होगेनक्कल तमिलनाडु का एक स्तब्ध कर देने वाला सौंदर्यबिंदु है। दूर से ही इसकी गर्जना हमें अपनी ओर बुलाती है। पथरीले तटों के मध्य बहती हुई कावेरी नदी की यह गर्जना संपूर्ण होगेनक्कल में व्याप्त है। यद्यपि यह क्षेत्र सामान्यतया सूखा और पथरीला है पर जब से कर्नाटक सरकार ने कावेरी नदी के द्वार तमिलनाडु के लिए खोल दिए हैं और वर्षा का वरदहस्त इस क्षेत्र पर आया है कावेरी नदी और होगेनक्कल झरने के विहंगम रूप ने इसे एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बना दिया है। नदी बिलिगुंडुला से होकर तमिलनाडु में प्रवेश करती है और होगेनक्कल में जल प्रपात का रूप ले लेती है।
यहां कावेरी नदी समतल भूमि से होकर बहती है और इस क्षेत्र को हरियाली प्रदान करती है। पत्थरों से टकराकर बहते हुए नदी का दृश्य रोमांचक है। यहां नदी एक जंगल से पूर्ण घाटी से होकर बहती है। कहीं पर यह गहरी है तो कहीं पर उथली। उथले स्थानों पर पेड़ और झाडिय़ां हैं। लोग पैदल चलकर पार कर लेते हैं और नहाने-धोने का काम करते है। पर गहरे स्थान पर यह खतरनाक है क्योंकि प्रवाह अत्यंत तीव्र है जो कई जगह छोटे झरने का रूप भी ले लेता है और होगेनक्कल में विशाल जलप्रपात का रूप। कहा जाता है कि होगेनक्कल के पानी में औषधीय गुण है। लोग मानते है कि होगेनक्कल कावेरी नदी के किनारे बसा हुआ एक ऐसा स्थल है जहां अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की जा सकती है। यहां पर दो घाट और नदी के टापुनुमा पत्थरों को जोड़ते हुए पक्के रास्ते बने हुए हैं जहां मालिश करने वाले बैठे होते हैं। वे मानव शरीर में मालिश के चौदह बिंदुओं के बारे में भी बताते हैं। मालिश के बाद उन्हें कावेरी नदी की स्वास्थ्यवर्द्धक जलधारा में स्नान करना होता है। यहां पर हरे-भरे पहाड़, कावेरी नदी का विशाल रूप और अट्टहास करते हुए झरने का विहंगम दृश्य पर्यटकों को बरबस आकर्षित करते हैं। रोजाना यहां सैकड़ों लोग घूमने आते हैं। बारिश से पहले पानी का प्रवाह कम होता है लेकिन मानसून शुरू हो जाने के बाद नदी उफनने लगती है और झरने राक्षसी रूप धारण कर लेते है। जुलाई-अगस्त में यह स्थान ज्यादा आकर्षक हो जाता है।
हम लोग ऐसे ही खतरनाक मौसम में जुलाई के महीने में होगेनक्कल घूमने गए। पहले से ही हमने टेलीफोन द्वारा तमिलनाडु पर्यटन केंद्र के यात्री निवास में तीन दिन के लिए कमरा बुक करा लिया था। सामान्यता बंगलौर से लोग यहां सवेरे आते हैं और दिन भर घूमकर शाम को वापस चले जाते हैं। धर्मपुरी से हम लोग शाम को होगेनक्कल पहुंचे। बसस्टैंड से थोड़ी दूर पर तमिलनाडु यात्री निवास है। बस से उतरते ही गर्जना की ध्वनि ने आकर्षित किया तो पता चला यह नदी की ही गर्जना है। यात्री निवास में पहले से बुक किए हुए कमरे में हम लोगों ने थोड़ी देर विश्राम किया और फिर तैयार होकर नदी की ओर चल दिए।
