जब अपने शहर और राज्य की सीमाओं से बाहर कोई घूमने निकलता है, तो बहुत जल्दी ही वह विश्वविख्यात ताज महल को देख चुका होता है। उत्तरप्रदेश के आगरा शहर में स्थित सफेद संगमरमर से बने इस विख्यात मकबरे को मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में प्रेम के प्रतीक के रूप में बनवाया था। ताज महल को मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। 1983 में इसे युनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया था। ताज महल दुनिया के सात आश्चर्य में भी शामिल रहा है। मुख्य मकबरे सहित आसपास के पूर्ण विकसित परिसर को बनाने में लगभग 22 साल लगे थे। यह संभव है कि आपने आगरा का ताज महल देख लिया हो, लेकिन क्या आपने काला ताज महल देखा है? ऐसी मान्यता है कि वर्तमान ताज महल के सामने यमुना के दूसरी ओर शाहजहां के मकबरे के रूप में काला ताज महल बनाया जाना था, लेकिन वह बनाया नहीं जा सका। इस मान्यता से परे सफेद संगमरमरी विख्यात ताज महल के बनने से पहले ही काला ताज महल बन चुका था। और यह काला ताज महल यानी शाह नवाज का मकबरा मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर में स्थित है।
आगरा के ताज महल का मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से गहरा नाता है। खानदेश की राजधानी रहा बुरहानपुर एक ऐसा ऐतिहासिक शहर है, जिसे मुगलों की दूसरी राजधानी भी कहा जाता रहा है। अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब और उसके बाद के कई शासक बुरहानपुर में लंबे समय तक बादशाह व सुबेदार के रूप में रहे हैं। बात उन दिनों की है, जब मुगल सम्राट शाहजहां अपने दक्षिण के अभियान पर थे और उनका ठिकाना बुरहानपुर था। बुरहानपुर में उनकी पत्नी मुमताज महल भी साथ में थी। मुमताज महल की मृत्यु अपने 14वें संतान को जन्म देते समय बुरहानपुर में हो गई। अपनी प्रिय पत्नी की मृत्यु से शाहजहां को गहरा दुःख हुआ था। उन्होंने निर्णय लिया कि मुमताज महल की याद में प्रेम के प्रतीक के रूप में एक बेजोड़ मकबरा बनवाएंगे। तब मुमताज महल को बुरहानपुर के जैनाबाद स्थित आहूखाने में दफनाया गया था। जैनाबाद को शाहजहां के चाचा दानियाल ने बसाया था। शाहजहां की इच्छा थी कि मकबरा बुरहानपुर में बनाया जाए। देश-विदेश के विख्यात वास्तुकार आए और उन्होंने बताया कि जैसा मकबरा बनाया जाना है, वह ताप्ती नदी के किनारे नहीं बनाया जा सकता। यहां की मिट्टी उस तरह के इमारत के लिए उपयुक्त नहीं है। इसके अलावा राजस्थान के मकराना से संगमरमर लाना भी यहां संभव नहीं दिख रहा था।
बुरहानपुर में ताज महल बनाना भले ही संभव नहीं हो पाया, लेकिन ताज महल का डिजाइन बुरहानपुर में ही तय किया जा रहा था। ताज महल के वास्तु के लिए कई इमारतों व डिजाइनों से प्रेरणा ली जा रही थी। मध्यप्रदेश के मांडू स्थित होशंगशाह का मकबरा भारत में पहला ढांचा था, जो संगमरमर से बनाया गया था। इससे प्रेरित होकर शाहजहां ने ताज महल को संगमरमर से बनाने का निर्णय लिया। ताज महल के डिजाइन को लेकर एक मान्यता है कि बुरहानपुर के शाही किले में मुमताज महल के लिए बनवाए गए शाही हमाम के एक टाइल्स पर मौजूद डिजाइन ही ताज महल का डिजाइन है। इसके साथ ही बुरहानपुर में काला पत्थर से बना एक आकर्षक मकबरा है, जो ताज महल के बनने से पहले का है और डिजाइन ताज महल जैसा है। इसे ही स्थानीय लोग काला ताज महल कहते हैं। ताज महल के लिए इस मकबरे से भी प्रेरणा ली गई थी।
काला ताज महल कोई साधारण मकबरा नहीं है, बल्कि यह मुगल बादशाह के परिवार से ही जुड़ा हुआ है। अकबर के संरक्षक बैरम खां के पुत्र विख्यात कवि रहीम यानी अब्दुर्रहीम खानखाना ने लंबे समय तक बुरहानपुर में अपना समय दिया था। उनके द्वारा रचे गए दोहे आज भी पढ़े जाते हैं और उनके द्वारा तैयार की गई विश्वस्तरीय जल संग्रहण संरचना ‘‘कुंडी भंडारा’’ को आज भी बुरहानपुर में देखा जा सकता है। कवि रहीम की पुत्री जाना की शादी अकबर के तीसरे पुत्र दानियाल के साथ हुई थी। रहीम के पुत्र इरिज मिर्जा ने मुगल बादशाह जहांगीर यानी दानियाल के भाई को दक्षिण के विजय में मदद की थी। जहांगीर ने इरिज मिर्जा को शाह नवाज की उपाधि दी थी। 44 साल की उम्र में शाह नवाज की मृत्यु हो गई। उनकी याद में जहांगीर ने काले पत्थर से इस सुंदर मकबरे का निर्माण करवाया था।
