Wednesday, December 25
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दारमा के दर पर पहली बर्फबारी का रोमांच!

बर्फ की पहली दस्तक से ढकी दारमा घाटी के पंचाचूली ट्रेक पर जाने की इच्छा तो कई सालों से थी पर यह चाह अब जाकर पिछले महीने नवंबर 2022 में पूरी हुई।

ऐसा नहीं है कि मैं पहली बार था पंचाचूली ट्रेक पर जा रहा था। इससे पहले 2002 और फिर 2015 में बला की खूबसूरत पंचाचूली चोटियों के दर्शन दारमा के दर से हो गए थे। पर इस बार यह पहला मौका था कि जाड़ों में नवम्बर के महीने में हम दारमा जा रहे थे।

हिमालय के इतना नजदीक जाने का आनंद ही कुछ और है। फोटोः जयमित्र सिंह बिष्ट

यह एक ऐसा सपना था जिसकी कल्पना मैं हमेशा से करता था और चाहता था, प्यारी पंचाचूली को, उसके बर्फ से ढके बुग्यालों, जम चुके पानी के धारों और रास्तों के साथ अपने कैमरे और दिल में कैद करना। हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ फोटो लेना ही मेरा उद्देश्य होता है पर लेंस के थ्रू आप जब हिमालय को निहारते हैं तो वह अनुभव आपको एक अलग ही अनुभूति देता है, एक सपने को जीने जैसा कुछ।

यह सपना अब हकीकत बन चुका है और हम अभी-अभी ताज़ा बर्फ से ढकी पंचाचूली को अपने दिल और कैमरों में उतार कर धारचूला पहुंच गए हैं। हिमालय के इतने पास जाना मेरे लिए हमेशा से एक दूसरी ज़िंदगी जीना और उसे दिल से महसूस करना रहा है। मजेदार बात यह है कि पंचाचूली के इतने करीब जाना और फ़िर दूर चले जाना सुकून और तकलीफ़ दोनों एक साथ देता है। हिमालय के पास जाकर दिल करता है कि पूरी ज़िंदगी इसके सामने बैठे-बैठे गुज़ार दी जाए, ऐसी अनुभूति शायद ही कहीं और हो सके।

यह मेरा तीसरा अनुभव था पंचाचूली की गोद में जाने का और हमेशा की तरह—जैसा सोचा था—पहले के दो अनुभवों से भी शानदार। यह इसलिए भी खास था कि हम बर्फ के मौसम में दारमा जा रहे थे जिसके बारे में सोच कर ही एक ट्रैकर और प्रकृति प्रेमी को अलग ही किस्म का रोमांच होता है।

दारमा की इस ट्रिप की शुरुआत यहां आने से सिर्फ एक दिन पहले हुई जब अभिन्न मित्र सिंधु गंगोला ने इस यात्रा का प्रस्ताव रखा और कहा, ‘दारमा चलते हैं!’ मैं तुरंत, बगैर कुछ और सोचे तैयार हो गया और अपना रकसैक और कैमरा—जो वैसे तो हमेशा तैयार ही रहता है—पैक कर लिया। प्लान बनने के दूसरे ही दिन- मंगलवार 22 नवम्बर 2022 को हम दोनों अपने दो और दोस्तों के साथ निकल पड़े अल्मोड़ा से दारमा के दर के लिए।

पहली शाम को धारचूला पहुंच गए और अगले दिन सुबह धारचूला से निकल कर शाम तक दुग्तु गांव और फिर वहां से पैदल चल कर अपने अगले दो दिन के ठिकाने पंचाचूली बेस कैंप हट्स पर पहुंच गए, जिनका जिम्मा दुग्तु गांव के गणेश दुग्ताल पिछले कई सालों से संभाल रहें हैं और पर्यटकों का बहुत मजबूती से साथ दे रहे हैं। वह जिस तरह की सुविधा अपने पंचाचूली बेस कैंप में दे रहें हैं, शायद ही आप उससे ज्यादा की उम्मीद कर पाएं।

