पहले के कालिकट और आज के कोझिकोड के आसपास के इलाके को केरल के बाकी हिस्सों की ही तरह कुदरत ने काफी नियामतें बख्शी हैं। उनको काफी सहेजकर रखा भी गया है। मलाबार के इस इलाके में जाएं तो इन कुछ जगहों की सैर करना न भूलें, हम बता रहे हैं आपको टॉप 10 विकल्प। धुंध से ढका तुषारागिरी वाटरफॉल्स तुषारागिरी यानी धुंध से ढका पहाड़। कोझिकोड से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह वाटरफॉल्स बहुत खूबसूरत है। लगातार गिरते पानी से उठती ओस यहां पहाड़ पर कुहासा सा बना देती हैं। यह इलाका केरल के पारंपरिक मसालों की खेती से भरपूर है। यह ट्रैकिंग के शौकीन भी बहुत आते हैं जो यहां से वायनाड जिले में वाइतिरी तक ट्रैक के लिए जाते हैं। सांस्कृतिक चेतना का ताली मंदिर कोझिकोड शहर के भीतर स्थित 14वीं सदी में बना यह मंदिर मलाबार के इस इलाके की सांस्कृतिक चेतना का एक प्रमुख केंद्र है। इसका केरल शैली का पारंपरि...
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travel articles and news about South Indian state of Kerala
यह लगातार तीसरा साल है जब केरल की नौका प्रतिस्पर्धाओं की पहचान माने जाने वाली नेहरु ट्रॉफी बोट रेस को स्थगित किया गया है। यह बोट रेस एक तरह से केरल के टूरिस्ट सीजन का आगाज़ मानी जाती है, लेकिन पहले 2018 में भीषण बाढ़ की वजह से और फिर 2019 में भी उसी के अंदेशे में आगे खिसकने के बाद इस साल कोविड-19 महामारी के कारण इसका आयोजन आगे खिसका दिया गया है। इसे इस साल 8 अगस्त 2020 को होना था, और यह इसका 68वां संस्करण होता। पिछले साल से केरल ने इस दौरान होने वाली तमाम नौका दौड़ों को मिलाकर एक चैंपियंस बोट लीग (सीबीएल) का ऐलान किया था जिसमें नेहरु ट्रॉफी से शुरू होकर नवंबर तक होने वाली कुल 12 नौका दौड़ों के लिए टीमों को उनके प्रदर्शन के आधार पर अंक मिले और अंत में सबसे ज्यादा अंक पाने वाली टीम सीबीएल विजेता बनी। इस साल सीबीएल का दूसरा सीजन होना था। फिलहाल, जब तक नौका दौड़ें फिर से शुरू हों, हम आपको ले...
Read Moreमलाबार का इलाका केरल की कई पारंपरिक कलाओं का केंद्र रहा है। इनमें तैय्यम और कलरिपयट्टु शामिल हैं। वहीं कर्नाटक से लगे उत्तर केरल में कासरगोड यक्षगान और पुतलियों के नाच के लिए प्रसिद्ध है। तैय्यम को कलियट्टम भी कहा जाता है। यह नृत्य परंपरा कम से कम आठ सौ साल पुरानी बताई जाती है। यह उत्तर केरल में प्रचलित रहा मूलत: धार्मिक अनुष्ठान का नृत्य है। कन्नूर व कासरगोड जिलों में इस कला की खास तौर पर परवरिश हुई। यह भी कहा जाता है कि तैय्यम दरअसल दैवम् शब्द का अपभ्रंश या देशज रूप है। इसमें नृत्य है,अभिनय है, संगीत है और प्राचीन जनजातीय संस्कृति की झलक इसमें साफ देखने को मिलती है। उसमें नायकों के यशोगान और पूर्वजों की आत्माओं के ध्यान को ज्यादा अहमियत दी जाती थी। केरल में तैय्यम की एक प्रस्तुति माना जाता है कि लगभग चार सौ किस्म के तैय्यम प्रचलन में हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय रक्त चामुंडी,...
Read MoreKerala will work in tandem with Tourism Boards of other states to revitalize domestic tourism that has suffered a huge beating from the COVID-19 pandemic and would promote Ayurveda, eco-tourism and adventure tourism in a major way to get the tourism sector back on its feet. “Kerala Tourism will work together with other state tourism departments so that a tourist travelling from one state to another has a hassle-free experience. We expect to welcome guests in the next one or two months,” Tourism Minister Kadakampally Surendran said. Kerala expect to welcome tourists in next couple of months The minister was speaking at the valedictory session of the two-day Tourism E-Conclave, ‘Travel & Hospitality: What’s Next?’, which concluded on Thursday. “We are starting off by revivi...
