कई लोग इसे दुनिया की सबसे मौलिक लग्जरी ट्रेन मानते हैं। तकरीबन सौ साल पुराने विंटेज डिब्बे, नेवी ब्लू व सुनहरे रंग से मिली जुली साज-सज्जा और वर्दियां, सफेद झक छत- ये सब कुछ आपके होश उड़ाने के लिए काफी हैं। पेरिस व इंस्ताबुल के बीच इस ट्रेन की सालाना यात्राएं तो कल्पनातीत मानी जाती हैं- खास लोगों और खास मौकों के लिए। अब इस ट्रेन की खूबी को इसी से समझा जा सकता है कि जब कभी खूबसूरती, सुरुचि, नजाकत व रूमानियत का बखान करना हो तो इस ट्रेन की छवि का इस्तेमाल किया जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं ओरिएंट एक्सप्रेस की जिसे अब आम तौर पर वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस के तौर पर जाना जाता है।
ओरिएंट एक्सप्रेस को उन ट्रेनों में गिना जाता है जो परिचय की मोहताज नहीं रही। शायद ही कोई और ट्रेन रही होगी जिसे अगाथा क्रिस्टी और ग्राहम ग्रीन जैसे लेखकों के लिखे उपन्यासों ने अमर किया हो और जो अपने समय के सबसे शानदार कलाकारों की प्रस्तुतियों के साथ रुपहले पर्दे पर पेश हुई हो। वैसे जानकारों को याद होगा कि यूरोप में 1880 के बाद से ओरिएंट एक्सप्रेस के नाम से कई ट्रेनें सफर करती रही हैं।
दरअसल, माना यह जाता है कि यह ट्रेन बेल्जियम के एक अमीर बैंकर के बेटे जॉर्जेस नेगलमैकर्स के सपनों की उपज थी। अमेरिका की एक यात्रा के बाद उसे ट्रेन के सफर की रूमानियत लुभाने लगी थी। लिहाजा, अक्टूबर 1882 में उसने कुछ खास मेहमानों को अपनी खास ट्रेन “ट्रेन एक्लेयर दा लक्जे” में 2000 किलोमीटर की यात्रा के लिए आमंत्रित किया। यह यात्रा पेरिस से विएना की थी। जॉर्जेस मेगलमैकर्स जिस कंपनी (सीआईडब्लूएल) का मालिक था उसने बाद में अपना काम यूरोप, एशिया और उत्तर अफ्रीका में लग्जरी ट्रेनों, ट्रेवल एजेंसियों और होटलों में फैला लिया। पहली ओरिएंट एक्सप्रेस 1883 में शुरू हुई थी। हालांकि ट्रेन का ओरिएंट से कोई रिश्ता नहीं था, बस उसकी पहली यात्रा के बाद मीडिया ने ही उसे सनसनीखेज तरीके से ओरिएंट एक्सप्रेस नाम दे दिया। इसका आधिकारिक नाम ओरिएंट एक्सप्रेस 1891 में ही रखा गया। उस समय भी उसकी लोकप्रियता का आलम यह था कि अगाथा क्रिस्टी ने उसपर सवारी करने से पहले ही उसे ‘अपने सपनों की ट्रेन’ नाम दे दिया था।
ओरिएंट एक्सप्रेस का रूट और उसका रोलिंग स्टॉक बीते 135 सालों में कई बार बदला गया। कई रूट पर यही या इससे मिलता-जुलता नाम चलता रहा। मूल ओरिएंट एक्सप्रेस महज एक सामान्य अंतरराष्ट्रीय ट्रेन सेवा थी लेकिन धीमे-धीमे यह नाम ट्रेन के लग्जरी सफर से जुड़ता चला गया। एक ऐसे समय जब सफर करना अपने आप में जोखिमभरा माना जाता था, यह ट्रेन लग्जरी के नए मुकाम गढ़ती चली गई। इस कदर कि यह लोगों की कल्पनाओं से कागज के पन्नों पर और फिर रुपहले पर्दे पर आकार लेती चली गई। यह वो हैसियत थी जो उससे पहले और उसके बाद किसी भी और ट्रेन को संभवतया नहीं मिली।
