हिमाचल में ऐसी बहुत सी हैरतअंगेज, दिलचस्प और रहस्य से परिपूर्ण जगहें हैं जहां तक पहुंच पाना अपने आप में रोमांच और साहस का परिचायक होता है। इसी कड़ी में एक नाम जुड़ जाता है कुल्लू घाटी में स्थित ‘सरयूल सर’ का। चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस सर की यात्रा हमें ऐसी जगहों से परिचित करवाती है जो प्राकृतिक सौंदर्य से तो लबालब हैं ही, साथ ही अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण भी जाने जाते हैं। इन क्षेत्रों का रहन-सहन और अथक मेहनत से भरा जीवन हमें सदा कर्म करने की सीख दे जाता है। जलोड़ी जोत इस यात्रा का सबसे ऊंचाई पर बसा स्थल है। इस इलाके की खूबसूरती के आकर्षण के चलते यहां बॉलीवुड की लोकप्रिय फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ और कई हिमाचली एलबम व फिल्म की शूटिंग भी हो चुकी है।
अजूबे से कम नहीं
जलोड़ी जोत से पांच किलोमीटर के जंगल के रास्ते का रोमांचकारी सफर हमें सरयूल सर के पास पहुंचाता है। सरु (ओले) से निर्मित होने के कारण इस सर का नाम सरयूल सर पड़ा है। सर यानि झील। सर का पानी हमेशा साफ और स्वच्छ रहता है। इस सर की सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि यदि कोई पत्ता या अन्य गंदगी सर में गिर जाए तो चिडिय़ा आभी उसे अपनी चोंच में उठाकर सर से बाहर ले जाती है। ताज्जुब की बात है कि सर के चारों ओर जंगल होने के बावजूद भी सर में कोई पत्ता नजर नहीं आता। लोगों का कहना है कि आभी सिर्फ भाग्यशाली लोगों को ही दिखाई देती है। हिमाचल के प्रसिद्ध लेखक विनोद हिमाचली ने अपने यात्रा संस्मरण ‘रोहतांग की गोद में’ में इसे सातवें अजूबे जैसा माना है। लेकिन पिछले दिनों मई 2016 के अंतिम हफ्ते में आनी (कुल्लू) के पत्रकार हरिकृष्ण शर्मा ने अपने कैमरे में आभी को कैद किया है। इस चिडिय़ा का वैज्ञानिक नाम ‘ग्रे वैगटेल’ (Motacilla cinerea) है। यह चिडिय़ा ज्यादा बड़ी नहीं होती और ज्यादा ऊपर भी नहीं उड़ती है। लेकिन उसकी उड़ान को देखकर लगता है जैसे वह मस्त होकर हिलौरे खाती हुई नाच रही हो। समुद्रतल से लगभग 10300 फुट की ऊंचाई पर स्थित यह सर बाहरी व भीतरी सिराज के लोगों की आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है। सर की परिधि सिमटती हुई 500-600 मीटर ही रह गई है जो पहले वहां तक थी जहां से लोग अब इस सर को देखने के लिए उतरना शुरू करते हैं।
बूढ़ी नागणी ने की थी रक्षा
यहां एक किनारे पर माता बूढ़ी नागणी का छोटा-सा मंदिर है। कहते हैं माता ने बहुत सालों पहले उद्द नामक तांत्रिक से इस झील की रक्षा की थी क्योंकि उद्द इस झील को अपनी तंत्र विद्या से सुखाना चाहता था। माता की मूर्तियों पर पूरे साल घी का लेप चढ़ा रहता है जिसका कारण है मनौती पूर्ण होने पर लोगों का मूर्ति पर घी चढ़ाना। घी को सर के चारों ओर थोड़ा-थोड़ा गिराकर सर के फेरे भी लगाए जाते हैं। इस परंपरा के फलस्वरुप झील के चारों ओर घी की चिकनाहट साफ देखी जा सकती है। बुढ़ी नागण को किसानों की देवी भी कहा जाता है क्योंकि किसान देवी से अपने दुधारु व अन्य पशुओं की रक्षा और उनके अच्छे स्वास्थ्य की मनोकामना करते हैं। जिसके पूरी होने और दूध देने वाले पशुओं के बच्चा देने पर वे दूध और घी देवी को समर्पित करते हैं। इस सर का पानी नागण गुशैनी जगह पर भी निकलता है।
