दक्कन के पठार में अपनी खास भौगोलिक स्थिति की वजह से तेलंगाना को अनूठी जलवायु मिली हुई है। यह जलवायु और यहां का मौसम पेड़-पौधों और वन्य प्राणियों के लिए खासा अनुकूल माना जाता है। समूचे इलाके में कई वन्यजीव अभयारण्य हैं, कुछ टाइगर रिजर्व भी हैं और पक्षी अभयारण्य भी। इनमें कई तो बहुत पुराने हैं और कई महत्वपूर्ण भी।
हालांकि तेलंगाना के वन्य अभायरण्यों या टाइगर रिजर्वों को उस तरह की ख्याति नहीं मिली जितनी मध्य भारत में बाकी राज्यों- खास तौर पर कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के टाइगर रिजर्वों को मिली लेकिन इसके बावजूद उनकी अहमियत किसी सूरत में कम नहीं हो जाती। सैलानियों के नजरिये से देखा जाए तो ऐसे अभयारण्यों को घूमने में कम आनंद है जहां सैलानी सफारी करने के लिए टूटे पड़ते हैं। जंगल को कम शोर-शराबे और सुकून में देखने का ही लुत्फ ज्यादा है और यह तेलंगाना के जंगलों में बखूबी मिल सकता है। सैलानियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं भी हैं। पहले जो इलाके उपेक्षा झेल रहे थे, वे अब अलग तेलंगाना राज्य बनने के बाद विकसित हो रहे हैं। इसलिए कम सैलानी होने से इन संसाधनों पर भी अभी कोई खास दबाव नहीं है।
नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व
अब जैसे बहुत कम लोगों को इस बात का अंदाजा होगा कि देश के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व नागार्जुन सागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व का खासा हिस्सा तेलंगाना में आता है। तेलंगाना के नालगोंडा और महबूबनगर जिलों में यह फैला हुआ है। इस रिजर्व का कुल क्षेत्रफल लगभग 3,568 वर्ग किलोमीटर है। नागार्जुनसागर श्रीशैलम बाघ अभयारण्य आधिकारिक रूप से 1978 में स्थापित किया गया था और फिर 1983 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर अभियान के दायरे में ले आया गया। आजादी से पहले इस रिजर्व का दक्षिणी आधा हिस्सा तत्कालीन अंग्रेज सरकार के और उत्तरी आधा हिस्सा हैदराबाद के राजा के शासन में आता था। उन्होंने इसे अपने मेहमानों के साथ शिकार का आनंद लेने के लिए विकसित किया था। साल 1983 तक इस जंगल में करीब 40 बाघ थे, जिनकी संख्या अवैध शिकार के चलते काफी घट गई थी। इसके बाद जब बाघ को संरक्षित घोषित किया तब साल 1989 में इनकी संख्या में बढोतरी हुई और यह संख्या 94 तक पहुंच गई। साल 1992 में इसका नाम राजीव गांधी वन्यजीव अभयारण्य कर दिया गया। इसके दायरे में कई टाइगर रिजर्व आते हैं।
नल्लामाना के जंगलों में स्थित यह रिजर्व अपनी खूबसूरती के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। भरी-पूरी पहाड़ियां, लंबी पसरी घाटियां, बल खाती सड़कें, सदानीरा नदियां और ऊपर से बाघों की दहाड़। सह्याद्रि पर्वतमाला से निकली विशाल कृष्णा नदी महाराष्ट्र व कर्नाटक को पार करके नल्लामाला टाइगर रिजर्व से गुजरती है। इस तरह इस रिजर्व के पूर्वी व दक्षिणी सिरे पर नल्लामाला पहाड़ियां हैं तो बाकी तरफ से इस कृष्णा नदी घेरे हुए है।
