Monday, May 20
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शानदार सफर

ओस्लो से बर्गेन का सफर है बेहद सुंदर

बर्गेन का टूरिस्ट ऑफिस यह दावा करता है कि बर्गेन्सबेनेन “दुनिया की सबसे खूबसूरत ट्रेन यात्राओं में से एक है”। लेकिन आप कह सकते हैं कि वे अपनी चीज की तो तारीफ़ करेंगे ही। घुमक्कड़ों का पुराण माने जाने वाली लोनली प्लेनेट पत्रिका भी यह सवाल करती है कि क्या यह “यूरोप की सर्वश्रेष्ठ ट्रेन यात्रा” है? वहीं गार्डियन ने यह ऐलान किया कि यह “दुनिया की सबसे बढ़िया लंबी दूरी की ट्रेन यात्राओं में से एक” है। इतनी तारीफ़ के बाद यह लग गया था कि इस सफर का अनुभव लिए बगैर रहना मुश्किल है। लिहाजा हम निकल पड़े सुदूर उत्तरी यूरोपीय देश नॉर्वे में ओस्लो से बर्गेन की यात्रा पर।

ओस्लो में अलस्सुबह

हमने हमेशा की तरह सवेरे जल्दी ट्रेन पकड़ने का फैसला किया ताकि दिन की रोशनी में सफर का नजारा लिया जा सके और बर्गेन भी समय से पहुंचा जा सके। इसका मतलब यह था कि हमें होटल से सवेरे साढ़े छह बजे तक निकल जाना था। अच्छा था कि उस दिन शुष्क और चमकदार मौसम रहने का पूर्वानुमान था। हम पता करके ओस्लो एस स्टेशन पहुंचे जहां से हमारे सफर की शुरुआत होनी थी। लेकिन सफर पर निकलने से पहले थोड़ी बात इस बारे में कि आखिर यह चर्चित ट्रेन यात्रा है क्या।

ओस्लो से बर्गेन जाती ट्रेन का एक और शानदार नजारा

बर्गेन्सबेनेन

बर्गेन रेलवे को नॉर्वे में बर्गेन्सबेनेन कहा जाता है। दरअसल यह दक्षिण-पूर्वी सिरे पर स्थित राजधानी ओस्लो और नॉर्वे के पश्चिमी सिरे पर स्थित बर्गेन शहर के बीच 497 किलोमीटर के सफर का नाम है। इस रेल मार्ग का निर्माण 1883 में शुरू हो गया था लेकिन इस पूरे रास्ते पर निर्माण का काम 1909 में जाकर ही पूरा हो गया था। 1960 के दशक के शुरुआती सालों में इस रास्ते के इलेक्ट्रिफिकेशन का काम पूरा हो गया था। इस रेल मार्ग को यूरोप में सबसे ऊंचाई से गुजरने वाला मुख्य रेल मार्ग माना जाता है। इस रास्ते का सबसे ऊंचा बिंदु हार्डेंगरविड्डा पठार पर समुद्र तल से 4,058 फुट (1237 मीटर) की ऊंचाई पर है। यह देखते हुए कि इस ट्रेन यात्रा का शुरुआती बिंदु और समाप्ति बिंदु, दोनों ही तकरीबन समुद्र तल पर हैं, यह चढ़ने और उतरने के लिए खासी ऊंचाई मानी जा सकती है।

सात घंटे की यह यात्रा आपको दुनिया के कुछ सबसे बेहतरीन नजारों और 182 सुरंगों के बीच से लेकर जाती है। यह पूरा रास्ता इस तरह का है कि आपको यह सोचकर ही हैरानी होगी कि इस रास्ते पर रेल लाइन बिछाने का ख्याल ही कैसे किसी के दिमाग में आया और वाकई रेल लाइन बिछ गई, यह देखकर तो आपके होश ही उड़ जाएंगे।

ओस्लो से बर्गेन की रेल यात्रा में बर्फ का खूबसूरत नजारा। फोटोः  फोएप/विजिट नॉर्वे