सड़क की दूसरी ओर ही नदी उन्मुक्त होकर बह रही थी। आगे बढ़ते हुए हम उस स्थान पर पहुंचे जहां नदी ने विस्तृत रूप धारण कर लिया था। दाईं ओर सामने एक पुल दिखा जिसके ऊपर से होकर नदी का जल स्रोत तेजी से बह रहा था। लोग नदी के उस ओर से पुल पर पैदल चलकर आ रहे थे। परंतु पुल के सिरे पर खड़े पुलिस वाले इधर के लोगों को पुल पर जाने से रोक रहे थे। कुछ देर बाद जब पुलिस के लोग चले गए तो इधर के सभी पर्यटक पुल पर जाने के लिए स्वतंत्र हो गए। तेज जल प्रवाह पर से नंगे पैर ही चलना पड़ा। कुछ भय के कारण हम लोग हाथ पकड़े रहे।
इस पुल को पार करने के बाद हैंगिग ब्रिज के नाम से विख्यात पुल था- दोनों को पार करके ही नदी के उस पार पहुंचा जा सकता था। हैंगिग ब्रिज के लिए सीढिय़ां थी पर उसके मेन गेट पर ताला लगा था और पुलिस की ड्ïयूटी थी। नदी के उफान के कारण पुल बंद कर दिया गया था। पुल के नीचे गहरी नदी खतरनाक थी। अत: हम लोग दूर से ही उसे देखकर खिन्न मन से वापस हो लिए। सीधे आगे बढऩे पर सामने दो घाट दिखाई दिए। घाट से एक ओर नदी समतल पर होने के कारण वहां गांव के लोगों की भीड़ थी। खाना-पीना, बर्तन धोना आदि काम चल रहे थे पर सामने के घाट से उतरने पर नदी बिल्कुल सूख चुकी थी। एक पतली सी जल धारा बह रही थी जिसे पैदल पार करने में आनंद आया।
सामने विशाल और ऊंचे पर्वत इस क्षेत्र को एक घाटी का अहसास दिला रहे थे जहां पहले कभी कावेरी नदी उन्मुक्त बहती होगी। अंधेरा घिरने लगा था। हम लोग होटल वापस आ गए। आते-जाते में हम लोगों ने एक विशेष बात देखी। सड़क के दोनों ओर मछली की दुकानें। विभिन्न प्रकार की मछलियां की तली हुई डिश और संपूर्ण वातावरण में मछलियों की गंध। यहां के लोगों का मुख्य भोजन है मछली और भात या इडली। यहां के निवासियों का मुख्य व्यवसाय है मछलियां पकडऩा और बेचना। मछलियां 50-100 ग्राम वजन से लेकर 10-20 किलो के वजन तक की होती हैं। मछलियां बेचने के लिए यहां सरकार ने पक्की दुकानें बना रखी है। बंगलौर से आए एक परिवार ने 10 किलो वजन की एक बड़ी मछली खरीदी थी जिसे दोनों हाथों से पकड़कर सब लोग फोटो खिंचवाते रहे।
वापसी में हम लोगों ने कुछ लोगों को विशाल कटोरानुमा नाव कंधे पर लादकर ले जाते देखा। हमें उन लोगों पर दया आई कि इतनी बड़ी नाव उन्हें लादनी पड़ रही है। पूछने पर पता चला कि ये ताड़ की पत्तियों से बने और हल्के नाव हैं जिन्हें ‘परिसल’ कहते हैं। ये बासकेट की तरह बुने हुए होते है जो हल्के परंतु मजबूत होते हैं। हजारों वर्षों से यहां पर इस प्रकार के नावों का प्रचलन है। आजकल इन पर प्लास्टिक का कवर भी लगा दिया जाता है जिस पर तारकोल की पर्त लगी होती है। अगले दिन हम लोगों ने नाव से भ्रमण की योजना बना ली।
होगेनक्कल घूमने का मुख्य अंग है कावेरी नदी पर इस नाव से भ्रमण। नाव शांत नदी से यात्रा प्रारंभ कर अशांत जलधारा की ओर जाती है और फिर गरजते हुए जल प्रपात की ओर। हम लोगों ने सवेरे घाट से उतरकर शांत जलधारा को पैदल ही पार किया फिर उस बालुका भय तट पर पहुंचे जहां मांझी लोग नाव लेकर प्रतीक्षा कर रहे थे। एक नाव में पांच से अधिक लोग नहीं बैठते है। नाव तेजी से गंभीरतम जलधारा की ओर बह चली। यहां सबसे पहले हमें हैगिंग ब्रिज का सुंदर दृश्य दिखाई पड़ा, गहरी परंतु सकरी नदी के दोनों ओर बड़े-बड़े शिलाखंड और जंगल हैं। नाव हमें दूसरी ही दिशा में ले चली। वहां नदी की लंबाई-चौड़ाई का कोई अंदाज ही नहीं लग पा रहा था। थोड़ी देर बाद मांझी ने हमें किनारे पर लाकर छोड़ दिया। अब बारी थी पथरीले जंगल पर पैदल चलने की।
