Tuesday, November 5
Home>>सैर-सपाटा>>भारत>>जमीन पर जन्नत से कम नहीं चंद्रताल
भारतसैर-सपाटाहिमाचल प्रदेश

जमीन पर जन्नत से कम नहीं चंद्रताल

अब कोविड-19 के दौर में हिमाचल के दुर्गम इलाकों में पहुंचना तो कठिन ही लग रहा है। वैसे स्पीति घाटी में जाने का समय अक्टूबर के महीने तक रहता है। क्या पता तब तक हाल सुधर जाए! इसीलिए हम आपको बता रहे है इस खूबसूरत झील के बारे में।

यहां पहुंच कर हर किसी के मुंह से अनायास ही निकल जाता है कि जमीन पर यदि जन्नत है तो बस चंद्रताल में ही है। समुद्रतल से 14500 फीट की उंचाई पर हिमाचल प्रदेश के कबाइली क्षेत्र स्पीति में रेतीले, नंगे और सूखे पहाड़ों के बीच मीलों दायरे में फैली एक झील चंद्रताल जो अपने निर्मल शांत जल के लिए जानी जाती है, जिसमें नजर आता है आसमां और जमीन का अक्स, जो किसी को भी रोमांचित किए बिना नहीं रहता।

मेरा यहां पर चौथी बार जाना हुआ तो न केवल सफर बल्कि यहां की आवोहवा का भी काफी नजारा बदला सा लगा। इस बार स्पीति में 80 फीसदी बारिश कम हुई है ऐसे में पूरे क्षेत्र से हरियाली गायब है, ठहरने के लिए यहां टैंट शिविर बन गए हैं, सड़क चंद्रताल के पास तक पहुंच गई है, बाहरी प्रांतों व विदेशों से ज्यादा लोग आने लगे हैं, मौज मस्ती भी काफी बढ़ गई है, एडवेंचर टूरिज्म की झलक मिलने लगी हैं जिसमें अधिकांश युवा अपने बुलेटों पर जान जोखिम में डाल कर पहुंचने लगे हैं। यदि यहां कुछ बदला नहीं है तो वह है झील का आकर्षण, उसका सौंदर्य, उसका आकार, उसकी पहचान और सबसे जरूरी- इसका शांत व निर्मल पानी जिसमें आसमान व जमीन की परछाई ऐसी हू-ब-हू दिखती है कि पता नहीं चलता कि कोई पानी के अंदर देख रहा है कि बाहर का नजारा उसे नजर आ रहा है।

चंद्रताल में पर्वतों का अक्स

झील के चारों ओर की जमीन और झक बर्फ से ढके, चांदी से चमकते ऊंचे-ऊंचेे पहाड़ों की परछाई ऐसी कि कोई भी उसे बस देखता ही रह जाए, मंत्रमुग्ध होकर उसके कदम कुछ पल एक ही जगह थम जाएं। सुबह का वक्त हो या फिर शाम का- इस झील का रंग और रूप अलग ही नजर आता है। सूरज निकलने से पहले इसके किनारे पहुंच जाएं तो यहां पर घंटों तक ध्यान लगाने को किसी का भी मन कर जाए, दोपहर में पहुंचें तो इसके चहुं ओर की मखमली घास और अजब-गजब के रंग और रेखाओं वाले पत्थरों को निहारते हुए घंटों उस पर बैठने या लेटने को मन मचले, रात को पहुंचें और कहीं आसमां पर चंद्रमा भी निकला हो तो समझ लीजिए कि ऐसा अनुभव फिर कभी नहीं मिलेगा। बिना गीत संगीत ही आप झूमने लग जाएं। बसंत के मौसम में यह सारा इलाका फूलों से लद जाता है। सर्दियों में जब यह इलाका बर्फ से ढक जाता है तो इसका रूप अलग ही हो जाता है। लेकिन तब रास्ते बंद होते हैं तो यहां आना मुमकिन नहीं होता। उस समय केवल बर्फ में ट्रैकिंग के शौकीन रोमांचप्रेमी व हिम्मती लोग ही आ सकते हैं क्योंकि तब सर्दी विकट होती है।