दो शहर जो इस ट्रेन के साथ शुरू से जुड़े रहे, वे थे पेरिस और इस्तांबुल जो मूल सेवा के दो सिरे थे। हालांकि 1977 में इस ट्रेन ने इस्तांबुल जाना बंद कर दिया। उसके बाद जो ट्रेन चली वह रोमाननिया की राजधानी बुखारेस्ट तक जाती रही। 1991 में यह रास्ता और कम करके हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट तक कर दिया गया और 2001 में और भी कम करके विएना तक। जून 2007 के बाद ओरिएंट एक्सप्रेस नाम की ट्रेन महज पेरिस से फ्रांस के ही स्ट्रैसबर्ग शहर के बीच सीमित होकर रह गई और दिसंबर 2009 में यह यूरोपीय रेलवे टाइम टेबल से गायब ही हो गई।
यह तो बात हुई ओरिएंट एक्सप्रेस नाम की ट्रेन की। हम यहां जिस ट्रेन की बात कर रहे हैं वह वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस की। यह इस समय जानी-मानी लग्जरी ट्रेवल कंपनी बेलमोंड द्वारा संचालित की जा रही है लेकिन इसमें सीआईडब्लूएल के 1920 व 1930 के बने मूल कोच इस्तेमाल किए जा रहे हैं। हालांकि कभी ओरिएंट-एक्सप्रेस होटल्स के नाम से पहचाने जानी वाली बेलमोंड कंपनी को भी अब लग्जरी उत्पाद बनाने वाली फ्रेंच कंपनी मोएत हेनेसी लुई वित्तों (एलएमवीएच) ने अधिग्रहित कर लिया है। वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस इस समय लंदन से वेनिस और यूरोप के बाकी शहरों के लिए चल रही है जिनमें पेरिस से इस्तांबुल का मूल रूट भी शामिल है।
वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस की शुरुआत 1982 में अमेरिका में केंटकी के जेम्स शेरवुड ने की थी, जो शिपिंग क्षेत्र के दिग्गज माने जाते थे। उन्होंने 1977 में सीआईडब्लूएल के दो मूल कोच नीलामी में खरीदे थे जब उसने खुद को ओरिएंट एक्सप्रेस सेवा से अलग करके उन्हें फ्रांस, जर्मनी, और ऑस्ट्रिया की नेशनल रेलवे कंपनियों के सुपुर्द कर दिया था। शेरवुड ने कुल उस समय 1.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करके 35 स्लीपर, रेस्तरां और पुलमैन कैरिज हासिल किए। मई 1982 में यह लग्जरी ट्रेन सेवा शुरू हुई। और अब मजे की बात यह है कि इस दौर में ओरिएंट एक्सप्रेस की सारी शोहरत और मिथक इस वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस को हासिल हो गए हैं।
वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस में ब्रिटेन और बाकी यूरोप के लिए अलग-अलग कैरिज इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन सारे ही कोच 1920 व 1930 के दशक के मूल रूप से बने हैं जिन्हें नई साज-सज्जा के साथ सबसे बेहतरीन आराम के लिए तैयार किया गया है। इंग्लिश चैनल पार कराने के लिए यात्रियों को यूरोटनल से लग्जरी बस में फ्रांस की तरफ ले जाया जाता है। लिहाजा यूके की तरफ पुलमैन कैरिज इस्तेमाल आते हैं और फ्रांस से आगे की वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस की यात्रा के लिए स्लीपिंग कार व डाइनिंग कार इस्तेमाल में आती हैं। वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस की यात्राएं एक रात की भी हैं और चार रातों की भी। पेरिस, विएना बुडापेस्ट व वेरोना जैसे प्रमुख शहर इस यात्रा के शुरुआती व आखिरी बिंदुओं में से हैं।
महंगी सैर
वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस की यात्रा मार्च से नवंबर के बीच होती है। निश्चित तौर पर इस तरह की यात्रा का खर्च उठाना सबके बस में नहीं। अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि ग्रांड स्यूट में एक रात के लिए प्रति व्यक्ति किराया 7,860 डॉलर (यानी करीब साढ़े पांच लाख रुपये) है। अगले साल के सीजन में दो लोगों के लिए पेरिस से वेनिस की चार रात की यात्रा का खर्च 31,724 डॉलर (यानी 22 लाख रुपये से ज्यादा) होगा। लंदन-वेनिस यात्रा में रेगुलर डबल केबिन में सफर का खर्च प्रति व्यक्ति प्रति रात्रि 2,720 डॉलर (यानी 1.90 लाख रुपये) होगा।
आम तौर पर इस ट्रेन में 190 मेहमान सफर कर सकते हैं लेकिन विशेष यात्राओं के दौरान इसकी क्षमता को कम करके सौ मेहमानों तक सीमित कर दिया जाता है। इसमें सफर करने वाले यात्रियों के लिए तीन तरह के केबिन हैं। डबल केबिन में पुलमैन स्टाइल के बेड हैं- एक ऊपर और एक नीचे (हमारे फर्स्ट क्लास जैसे) जो दिन में आरामदेह सोफे में तब्दील हो जाते हैं। इसके अलावा केबिन स्यूट हैं जिसमें दो डबल केबिन भीतर से मिल जाते हैं और वह बड़े स्यूट में तब्दील हो जाता है। इनमें आपके केबिन में वाशबेसिन तो होता है लेकिन बाथरूम नहीं। बाथरूम कोच के दोनों तरफ आखिर में होते हैं। इसके अलावा ग्रांड स्यूट हैं जिनमें डबल बेड, लिविंग एरिया, मेज-कुर्सी, सोफा, और पूरा बाथरूम होता है। इस समय वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस में छह ग्रांड स्यूट हैं जिन्हें ‘पेरिस’, ‘वेनिस’, ‘इस्तांबुल’, ‘प्राग’, ‘विएना’ और ‘बुडापेस्ट’ नाम दिए गए हैं। इनकी भीतरी साज-सज्जा भी इन्हीं छह जगहों की खास बातों व विरासत का नमूना पेश करती है। इनमें तीन स्यूट तो पहले से थे और तीन नए ग्रांड स्यूट मार्च 2020 से शुरू होने वाले सीजन में ट्रेन में जोड़े जाने थे। इसके अलावा ट्रेन में तीन डाइनिंग कार हैं, लाउंज कोच हैं। यह ट्रेन ऐतिहासिक डिब्बों में आपको पांच सितारा भव्य मेहमानवाजी का आनंद देती हैं, यूरोप की नैसर्गिक सुंदरता इसमें चार चांद लगाती है सो अलग, और यह यकीनन सबके सुख में नहीं है।
इस साल यानी मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण दुनियाभर में लगी पाबंदियों के चलते वेनिस-सिंप्लॉन ओरिएंट एक्सप्रेस फिलहाल बंद पड़ी है। आप उनकी साइट पर जाकर उसके शुरू होने के बारे में पता लगा सकते हैं।
इतिहास का सफर
इस तरह के ऐतिहासिक कोचों में सफर करने का भी अलग आनंद है। अंदाजा लगाइए आप स्लीपिंग कार संख्या 3309 में सफर कर रहे हों जो 1929 में सेवा में थी और जो एक समय इस्तांबुल से 60 मील दूर दस दिन तक बर्फ में फंस गई थी। आसपास के तुर्की के गांवों के लोगों की मदद के कारण ही यात्रियों व स्टाफ की जान बच पाई थी। इसी तरह फीनिक्स नाम का एक कोच 1927 में बना था, उस समय उसका नाम रेनबो था। 1936 में यह आग में जल गया था और फिर 1952 में इसे फिर से बनाकर इसे फीनिक्स नाम दे दिया गया। यह रानी एलिजाबेथ का पसंदीदा कोच था जो कई देश के शीर्ष नेताओं को लाने-ले जाने में काम आता रहा।
(सभी फोटो बेलमोंड के सौजन्य से)
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