केरल जाने वाले ज्यादातर सैलानियों की वहां घूमने को लेकर पसंद बहुत सीमित होती है। केरल को लेकर हम सबकी कुछ खास धारणाएं होती हैं। ज्यादातर लोग वहां बैकवाटर्स के लिए जाते हैं। कुछ लोग गोवा की सी मस्ती ढूंढने के लिए कोवलम सरीखे बीचों पर चले जाते हैं। कुछ अन्य मानसून में वहां की प्रसिद्ध नौका दौड़ देखने पहुंच जाते हैं। जो लोग कुछ अलग चाहते हैं वे मुन्नार जैसी जगहों पर चाय बागानों को देखने जाते हैं और जो रोमांच चाहते हैं वे पेरियार जैसी वाइल्ड लाइफ सैं1चुअरी में चले जाते हैं। खाली इतने भर से भी देखा जाए तो देश के इस दक्षिणी राज्य में सैलानियों के लिए खासी विविधता है। लेकिन केरल में ऐसी कई जगहें और भी हैं, कई चीजें करने को भी हैं जिन्हें आम तौर पर हम केरल से या तो जोड़ते नहीं हैं या फिर वे हैं तो खालिस केरल की, लेकिन उनके बारे में लोगों को पता नहीं है। इस बार हम नजर डाल रहे हैं ऐसी ही कुछ बातों पर।
अरनमुला कन्नादि
एक कला को उसके मूल गांव का नाम मिला है। केरल के अरनामुला गांव में सदियों से बनने वाले पारंपरिक आइने इस नाम से पुकारे जाते हैं। अरनामुला गांव केरल की कई परंपराओं से जुड़ा हुआ है जिनमें एक वहां की नौका दौड़ भी है। अरनामुला कन्नादि वहीं की देन है। इसकी उत्पत्ति को अरनामुला पार्थसारथी मंदिर से भी जुड़ा माना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर व शिल्प व कला में निपुण आठ परिवारों को सदियों पहले इन आईनों पर काम करने के लिए तिरुनवेल्ली से अरनामुला बुलाया गया था। तब से उन्हीं परिवारों से जुड़े लोग और उनके वंशज इन्हें बनाते रहे हैं।
वहां के शिल्पकार धातु (कांस से मिश्रित) के ये हैंडलयुक्त आईने हमेशा से बनाते रहे हैं। उस मिश्रण में वे कौनसी धातु का इस्तेमाल करते हैं, यह राज की बात है, जो उन शिल्पकारों के परिवारों तक सीमित है। हालांकि धातु-विज्ञानी इसे पीतल व टिन का मिश्रण बताते हैं। इसे बनाने की कला भी सामान्य आईनों से उलट है। इसकी सतह को कई दिनों तक घिसा जाता है ताकि वह प्रतिबिंब दिखा सके। केरल की संस्कृति में इसे उन आठ वस्तुओं में से एक माना जाता है जो किसी नवविवाहिता के सामान का हिस्सा होते हैं। इस तरह ये धातु के आईने केरल की संस्कृति व धातु-विज्ञान, दोनों का आईना हैं। इन्हें अच्छी किस्मत का प्रतीक भी माना जाता है। लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में 45 सेंटीमीटर का अरनामुला कन्नादि धातु आईना है।
मंगला हिल्स पर कैंपफायर
कैंपफायर को हम अक्सर उत्तर के ठंडे इलाकों से जोड़कर देखते हैं। लेकिन केरल में भी ट्रैकिंग व कैंपफायर के कई मौके हैं। खास तौर पर पेरियार रिजर्व के पहाड़ी इलाकों में। थे1काडी की मंगला हिल्स पर मंगलादेवी का मंदिर है जो घने जंगलों में 1337 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कहा जाता है कि तकरीबन 2000 साल पुराना यह मंदिर साल में केवल एक दिन चैत्र की पूर्णिमा को दर्शनों के लिए खुलता है।