यह जगह तीर्थस्थल भी है। यहां पहाड़ियां पर स्थित एक पवित्र तीर्थस्थल भी है। यहां श्रीशैलम में भगवान मल्लिकार्जुन और देवी भररामम्बा का प्राचीन मंदिर भी स्थित है। देवी भररामम्बा माता पार्वती का ही अवतार मानी जाती हैं। साथ ही यह मंदिर आठ शक्तिेपीठों में से एक माना जाता है। श्रीशैलम के मंदिर और जलाशय हर साल बड़ी संख्या में सैलानियों को यहां खींच लाते हैं। यह भी एक विडंबना की ही बात है कि कुछ साल पहले एक तरह से इस जंगल को मानो भुला दिया गया था। अब रोमांच के शौकीन यहां खिंचे चले आते हैं। यह जंगल इतना विशाल है कि इसे एक बार में देख पाना मुमकिन नहीं है। बाघ के अलावा यहां तेंदुआ, बोनेट मकाऊ बंदर, लंगूर, जंगली कुत्ते, भेडि़ए, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, भालू, विशाल उड़ती गिलहरी, लकड़बग्घा, जंगली सूअर, सिवेट, पैंगोलिन, हिरणों की तमाम प्रजातियां, नीलगाय आदि को देखा जा सकता है।
कब व कहां: नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व को देखने का सबसे बढ़िया समय अक्टूबर से जून के बीच है। फरहाबाद टाइगर रिजर्व हैदराबाद से 154 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है औऱ यह नागार्जुनसागर-श्रीशैलम रिजर्व का ही हिस्सा है। इसके लिए हैदराबाद-श्रीशैलम हाइवे से अलग मुड़ना पड़ता है। रिजर्व के लिए मन्नानूर में जंगलात की चौकी है। वहां आसपास कई होटल हैं जहां बढिय़ा खाना मिल जाता है। यहीं फॉरेस्ट रेस्टहाउस भी हैं, जहां रुका जा सकता है।
महबूबनगर व नालगौंडा जिले में अमराबाद टाइगर रिजर्व भी नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व का ही हिस्सा है। यह हैदराबाद से 130 किलोमीटर की दूरी पर है। यब इलाका दो अन्य लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां दो आदिमजातियां- चेंचू व लंबाडा निवास करती है। इसके अलावा यह बर्ड लाइफ इंटरनेशनल द्वारा महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (आईबीए) के रूप में भी चिन्हित है। अमराबाद में कई औषधीय वनस्पतियां भी मिलती हैं। यहां परिंदों की दो सौ प्रजातियां हैं। एक खास बात यह भी है कि यहां सौ से ज्यादा तरह की तितलियां देखने को मिलती हैं।
कवल टाइगर रिजर्व
कवल टाइगर रिजर्व तेलंगाना के अदिलाबाद जिले में है। यह उन टाइगर रिजर्व में से है जिनके बारे में उत्तर भारत में बहुत कम पढ़ा-सुना गया है। नागार्जुनसागर-श्रीशैलम जहां तेलंगाना के दक्षिणी सिरे पर है, वहीं कवल टाइगर रिजर्व तेलंगाना के ठीक उत्तर में है। यह उत्तर तेलंगाना का सबसे पुराना अभयारण्य भी है। यह रिजर्व गोदावरी और कदम नदियों के जलग्रहण इलाकों में पड़ता है। कवल टाइगर रिजर्व दरअसल मध्य भारत के बाघ भूभाग का दक्षिणी सिरा है। संभवतया यह दुनिया का सबसे बड़ा बाघ भूभाग है। कवल टाइगर रिजर्व एक तरफ तादोबा टाइगर रिजर्व से जुड़ा है जो उसके सौ किलोमीटर उत्तर में है तो दूसरी तरफ यह इंद्रावती टाइगर रिजर्व से जुड़ा है जो उसके लगभग 150 किलोमीटर पूर्व में है। अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण कवल टाइगर रिजर्व बाकी टाइगर रिजर्वों से बाहर आने वाले बाघों की भी एक प्रमुख शरणस्थली है। इसीलिए प्रोजेक्ट टाइगर में इसका खासा महत्व है। घना जंगल होने के कारण बाकी तमाम जानवरों का बसेरा तो यहां है ही। इसलिए यहां जंगल का रोमांच भरपूर है।
