यह असम के सोनितपुर जिले में है और तेजपुर से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यह असम का तीसरा नेशनल पार्क है। इस पार्क के उत्तर-पूर्वी सिरे पर अरुणाचल प्रदेश की पखुई सैंक्चुअरी इससे मिलती है। इन दोनों जंगलों का इलाका मिलाकर तकरीबन एक हजार वर्ग किलोमीटर का है। नामेरी को पक्षी प्रेमियों का स्वर्ग माना जाता है। यहां तकरीबन 300 किस्म के पक्षी देखने को मिल जाते हैं। इस समूचे इलाके को जिया भोरेली नदी के अलावा उसकी सहायक नदियां दिजि, दिनई, दोईगुरुंग, नामेरी, दिकोराई, खारी आदि जगह-जगह पर काटती रहती हैं। खास तौर पर बारिश के मौसम में कई झीलें भी इस पार्क में बन जाती हैं। एक तो यह थोड़ा दूर है और फिर आसपास जंगलों से जुड़ा है, इसलिए इस पार्क में अच्छी तादाद में वन्य जीवन पल रहा है। यहां बाघ और तेंदुए दोनों हैं और उनके खाने के लिए बढ़िया भोजन के रूप में सांभर, बार्किंग डीयर, हॉग डीयर, जंगली सूअर, व गौर आदि हैं। सोनितपुर जिले में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी सिरे पर नामेरी और सोनई-रुपई संरक्षित इलाके हैं। नवंबर से अप्रैल का समय नामेरी जाने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

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