महानदी ओडिशा की सबसे विशाल नदी है, यह पता होते हुए भी सतकोसिया पहुंचकर इसकी भव्यता देखकर अचंभित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। सर्द सुबह में नदी के किनारे बने टैंट के सामने कुर्सी पर बैठकर गरम चाय की चुस्की लेते हुए और सामने पानी में रह-रहकर गोता लगाते परिंदों को निहारते हुए एकबारगी तो दिमाग से यह अहसास निकल सा जाता है कि हम टाइगर रिजर्व में है और ठीक हमारी पीठ के पीछे घना जंगल है। यहां न मोबाइल की जरूरत महसूस होती है और न ही बिजली की। सौर ऊर्जा की मदद से अंधेरा होने पर थोड़ी-बहुत रोशनी मिल जाती है। मीलों दूर गांवों से हवा के साथ लहराकर आती आवाजें संगीत का काम देती हैं। यह एक अलग दुनिया का अहसास है।
सतकोसिया यानी सात कोस। दो मील का एक कोस यानी चौदह मील। चौदह मील यानी 22 किलोमीटर। ठीक यही लंबाई है 22 किलोमीटर की उस खड्ड की जिसमें से होकर महानदी गुजरती है। चौड़ा प्रपात और दोनों तरफ खड़ी पहाडिय़ां। नदी के दक्षिण में पूर्वी घाट हैं तो उत्तर की तरफ गदजट पहाड़यिां। चारों तरफ घना जंगल। यही इलाका छोटा नागपुर के पठार और पूर्वी घाट के जैव इलाके का मिलनबिंदु भी है। यानी यहां के जंगल मध्य व दक्षिण भारत के वन्यजीवों के बीच सेतु का काम करते हैं।
यह भारत के सबसे युवा टाइगर रिजर्व में से भी एक है क्योंकि इसे 12-13 साल पहले 2007 में ही टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला। पहले सतकोसिया खड्ड (गोर्ज) अभयारण्य महानदी के उत्तर में अलग था और बैसिपल्ली अभयारण्य नदी के दक्षिण में अलग था। जंगलों में बाघों की अच्छी संख्या के चलते उनके संरक्षण के लिए इन्हीं दो को मिलाकर सतकोसिया टाइगर रिजर्व बना दिया गया। जैव-विविधता के लिहाज से सतकोसिया खासा संपन्न है। यहां हर तरह के प्रकृति प्रेमी के लिए कुछ न कुछ है। सतकोसिया का बाघमुंडा इलाका बाघ देखने के लिएसबसे खास माना जाता है।
यहां तीन पारंपरिक हाथी कॉरिडोर भी हैं, जिसपर आम तौर पर हाथी इधर-उधर आया-जाया करते हैं। इनमें एक सतकोसिया-खालासुनी कॉरिडोर है, दूसरा अथामलिक-छेंदीपाड़ा-टेलकोई कॉरिडोर औ्र तीसरा कपिलास-रेबेना कॉरिडोर। आम तौर पर रायगोड़ा, नंदिनीनाला, हातीगिरिजा, तुलका, लबांगी और माझीपाड़ा इलाके में हाथी ज्यादा नजर आते हैं। चूंकि सतकोसिया कुछ ही साल पहले टाइगर रिजर्व बना, इसलिए यहां सैलानियों की उतनी मारामारी नहीं है। इसके अलावा भी यहां जैविक दबाव नहीं है। सतकोसिया को महानदी वाला इलाका घडिय़ालों के लिए भी काफी लोकप्रिय है, जो कुदरती माहौल में अब बहुत कम ही रह गए हैं।
कैसे पहुंचे