अपनी विविधता के कारण यह टाइगर रिजर्व वाइल्डलाइफ फोटोग्राफरों की भी पसंद है। इस रिजर्व का कोर एरिया ही 892 वर्ग किलोमीटर का है और बफर एरिया 1123 वर्ग किलोमीटर का। इसकी स्थापना 1965 में हुई थी और फिर 1999 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया। आखिरकार बाघों के संरक्षण में इसकी अहमियत को देखते हुए 2012 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित करके प्रोजेक्ट टाइगर के तहत ले आया गया। इस तरह देश के सबसे युवा राज्य में ही यह देश का सबसे युवा टाइगर रिजर्व भी है। पानी की प्रचुरता के कारण कवल बर्ड वाचिंग के लिए भी बहुत बढ़िया माना जाता है। यहां पक्षियों की भी 120 प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं। यहां जंगल सफारी के साथ-साथ बर्ड वाचिंग ट्रिप भी आयोजित की जाती हैं।
कहां व कैसे: यह अभयारण्य आदिलाबाद जिले में स्थित है। राजधानी हैदराबाद से इसकी दूरी सड़क के रास्ते 280किलोमीटर है और मंचेरियल से इसकी दूरी 60 किलोमीटर है। यहां जाने का सबसे बढिय़ा समय नवंबर से लेकर जून के बीच है। रिजर्व के आसपास जन्नारम, मंचेरियल व निर्मल में फॉरेस्ट रेस्ट हाउस रुकने के लिए हैं। जन्नारम में हरिता होटल तो एक बेहद खूबसूरत वाटरफॉल्स के पास स्थित है। रिजर्व में कुंताला वाटरफॉल्स, पोचेरा वाटरफॉल्स व कादेम जलाशय भी देखने लायक हैं। कवल टाइगर रिजर्व पिछले दिनों बाहरी दखल और उसके कारण वन्यजीवों को होने वाले नुकसान के कारण काफी चर्चा में था। अब यहां वाहनों के आवागमन पर काफी रोक लगाई गई है और साथ ही वन्यजीवों को भी बेहतर माहौल देने की कोशिश की जा रही है।
कवल टाइगर रिजर्व के ही साथ लगा जन्नारम वन्यजीव अभयारण्य भी है। तेलंगाना टूरिज्म विभाग इस सेंक्चुअरी के लिए पैकेज टूर भी उपलब्ध कराता है। एक या दो दिन के इन पैकेज टूर में परिवहन के साथ-साथ, भोजन व बोटिंग आदि भी शामिल हैं। यहां अभयारण्य के कुछ हिस्सों में जंगल ट्रेकिंग का भी आनंद लिया जा सकता है। जन्नारम की दूरी हैदराबाद से 295 किलोमीटर की है और निजामाबाद जिले में अरमूर के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है।
एतुरनगरम वन्यजीव अभयारण्य
एतुरनगरम तेलंगाना के सबसे पुराने अभायरण्यों में से एक है। वारंगल से 110 किलोमीटर दूर स्थित इस अभयारण्य को इसकी जैव विविधता के चलते तत्कालीन हैदराबाद सरकार ने 1953 में संरक्षित घोषित किया था। लेकिन इस अभयारण्य की अहमियत केवल इसके वन्यजीवन में ही नहीं है। इसका ऐतिहासिक, पुरातात्विक महत्व भी है। यहां सरवई इलाके में लाखों साल पुराने पेड़ जीवाश्म मौजूद हैं। साथ ही प्राचीन गुफाएं भी हैं। इस इलाके में प्रागैतिहासिक काल के मनुष्य के जीवन के कई संकेत हैं। कुल 806 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले इस अभयारण्य में जीवन के कई दुर्लभ चिह्न देखने को मिलते हैं। दय्यम वागु नदी इस अभयारण्य से होकर गुजरती है। और यहां मगरमच्छों की बहुतायत है। यहां 130 से ज्यादा किस्म की वनस्पतियां और 30 से ज्यादा स्तनपायों की प्रजातियां हैं। बाघ, तेंदुआ व भालू यहां के जंगलों में हैं।
