पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में सिक्किम सैलानियों की पहुंच में भी सबसे ज्यादा रहा है और लोकप्रिय भी। असम में गुवाहाटी कामाख्या मंदिर और माजुली द्वीप की वजह जाना जाता रहा है तो पूर्वी असम के इलाके अपने चाय बागानों के लिए। इसी तरह शिलांग व चेरापूंजी के इलाके अपने झरनों के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय रहे हैं।
पूर्वोत्तर को सड़क के रास्ते रोमांचक ढंग से घूमना हो तो उसके कई तरीके हो सकते हैं। सिकिक्म में गंगटोक से मंगन होते हुए उत्तरी सिक्किम में युमथांग और जीरो प्वाइंट तक का रास्ता बहुत खूबसूरत है। पूरा रास्ता तीस्ता और उसकी सहायक नदियों के किनारे-किनारे चलता है। कंचनजंघा चोटी के नजारों से लकदक यह रास्ता दुनिया की सबसे ऊंची व खूबसूरत हिमालयी झीलों में से एक गुरु डोंगमार झील की तरफ ले जाता है। बस उसके लिए खुला मौसम और खुले रास्ते, दोनों की दरकार होती है। खास तौर पर लाचेन से गुरु डोंगमार तक का रास्ता मौसम पर बहुत निर्भर है। लाचेन से ही उत्तर में युमथांग और गुरु डोंगमार के रास्ते अलग-अलग होते हैं।
सिक्किम से सड़क के रास्ते भूटान भी जाया जा सकता है। जलपाईगुड़ी से या आप सिक्किम न आना चाहें तो सीधे सिलीगुड़ी से ही भूटान में फुएंतशोलिंग पहुंचा जा सकता है। गंगटोक से वह लगभग 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप भूटान के भीतरी इलाकों में या राजधानी थिंफू तक आराम से जा सकते हैं। सड़क के रास्ते घूमने के लिए भूटान निहायत खूबसूरत जगहों में से एक है। थिंफू से आप दक्षिण-पूर्वी भूटान में सामद्रूक होते हुए फिर से असम के रास्ते भारत में प्रवेश करके गुवाहाटी तक जा सकते हैं।
गुवाहाटी से अरुणाचल प्रदेश में तवांग का रास्ता काफी रोमांचक है। तवांग वैसे भी पूर्वोत्तर भारत में सबसे तेजी से लोकप्रिय होते हुए पर्यटन स्थलों में से एक है। गुवाहाटी से तेजपुर, भालुकपोंग होते हुए तवांग पहुंचा जाता है। असम के इलाके में चाय बागानों का शानदार नजारा होता है तो अरुणाचल में सड़कों को चूमते बादलों का। इस रूट का चरम तब होता है जब असम पार करके अरुणाचल प्रदेश में तवांग पहुंचने के लिए आप सेला पास को पार करते हैं।
आप अरुणाचल न जाना जाएं तो गुवाहाटी से शिलांग भी जा सकते हैं। मेघालय का यह इलाका प्रकृति प्रेमियों में बहुत लोकप्रिय है और असम से नजदीक भी। कई रोमांचप्रेमी गुवाहाटी से शिलांग जाकर, वहां से अरुणाचल प्रदेश में भालुकपोंग के लिए निकल जाते हैं। शिलांग से तवांग तक का रास्ता नामेरी व धीरांग होते हुए जाता है।
धीरांग से एक रास्ता काजीरंगा व जोरहाट होते हुए माजुली की तरफ निकल जाता है। वहीं से आगे हो जाएं तो मोव माकुकचोंग होते हुए नगालैंड की राजधानी कोहिमा तक जा सकते हैं।
जो लोग थोड़े और आगे बढऩा चाहते हों वे पूर्व में मणिपुर की तरफ जा सकते हैं। राजधानी इंफाल जाकर वहां से 110 किलोमीटर मोरे की तरफ जाया जा सकता है जो म्यांमार की सीमा पर है। आप जरूरी परमिट लेकर म्यांमार सड़क के रास्ते घूमने जा सकते हैं। म्यांमार सड़क के रास्ते थाईलैंड से जुड़ा हुआ है। बहुत जल्दी आप भारत से थाईलैंड तक सड़क के रास्ते जा सकेंगे। आगे चलकर मोरे ही भारत से दक्षिण-एशियाई देशों की तरफ जाने के लिए प्रवेशद्वार होने वाला है। हालांकि यह सब कुछ राजनीतिक हालात पर भी बहुत निर्भर करता है लेकिन आने वाले समय में भारत से सुदूर दक्षिण एशियाई देशों- वियतनाम व चीन तक सड़क के रास्ते जाने की कल्पना साकार तो होने ही वाली है। रोमांचप्रेमियों के लिए नए रास्ते खुलने वाले हैं।
मनमोहक
पूर्वोत्तर भारत में बर्फ से ढके पहाड़ हैं, नदियां हैं, भारत के सबसे शानदार वाटरफॉल्स हैं, भारत की सबसे बड़ी गुफाएं हैं और खूबसूरत व दुर्लभ फूलों से लदी घाटियां हैं। वहां का इतिहास भी कम समृद्ध नहीं।
जाना अब आसान
पूर्वोत्तर के आठों राज्यों (सात बहनें और सिक्किम) को घूमने में दूरी और समय की अड़चन सबसे ज्यादा हुआ करती थी। यही वजह है कि यहां जाने वाले सैलानियों की संख्या देश के बाकी हिस्सों की तुलना में कम रही है। लेकिन अब यह स्थिति तेजी से बदल रही है। वहां जाने के लिए उड़ानें हैं, अच्छी सड़कें और अब रेल नेटवर्क भी।
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