चांदनी रात में चंद्रताल का रूप जिसने देख लिया वह शायद ही सुंदरता के किसी और रूप की प्रशंसा कर पाए। इस रूप और सौंदर्य से सीधा साक्षात्कार करने वाले यहां अपने साथ लाए तंबुओं में रात गुजारना नहीं भूलते ताकि यह रात उनकी जिंदगी की हसीन बन जाए, यह रात उनकी जिंदगी के लिए एक ऐसा रोमांचिक अनुभव बन जाए कि उसकी याद तां जिंदगी जहन में बनी रहे। हिम्मत वाले ही इस झील की परिक्रमा कर पाते हैं क्योंकि यह बहुत लंबी है और फिर 14500 फीट की उंचाई पर आक्सीजन की कमी तो रहती ही है और ऐसे में छोटे-बड़े सभी हांफ तो जाते ही हैं। इसके बावजूद भी यहां पहुंचने वाले पर्यटक इसकी परिक्रमा करना नहीं भूलते ताकि उन्हें यह मलाल न रहे कि सैकड़ों मील पथरीले रास्तों से यहां पहुंच कर कुछ छूट गया।

बदलते रंग

चंद्रताल झील के पानी के बारे में कहा जाता है कि दिन के अलग-अलग पहरों में अपना रंग बदलता रहता है। जाहिर है, रंग बदलने का मतलब यहां पानी का रंग बदलने से नहीं है बल्कि इससे है कि दिन के हर पहर में मौसम की रंगत के अनुरूप यहां की छटा बदल जाती है। इसलिए यह कभी हल्का नीला नजर आता है तो कभी गहरा नीला तो कभी नारंगी। लेकिन यह तय है कि लोग हर रंग में इसे अपने कैमरों में कैद करने का बेताब रहते हैं।

चंद्रताल पहुंचे सैलानी

पूर्व की ओर उंचे रेतीले पहाड़ के आंचल में सिमटी तो उतर पश्चिम और दक्षिण की ओर मीलों लंबाई तक नीरू घास वाली चरागाह  की आगोश में पूरी तरह से निर्मल शांत यह झील मई से लेकर अक्टूबर के मध्य तक सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण बनी रहती है। मीलों लंबी चौड़ी पट्टी में बिखरे चरागाहों पर भेड़-बकरियों की रेवड़ें, साथ बहती बारालाचा से अपनी बहन भागा से बिछुड़ कर आई चंद्रा नदी, ग्लेशियरों व बर्फ से अटे आसमां छूते पहाड़ एक ऐसा दृश्य बनाते हैं कि हर कोई यहां आकर कुदरत के इस अनूठे उपहार के आगे नतमस्तक हो जाता है।

रोहतांग की चढ़ाई और फिर ग्रामफू से लेकर बातल या कहें चंद्रताल तक ही पत्थरीली ही नहीं बल्कि यूं कहिए कि विशालकाय पत्थरों के बीच चंद्रा नदी के साथ साथ बनी सड़क से किसी तरह  यहां पहुंचने वाले हर शख्स की थकान एक ही झटके में झील का करामाती सौंदर्य खत्म कर देता है।

इसके चंद्रमा जैसे आकार के कारण इसका यह नाम पड़ा। आश्चर्य की बात यह भी है कि इस झील में पानी के आने का कोई स्रोत दिखाई नहीं पड़ता जबकि निकलने का रास्ता स्पष्ट है। इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि पानी का स्रोत झील में धरती के नीचे से ही है। चंद्रताल से चंद्र नदी का उद्गम होता है और सूरज ताल से भागा नदी का। लाहौल स्पीति के जिला मुख्यालय केलांग से 7 किमी दूर, पत्तन घाटी के टाण्डी गांव के पास दोनों मिल कर चंद्रभागा नदी का रूप ले लेती हैं जो कि जम्मू-कश्मीर में जाकर चेनाब कहलाने लगती है।

