Sunday, November 24
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राजा विल्सन का हर्षिल

हिमालय का अलौकिक सौंदर्य, उससे निकलती कल-कल छल-छल नदियों का संगम, मीलों तक फैला वन क्षेत्र और सुरम्य घाटियां उत्तराखंड की सबसे बड़ी धरोहर हैं। प्रकृति का ये अनुपम उपहार उसे शेष दुनिया से अलग पहचान देता है यही वजह है कि यहां हर मौसम में सैलानियों की आवाजाही रहती है। गढ़वाल की ऊंचाइयों मे प्रकृति के हाथों बेहिसाब सुंदरता बिखरी पड़ी है। गंगोत्री के रास्ते में हर्षिल आम सैलानी स्थलों से अलग है- शांत व मनोरम. भीड़-भाड़ से मुक्त। लेकिन पिछले कुछ सालों में यहां जाने वाले सैलानियों की तादाद बढ़ी है। अब जब कोरोना के कारण लगी आने-जाने की पाबंदियां हट गई हैं तो आइए करें फिर से एक बार पहाड़ों का रुख

गढ़वाल के अधिकतर सौंदर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं जहां पहुंचना सबके लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन जगहों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहां सभी प्राकृतिक विषमता और दुरुहता खत्म हो जाती है। वहां पहुंचना सहज और सुगम है। यही कारण है कि इन सुविधापूर्ण प्राकृतिक स्थलों पर ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति की एक ऐसा ही एक खूबसूरत उपत्यका है हर्षिल।

भागीरथी नदी के घाटी और पीछे बर्फ से ढकी हिमालयी चोटियां।

उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग के मध्य स्थित हर्षिल (कई जगह प्रचलन में हरसिल) समुद्री सतह से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। हर्षिल उत्तरकाशी से 73 किलोमीटर आगे और गंगोत्री से 25 किलोमीटर पहले सघन हरियाली से आच्छादित है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शांत और अविरल प्रवाह हर किसी को आनंदित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। जहां देखिए दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोड़ने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के जंगल मन को मोहते हैं। जहां निगाह डालिए इन पेड़ों का जमघट लगा है। यहां पहुंचकर पर्यटक इन पेड़ों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। जंगलों से थोड़ा ऊपर निगाह पड़ते ही आंखें खुली की खुली रह जाती है। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो कहने ही क्या। ढलानों पर फैले ग्लेशियरों की छटा तो दिलकश है ही।

इस स्थान की खूबसूरती का जादू अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म राम तेरी गंगा मैली में देखा जा सकता है। बॉलीवुड के सबसे बड़े शोमैन रहे राजकपूर एक बार जब गंगोत्री घूमने आए थे तो हर्षिल का जादुई आकर्षण उन्हें ऐसा भाया कि उन्होंने यहां की वादियों में फिल्म ही बना डाली- राम तेरी गंगा मैली। इस फिल्म में हर्षिल की वादियों का जिस सजीवता से दिखाया गया है वो देखते ही बनता है। यहीं के एक झरने में फिल्म की नायिका मंदाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मंदाकिनी फॉल है पड़ गया। इस घाटी से इतिहास के  रोचक पहलू भी जुड़े हैं। एक गोरे साहब थे फेडरिक विल्सन जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कर्मचारी थे। वह थे तो इंग्लैंड वासी लेकिन एक बार जब वह मसूरी घूमने आए तो हर्षिल की वादियों में पहुंच गए। उन्हें यह जगह इतनी भायी कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और यहीं बसने का मन बना लिया। कुछ किस्सों में यह भी बताया जाता है कि विल्सन अंग्रेज सेना में थे और 1857 की बगावत के बाद उन्होंने सेना छोड़ दी। वह पहचान छिपाने के लिए पहाड़ में चले आए। स्थानीय लोगों के साथ वह जल्द ही घुल-मिल गए और गढ़वाली बोली भी सीख ली। वह जल्द ही यहां राजा विल्सन के नाम से लोकप्रिय हो गए। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां एक बंगला भी बनाया। वह विल्सन कॉटेज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि गांव के एक कोने पर स्थित यह कॉटेज बाद में एक आग में जल गया। उसे फिर से बनाकर अब फॉरेस्ट रेस्ट हाउस का रूप दे दिया गया है। नजदीक के मुखबा गांव के एक लड़की (कुछ लोग उसका नाम गुलाबी बताते हैं) से उन्होंने शादी भी कर डाली। विल्सन ने यहां इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगाकर लगाए जो खूब फले-फूले। आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि विल्सन ने फर, कस्तूरी व चमड़े आदे के व्यापार में खासी कमाई की। वह देवदार के पेड़ों को काटकर नदियों में बहाकर मैदानों में भी भेजते रहे। तब जंगलात काटने पर उतनी पाबंदी नहीं थी।