गणेश दुग्ताल उतराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने के लिए जिस मेहनत से काम कर रहे हैं, उससे लगता है कि हम सही दिशा में जा रहें हैं। गणेश दुग्ताल और उनकी पूरी टीम को, और उनके जैसे तमाम लोगों को प्रोत्साहन देने और सम्मानित किए जाने की आवश्यकता है ताकि पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके।

पंचाचूली बेस कैंप। फोटोः जयमित्र सिंह बिष्ट

वैसे दारमा घाटी में फाइबर हट्स के निर्माण और होम स्टे की शुरुआत करवाने का श्रेय तत्कालीन कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) एमडी धीराज सिंह गर्बयाल को जाता है जिनके अथक प्रयासों और पर्यटन को बढ़ावा देने की जिजीविषा से 2015 में दारमा और व्यास घाटियों सहित अन्य कई जगहों पर पर्यटन और होम स्टे की एक नई शुरुआत हो सकी।

अब आप अपनी निजी गाड़ी से अथवा धारचूला से जीप लेकर पंचाचूली की यात्रा बेहद कम समय में कर सकते हैं। आज जहां आप सिर्फ एक दिन में पंचाचूली के बेस कैंप तक पहुंच सकते हैं, पहले उसमें धारचूला से कम से कम 3 दिन का समय लगता था। 2002 में जब मैं पहली बार पंचाचूली आया था तब दुग्तु गांव तक रोड नहीं पहुंची थी और इस ट्रेक को करने के आपको दुर्गम रास्तों और परिस्थितियों से गुजरना पड़ता था। साल 2002 में हम सोबला से पैदल दर, नागलिंग, बालिंग होते हुए तीन दिन की ट्रेकिंग के बाद दुग्तु पहुंचे थे। हालांकि, कोई शक नहीं कि उस पैदल सफर का अपना अलग ही आकर्षण था। सुंदर जंगलों के बीच से होते हुए धौली गंगा के किनारे-किनारे पैदल चलने का आनंद ही कुछ और था।

अब उसकी जगह रोड की यात्रा ने ले ली है। इस सड़क यात्रा को अब रोमांच के शौकीन लोग अपनी गाड़ियों और मोटरसाइकिलों से पूरा कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह यात्रा एडवेंचर के शौकीन बाइकर्स और ऑफरोडर्स की फेवरेट डेस्टिनेशन बनने जा रही है, क्योंकि इसमें आप एलिवेशन गेन बहुत ज्यादा करते हैं।

धारचूला समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई पर है, वहीं दुग्तु गांव 3200 मीटर पर स्थित है। यानी तकरीबन 2300 मीटर या करीब 7000 फीट से ज्यादा का एलिवेशन गेन धारचूला से दुग्तु जाने में एक दिन में हो जाता है। और, अगर आप हमारी तरह गणेश भाई के पंचाचूली बेस कैंप में जाकर रहें जो 3410 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तो आप एक दिन में करीब 8500 फीट का एलिवेशन गेन करेंगे, जो अपने आप में काफ़ी ज्यादा है और रोमांचकारी भी।

दुग्तु गांव से शुरू होने वाला पंचाचूली ग्लेशियर ट्रेक अपने आप में अदभुत है। चलते हुए हर पल पंचाचूली का पांच चोटियों का विशाल दृश्य आपके सामने रहता है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे सिनेमा के पर्दे पर कोई फिल्म सी चल रही हो। बैकग्राउंड में पंचाचूली कभी बादलों के साथ तो कभी सूर्य की किरणों के साथ अपना रूप बदलती रहती है और फोरग्राउंड में बर्फ से ढके बुग्यालों, भोज और बुरांश के पेड़ों और कहीं बर्फ से जमे तालाबों और झरनों के साथ आप पंचाचूली का एक अनूठा अनुभव करते हैं।