चंद्रताल में विदेशी सैलानी

मंडी की ओर से जाएं 240 किलोमीटर दूर और शिमला से किन्नौर होकर जाएं तो 500 सौ से भी अधिक किलोमीटर दूर है चंद्रताल मगर मनाली वाले रास्ते में मढ़ी से आगे चंद्रताल तक लगभग 100 किलोमीटर के रास्ते में एक भी घर या बस्ती नहीं है। यदि है तो बस छतडू और बातल में दड़बानुमा ढाबे जहां जरूरत की हर चीज मिल जाती है। इसके अलावा छतडू़, छोटा दड़ा व बातल में रेस्ट हाउस भी हैं जहां रुका जा सकता है। अच्छी बात यह है कि चंद्रताल से दो किलोमीटर पहले ठहराव शिविर बन चुके हैं जहां पर कुछ लोग सीजन के दौरान टेंट लगाकर यहां आने वालों के लिए ठहरने व खाने-पीने की व्यवस्था करने लगे हैं। लगभग उचित दाम पर यह एक अच्छी सुखद पहल या फिर कहें कि सुविधा उपलब्ध हो गई है। चंद्रताल झील से लगभग दो किलोमीटर पहले एक पाॢकंग की जगह है। उसके बाद से झील तक पैदल जाना होता है। रुकने या कैंपिंग की भी सारी इजाजत इसी पार्किंग की जगह के आसपास ही है। चंद्रताल झील वेटलैंड इलाकों के लिए अंतरराष्ट्रीय रामसर कनवेंशन के तहत आती है। इसलिए झील के चारों तरफ कैंपिंग की कोई इजाजत नहीं है। यही बेहतर भी है क्योंकि इसी से इस जगह की सुंदरता बनी हुई भी है।  हालांकि अफसोस यह है कि इतनी चिंताओं के बावजूद कई बेपरवाह और गैर-जिम्मेदार सैलानी वहां झील के आसपास बोतलें, खाने का सामान और पॉलीथीन वगैरह छोड़ जाते हैं। यकीनन सैलानियों व घुमक्कड़ों की आवक बढऩे से इस इलाके पर दबाव बढ़ा है। पर्यावरण प्रेमी इससे चिंतित हैं और उनकी चिंता जायज भी है।

बताया जाता है कि इसके चारों ओर स्थित घास का मैदान कभी ग्लेश्यिर होता था। इसकी ढाई किलोमीटर लंबी परिधि पर 3000 से 6300 मीटर ऊंचे पर्वत हैं। कैंपिंग और फोटोग्राफी करने वालों के लिए चंद्रताल बेशक आदर्श जगह है। वैसे ट्रेकिंग और माउंटेनियरिंग करने वाले भी यहां आते हैं।

रोहतांग दर्रा पार करने के बाद पहला गाँव ग्राम्फू है जहाँ से एक रास्ता लद्दाख की ओर चला जाता है और दूसरा लाहौल स्पीति की ओर। चंद्रताल यहाँ से 50 किमी है। मुख्य सड़क छतड़ू, छोटा दड़ा होते हुए बातल तक है। बातल में कुल दो इमारतें हैं जिनमें से एक है सरकारी विश्राम गृह और दूसरा है चालीस साल पुराना चंद्रा ढाबा, जो अपने आप में एक विशिष्ट स्थान है। इस ढाबे को चला रहे दंपत्ति पिछले चालीस में सैकड़ों पर्यटकों को शरण दे चुके हैं। यदि कहा जाए कि चंद्रताल की जाने की सुहूलियत में इस ढाबे की मौजूदगी का भी योगदान है तो गलत ना होगा क्योंकि इसके अतिरिक्त यहाँ पर दूर-दूर तक कोई इंसानी बस्ती नहीं है, सुविधाओं का तो कहना ही क्या। शुष्क ठंडा रेगिस्तान होने के कारण इलाके में एक पेड़ तक नहीं है।

