जब भोपाल से चले थे तभी से इस बात का रोमांच था कि अबकी बार कश्मीर में गुरेज घाटी जाएंगे जिसे ब्रिटिश लेखक वाल्टर लारेंस ने अपनी किताब वेली आफ कश्मीर में कश्मीर घाटी का सर्वाधिक सुंदर हिस्सा कहा था। यूं तो पूरा कश्मीर ही धरती का खूबसूरत टुकडा है मगर जब हर विषय के गहरे जानकार हमारे मेजबान आईपीएस अफसर राजाबाबू सिंह जी ने गुरेज की तारीफ के कसीदे पढ़े तो हमसे रहा नहीं गया तो हमने दो दिन में श्रीनगर के बाग बगीचे झीलों की तफरीह जल्दी जल्दी की और निकल पड़े गुरेज वेली जो श्रीनगर से 123 किलोमीटर दूर है।
श्रीनगर शहर से बाहर निकलते ही दूर दिखने वाले पहाड़ करीब आने लगते हैं। रास्ते के दोनों तरफ हरे भरे खेतों के बीच चलते हुये सफर आसान लगने लगता है। रास्ते में कश्मीर के कस्बे, वहां लगी फल और बेकरी की छोटी छोटी दुकानें, फिरौन पहने उंचे खूबसूरत लोग, यूनिफार्म पहनकर स्कूल जाते बच्चे और सड़क किनारे बहने वाली नदी को देखते देखते सफर गुजरता जाता है।
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फिर बांदीपोरा के बाद ही दिखने लगती है वूलर लेक जिसे एशिया में ताजे पानी की सबसे बडी झील कहा जाता है। हमारे ड्राइवर शब्बीर को दुख है कि सरकार ने इतनी खूबसूरत झील की बेहतरी के लिये कुछ नहीं किया वरना यहां खूब पर्यटक आते। वैसे पर्यटकों का इस तरफ आना आसान भी नहीं है थोड़ी थोड़ी दूर पर बने सेना के चैक पोस्ट से आने जाने वालों पर नजर रखी जाती है क्योंकि ये रास्ता ही लाइन आफ कंट्रोल को जाता है। कहीं कहीं तो सैलानियों को रोक कर नाम पते भी नोट कराये जाते हैं।
यहां के लंबे घुमावदार रास्ते बेहद खूबसूरत हैं। जहां इनमें एक तरफ ढलान पर लगे चीड के लंबे लंबे हरे पेड हैं तो दूसरी तरफ उंचे उंचे पहाड़, जिनमें से कहीं कहीं साफ पानी रिसता रहता है। आपका मन करे तो गाडी रोक कर पानी पीकर तसल्ली कर लो कि ये पानी आपकी गाड़ी में रखे बोतल बंद मिनरल वाटर से कई गुना अच्छा है।
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चलते चलते ही आपको अहसास होने लगता है कि ये रास्ता एक बड़ी पहाड़ी चढ़ रहा है और फिर आता है इस पहाड़ी का पठार यानी कि राजदान टॉप, जो समुद्र सतह से करीब 12 हजार फीट ऊपर होता है। रास्ते भर की रास्ते की थकान इस टाप पर बने हरियाले मैदान और उसके आसपास टहलते बादलों को देखकर दूर हो जाती है। दौड़िये भागिये या फिर लुढ़किये इस टॉप पर क्योंकि यहां आकर आपको अहसास होता है कि आप टाप ऑफ वर्ल्ड पर हो।
राजदान टाप से उतरते उतरते गुरेज वेली में प्रवेश होने लगता है। थोडी देर बाद ही किशनगंगा नदी रास्ते में आपके साथ साथ चलने लगती है। एक तरफ उंचा पहाड़ तो दूसरी तरफ नीले साफ पानी वाली किशनगंगा। ये किशनगंगा गुरेज के अंदर गाडइ की तरह आपको ले जाती है। आगे जाकर इस पर बांध भी बना है मगर ये नदी पहाड़ के रास्ते आपको पूरे वक्त मोबाइल कैमरे से फोटोग्राफी करने को मजबूर कर देते हैं। कहीं नदी पहाड़ के पैरों को धोते दिखती है तो कहीं पहाड़ नदी में डूबे दिखायी देते हैं। नीले रंग वाली नदी जब हरे पेड़ों से लदे पहाड़ों के बीच चलती है और बीच बीच में जब सफेद नीला आसमान चमक उठता है तो लगता है ये नजारे कैसे और कहां कैद कर लें।