नाव को कंधे पर लाद मांझी भी तेजी से हमारे साथ हो लिए। नदी के किनारे-किनारे चलते हुए हमें छोटे-छोटे झरने भी मिले जहां हमने बिना किसी भय के नहाने का आनंद लिया। यहां भी जल प्रवाह शांत था। लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद मांझी ने नाव को फिर पानी में डाल दिया। अब हम लोग नाव पर बैठ गए और इस बार हमें लगा कि हम किसी नदी नहीं वरन एक विशाल झील पर बोटिंग कर रहे हैं। चारों ओर ऊंचे हरियाली से लदे पहाड़। जंगलों से घिरे पहाड़ों के ऊपर चटक नीला आसमान, तैरते बादल और नीचे अथाह जलराशि पर तैरती हमारी नाव। हम मानो किसी स्वप्नलोक में पहुंच गए थे। अब फिर वहीं प्रक्रिया दोहराई गई। हम लोगों को फिर से कुछ देर पथरीली जंगली झाडिय़ों के बीच से पैदल चलना पड़ा। इसके बाद फिर जब हमलोग नाव पर बैठे तो नदी में तेज प्रवाह था। नाव तेजी से आगे बढ़ी। बोटिंग का आनंद बेजोड़ था।
पर थोड़ी दूर पर छोटे-बड़े पत्थर थे और नाव का आगे बढऩा मुश्किल था। एक बड़े पत्थर पर नाव को रोक दिया गया, जहां कई और नावें थीं। सभी सवारियां पत्थरों पर इधर-उधर खड़ी थीं। यहां नाव पर चलती-फिरती दुकानें भी थी जहां से कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, फ्राइड फिश कुछ भी खरीदा जा सकता था। यहां काफी चहल-पहल थी और सामने अपने अट्टहास से हमारे बौनेपन का मजाक उड़ाता प्रचण्ड व विस्मयकारी जलप्रपात होगेनक्कल था। उन्मादी जलवेग को और पास से देखने का आनंद लेने के लिए माझी हमें सहारा देकर दूसरे पास के पत्थरों पर ले गया। हमें बैठने के लिए सुविधाजनक जगह भी मिल गई। यह एक ऐसा आश्चर्यजनक अनुभव था जिसे भुलाया नहीं जा सकता। काफी देर तक हम इस अद्भुत आनंद में डूबे रहे जब तक कि मांझी ने हमें नहीं बुलाया।
हमारी वापसी का मार्ग दूसरा था। जल प्रपात के दूसरी ओर गोलाकार मार्ग से घूमते हुए जब हम फिर से नदी की जलधारा को पार करने लगे तो कावेरी नदी का चंचल रूप दिखाई पड़ा। अशांत लहरों के कारण नाव हिचकोले ले रही थी, पानी की बौछारें डगमगाती नाव के भीतर तक बार-बार आ रही थीं। नाव के पलटने और जलमग्न होने की आशंका से हम डर भी रहे थे। हम जलप्रपात के दूसरी ओर पहुंच चुके थे पर पानी का प्रवाह प्रपात की ओर था। कुशल मांझी अपनी पूरी ताकत से नाव को विपरीत प्रवाह की ओर ले जा रहा था। बीच-बीच में वह अपने हाथ ढीले छोड़कर हमें डरा भी देता था। तब नाव पर सवार हम सभी डर से चीख पड़ते। पर थोड़ी ही देर में हमें पता चला कि अब हम तट की ओर जा रहे हैं। अचानक मांझी ने नाव को चक्राकार घूमाना शुरू कर दिया। यह एक रोमांचकारी अनुभव था। धीरे-धीरे उसने हमें तट पर लाकर उतार दिया।