Suraj tal, at approx 4800 metres above sea level

ट्रैकिंग का रोमांच

चौपहिया व दोपहिया वाहनों के अलावा यहां लोग ट्रैक करके भी पहुंचते हैं। यह इलाका ट्रैकिंग के शौकीनों को गढ़ है। दरअसल, लेह के रास्ते में बारालाचा-ला के ठीक नीचे सूरज ताल है। यह भी लोकप्रिय हिमालयी झीलों में से है लेकिन चूंकि यह मुख्य मार्ग पर है तो चंद्रताल की तुलना में इस तक पहुंचना आसान है। कई रोमांच प्रेमी सूरजताल से लेकर चंद्रताल तक का ट्रैक करते हैं। लगभग 44 किलोमीटर का यह ट्रैक चार दिन में पूरा कर लिया जाता है। जून से अक्टूबर तक का समय इस ट्रैक के लिए सर्वोत्तम है। वैसे तो यह ज्यादा कठिन नहीं लेकिन इसमें 16 हजार फुट से ज्यादा की ऊंचाई पार करनी होती है। कई ट्रैकर्स मनाली से हंप्टा पास पार करते हुए ट्रैक करके भी चंद्रताल पहुंचते हैं। इसमें भी लगभग चार दिन लग जाते हैं। इस रास्ते में अधिकतम ऊंचाई हंप्टा पास की ही है जो लगभग 14 हजार फुट से थोड़ा ज्यादा ऊंचाई पर है। ज्यादा समय व हिम्मत हो तो इन दोनों ट्रैक को मिलाया भी जा सकता है।

बातल से वाहन योग्य एक सड़क भी है, जिससे चंद्रताल 14 किमी (8.7 मील) की दूरी पर है, किंतु अगस्त से पहले इस सड़क की हालत प्राय: खराब ही होती है। यहाँ पहुँचने का दूसरा रास्ता कुंजम पास से है और वो लगभग 8 किमी (5.0 मील) है। कुंजम पास लाहौल व स्पीति घाटियों को जोड़ता है। स्पीति घाटी में काजा से लोसर होते हुए कुंजम पास और फिर चंद्रताल आया जा सकता है। चंडीगढ़ से शिमला, रामपुर बुशहर, किन्नौर के रास्ते स्पीति घाटी के नाको, किब्बर, काज़ा से होते हुए कुंजम पास या बातल आने का विकल्प लंबा है लेकिन उसमें स्पीति घाटी को देखने का भी मजा है। बेशक इसके लिए ज्यादा समय चाहिए। अच्छी बड़े पहियों वाली मोटर में मंडी से 11-12 घंटे में यहां पहुंच कर इस करामाती सौंदर्य को देखने के लिए पहुंचा जा सकता

चंद्रताल के पास कैंपिंग साइट

कैसे पहुंचे

चंद्रताल उस रास्ते पर है जो लाहौल व स्पीति घाटियों को जोड़ता है। यह रास्ता कुंजम दर्रे से होकर आता है। मनाली-रोहतांग के रास्ते जाएं तो रोहतांग दर्रे के उस पार उतरने के बाद ग्रम्फू आता है। यहीं से रास्ते अलग होते हैं। एक रास्ता खोखसर होते हुए कीलोंग और फिर लेह की तरफ आगे निकल जाता है। यह लाहौल घाटी का रास्ता है। ग्रम्फू से दाएं मुड़ जाएं तो छतड़ू, छोटा दड़ा, बातल होते हुए कुंजम दर्रे तक पहुंचा जाता है। लेकिन कुंजम दर्रे से 15-16 किलोमीटर पहले ही चंद्रताल के लिए बाईं ओर रास्ता अलग होता है। स्पीति की तरफ से आएं तो शिमला से किन्नौर होते हुए काजा आना होता है। यहां से लोसर होते हुए कुंजम दर्रे को पार करके दाईं ओर चंद्रताल के उसी रास्ते पर पहुंचना होता है। लेकिन मनाली से लेह और शिमला से काजा तक का रास्ता जैसा है, वैसा रास्ता इन दोनों राजमार्गों को जोडऩे वाले मार्ग पर नहीं मिलता। यह रास्ता बदहाल है और खासा पथरीला। इस रास्ते पर वाहन चलाने वालों के जीवट का भी इम्तिहान हो जाता है।

Discover more from आवारा मुसाफिर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading