उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के साथ-साथ अब फूलों की घाटी भी राज्य के बाहर से आने वाले सैलानियों के लिए खोल दी गई है। यानी अब आप इस अनूठी जगह का आनंद ले सकते हैं। इसका यही सबसे उपयुक्त समय है। बस आपको पहले से तय कोविड-19 दिशानिर्देशों का पालन करना होगा जिसमें उत्तराखंड में प्रवेश करने से ठीक पहले के 72 घंटों के भीतर कराए गए कोविड-19 के आरटी-पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट सबसे अहम है। तब तक हम आपको दिखला रहे हैं इस कुदरती करिश्मे की झलक। पुष्पावती नदी के दोनों तरफ फैली है फूलों की घाटी भारत में यूं तो कई प्राकृतिक घाटियां हैं जहां कुदरती तौर पर फूल खिलते हैं, और यह भी पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कि मध्य व दक्षिण-मध्य भारत के पठार वाले इलाकों से लेकर सुदूर उत्तर-पूर्व में निचले हिमालय के पहाड़ों तक इन तमाम घाटियों की खूबसूरती एक से बढ़कर एक है। इनमें से कई तो ऐसी भी हैं जो भले ही स...
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कोरोना की वजह से उत्तराखंड के देवीधुरा के वाराही धाम में लगने वाले प्रसिद्ध बग्वाल (पाषाण युद्ध) मेले को इस साल निरस्त कर दिया गया है। इस बार न तो मेला लगेगा और न ही सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। कुछ दिन पहले तय हुआ था कि रक्षाबंधन के दिन खोलीखांड दुबचौड़ मैदान में परंपरा को जीवित रखने के लिए सांकेतिक बग्वाल खेली जाएगी। लेकिन अब यह फैसला हुआ है कि अब बग्वाल के दिन मंदिर में केवल पूजा-अर्चना ही होगी। सिर्फ मंदिर समिति को प्रवेश की अनुमति मिलेगी। वाराही धाम में सांकेतिक बग्वाल भी नहीं होगी। रक्षाबंधन पर मंदिर समिति और चार खाम से जुड़े लोग केवल पूजा अर्चना करेंगे। ग्रामीणों को घरों में देवी का प्रसाद भेजा जाएगा। चार अगस्त को देवी का डोला मुचकुंद ऋषि आश्रम जाएगा। इस डोले में भी चार से अधिक लोग शामिल नहीं हो सकेंगे। लिहाजा बग्वाल होगा नहीं, लेकिन हम आपको बता रहे हैं, इससे जुड़ी कहानी जिसन...
Read Moreशहर की भीड़ भाड़ की जिंदगी से जब कभी मन ऊब जाए तो कुछ दिन पहाड़ों के साथ बिताने चाहिए। इससे मन तरोताजा हो जाता है और अपने निजी जिंदगी के काम में दोगुनी ताकत का एहसास होता है। इस बार तो वैसे भी कोरोना महामारी के कारण हम चार महीने घरों में कैद हो गए थे। उसके बाद उत्तराखंड उन कुछ राज्यों में से है जो सैलानियों को आने की इजाजत दे रहा है। तो क्यों न मौके का फायदा उठाया जाए। लिहाजा इस बार हम गंगोत्री और इसके आसपास की सैर को चल रहे हैं। गंगोत्री मंदिर धार्मिक महत्व के लिहाज से गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में से एक महत्वपूर्ण धाम है। गंगोत्री समुद्र तल से 3,048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक सालों में एक गोरखा कमांडर द्वारा गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था। यह मंदिर 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगा नदी के मंदिर के लिए गंगोत्री...
Read Moreभादो (भाद्रपद) के महीने में होली, वह भी रंगों से नहीं बल्कि छाछ-मक्खन से! चौंकिए मत। हमारे देश में इतनी जबरदस्त सांस्कृतिक विविधता है कि यहां तरह-तरह के अनूठे त्यौहार मनाए जाते हैं। कुछ से तो हम वाकिफ हो जाते हैं और कुछ इतने दूर-दराज के इलाके में होते हैं कि उनके बारे हम कम ही जान-सुन पाते हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में रैथल ऐसी ही एक जगह है। रोमांच प्रेमियों में रैथल की लोकप्रियता और भी वजहों से है, खास तौर पर दयारा बुग्याल के कारण। रैथल वहां के लिए बेस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। रैथल गांव अपने आप में बहुत खूबसूरत है और खासी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत भी अपने में समेटे हुए है। लेकिन फिलहाल हम बात कर रहे हैं, यहां की इस अनूठी होली की। दयारा बुग्याल को जाता रास्ता उत्तरकाशी से गंगोत्री जाने वाले रास्ते पर जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर समुद्र तल से करीब दस हजार फु...
Read Moreदारमा घाटी को करीब दो दशक बाद फिर से अनुभव करना एक खूबसूरत ख्वाब को जीने जैसा था। मैं यकीनन इसे उत्तराखंड ही नहीं समूचे हिमालय की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक मानता हूं। मैं वहां सबसे पहले 2001 में अपने कुछ घुमक्कड़ साथियों के साथ गया था। इस बार यह देखकर कितना सुकून मिला कि पिछले 18-19 सालों में दारमा घाटी खूबसूरती के मामले में जरा भी कम नहीं हुई है। वही धौलीगंगा का निर्मल बहता पानी, वही पंचाचूली की मोहित करती चोटियां, वहा बुग्यालों की आरामदायक हरी गद्देदार बुग्गी घास और वही वहां के निवासियों का आदर सत्कार। कैंपिंग साइट से पंचाचूली ग्लेशियर की तरफ जाते ट्रेकर्स एक प्रकृति प्रेमी और फोटोग्राफर होने के नाते कम से कम दारमा घाटी के लिए तो यह कहा ही जा सकता है कि दारमा नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। खास तौर पर दारमा के दुक्तु और दांतू गांव से पंचाचूली चोटियों का नयनाभिराम दृश्य आपको पागल ...
Read Moreउत्तराखंड उन चंद राज्यों में से है जिन्होंने कोविड-19 के दौर में पर्यटन को फिर जिंदा करने के लिए अपने राज्य की सीमा को सैलानियों के लिए फिर से खोल दिया है। हालांकि राज्य के बाहर के लोगों को अभी चार धाम यात्रा पर जाने की इजाजत नहीं है। लेकिन उस इलाके में चार धामों के अलावा भी कई जगहें इस समय देखी जा सकती हैं, चोपता तुंगनाथ उन्हीं में से है उत्तराखंड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिए काफी है। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी ,तरह-तरह के फूल, कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडिय़ा और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल दुनिया का एहसास कराते हैं....चमोली की शांत फिजाओं में ऐसा ही एक स्थान है- चोपता तुगंनाथ। बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये इलाका गढ़वाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमत...
Read Moreहिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार ने भी कोविड-19 के तहत लागू की गई पाबंदियों में कई छूट का ऐलान किया है। इससे राज्य में पर्यटन उद्योग को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। राज्य के भीतर आने-जाने और दूसरे राज्यों से उत्तराखंड में आने वालों पर लगी पाबंदियां खत्म हो गई हैं। बस यात्रियों को थोड़े मानकों का पालन करना होगा। इनमें हिमाचल की ही तरह राज्य में आने से पहले 72 घंटे के दरम्यान कराई गई कोररोना जांच की नेगेटिव रिपोर्ट सबसे अहम है। तो अब आप बची हुई गर्मियों में पहाड़ों पर घूमने की योजना बना सकते हैं। उत्तराखंड में शीतलाखेत से त्रिशूल व नंदादेवी चोटियों का नजारा अनलॉक-2 में राज्य सरकार ने पर्यटन उद्योग को बड़ी राहत दी है। देशी-विदेशी सैलानियों को सार्वजनिक स्थानों पर जाने की अनुमति दी गई है, जबकि पहले इस पर रोक थी। दूसरे राज्यों से आने वाले सैलानियों को स्मार्ट सिटी वेब पोर्टल (h...
Read Moreसुरकंडा का मंदिर देवी का महत्वपूर्ण स्थान है। दरअसल गढ़वाल के इस इलाके में प्रमुखतम धार्मिक स्थान के तौर पर माना जाता है। लेकिन इस जगह की अहमियत केवल इतनी नहीं है। यह इस इलाके का सबसे ऊंचा स्थान है और इसकी ऊंचाई 9995 फुट है। मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है। इसके चलते जब आप ऊपर हों तो चारों तरफ नजरें घुमाकर 360 डिग्री का नजारा लिया जा सकता है। केवल इतना ही नहीं, इस जगह की दुर्लभता इसलिए भी है कि उत्तर-पूर्व की ओर यहां हिमालय की श्रृंखलाएं बिखरी पड़ी हैं। चूंकि बीच में कोई और व्यवधान नहीं है इसलिए बाईं तरफ हिमाचल प्रदेश की पहाडिय़ों से लेकर सबसे दाहिनी तरफ नंदा देवी तक की पूरी श्रृंखला यहां दिखाई देती है। सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री यानी चारों धामों की पहाडिय़ां नजर आती हैं। यह एक ऐसा नजारा है तो वाकई दुर्लभ है। गढ़वाल के किसी इलाके से इतना खुला नजारा देखने को नहीं मिलत...
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