शाह नवाज के इस मकबरे को काला ताज महल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस छोटे से खूबसूरत ढांचे की बनावट आगरा के ताज महल में दिखती है। इस मकबरे के चारों ओर की छोटी मीनारों की तरह ही ताज महल की मीनारें बनाई गई हैं। काला ताज महल बुरहानपुर शहर के आजाद नगर में उतावली नदी के किनारे स्थित है। इस मकबरे को चौकोर आकार में निर्मित किया गया है। सामने की ओर बाग है। मकबरे के चारों ओर बरामदा और चारों कोण पर मीनारें हैं। मकबरे का गुंबद और चारों मीनार को सामने से देखने से लगता है कि ताज महल के पूर्वज को देख रहे हैं। मकबरे के भीतरी हिस्से में की गई नक्काशी आज भी स्पष्ट दिखाई देती है। यह बहुत ही आकर्षक है। निश्चय ही इस काले ताज को और बुरहानपुर के दूसरे ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्मारकों को देखना, मुगल इतिहास को एक अलग नजरिए से अनुभव करने जैसा है।
आगरा और दिल्ली की तरह ही बुरहानपुर में चारों ओर मुगल सल्तनत की छाप दिखती है। दानियाल का मकबरा, शाहजहां की बहू शाह शुजा का मकबरा, शाही महल, शाही हमाम, आहूखाना, शाहजादा परवेज का मकबरा, शहर की चारदीवारी के विभिन्न गेट, लौंगी मस्जिद, जामा मस्जिद सहित फारूकी, मुगल, निजाम व मराठा शासन के कई अवशेषों और ऐतिहासिक धरोहरों को यहां देखा जा सकता है। बुरहानपुर के जामा मस्जिद में संस्कृत में लिखा हुआ शिलालेख लगा है। बोहरा समाज के लिए यहां स्थित दरगाह-ए-हकीमी आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र है। सिक्खों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह ने नांदेड़ साहिब जाते समय बुरहानपुर में लगभग छह माह गुजारे थे। गुरुद्वारा बड़ी संगत में उनकी यादों को संजोया गया है। यहां तैयार गुरुग्रंथ साहिब के अंतिम पन्ने पर गुरू गोविंद सिंह ने अपने हाथों से ऊंकार लिखा था, जिसे यहां देखा जा सकता है।
एक और ताज का जिक्र करते हुए इस लेख का अंत करना ज्यादा मुनासिब होगा। महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में बीवी के मकबरा को गरीबों का ताज महल कहा जाता है। इसे ‘‘दक्कनी ताज’’ यानी दक्षिण का ताज महल भी कहा जाता है। यह मकबरा मुगल सम्राट औरंगजेब की बीवी रबिया-उल-दुर्रानी उर्फ दिलरास बानो बेगम का है। औरंगजेब के पुत्र और शाहजहां के पोते शहजादा आजम शाह ने अपनी मां की याद में इस मकबरे को बनवाया था। इस मकबरे के ढांचे की प्रेरणा आगरा के ताज महल से ली गई थी। इसके निर्माण में ताज महल के मुकाबले बहुत ही कम धन खर्च हुआ था, जिसकी वजह से इसे गरीबों का ताजमहल कहा जाता है। इस मकबरे का गुंबद संगमरमर का है और बाकी ढांचा प्लास्टर से तैयार किया गया है। यदि आपको आंखों पर पट्टी बांधकर इसके सामने लाकर खड़ा कर दिया जाए और फिर आंखों से पट्टी उतारी जाए तो आपको लगेगा कि आप ताज महल के सामने ही खड़े हैं। इस मकबरे में भी खूबसूरत नक्काशी देखी जा सकती है। बुरहानपुर से औरंगाबाद बहुत ज्यादा दूर नहीं है। यदि वहां जाएं, तो बीवी के मकबरे के साथ-साथ विश्व धरोहर अजंता और एलोरा की गुफाएं, दौलताबाद का किला और औरंगजेब का मकबरा भी जरूर देखें।
कैसे जाएं
मुंबई और दिल्ली रूट की रेलवे लाइन से बुरहानपुर के लिए बहुत सी ट्रेन हैं। भोपाल, इंदौर, भुसावल, व जलगांव से टैक्सी से भी यहां जा सकते हैं। यहां मध्य प्रदेश के बड़े शहरों और महाराष्ट्र के सीमावर्ती शहरों से बस भी जाती हैं।
You must be logged in to post a comment.