पेरियार रिजर्व के ठीक मध्य में स्थित इस मंदिर के लिए 12 किलोमीटर (एक तरफ से) लंबा ट्रैक है जिसके लिए थेक्काडी के वाइल्डलाइफ वार्डन से इजाजत लेनी होती है। सैलानी इजाजत लेकर इस रिजर्व के भीतर जंगल की गश्त का हिस्सा हो सकते हैं और कैंपफायर व कैंपिंग कर सकते हैं। रात के ट्रैक का यह कार्यक्रम जंगल के संरक्षण और उसे समझने के मकसद से होता है। यह ट्रैकिंग तीन-तीन घंटे की अवधि के लिए होती है- शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक, रात 10 बजे से रात 1 बजे तक और रात 1 बजे से तड़के 4 बजे तक। इस दौरान हिफाजत के लिए सशस्त्र जंगल गार्ड साथ में रहते हैं। लेकिन यह यादगार अनुभव है।
कोल्लम में काजू फैक्टरी
केरल के काजू बहुत प्रसिद्ध हैं और उन्हें देश में पैदा होने वाले काजू में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले काजू में से एक माना जाता है। मलयालम में काजू को परंगी मावु कहा जाता है। माना जाता है कि केरल में पुर्तगाली व्यापारी काजू लेकर आए थे। अब कई सदियों से काजू केरल से नर्यिात होने वाली सबसे प्रमुख चीजों में से एक है। बहुतायत के कारण काजू यहां के तमाम पकवानों में भी इस्तेमाल होता रहता है।
केरल में काजू प्रसंस्करण की ज्यादातर इकाइयां कोल्लम मिले में हैं। इसीलिए कोल्लम को देश की काजू राजधानी भी कहा जाता है। केरल में किसी काजू फैक्टरी को देखना भी उतना ही रोचक है जितना कि असम या दार्जीलिंग में किसी चाय बागान को देखना। बताया जाता है कि कोल्लम में तकरीबन 2.5 लाख लोग यानी जिले की कुल आबादी का दस फीसदी काजू उद्योग से जुड़ा है। यहां का काजू दुनिया के कई देशों में जाता है। इसलिए यदि केरल में सैर-सपाटे के दौरान कोल्लम की तरफ जाएं तो वहां की किसी काजू फैक्टरी में जाकर वहां का कामकाज देखें।
वायनाड में केव रेस्टोरेंट
एडाक्कल की गुफाएं देखने के लिए आपको पहाड़ी व चार हजार फुट की चढ़ाई चढऩी होती है। ये गुफाएं कुदरत का करिश्मा हैं। इतिहासकारों और भूगर्भशास्त्रियों, दोनों के लिए ये गुफाएं अब तक एक पहेली हैं। चढ़ाई बहुत मुश्किल नहीं- 45 मिनट की है। सैलानियों को गुफाओं तक पहुंचने के लिए अंबुकुत्थी पहाड़ी पर चढऩा होता है। दोनों तरफ कॉफी के बागानों से लकदक यह रास्ता बहुत खूबसूरत है। कॉफी की महक लिए बहती ठंडी हवा का अनुभव यहां बिरला है।
ऊपर पंहुचने पर गुफाओं में प्रवेश करने के लिए टिकट लेना पड़ता है। गुफाओं के पास ही एक टेलीस्कॉप भी लगा है जिससे आसपास के इलाके का शानदार नजारा लिया जा सकता है। एडक्कल गुफाएं दरअसल सही मायने में गुफा नहीं हैं। एडक्कल का अर्थ भी है बीच में चट्टान। यहां कुछ ऐसा है भी। दो बड़ी चट्टानों के बीच एक पत्थर चमत्कारिक ढंग से आकर टिका हुआ है। विज्ञानियों का मानना है कि दरअसल यह किसी प्राकृतिक या अन्य कारण से चट्टान में आई बड़ी दरार है। यह दरार लगभग 22 फुट चौड़ी और 96 फुट लंबी है। इसकी गहराई 30 फुट है। ऊपर एक चट्टान इस तरह से आकर बीच में टिक गई है कि वह मानो गुफा की छत हो गई है। कहानियों में इसे रामायण के मिथक से भी जोड़ा जाता है। लेकिन यह छोटी सी गुफा पत्थर युग के निशान और बाद के दौर में कई सभ्यताओं के चिह्न मिलने से तमाम लोगों की रुचि का विषय बन गईं। अब यहां पास ही में एड्डकल हर्मिटेज होटल भी है जिसमें एक रेस्तरां है जो तकरीबन गुफा की छाया में पहुंच जाता है।