सबसे निकट का हवाई अड्डा भुवनेश्वर है। अथागढ़ के रास्ते आएं तो भुवनेश्वर यहां से 190 किलोमीटर दूर है और आंगुल के रास्ते आएं तो भुवनेश्वर यहां से 220 किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तर में आंगुल ही सतकोसिया टाइगर रिजर्व के सबसे पास का रेलवे स्टेशन है जो यहां से साठ किलोमीटर की दूरी पर है। दक्षिण में सबसे पास का रेलवे स्टेशन खुरदा रोड है। ढेंकानाल से संबलपुर जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 42 और खुरदा से बालंगीर जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 224, दोनों ही टाइगर रिजर्व के निकट से होकर गुजरते हैं। आंगुल के जिला मुख्यालय से पंपासर में रिजर्व का मुख्य प्रवेश द्वार लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। महानदी की दूसरी तरफ दक्षिण में प्रवेश द्वार चामुंडिया में है। नयागढ़ जिला मुख्यालय होते हुए भुवनेश्वर से यहां पहुंचा जा सकता है।
अगर आप पंपासर के रास्ते प्रवेश कर रहे हैं तो आपको वाहन से टिकारपाड़ा तक पहुंचने में लगभग आधा घंटा लगेगा। टिकारपाड़ा से पुरुणकोटी तक पहुंचने के लिए 15 मिनट और पुरुकोटी से छोटकई पहुंचने में आधा घंटा लगता है। अगर आप जंगल के भीतर नहीं रुक रहे हैं और शाम को बाहर निकलना चाहते हैं तो याद रखें कि पंपासर का गेट शाम को 6 बजे बंद हो जाता है। छोटकई से फिर पंपासर गेट पहुंचने के लिए 45 मिनट का समय चाहिए होता है। सफर के इस समय का अंदाजा लगाकर आप दिन में हर जगह पर रुकने और घूमने का समय तय कर सकते हैं।
प्रवेश
सतकोसिया टाइगर रिजर्व में प्रवेश के लिए परमिट पंपासर, चामुंडिया और कुसंगा से लिए जा सकते हैं। परमिट के लिए कोई सरकारी फोटो पहचान पत्र होना जरूरी है। रिजर्व में प्रत्येक व्यक्ति के प्रवेश शुल्क के अलावा, नेचर ट्रैल, वाहन व कैमरे का भी शुल्क लगता है। रोजाना पंपासर गेट से 24 वाहनों को रिजर्व में प्रवेश की इजाजत है। चामुंडिया से 10 और कुसंगा से 6 वाहन दिनभर में रिजर्व में प्रवेश कर सकते हैं।
कहां रुके
उत्तर महानदी इलाके में टिकारपाड़ा, पुरुणकोटी और पंपासर में फॉरेस्ट रेस्ट हाउस हैं और दक्षिण महानदी में चामुंडिया व कुंआरिया में भी फॉरेस्ट रेस्ट हाउस है। पुरुणकोटी से 8 किलोमीटर की दूरी पर छोटकई में नेचर कैंप में भी रुका जा सकता है। यहां से टाइगर रिजर्व का शानदार नजारा देखा जा सकता है। कुदरत ने साथ दिया तो यहां से आप पास ही में मिट्टी में अठखेलियां करते हाथियों के झुंड को भी देख सकते हैं।
पुरुणकोटी और टिकारपाड़ा में दो और नेचर कैंप भी हैं। ये सारे नेचर कैंप स्थानीय लोगों ने सामुदायिक रूप से चला रखे हैं। इन इको-टूरिज्म नेचर कैंप में रुकने के लिए ऑनलाइन बुकिंग भी कराई जा सकती है। टिकारपाड़ा में घडिय़ाल रिसर्च व कंजर्वेशन यूनिट भी है। यहां से गहरे खड्ड में बहती महानदी और दोनों तरफ खड़े सीधे पहाड़ों का नजारा मिलता है। यहां नदी के रेतीले तट पर कई मगर व घडिय़ाल आराम फरमाते देखे जा सकते हैं। इस इलाके में इजाजत लेकर नेचर वॉक भी की जा सकती है। पुरुणकोटी में रेस्ट हाउस के सामने अक्सर चीतल के झुंड देखने को मिल जाते हैं। इसके अलावा पहाड़ी मैना, सांभर और विशाल गिलहरी के भी दीदार हो सकते हैं।
महानदी के दक्षिणी तरफ बदामुल में गौर व साभंर के झुंड दिख जाते हैं। रिजर्व के बैसिपल्ली अभयारण्य इलाके में घने जंगल के बीच सापापत्थर नाम की काले ग्रेनाइट से बनी विशाल चट्टान है। इस इलाके में तेंदुए के अलावा हाथी, जंगली सूअर व जंगली मुर्गी के दिखने की संभावना रहती है।
महानदी के किनारे सतकोसिया सैंड्स रिसॉर्ट भी है, जहां ठीक नदी के किनारे आप टैंट में रुक सकते हैं। पीछे घने जंगल और सामने नदी के विशाल प्रपात के बीच टैंट में रुकने का अनुभव बेहद शानदार है। सर्दियों में यहां नदी के किनारे सफेद रेत पर आप मगरमच्छों को धूप सेंकते देख सकते हैं। सामने पानी पर तमाम तरह के पक्षी खेल करते रहते हैं तो पीछे जंगल से लगातार सांभर व बंदरों की अलार्म कॉल इस बात का आभास कराती रहती है कि कोई बाघ या तेंदुआ अगल-बगल जंगल में घूम रहा है।
साथ ही हाल ही में ओडिशा पर्यटन ने इको-रीट्रीट की अपनी श्रृंखला के तहत सतकोसिया में भी एक रीट्रीट तैयार किया है जिसमें 25 डीलक्स स्विस कॉटेज टेंट और एसी रेस्तरां व बार भी है।
आसपास
आसपास मुख्य रूप से कई मंदिर हैं। उत्तर महानदी की तरफ बिनिकी मंदिर नाव के रास्ते टिकारपाड़ा से 8 किलोमीटर दूर है। देउलाझारी अथामलिक शिव मंदिर बिनिकी से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। सारंगा में अनंता सयाना आंगुल से 30 किलोमीटर की दूरी पर है और हिंगुला में हिंगुलई गोपालप्रसाद मंदिर आंगुल से 20 किलोमीटर की दूरी पर है।
दक्षिण महानदी में कांतिलो में प्रसिद्ध नीलमाधब मंदिर चामुंडिया से 33 किलोमीटर की दूरी पर है और कलापता ठकुरानी मंदिर चामुंडिया से 2 किलोमीटर की दूरी पर है। नयागढ़ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर टा्रगर रिजर्व के सिरे पर कुंआरिया में फॉरेस्ट रेस्ट हाउस के पास ही एक डियर पार्क और इंटरप्रिटेशन सेंटर है। पास ही कुंआरिया बांध भी है जो लगभग हर मौसम में पक्षी प्रेमियों के लिए जन्नत सरीखा है।
महानदी रिवर क्रूज
पिछले कुछ समय से महानदी में एक रिवर बोट क्रूज भी चलाया जा रहा है जिसमें बैठकर जंगली जानवरों को देखने का रोमांच लिया जा सकता है। यह क्रूज वन विभाग की देखरेख में मालिसाही इको डेवलपमेंट कमिटी द्वारा संचालित किया जाता है। क्रूज नयागढ़ में मालिसाही से शुरू होता है। सवेरे 9 से शाम 4 बजे के बीच चलने वाला नौका विहार अधिकतम 45 मिनट का होता है। महानदी के नीले पानी में यह क्रूज सतकोसिया खड्ड और उसके आसपास के इलाके का शानदार नजारा देखने का मौका देता है। किस्मत साथ दे तो क्रूज के दौरान जंगली जानवरों के अलावा, नदी के किनारे रेत पर आराम फरमाते मगर व घडिय़ाल और कई दुर्लभ पक्षियों को देखा जा सकता है। इस अनुभव का आनंद नहीं छोडऩा चाहिए। महानदी में नावों के अलावा वन विभाग ने जंगल में सफारी के लिए हाथी भी रख छोड़े हैं।
You must be logged in to post a comment.