कब व कहां: यहां जाने का सबसे बढ़िया समय अक्टूबर से लेकर अप्रैल के बीच का है। राजधानी हैदराबाद यहां से 250 किलोमीटर की दूरी पर है। वारंगल बड़ा ऐतिहासिक शहर है। वहां रुकने के लिए कई अच्छे होटल हैं। वारंगल से एतुरनगरम के रास्ते में हाइवे के निकट भी कुछ होटल उपलब्ध हैं। एतुरनगरम में आईटीडीए का गेस्ट हाउस है और तदवई में भी कई कॉटेज व रेस्ट हाउस हैं। लखवरम झील, मेडारम मंदिर औऱ रामप्पा झील को यहां देखा जा सकता है।
पोचरम वन्यजीव अभयारण्य
पोचरम अभयारण्य, मेडक शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह राजधानी हैदराबाद से 115 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां तक आने के लिए पर्यटकों को बस या टैक्सी को किराए पर लेना पड़ता है। प्राचीन काल में इस अभयारण्य को हैदराबाद के निजाम के द्वारा शिकार खेले जाने वाले स्थ ल के रूप में उपयोग में लाया जाता था। बाद में, इसे वन्यजजीवों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बना दिया गया, और 20वीं सदी में इसे अभयारण्य का रूप दे दिया गया। इस अभयारण्य का नाम यहां स्थित पोचरम झील के नाम पर रखा गया जिस पर अल्लायइर बांध बनाया गया है। यह झील दरअसल 1916 से 1922 के बीच बनाए गए पोचरम बांध का ही जलाशय है। यह अभायरण्य 130 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला है। दरअसल पोचरम झील बर्ड वाचिंग के शौकीनों के लिए बहुत बढ़िया मानी जाती है। कई प्रवासी पक्षी भी यहां जमा होते हैं।
इस अभयारण्य में कई जीव और वनस्पतियां है। यहां आकर कई जानवर जैसे – जंगली कुत्ता, भेडिया, तेंदुआ, बिल्लई, जंगली बिल्लार, चीतल और हिरन आदि को देखा जा सकता है। इस अभयारण्य में सर्दियों के दौरान कई प्रवासी पक्षी भी आते है। यहां का दिलचस्प पहलू यह है कि यहां पांच प्रकार के हिरन देखने को मिलते है। यह एक पारिस्थितिकी पर्यटन केंद्र है। पोचरम की यात्रा का सबसे अच्छो समय नबंवर से जनवरी तक होता है। मेडक में सैलानियों के लिए कई होटल व रेस्तरां हैं जहां रुका जा सकता है और अच्छा खाना खाया जा सकता है। पोचरम व मेडक में फॉरेस्ट रेस्ट हाउस और पीडब्लूडी रेस्ट हाउस भी हैं।
मंजीरा वन्यजीव अभयारण्य
मेडक जिले में ही एक और वन्यजीव अभयारण्य है- मंजीरा। हैदराबाद से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अभयारण्य संगारेड्डी शहर के नजदीक है औऱ विशाल मंजीरा नदी के किनारे स्थित है। पहले यह एक मगरमच्छ अभयारण्य हुआ करता था क्योंकि यहां मगर बड़ी संख्या में मिलते थे। लेकिन बाद में बाकी जानवरों के लिहाज से भी इसकी अहमियत को देखते हुए इसे वन्यजीव अभयारण्य बना दिया गया। इस अभयारण्य में मगरों की संख्या 400 से 600 के बीच बताई जाती है। यहां 75 से ज्यादा किस्म के पक्षी भी दिखाई देते हैं। इस लिहाज से यह जगह पक्षी प्रेमियों के लिए भी माकूल है।
