यह दुनियाभर के रोमांचप्रेमियों, खास तौर पर बाइकिंग व ड्राइविंग के शौकीनों के लिए मक्का है। हर कोई चाहता है कि कम से कम एक बार मनाली से लेह का सफर सड़क के रास्ते पूरा करे। लेकिन कई रोमांचप्रेमी ऐसे भी हैं जो हर साल एक बार यहां जाने को रस्म के तौर पर पूरा करते हैं। यह रास्ता यकीनन दुनिया के सबसे खूबसूरत व रोमांचक सड़क रास्तों में से एक है। फिलहाल कोविड-19 ने हम सबके हाथ बांधे हुए हैं, लेकिन मौका लगते ही सब इस रास्ते पर जाने के सपने देखने लगते हैं। यूं तो इस रास्ते की हर बात निराली है लेकिन यहां हम मनाली से लेह के बीच की उन दस खासियतों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें कोई भी घुमक्कड़ अपनी निगाहों में कैद करने से चूकना नहीं चाहेगा। वैसे हकीकत में इस रास्ते का रोमांच इनसे भी कहीं आगे बढ़कर है। ये तो केवल झलक है:
चंद्रताल: यह मनाली-लेह रास्ते पर तो नहीं है लेकिन लाहौल व स्पीति घाटियों को जोडऩे वाले रास्ते पर कुंजुम-ला से ठीक पहले है। इसलिए मनाली से लेह जाने वाले कई लोग इस खूबसूरत झील की तरफ जाने से नहीं चूकते। 4300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इसी झील से चंद्रा नदी निकलती है जो सूरज ताल से आने वाली भागा नदी में मिलकर टांडी के पास चंद्रभागा बन जाती है। कैपिंग के लिए एडवेंचर के शौकीनों की पसंदीदा जगह है यह।
सूरज ताल: कीलोंग से 65 किलोमीटर दूर यह खूबसूरत झील बारलाछा-ला से ठीक नीचे मनाली-लेह राजमार्ग के किनारे ही स्थित है। 4883 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झील भारत की तीसरी सबसे ऊंचाई पर स्थित झील है। यहीं से भागा नदी निकलती है जो आगे जाकर टांडी में चंद्रा नदी में मिलकर चंद्रभागा बन जाती है। मनाली से लेह जाने वाले रोमांचप्रेमियों के लिए सूरज ताल रुकने की अहम जगहों में से है।
बारलाछा-ला: कई बार कुछ जगहों पर पहुंचकर भी यह यकीन करना मुश्किल लगता है कि आप ऐसी दुष्कर जगह पर खड़े हैं। 4890 मीटर यानी 16,040 की ऊंचाई पर स्थित यह पर्वतीय दर्रा दरअसल तीन श्रृंखलाओं को जोड़़ता है- पीर पंजाल, झंस्कार और हिमालय। यहां से इस इलाके में ट्रैक के भी कई रास्ते निकलते हैं। यह रास्ता साल में महज चार-पांच महीने के लिए ही खुला रहता है।
बर्फीला रेगिस्तान: यह ठंडा रेगिस्तान है। कुछ जगहों पर सारी बर्फ पिघली हो और केवल रेत के टीले नजर आ रहे हों तो तस्वीरों से यह भ्रम हो सकता है ये किसी गर्म रेगिस्तान की तस्वीरें हैं। लद्दाख का इलाका देश का सबसे ऊंचा, सबसे ठंडा और सबसे शुष्क इलाका है। मनाली से आगे निकलें तो रोहतांग पास के बाद लेह तक बारिश मिलने की संभावना कम हो जाती है। हालांकि पिछले एक दशक में यहां का मौसम बदला है।
गाटा लूप्स: यह काजा के रास्ते में स्थित का-जिग्स जैसा रास्ता है। दरअसल यह एक के बाद एक 21 हेयरपिन मोड़ों की एक श्रृंखला है। ऊपर से देखो तो यह हैरतअंगेज रास्ता नजर आता है। यह रास्ता 16,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित नकी-ला पास की तरफ जाता है। लेकिन यहां जाने वालों को यह जगह एक और चीज के लिए याद रहती है और वो है गाटा लूप्स का भूत!
कांगला जल: मनाली से लेह के रास्ते में यह जगह पांग से थोड़ा ही पहले है। एक बहुत ही रोमांचक रास्ते से नीचे उतरकर आप कांगला जल पर पहुंचते हैं। यहां अक्सर सड़क के ऊपर पानी बहता रहता है और इस बर्फीले पानी से गुजरते हुए बढऩा खास तौर पर दोपहिया वाहनों के लिए खासा चुनौतीपूर्ण है।
मोरे मैदान: जब हम इतनी ऊंचाइयों की बात कर रहे हों तो इतना सपाट मैदान देखकर हैरानी ही होती है। सरछू और लेह के बीच के रास्ते का यह हिस्सा लगभग 40 किलोमीटर का है जो लगभग समतल मैदान सरीखा है। यह रास्ता खुद औसतन 4800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पांग से आगे यह शुरू होता है और तांगलांग-ला की चढ़ाई से पहले तक ऐसा ही रहता है।
कुदरत के खिलौने: इस ठंडे रेगिस्तान में मौसम व हवा के थपेड़ों ने सैकड़ों-हजारों सालों में कई करिश्मे खड़े कर दिए हैं। ये रेत के टीले भी उन्हीं में से एक हैं। कई बार इन्हें देखकर हैरानी होती है कि ये खड़े कैसे हैं। लेकिन ये न केवल खड़े हैं बल्कि लाहौल व स्पीति घाटियों में कई बौद्ध विहार इन टीलों पर ही बने हैं और आज से नहीं बल्कि सैकड़ों साल पहले से।
तगलांग-ला: यह मनाली से लेह के सड़क रास्ते का सबसे ऊंचा बिंदु है। 5328 मीटर (17,480 फुट) की ऊंचाई वाला यह दर्रा दुनिया के सबसे ऊंचे वाहनयोग्य रास्तों में से एक है। यहां पहुंचकर एक बड़ी चुनौती पार कर लेने की अनुभूति होती है।
अद्भुत इंजीनियरिंग: अगर ये सड़कें न होतीं तो ज्यादातर लोगों के लिए कुदरत की इस कारीगरी को देखना मुमकिन न होता। यहां पहुंचकर अंदाजा होता है कि यहां सड़कें, पुल आदि बनाने के लिए किस कदर मेहनत की गई होगी। यहां इस इंसानी कारीगरी को भी सलाम करने का मन करता है।
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