दोपहर हो चुकी थी। भोजन और विश्राम के बाद हम फिर से चल दिए कि शायद हैंगिग ब्रिज खुला हो। इस बार भाग्य से मुख्य द्वार से हमें सीढिय़ां चढऩे की अनुमति दे दी गई। काफी लोग ऊपर खड़े थे और आसपास का नजारा ले रहे थे परंतु ब्रिज दोनों ओर से बंद था। लोहे के चैनल पर ताला लगा हुआ था। फिर भी ऊपर खड़े होकर दोनों ओर नदी के दृश्य को निहारना भी आनंददायक था। बड़ी-बड़ी शिलाओं से टकराकर जल प्रवाह तेजी से बह रहा था। हमने देखा कि मछुआरे नदी पर स्थित ऊंचे शिलाखंडों पर चढ़ जाते हैं और अपनी जान खतरे में डालकर वे काफी मछलियां पकड़ लेते थे जो उनकी एक दिन की जीविका के लिए पर्याप्त था। यहां कुछ देर रुकने के बाद हम फिर उस घाट पर गए जहां नदी सूख चुकी थी। यहां खड़े ऊंचे पहाड़ों को देखकर रोमांच हो आता था। हम अंधेरा होने पर ही वापस चले।
अगले दिन दोपहर बारह बजे वापसी की बस थी। हमलोग सबेरे नाश्ता करने के बाद फिर से चल दिए कावेरी नदी की सुंदरता को निहारने के लिए जिसे चाहे जितनी बार देखो इच्छा पूरी नहीं होती थी। हम उस घाट पर जाकर पानी में पैर डाल कर काफी देर बैठे रहे जहां लोग नहाते और कपड़े धोते हैं। बहता हुआ पानी साफ था। कुछ फोटो लेकर वापसी की राह पकड़ी। बस में बैठकर खेत, गांव, जंगल निहारते रहे। ड्राइवर के पास बहुत सारे छोटे-छोटे केले रखे थे। अचानक ड्राइवर ने बस रोकी तो झुंड के झुंड बंदर आ गए। ड्राइवर ने सारे केले उन्हें बांट दिए। यहां बंदरों को केले खिलाने की परंपरा है। हम प्रकृति की सुरम्यता और भारतीय संस्कृति की विविधता पर मुग्ध थे, हमारी बस बंगलौर की ओर बढ़ती जा रही थी और हमारे दिल-दिमाग में होगेनक्कल की याद अविस्मरणीय बन चुकी थी।
खास बातें
- होगेनक्कल बंगलौर से लगभग 150 किलोमीटर, सलेम से 114 और धर्मपुरी से लगभग 45 किमी. की दूरी पर स्थित है। वैसे यह जगह कर्नाटक व तमिलनाडु की सीमा पर है। होगेनक्कल जाने के लिए बंगलौर, सलेम व धर्मपुरी से बसें व टैक्सियां आसानी से उपलब्ध हैं। सबसे निकटवर्ती हवाईअड्डा बंगलौर में है। सलेम व बंगलौर के रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख रेलमार्गों से जुड़े हैं।
- आप होगेनक्कल या धर्मपुरी, दोनों स्थानों पर रुक सकते हैं। होगेनक्कल में तमिलनाडु टूरिज्म के होटल के अलावा कुछ अन्य होटल व लॉज हैं। बंगलौर व धर्मपुरी में कई ट्रैवल ऑपरेटर हैं जो होगेनक्कल की यात्रा आयोजित करते हैं।
- यहां पूरे साल जाया जा सकता है। बस यह ध्यान रखें कि मानसून के महीनों में पानी का प्रवाह ज्यादा होता है। थोड़ी मुश्किल भी हो सकती है लेकिन फिर उसका रोमांच भी ज्यादा है।
- मौसम यहां हमेशा या तो गरम होगा या खुशनुमा। सामान्य सूती कपड़े यहां के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन ध्यान रखें कि जब आप गोलाकार नाव में बैठकर प्रपात के नजदीक जाएंगे तो पानी के छींटों से आप भीग जाएंगे। इसलिए अपने पास की सारी चीजें- मोबाइल, पर्स, पैसे, कागजात वगैरह को किसी प्लास्टिक में रखें।
- उत्तर भारत से जाने वालों को स्थानीय भाषा समझने में थोड़ी-बहुत दिक्कत आ सकती है लेकिन इससे आपके घूमने के आनंद में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हां, नाववालों से दरों को लेकर थोड़ी सौदबाजी जरूर करें।
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