दारमा घाटी का दांतू गांव। फोटोः जयमित्र सिंह बिष्ट

पंचाचूली का इस बार का यह विंटर ट्रेक इस मायने में भी ज्यादा रोमांचकारी था कि दारमा में अब तक तीन बार बर्फ पड़ चुकी थी जिसकी वजह से पूरा लैंडस्कैप ही बदल गया था। फोटोग्राफी के लिए यह एकदम परफेक्ट टाइम रहा। रात को कैंप से हमने पंचाचूली के ठीक ऊपर हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) के दीदार भी किए और उसे कैमरे में क़ैद भी।

माइग्रेशन घाटी होने के वजह से दारमा घाटी के अधिकतर गांव साल में छह महीने अपने-अपने गांवों जिनमें दुग्तु, दांतू, सोन, फीलम, गो, ढाकर, सीपू, बेदांग, बालिंग, नागलिंग और अन्य शामिल हैं— में  रहते हैं और ठंड की शुरुआत के साथ निचली घाटियों में प्रवास के लिए चले जाते हैं। फ़िर गर्मियों की शुरुआत और बर्फ पिघलने के साथ एक बार फ़िर इन गांवों को लौट आते हैं।

बेस कैंप तक ट्रेक के बाद हम वापस दुग्तु गांव आ गए और फिर दांतु गांव की ओर निकल गए। दुग्तु और दांतु के बीच में न्यौला यांगती जो कि पंचाचूली गलेशियर से निकलने वाली नदी है के साथ भी पंचाचूली का अदभुत दृश्य मिलता है। हम दांतू से पहले पुल पर रुक गए और नीचे नदी के पास से काफी देर तक पंचाचूली के फोटो लेते रहे। इस जगह पर नदी के साथ पंचाचूली पर्वतों का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है।

पंचाचूली चोटियों की तलहटी तक ड्राइव का रोमांच। फोटोः जयमित्र सिंह बिष्ट

उसके बाद हम गाड़ी से ही दांतु और फ़िर उसके आगे गो और ढाकर गांव तक गए, ढाकर गांव तक पहुंचते पहुंचते आपको तिब्बती पठार का सा आभास होने लगता है। लैंडस्कैप काफी बदलने लगता है क्योंकि यह जगह तिब्बत के काफी पास है। हालांकि इससे आगे जाने के लिए परमिशन की आवश्यकता है, ऐसा वहां पर तैनात आईटीबीपी के जवानों ने हमें बताया। अगर आगे तक पर्यटकों के लिए इस मार्ग को खोल दिया जाए तो यह एक शानदार ऑफबीट डेस्टिनेशन बन सकता है, खास तौर पर साइकलिस्ट, बाइकर्स और ऑफरोडर्स के लिए, क्योंकि यहां का लैंडस्कैप आपको अलग तरह से आकर्षित करता है। लगभग लेह-लद्दाख और स्पीति घाटी की ही तरह, जो पिछले 10 सालों में हमारे देश के सबसे बड़े एडवेंचर डेस्टिनेशन की तरह उभरे हैं।

उत्तराखंड की इस दारमा घाटी और इसके साथ लगी हुई व्यास, जोहार और रालम घाटी भी कुछ ऐसी ही उम्मीद जगाती है कि आने वाले सालों में ये घाटियां भी हमारी तरह और प्रकृति प्रेमियों और एडवेंचर के शौकीन लोगों को अपने दर पर बुलाएंगी।

फिलहाल आप बर्फ से ढकी पंचाचूली और दारमा घाटी की इस यात्रा के दौरान ली तस्वीरों का आनंद लीजिए।

जयमित्र सिंह बिष्ट अल्मोड़ा में रहते हैं। वह रोमांचक पर्यटन के शौकीन हैं और पहाड़ के काफी जाने-माने फोटोग्राफर हैं। उनसे jaimitra@gmail.com और HimalayanZephyr@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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