शानदार ट्रेन यात्राएं

हमें ट्रेन से यात्राएं करना पसंद है और जब भी मौका मिलता है, हम उसे छोड़ते नहीं। हमने इसी तरह से सैन फ्रांसिस्को से शिकागो की यात्रा की थी। इसीलिए जब हमने नॉर्वे की यात्रा की योजना बनाई थी तो बर्गेन्सबेनेन पर सवारी करने का लोभ हमसे छोड़ा नहीं गया।

हमने ऐन मौके पर अपने ट्रेन टिकट ‘कंफर्ट क्लास’ में अपग्रेड करा लिए थे। ज्यादा कुछ तो खास नहीं था, बस पांवों के लिए थोड़ी ज्यादा जगह थी और चाय व कॉफी मुफ्त थी। और, इस श्रेणी में थोड़ी शांति ज्यादा थी। हम जल्द ही अपनी सीटों पर जम गए। इस तरह के तमाम सफर में हमें साथी यात्रियों को देखना-समझना और उनसे संवाद करना खासा भाता है।

ओस्लो से रवाना

ओस्लो से रवाना होने के बाद राजधानी के उपनगरीय इलाकों से गुजरते हुए ट्रेन की रफ्तार थोड़ी धीमी थी। हमारा पहला बड़ा पड़ाव ड्रेम्मन में था। यह वो जगह थी जहां से हमने सभ्यता के निशान पीछे छोड़ दिए और बीहड़ के भीतर प्रवेश कर लिया। सूरज चमक रहा था और जब हम होनेफॉस की तरफ चढ़ रहे थे तो ऊपर खूबसूरत नीला आसमान था।

हमारे सहयात्रियों में से कुछ अपने लैपटॉप में व्यस्त थे और कुछ मुफ्त की चाय-कॉफी में। लेकिन हम थे कि हमारा मन ट्रेन के दोनों तरफ के बेइंतहा खूबसूरत नजारों से भर ही नहीं पा रहा था। रेल मार्ग ऊपर चढ़ रहा था, कहीं खूबसूरत घाटियों से होकर और कहीं यहां के चर्चित फियोर्डों से गुजरते हुए। फियोर्ड दरअसल वे संकरे दर्रे जैसे होते हैं जिनमें दोनों तरफ खड़ी ऊंची चोटियां होती हैं और उनसे पानी बहता है। यह बहते ग्लेशियर का भी नतीजा होता है। चोटियों पर बर्फ दिखाई दे रही थी। 

सर्दी के मौसम में ओस्लो से बर्गेन जाती ट्रेन।

डिब्बे में कुछ जर्मन यात्री बाहर का नजारा देखने से ज्यादा इसमें रुचि रख रहे थे कि दरअसल हम क्या कर रहे हैं। कुछ कनाडियाई महिलाएं थीं जो सब कुछ घूम चुकी थीं और घुमक्कड़ी की कहानियां सुनाने में एक-दूसरे को मात दे रही थीं। नार्वे की एक जोड़ी थी जिन्हें अपनी सीट से उठने के बाद हर बार उसे फिर से खोजने में खासी मुश्किल होती थी। कुछ बड़े हल्लाबोल अमेरिकी थे जिन्हें यह लगता था कि उन्हें सबकुछ आता है। एक ब्रिटिश दंपति थे जिन्हें एक दूसरे से भी मतलब नहीं था और पत्नी तो लगातार लैपटॉप पर लगी हुई थी। और फिर हमारे पसंदीदा एक गिरते-पड़ते भारतीय दंपत्ति थे जो अपनी हलचल से सबके हास-परिहास का केंद्र बने हुए थे।

फ्ला, नेसबिन, गोल व गीलो जैसे अजीबोगरीब नामों वाले स्टेशनों से गुजरते हुए ट्रेन 1222 मीटर पर अब इस रास्ते के तकरीबन सबसे ऊंचे बिंदु से गुजर रही थी। पहाड़ों पर होने से मौसम ने अब करवट ले ली थी। नीले आसमान की जगह गहरे बादलों ने ले ली थी और हल्की बर्फ भी गिरने लगी थी। फिंस व मिरडल के बीच हम बर्फ से ढके इलाके से होकर गुजर रहे थे और वह एकदम दूसरी दुनिया का सा नजारा लग रहा था। पहाड़ी के किसे सिरे पर कोई लकड़ी की झोपड़ी ही जीवन का कोई संकेत सा देती थी। सब तरफ प्रकृति ने अपनी सुंदरता बिखेर रखी थी। अकल्पनीय सा दृश्य था। इसलिए मिरडल में जब ट्रेन रुकी तो हम जल्दी से ट्रेन से उतरकर प्लेटफॉर्म पर पसरी बर्फ में कुछ कदम चलने से खुद को रोक नहीं पाए।