मंजीरा नदी गोदावरी की ही सहायक नदी है। चूंकि यह मंजीरा जलाशय से निकलती है इसलिए इसका नाम मंजीरा नदी पड़ गया। यह जलाशय हैदराबाद व सिकंदराबाद शहरों को पानी की आपूर्ति करता है। मंजीरा में आप नाव से घूमकर आनंद ले सकते हैं। मंजीरा जलाशय में नौ छोटे द्वीप सरीखे हैं- बपनगड्डा, संगमअड्डा, पुट्टीगड्डा, करणमगड्डा, आदि। ये सभी द्वीप मंजीरा वन्यजीव अभयारण्य का ही हिस्सा हैं। पक्षियों को देखने के लिए ये बेहतरीन जगहें हैं। ये द्वीप परिंदों के लिए घोंसले बनाने के लिए भी उपयुक्त हैं। घने पेड़ होने के कारण बाकी जानवर भी यहां बसेरा बनाते हैं। मीठे पानी में रहने वाले कछुए भी यहां दिख जाते हैं।
पोचरम की ही तरह मंजीरा अभयारण्य को देखने के लिए भी मेडक शहर को बेस बनाया जा सकता है। सात किलोमीटर दूर स्थित संगारेड्डी शहर में भी कई होटल व रेस्तरां हैं। यहां के बारी आकर्षणों में पर्यावरण शिक्षा केंद्र है जिसमें संग्रहालय, लायब्रेरी व ऑडिटोरियम है। नवंबर से मार्च का वक्त जाने के लिए सबसे बढ़िया है।
पाखल वन्यजीव अभयारण्य
पाखल दरअसल एक ऐतिहासिक मानवनिर्मित झील है। बताया जाता है कि इस झील को ककातीय राजाओं ने 1213 ईस्वी में बनवाया था। कहा जाता है कि प्रतार रुद्र के शासनकाल में इसका निर्माण पूरा हुआ। इसी झील के किनारे आज 860 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला वन्य जीव अभायरण्य है। यह पठारीय इलाका छोटी पहाड़ियों से घिरा है। सब तरफ बांस व टीक के जंगल फैले हैं। मानसून के बाद इस इलाके की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। इसिलए नंबर से जून तक का समय यहां जाने के लिए बेहतरीन है। यहां हिरणों की तमाम किस्मों के अलावा तेंदुआ, भालू, जंगली सूअर व गौर आदि दिख जाते हैं। गाहे-बेगाहे बाघ भी यहां दिखते रहे हैं।
कहां व कैसे: यह अभयारण्य वारंगल से 60 किलोमीटर, नेक्कोंडा से 22 किलोमीटर, महबूबाबाद से 50किलोमीटर और हैदराबाद से 230 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह को देखने के लिए वारंगल को बेस बनाया जा सकता है। या फिर थोड़ा निकट सुलुरपेट में पीडब्लूडी रेस्ट हाउस में रुका जा सकता है। नरसमपेट में फॉरेस्ट रेस्ट हाउस है और पाखल में टूरिस्ट रेस्ट हाउस।
तेलंगाना में दो और वन्य अभयारण्य चर्चित हैं। एक है खम्मम जिले में 635 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला किन्नरसनी वन्यजीव अभयारण्य जो खूबसूरत किन्नरसनी झील के निकट स्थित है। इस झील में भी घने पेड़ों वाले द्वीप मौजूद हैं। यह अभयारण्य भद्राचलम से 25 किलोमीटर दूर है।
एक अन्य अभयारण्य है आदिलाबाद जिले में प्रनहिता नदी के किनारे स्थित प्रनहिता वन्यजीव अभयारण्य जो कि दरअसल एक कृष्ण मृग (ब्लैक बक) अभयारण्य है। यहां मंचेरियल होते हुए जाया जा सकता है।
Nice