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गुरेज वैली में पंद्रह गांव है जिनमें करीब तीस से पैंतीस हजार लोग रहते हैं। वेली का प्रशासनिक मुख्यालय डावर है जहां पर सरकारी दफ्तरों के अलावा स्कूल कॉलेज और होटल हैं। छोटा सा बाजार और सेना से संचालित लाग हट कैफे भी इस गांव में है। गुरेज वैली के उत्तरी ओर लाइन आफ कंट्रोल है इसलिये यहां सेना का बड़ा बंदोबस्त तो है मगर गांव के लोगों से भरपूर दोस्ताना संबंधों के साथ। पाक सीमा से होने वाली गोलीबारी और साल में कड़ाके की ठंड के दिनों में सेना ही यहां की आबादी की मददगार रहती है।
वैसे तो डावर से कहीं जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि तीन तरफ पहाड़ों से घिरे इस गांव में एक किनारे किशनगंगा नदी निर्मल धारा के साथ हरे भरे मैदानों में बहती है। जहां गांव की आबादी खत्म होती है उन मैदानो में नदी किनारे रंग बिरंगे टैंट लगे हैं ट्रैकिंग के लिये आने वालों को। इन टैंटों में बुकिंग कर रुका जा सकता है ये अहसास करने कि जब आप सोने जाते हो तो नदी कैसे लोरी सुनाती है।
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डावर से थोडे आगे निकलते ही दिखती है हब्बा खातून पहाड़ी। पिरामिड की आकार की ये पहाड़ी कश्मीरी कवयित्री हब्बा खातून की याद कराती है। सोलहवीं सदी की ये सुंदर कवयित्री इसी घाटी की रहने वाली थी। एक तरफ पहाड़ी और उसके साये में बह रही नदी ओर उसमें उभरे पत्थर बरबस मजबूर कर देते हैं उन पर बैठ कर सुकून के पल गुजारने को।
यहीं हमें मिले बशीर डार जो अपनी भेड़ चराने आये थे। वो हमको यहां से कुछ मीटर दूरी पर बने पाकिस्तान के बंकर दिखाते हैं। एमएससी पढ़े बशीर ने सरकारी नौकरियों के लिए इम्तहान दिये है उम्मीद करते हैं जल्दी नौकरी मिल जाएगी तो घर बसा लेंगे। कहने लगे, ‘चलिये पास में हमारा घर है आपको कहवा पिलायेंगे।’ मगर हमारा मन उनकी बातों में कम वहां बिखरे प्राकृतिक नजारे देखने में लगा था। वाल्टर लारेंस ने गुरेज घाटी को अत्यधिक नयनाभिराम यूं ही नहीं लिखा है। यहां सारे लैंडस्केप प्रकृति की बनाई नैसर्गिक पेंटिग लगते हैं।
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पर जिंदगी यहां कठिन है साल के छह महीने जब कडाके की सर्दी होती है तो यहां छह से सात फुट बर्फ पड़ती है। उस दौरान कुछ घरों को छोड़कर अधिकतर लोग बांदीपोरा या फिर श्रीनगर चले जाते हैं। पहले गुरेज जाना आसान नहीं था मगर अब सेना ने पाबंदी कम कर पर्यटकों को आने की सुविधा दी है इसलिये कश्मीर जाएं तो गुरेज वेली जरूर घूम कर आए क्योंकि ये जगह कश्मीर की तमाम बेहद सुंदर जगहों में अव्वल है।
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ब्रजेश राजपूत वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं और इन दिनों भोपाल में एबीपी न्यूज के लिए कार्य कर रहे हैं। पत्रकारिता में विभिन्न मीडिया संस्थानों में करीब तीस साल का अनुभव। मध्य प्रदेश की राजनीति पर अच्छी पकड़। अभी तक पांच किताबें प्रकाशित। घुमक्कड़ी का शौक।
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