स्टुगफ्लैटन पुल, लेस्ज़ा। फोटोः लेफ़ जॉनी ओलेस्ताद/विजिट नॉर्वे

फ्लेम लाइन

मिरडल में एक ब्रांच लाइन है जो बर्गेन्सबेनेन को फ्लेम लाइन से जोड़ती है। यह लाइन उत्तर में फ्लेम शहर की ओर जाती है। फ्लेम से वहां मौजूद तमाम फियोर्ड के लिए कई क्रूज चलते हैं। हमारे कई सहयात्री, खास तौर पर अमेरिकी, हमें यहां छोड़कर इन्हीं क्रूज का आनंद लेने के लिए फ्लेम लाइन से जाने वाले थे। वह अब तक के सफर में इतनी बुलंद आवाज में इसके बारे में और वहां की चीजों के बारे में बात कर रहे थे कि हमें बगैर कोशिश किए वहां की रत्ती-रत्ती का पता चल चुका था। हालांकि सुनकर हमें भी लग रहा था कि वह यकीनन बेहद शानदार सफर होगा लिहाजा हमने सारी जानकारी अगली बार के लिए सहेज कर रख ली।

यहां से निकलकर ट्रेन बड़ी तेजी से बीहड़ता से बाहर निकलकर उतरने लगी और बर्गेन की तरफ समुद्र की ओर बढ़ चली। नजारा भी बदल गया। बर्फ नदारद हो गई और हम फिर से हरी-भरी घाटियों में आ गए। कुछ लोग लंबे सफर के बाद उनींदे होने लगे थे लेकिन हमारा रोमांच बाहर की खूबसूरती से बरकरार था।

बर्गेन लाइन पर मिरडल का ट्रेन स्टेशन

वोस व डोल स्टेशनों पर रुकने के बाद सफर आखिरी चरण में था, हालांकि हमारा मन नहीं कर रहा था कि वह खत्म हो। हालांकि ट्रेन के सफर को अनुभव कर लेने के बाद अब मन बर्गेन शहर को देखकर उसकी खूबियां महसूस करने का भी कर रहा था। लेकिन ट्रेन का सफर वाकई इतना खूबसरत था कि हम एकबारगी यह भी सोचने लगे थे कि क्यों न फिर से मिरडल चलकर और अगले दिन वहां से लौट आया जाए।

बर्गेन शहर

जल्द ही ट्रेन बर्गेन स्टेशन में घुस रही थी। सर खत्म हो रहा था। पता ही नहीं चला कि कब सात घंटे का वक्त कैसे पंख लगाकर गुजर गया। जब हम प्लेटफॉर्म पर बाहर उतरने तो बाहर का तापमान देखकर यकीन नहीं हो रहा था। ओस्लो से यहां का तापमान तकरीबन दस डिग्री ठंडा था।

बर्गेन में एक अलग ट्रेन पहाड़ी के सफर के लिए जो शहर से फ्लोएन पहाड़ की चोटी तक जाती है।
फोटोः पाल होफ/विजिट नॉर्वे

कहना मुश्किल है कि क्या यह दुनिया की सबसे बढ़िया ट्रेन यात्रा है? आखिर हमने अभी ऐसी सारी यात्राएं तो की नहीं हैं। लेकिन इतना तो कह ही सकते हैं कि हमने जितनी यात्राएं की हैं उनमें से यह यकीनन सबसे शानदार थी। अविस्मरणीय।

यह यात्रा वृतांत ब्लॉगर युगल जो व जोन (https://jwalkingin.com/) के अनुभव पर आधारित है।

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