Read Moreदक्षिण मलाबार इलाके पर निला, जिसे अब भरतपुझा नदी भी कहा जाता है, का बड़ा ही मजबूत सांस्कृतिक प्रभाव रहा है। यह नदी तमिलनाडु में पश्चिमी घाट की अनइमलाई पहाडिय़ों से निकलती है और केरल के मलाबार इलाके के तीन जिलों- पालक्कड, त्रिशूर व मलप्पुरम से होकर गुजरती है। मलप्पुरम जिले में पोन्नानि में अरब सागर में मिलने से पहले यह नदी इन जिलों के ग्यारह तालुकों से होकर गुजरती है। निला या भरतपुझा नदी यह नदी यहां के सांस्कृतिक जनजीवन का हिस्सा है और नदी, इसके किनारे बने मंदिरों और उन मंदिरों में बैठे देवी-देवताओं से जुड़ी कई लोककथाएं व मिथक प्रचलन में हैं। इस नदी का तट कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों का भी गवाह रहा है। जमोरिन राजाओं के समय में मलप्पुरम में तिरुनवया में हर 12 साल में केरल के सभी शासकों का महा-समागम- ममंगम होता था। यह समागम आखिरी बार 1766 में हुआ। आज यहां सालाना सर्वोदय मेला होता है। उसके अ...
Read Moreलाट पर गिरकर कपाट के साथ बहते गर्म तेल से मानो भीतर की सारी थकान, जड़ता पिघल-पिघल कर नीचे रिस रही थी। मेरे लिए यह पहला अनुभव था। इतना घूमने के बाद भी स्पा या आयुर्वेदिक मसाज के प्रति कोई उत्साह मेरे भीतर नहीं जागा था, पहली बार केरल जाकर भी नहीं। इसलिए केरल की दूसरी यात्रा में कैराली में मिला यह अहसास काफी अनूठा था क्योंकि शिरोधारा के बारे में काफी कुछ सुना था। माथे पर बहते तेल को एक जोड़ी सधे हाथ सिर पर मल रहे थे। दूसरे जोड़ी हाथ बाकी बदन का जिम्मा संभाले हुए थे। यूं तो अभ्यांगम समूचे बदन पर मालिश की अलग चिकित्सा अपने आप में है, लेकिन बाकी तमाम चिकित्साओं में भी सीमित ही सही, कुछ मालिश तो पूरे बदन की हो ही जाती है। फिल्मों, कहानी-किस्सों में राजाओं, नवाबों, जागीरदारों की मालिश करते पहलवानों के बारे में देखा-सुना था, मेरे लिए यह साक्षात वैसा ही अनुभव था। फर्क बस इतना था कि दोनों बगल...
Read Moreकिसी ने खूब कहा है, घूमना पहले आपको अवाक कर देता है और फिर आपको कहानियां कहने के लिए वाचाल बना देता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कुछ समय पहले मेरा विवाह हुआ और मैंने अपनी जीवन-संगिनी के साथ घूमने जाने की कई सारी योजनाएं बनाईं। शादी से पहले हमने सोचा था कि हम यूरोप जाएंगे। लेकिन फिर कुछ वजहों से हमने यूरोप जाने का इरादा छोड़ दिया। विवेकानंद स्मारक कुछ ऐसा हुआ कि विवाह तक यह तय ही नहीं हो पाया था कि हमें बाद में हनीमून के लिए जाना कहां हैं। फिर विवाह के दो दिन बाद हमने योजना बनाई कि घूमने के लिए दक्षिण भारत निकल पड़ते हैं। हमने बेंगालुरु (बैंगलोर) के लिए टिकट बुक कराए और वहां पहुंच गए। लेकिन तब तक भी हमारे दिमाग में इस बात की कोई योजना नहीं थी कि हमें किन जगहों पर जाना है, कहां ठहरना है, क्या करना है। न तो कोई होटल बुक थे और न यह तय था कि हम ट्रेन से जाएंगे, बस से या कैब से। पहला स...
Read Moreकेन फॉलेट के उपन्यास ‘आई ऑफ द नीडल’ को पढ़े मुझे ज्यादा वक्त नहीं बीता था। यह उपन्यास एक नाजी जासूस की गतिविधियों पर आधारित है जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन में रहकर जासूसी करता है। इसके कथानक का बड़ा हिस्सा एक चट्टानी द्वीप पर घटता है- समंदर के सीने पर मुस्तैद खड़ी एक चट्टान, जिसकी तलहटी में लहरें ठांठें मार रही हैं। उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में इस नजारे की छवि कहीं गहरे अंकित हो गई। लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था कि यह छवि जल्दी ही साकार होने वाली थी। वर्कला... केरल के दक्षिणी छोर पर एक छोटा-सा शहर। पहली नजर में यह हल्की-फुल्की रफ्तार से चल रही एक उनींदी-सी जगह लगेगी। चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों से घिरा हुआ शांत रेलवे स्टेशन जहां ज्यादा चहलकदमी नहीं; स्टेशन के बाहर टैक्सी और ऑटो वालों की भीड़; सड़क पर से ही सवारियां लेती बसें; खाने-पीने की साधारण दुकानें। रेलगाड़ी से उतरने क...
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