हर्षिल गांव के निकट बहती भागीरथी नदी।

ऋषिकेश से हर्षिल की लंबी यात्रा के बाद हर्षिल की वादियों का बसेरा किसी के लिए भी अविस्मरणीय यादगार बन जाता है। भोजपत्र के पेड़ और देवदार के खूबसूरत जंगलों की तलहटी में बसे हर्षिल की सुंदरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले ज्यादातर तीर्थ यात्री हरसिल की इस खूबसूरती का लुत्फ उठाने के लिए यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हर्षिल आना आसान है लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां इक्के-दुक्के सैलानी ही पहुंच पाते हैं। हर्षिल की वादियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है। जब यहां की पहाडिय़ां और पेड़ बर्फ से लकदक रहते हैं, गोमुख से निकलने वाली भागीरथी का शांत स्वभाव यहां देखने लायक है। 

हर्षिल गांव का मनोहारी दृश्य।

यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्राडा मछलियों को लाने का श्रेय भी विल्सन को ही जाता है। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस इलाके की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हर्षिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई इनर लाइन में रखा गया था जहां पहले विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध था। विदेशी पर्यटक हर्षिल होकर गंगोत्री, गोमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हर्षिल में नहीं ठहर सकते हैं। हर्षिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें सातताल कहा जाता है। हिमालय की गोद मे एक श्रृखंला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील 9000 फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते मे प्रकृति का आप नया ही रूप देख सकते है। यहां पहुंचकर आप प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूम सकते हैं।

कैसे पहुंचे

हर्षिल की खूबसूरत वादियों तक पहुंचने के लिए सैलानियों को सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुड़ा है। ऋषिकेश पहुंचने के बाद आप बस या टैक्सी द्वारा 218किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं। अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहें तो नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी द्वारा 235 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है। हर्षिल से कुछ ही किलोमीटर आगे एक हैलीपेड भी है, गंगोत्री जाने वाले कई चार धाम यात्री हेलिकॉप्टर से भी यहां आते हैं।

हर्षिल गांव के पास खेतों में लहलहाती फसलें और पीछे देवदार के घने जंगल।

समय और सीजन

यूं तो बरसात के बाद जब प्रकृति अपने नए रूप में खिली होती है तब यहां का लुत्फ उठाया जा सकता है। लेकिन नवंबर-दिसंबर के महीने में जब यहां बर्फ की चादर जमी होती है तो यहां का सौंदर्य और भी खिल उठता है। बर्फबारी के शौकीन इन दिनों यहां पहुंचते हैं। 

पर्यटकों को यात्रा के दौरान इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि समय और जो भी हो, हरदम गरम कपड़े साथ होने चाहिए। यहां पर खाने-पीने के लिए साफ और सस्ते होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जो आपके बजट के अनुरूप होते हैं।

हर्षिल में ठहरने के लिए लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। गंगोत्री जाने वाले यात्री कुछ देर यहां रुककर अपनी थकान मिटाते हैं और हर्षिल के सौंदर्य का लुत्फ लेते हैं

हर्षिल गांव का एक और खूबसूरत दृश्य। 

मिली घूमने की आजादी

लगभग 55 सालों तक भारतीय व विदेशी, दोनों तरह के सैलानियों को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित हर्षिल जाने के लिए इनर लाइन परमिट लेना होता था। परमिट के बाद भी यहां विदेशियों को रात बिताने की इजाजत नहीं होती थी क्योंकि हर्षिल कैंटोनमेंट का इलाका है और चीन से लगी सीमा के काफी नजदीक। इस लिहाज से यह काफी सामरिक महत्व का और संवेदनशील इलाका है। 1962 में भारत-चीन के युद्ध के बाद ये प्रतिबंध इस इलाके में लगाए गए थे। अब आधी सदी से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद यहां घूमने की पाबंदियां हटा ली गई हैं और इस इलाके में भी सैलानियों की चलह-पहल बढऩे की उम्मीद है।

गृह मंत्रालय ने परमिट प्रणाली को पूरी तरह से खत्म करते हुए हर्षिल को देशी व विदेशी, दोनों तरह के सैलानियों के लिए खोल दिया है। इसकी कोशिशें लंबे समय से चल रही थी। स्थानीय लोगों को हमेशा लगता था कि इस परमिट सिस्टम की वजह से उन्हें सैलानियों की वो आवक नहीं मिल पाती जो बाकी जगहों को मिलती है, लिहाजा इससे उनके आर्थिक विकास में भी अड़ंगा लग रहा है। हर्षिल घाटी में लगभग सौ छोटी-बड़ी हिमालयी चोटियां हैं। 

इसके अलावा नेलोंग घाटी में भी सैलानियों के जाने पर लगी रोक हटा दी गई है। नेलोंग घाटी हर्षिल से 30किलोमीटर आगे है। हर्षिल में तो सैलानी फिर भी परमिट लेकर जा सकते थे लेकिन 1962 की लड़ाई के बाद नेलोंग घाटी में तो लोगों के जाने पर पूरी तरह से रोक थी। चीन सीमा हर्षिल से लगभग सौ किलोमीटर औऱ नेलोंग से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है। अब सैलानी नेलोंग भी जा सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें स्थानीय प्रशासन से इजाजत लेनी होगी। नेलोंग घाटी में आईटीबीपी के कैंप हैं। चीन युद्ध के समय नेलोंग व जादुंग गांवों को खाली कराके लोगों को हर्षिल घाटी में नीचे की तरफ बाकी जगहों पर भेज दिया गया था।

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