तीर्थ पर्यटन के विकास में नया कदम उठाते हुए उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (यूटीडीबी) और ट्रिप टू टेंपल्स ने आदि कैलाश और ओम पर्वत के लिए भारत की पहली हेलीकॉप्टर यात्रा की शुरुआत की है। इस नवीनतम पहल के साथ मौसम और भौगोलिक बाधाओं को पार करने में सहायता मिलेगी, जिससे इन पवित्र तीर्थस्थलों को भक्तों के लिए साल में ज्यादा दिनों के लिए सुगम बनाया जा सकता है। यात्रा के पहले दिन 18 तीर्थ यात्रियों ने पहली हेलीकॉप्टर उड़ान के साथ अपनी यात्रा संपन्न की पहले इन पवित्र स्थलों तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को एक चुनौतीपूर्ण यात्रा तय करनी पड़ती थी। इस यात्रा को पहले कार-जीप यात्रा व फिर एक लंबे दुर्गम रास्ते पर पैदल चलकर मई-जून और सितंबर-अक्टूबर के बीच एक सीमित अवधि में पूरा करना पड़ता था। खूबसूरत व्यास घाटी में बसा आदि कैलाश शिव-पार्वती के दूसरे निवास के रूप में जाना जाता है। भारत, नेपाल और...
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बर्फ की पहली दस्तक से ढकी दारमा घाटी के पंचाचूली ट्रेक पर जाने की इच्छा तो कई सालों से थी पर यह चाह अब जाकर पिछले महीने नवंबर 2022 में पूरी हुई। ऐसा नहीं है कि मैं पहली बार था पंचाचूली ट्रेक पर जा रहा था। इससे पहले 2002 और फिर 2015 में बला की खूबसूरत पंचाचूली चोटियों के दर्शन दारमा के दर से हो गए थे। पर इस बार यह पहला मौका था कि जाड़ों में नवम्बर के महीने में हम दारमा जा रहे थे। हिमालय के इतना नजदीक जाने का आनंद ही कुछ और है। फोटोः जयमित्र सिंह बिष्ट यह एक ऐसा सपना था जिसकी कल्पना मैं हमेशा से करता था और चाहता था, प्यारी पंचाचूली को, उसके बर्फ से ढके बुग्यालों, जम चुके पानी के धारों और रास्तों के साथ अपने कैमरे और दिल में कैद करना। हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ फोटो लेना ही मेरा उद्देश्य होता है पर लेंस के थ्रू आप जब हिमालय को निहारते हैं तो वह अनुभव आपको एक अलग ही अनुभूति देता है...
Read Moreमुनस्यारी को जानने के लिए इसके नाम का अर्थ जान लेना ही काफी है। मुनस्यारी का मतलब है ‘बर्फ वाली जगह’। अपने नाम के ही अनुरूप मुनस्यारी को उसकी खूबसूरती और आबोहवा के कारण ‘सार संसार एक मुनस्यार’ की उपमा भी दी जाती है यानि सारे संसार की खूबसूरती एक तरफ और मुनस्यारी की खूबसूरती एक तरफ। एक प्रकृति प्रेमी की दृष्टि से मुनस्यारी पर उपरोक्त उपमा एकदम सटीक बैठती है क्योंकि मुनस्यारी का कुदरती नजारा आपको अपनी ओर आकर्षित ही नहीं करता बल्कि मानो चुंबक की तरह आपको अपनी तरफ खींचता है। मुनस्यारी उत्तराखंड के दूरस्थ जिले पिथौरागढ़ में दिल्ली से लगभग 620 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुनस्यारी का सबसे बड़ा आकर्षण इसके ठीक सामने स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला है जो दरअसल पांच अलग-अलग हिमालयी चोटियां हैं। ये एक तरह से मुनस्यारी की जान हैं। अगर आप मुनस्यारी में हों और आपको अपने ठीक सामने नीले खुले आसमान मे...
Read Moreघुमक्कड़ी की दुनिया में 13वीं-14वीं सदी के मोरक्को के शिक्षाविद व यायावर इब्ने बतूता के नाम से कई कहावतें प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक है कि “Traveling leaves you speechless, then turns you into a storyteller, ” यानी घुमक्कड़ी, पहले तो आपको स्तब्ध कर देती है और फिर आपको एक कहानीकार में तब्दील कर देती है। मायने यह कि घूमते-घूमते आप प्रकृति से इतने मोहित हो जाते हैं कि आप निरंतर उस अनुभव को दूसरों से साझा करने को उत्सुक रहते हैं, यह अनुभव आपको ऊर्जा व शब्द, दोनों देता है। इंदौर में पेशे से न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर अजय सोडानी की किताब ‘दर्रा-दर्रा हिमालय’ इसी स्टोरीटेलिंग का अच्छा नमूना है। डॉक्टरी के व्यस्त पेशे से घूमने के लिए समय निकाल पाने वाली बात दरअसल अब हैरान नहीं करती क्योंकि पिछले दो दशकों में ऐसे कई डॉक्टरों के बारे में लिख-पढ़ चुका हूं जिन्हें घूमना हद से ज्यादा पसंद है और वे...
Read Moreजब घुमक्कड़ी की बात आती है तो मुझे सबसे ज्यादा हिमालय पसंद हैं। मुझे हिमालय की गोद में जाकर जितना रोमांच मिलता है उतना किसी और बात में नहीं मिलता। उसी तरह जितना सुकून मुझे वहां मिलता है, उतना सुकून भी कहीं और नहीं मिलता। इसलिए कोई हैरत की बात नहीं कि हर थोड़े महीनों के बाद, मुझे जब भी मौका मिलता है, मैं हिमालय की तरफ भाग लेता हूं। यही वजह थी कि जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ी तो मैं भारत के उत्तर-पूर्व इलाके की ओर जाकर जम गया। और जहा सोचिए कि नौकरी छोड़ने के बाद मैंने पहला काम क्या किया? मैं तुरंत ही सबसे पहले हिमालय की तरफ भाग लिया और मैं केदारकांठा के लिए सर्दियों में ट्रेक पर निकल पड़ा। सर्दियों में ट्रेकिंग के शौकीन काफी लोग दिसंबर में केदारकांठा जाना पसंद करते हैं लेकिन मैंने जनवरी में जाना पसंद किया क्योंकि केदारकांठा का ट्रेक साल के किसी भी औऱ वक्त की तुलना में जनवरी के महीने में ...
Read Moreहिमालय का अलौकिक सौंदर्य, उससे निकलती कल-कल छल-छल नदियों का संगम, मीलों तक फैला वन क्षेत्र और सुरम्य घाटियां उत्तराखंड की सबसे बड़ी धरोहर हैं। प्रकृति का ये अनुपम उपहार उसे शेष दुनिया से अलग पहचान देता है यही वजह है कि यहां हर मौसम में सैलानियों की आवाजाही रहती है। गढ़वाल की ऊंचाइयों मे प्रकृति के हाथों बेहिसाब सुंदरता बिखरी पड़ी है। गंगोत्री के रास्ते में हर्षिल आम सैलानी स्थलों से अलग है- शांत व मनोरम. भीड़-भाड़ से मुक्त। लेकिन पिछले कुछ सालों में यहां जाने वाले सैलानियों की तादाद बढ़ी है। अब जब कोरोना के कारण लगी आने-जाने की पाबंदियां हट गई हैं तो आइए करें फिर से एक बार पहाड़ों का रुख गढ़वाल के अधिकतर सौंदर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं जहां पहुंचना सबके लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन जगहों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहा...
