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साफ हवा के लिए कोयले में नया निवेश बंद करने की जरूरत

भारत में अगस्त महीने का यह आख़िरी हफ़्ता जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ चल रही जंग की दशा और दिशा निर्धारित करने की नज़र से बेहद महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और टाटा, महिंद्रा, डालमिया, और बीपीसीएल जैसी 20 कंपनियों के सीईओ ने प्रधानमंत्री से कोयले की फंडिंग में कटौती करने और बढ़ते जलवायु परिवर्तन के  प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अपील की है। उल्लेखनीय है कि खुद भारतीय रिजर्व बैंक ने तीन दिन पहले, यानी 25 अगस्त को, अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए अपने वार्षिक दृष्टिकोण में बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों को खतरनाक जोखिम के रूप में स्वीकार किया है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंटोनियो गुटेरेस ने “द राइज़ ऑफ़ रिन्यूएबल्स: शाइनिंग ए लाइट ऑन अ सस्टेनेबल फ्यूचर” पर शुक्रवार, 28 अगस्त, को 19वें दरबारी सेठ मेमोरियल भाषण में ‘नो न्यू कोल’ की बात करते हुए कहा कि भारत को अब कोयला क्षेत्र में नया निवेश करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि भारत में एक कमोडिटी के तौर पर कोयले की जरूरत 2022 तक 50% ख़त्म हो जाएगी, और 2025 तक 85% ख़त्म हो जाएगी। उन्होंने कोयला उत्पादन और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के उच्च स्तर को बनाए रखने में सरकार के निवेश को एक “खराब अर्थशास्त्र” बताते हुए चेतावनी दी कि ऐसा करने से भारत के नागरिक प्रदूषित हवा से मरने को मजबूर होंगे। वास्तव में उसे बढ़ावा देने के उलट अब तो कोयले की फंडिंग में कटौती करने की ज़रूरत है।  उनका कहना है कि सरकार जीवाश्म ईंधन को मदद देने में कटौती करे और पवन, सौर और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करने में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

चीन और अमेरिका के बाद, भारत दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, लेकिन फिर भी अब तक उसने 2021 नवंबर में ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए जलवायु परिवर्तन रोकने का कोई एक नया कठिन लक्ष्य अपने सामने नहीं रखा है।

गुटेरेस का लंबे समय से प्रतीक्षित हस्तक्षेप उसी दिन आया जब 20 से ज्यादा प्रमुख भारतीय कंपनियों के  सीईओ एक “कॉल टू एक्शन” के रूप में सरकार से अपील कर रहे हैं कि वह कोयले में निवेश में कमी लाए और “ग्रीन औद्योगिकीकरण” को बढ़ावा दे। इस अपील पर हस्ताक्षर करने वालों में भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां जैसे टाटा स्टील, टाटा पावर, डालमिया सीमेंट, महिंद्रा, फ्लिपकार्ट, और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन आदि शामिल हैं।

इन कॉरपोरेट हस्तियों ने ग्रीन डेवलपमेंट की मांग की है। साथ ही इन्होंने देश में व्यावसायिक गतिविधियों  को नई दिशा देने के लिए आठ प्राथमिकताएं भी सामने रखी हैं जो खुद कॉरपोरेट क्षेत्र को दिशानिर्देशित करेंगी।

रिजर्व बैंक ने वार्षिक रिपोर्ट में कहा था कि भारत को चरम मौसम की जिस तरह की घटनाओं के साथ जूझना होता है, उनसे लगातार खासा आर्थिक और मानवीय नुकसान होता आ रहा है। जाहिर है कि अब भारत के आर्थिक हलके में इस बात को लेकर सहमति बढ़ती जा रही है कि जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से बचा नहीं जा सकता है। रिज़र्व बैंक का कहना था कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भारत में सबसे गंभीर होंगे और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न वित्तीय जोखिमों के प्रबंधन के लिए एक उपयुक्त ढांचे की जरूरत होगी।

बहरहाल, राहत की बात फ़िलहाल यह है कि इस दिशा में आगे बढ़ने के संकेत भी मिल रहे हैं। भारत सरकार के नवीन व अक्षय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने पिछले दिनों कहा था कि साल 2030 तक भारत का लगभग 60 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन रिन्युएबल (अक्षत) स्त्रोतों से होगा। बीते कुछ महीनों में इस बात के भी साफ़ संकेत मिले हैं कि देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में ग़ैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा का योगदान बढ़कर 45-50 प्रतिशत तक हो जाएगा। यह एक उत्साहवर्धक संकेत है।

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