वेगामोन में पैराग्लाइडिंग
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि केरल के वेगामोन में हर साल अप्रैल में चार दिन का इंटरनेशनल पैराग्लाइडिंग फेस्टिवल होता है। यहां पैराग्लाइडिंग का सीजन मानसून के तुरंत बाद सितंबर से ही शुरू हो जाता है और जनवरी के बाद तक चलता है। सितंबर में यहां पैराग्लाइडिंग ग्रांप्री का आयोजन होता है। इडुकी जिले में स्थित वेगामोन बड़ी तेजी से देश में पैराग्लाइडिंग के अड्डे के रूप में उभर रहा है। तकरीबन 6000 फुट की ऊंचाई पर बादल की तरह उडऩा और परिंदों से बातें करना और नीचे के नजारे देखना- इस रोमांच का साहस हरेक में नहीं होता। मुख्य फेस्टिवल भले ही अभ्यस्त पैराग्लाइडर्स के लिए होता हो, लेकिन सैलानी यहां पर विशेषज्ञ पायलटों के साथ उड़ान भरकर रोमांच का हिस्सा हो सकते हैं।
तेजस्विनी नदी में राफ्टिंग
अपने यहां हम राफ्टिंग की बात करते हैं तो मनाली या ऋषिकेश या सिक्किम जेहन में आते हैं। लेकिन यह रोमांच केरल में जंगलों से होकर गुजरती नदियों में भी उसी अंदाज में लिया जा सकता है। खास तौर पर कन्नूर जिले में चेरुपुषा में तेजस्विनी नदी पर और वायनाड जिले में वाइथिरी में अनोथ नदी पर। उसी तरह एर्नाकुलम से 50 किलोमीटर दूर बूथाथेनकेट्टू में पेरियार नदी पर राफ्टिंग की जा सकती है। इसमें पानेली पोरु का बहुत रोमांचक रैपिड भी है। कोडेनचेरी शहर के निकट तुषारागिरी में इरुवंझिपुषा और चालपिुषा नदियों पर क्लास 3 श्रेणी के आठ किलोमीटर लंबे रैपिड हैं। पैकेज के अनुसार राफ्टिंग के रैपिड की भी लंबाई है। कई रैपिड बीस किलोमीटर तक के भी हैं। केरल टूरिज्म के अलावा कई निजी ऑपरेटर भी इस तरह के पैकेज उपलब्ध कराते हैं। तेजस्विनी नदी कूर्ग के जंगलों में ब्रह्मगिरी पहाडिय़ों से निकलती है और नीलेश्वरम में अरब सागर में मिलने से पहले कन्नूर व कासरगोड़ जिलों से होकर गुजरती है। नदी की 64 किलोमीटर की कुल लंबाई में से 20 किलोमीटर पर राफ्टिंग की जा सकती है।
साइलेंट वैली नेशनल पार्क
पलक्कड़ जिले के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित साइलेंट वैली नेशनल पार्क आम नेशनल पार्क जैसा नहीं है। नीलगिरी बायोस्फेर रिजर्व का मुख्य हिस्सा इसी पार्क से आता है। इसे साइलेंट वैली यानी खामोश घाटी इसलिए कहा जाता है कि यहां आपको झिंगुरों तक की आवाज सुनाई नहीं देती है। लेकिन इतनी खामोशी के बावजूद यह घाटी कुदरत के खजाने से भरी-पूरी है। दरअसल यहां कई वनस्पति व जीव-जंतु ऐसे हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं पाए जाते हैं। यहां फूल देने वाले पौधों की तकरीबन हजार किस्में हैं। इनमें 110 किस्में तो ऑर्किड की हैं। यहां 34 किस्म के स्तनपायी और दो सौ से ज्यादा किस्म की तितलियां हैं।
(सभी फोटो केरल टूरिज्म से साभार)
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