Read Moreउत्तराखंड में राज्य के बाहर से आने वाले लोगों के प्रवेश और क्वारंटीन के नए नियम सोमवार से लागू हो गए हैं। हालांकि नियमों को पहले की तुलना में थोड़ा उदार किया गया है लेकिन राज्य में आने के लिए दो चीजें अब भी जरूरी हैं- एक तो smartcitydehradun.uk.gov.in पर रजिस्ट्रेशन और दूसरा, कोविड की नेगेटिव जांच रिपोर्ट जो उत्तराखंड में प्रवेश करने के वक्त से पहले के अधिकतम 96 घंटे के दरम्यान की होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि पड़ोसी पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने पिछले हफ्ते जारी नए निर्देशों में राज्य में आने की सभी शर्तें, कोविड जांच की अनिवार्यता, रजिस्ट्रेशन आदि को खत्म कर दिया था। सात दिन तक की यात्रा के लिए नहीं होना होगा क्वारंटीन रजिस्ट्रेशन जरूरी सितंबर 21 से प्रभावी हुए नए नियमों के बाद भी उत्तराखंड की सीमा चौकियों पर रुकने व जांच कराने की स्थिति जस की तस रहे...
Read Moreउत्तराखंड में कुछ स्थलों पर प्रकृति कुछ अधिक ही मेहरबान दिखती है जिनमें गढ़वाल जिले का खिर्सू भी एक है। इसके एक ओर गगन चूमती भव्य हिमचोटियों दिखती है तो पीछे बांज, बुरांश व देवदार आदि पेड़ों का सम्मोहित कर जाने वाला घना जंगल। शान्ति ऐसी कि बाहरी शोर प्रकृति की निशब्दता के बीच बेसुरा व अलग सा लगने लगता है। समुद्रतल से लगभग 1750 मीटर की ऊंचाई पर बसा खिर्सू एक गांवनुमा कस्बा है और इसी नाम से बने विकासखण्ड का प्रशासनिक केंद्र भी। बताया जाता है कि खरसू के पेड़ों की बहुलता के कारण ही एक अंग्रेज अधिकारी ने इस जगह को यह नाम दे दिया। शोरोगुल से दूर खिर्सू ऐसे पर्यटकों की पसंदीदा जगह हैं जो शोरोगुल व भीड़ से दूर रहकर प्रकृति के सानिध्य का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं। खिर्सू दूसरे स्थानों के विपरीत भीड़-भाड और हो-हल्ले से कोसों दूर है। गांव के जितना सीमित और बाजार के न...
Read MoreLike most hill townships, Mussoorie, the popular hill station in Uttarakhand, has witnessed several landslides, probably resulting from an increased spate of developmental activities. The increased disaster hazard has led scientists to map the landslide susceptibility of Mussoorie and surrounding areas, showing that 15 percent of the region is highly susceptible to landslides. Landslide is a normal geomorphic process that becomes hazardous when interfering with any development activity. It has been noted that more than 400 causalities occur in the Himalayan region every year due to this phenomenon. The frequency and magnitude of the landslides increase every year, particularly in the hilly townships. This demands the large scale landslide susceptibility, hazard, risk, and vulnerabi...
Read Moreउत्तर भारत के हिमालयी राज्यों में बसे उन खूबसूरत छावनी नगरों में से एक है लैंसडौन जिन्हें अंग्रेजों ने स्थापित किया था। इसलिए लैंसडौन का इतिहास तो पुराना नहीं, लेकिन फिर भी वह पहाड़ में बसे बाकी हिल स्टेशनों की तुलना में शांत है। लेकिन हकीकत यह भी है कि अंग्रेजों ने छावनियां बनाने के लिए उन्हीं जगहों को चुना भी था जहां प्रकृति ने भी जमकर खूबसूरती बिखेरी थी। इसीलिए उत्तराखंड में लैंसडौन शहर बसाने की इंसानी मेहनत के साथ कुदरत की नियामत का बढ़िया मेल है दिल्ली से निकटता के अलावा लैंसडौन की कई खूबियां बार-बार यहां आने को आमंत्रित करती हैं। अन्य हिल स्टेशनों में चौतरफा कंक्रीट के जंगलों के उगने से वह उतने नैसर्गिक नहीं रहे जितना कि गढ़वाल के पौड़ी जिले में स्थित लैंसडौन। यहां प्रकृति को उसके अनछुऐ रूप में देखा जा सकता है। आज भी यह सैलानियों व वाहनों की भीड़ और शोर व प्रदूषण से दूर यह एक बेह...
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