इस सर से संबंधित एक खास बात और है। वह यह कि जब भी भक्तों की टोली यहां दर्शनों के लिए आती है तो सर उनका हल्की-सी बारिश के साथ स्वागत करता है। एक अन्य हैरान कर देने वाली बात यह है कि यहां किनारे पर एक चट्टान के पास हर साल अपने आप ही धान के कुछ पौधे सर के पानी में उग आते हैं। जिसे यहां के लोग खुशहाली का प्रतीक मानते हैं।
आसपास
यह सभी इलाके ऐसे हैं कि इनकी सुंदरता को निहारने के बाद सैलानी कुल्लू-मनाली के उन सभी स्थापित व चर्चित इलाकों को भूल जाएंगे जिन्हें मन में लिए वे कुल्लू-मनाली घूमने के लिए आते हैं। तो आइए निगाह डालते हैं इन जगहों पर भी-
खनाग
जलोड़ी जोत से आनी की ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 2086 मीटर की ऊॅंचाई पर स्थित है एक खूबसूरत गांव खनाग। यह गांव कुल्लू और शिमला जिलों की सीमा पर बसा है। इस इलाके की सुंदरता देखते ही बनती है। इंग्लैंड की प्रसिद्ध लेखिका व ट्रैकर लेडी पैनेलोप चैटवोड इस इलाके की खूबसूरती की बेहद कायल थी। पैनेलोप के पिता ब्रिटिश शासनकाल (1930-35) में भारतीय सेना में कमांडर इन चीफ भी रहे। पैनेलोप ने अपनी किताब में इस इलाके को स्कॉटलैंड जैसा सुंदर कहा है। 13 अप्रैल 1986 में खनाग के नजदीकी गांव डीम में उनकी मृत्यु हो गई थी। उनकी स्मृति में बनी स्मरण पट्टिका पर हर साल उनका परिवार इंग्लैंड से यहां पहुॅंचता है और मोमबत्तियां जलाकर पैनेलोप को याद करता है।
रघुपुरगढ़
जलोड़ी जोत से विपरीत दिशा की ओर आप लगभग 2 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते पर चलने के उपरांत एक ऐतिहासिक जगह रघुपुरगढ़ पहुंचते हैं। यह कुल्लू के राजाओं का गढ़ था। गढ़ की इमारतों के अवशेष इसके गवाह हैं। आज ये इमारतें खंडहर बन चुकी हैं। आप यहां ट्रैकिंग का लुत्फ उठा सकते हैं। ट्रैंकिंग करते हुए आप यहां के प्राकृतिक नजारों को आत्मसात करते हुए इस इलाके के नैसर्गिक सौंदर्य को करीब से देख पाते हैं जो आपको आत्मसंतुष्टि देता है। रघुपुरगढ़ तक का यह ट्रैक हमें एक नए अनुभव से रु-ब-रु करवाता है।
पनेउ
रघुपुरगढ़ से बाईं ओर लगभग 7 किलोमीटर आगे चलने पर हम एक बेहद ही खूबसूरत गांव पनेउ पहुंचते हैं। पनेउ का प्राकृतिक सौंदर्य हमें अपने मोहपाश में बांध देता है। पंडित जवाहरलाल नेहरु भी इस इलाके की खूबसूरती को निहारने के लिए 1948 में यहां खिंचे चले आए थे। यहां अंग्रेजों के समय का विश्राम गृह भी है। यहां स्थित देव मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है।
टकरासी
रघुपुरगढ़ से ही दाहिनी तरफ को यदि हम 5 किलोमीटर आगे चलें तो एक अन्य प्यारी और सुंदर जगह टकरासी हमारे स्वागत में खड़ी मिलती है। अन्य इलाकों की भांति यहां भी आपको लोगों की सादगी और इनकी लोक संस्कृति अपनी ओर खींचेगी।
इन सभी स्थानों तक आप सड़क मार्ग द्वारा भी पहुंच सकते हैं लेकिन इन्हें ट्रैक करके घूमने का मजा कुछ और ही है। पैदल यात्रा का जो अहसास आपके मानसपटल पर रहेगा उसकी बात ही कुछ और है। वह हमेशा ही आपके मन में यहां की खूबसूरती की दस्तक देता रहेगा।
कैसे जाएं: जलोड़ी जोत तक आप अपनी गाड़ी या बस द्वारा सफर कर सकते हैं। दिल्ली से जलोड़ी जोत की दूरी 530 किलोमीटर, चंडीगढ़ से 290 किलोमीटर, पठानकोट से 295 किलोमीटर और शिमला से जलोड़ी जोत की दूरी 230 किलोमीटर है। जलोड़ी जोत के लिए सबसे नजदीक का हवाई अड्डा यहां से 70 किलोमीटर की दूरी पर भुंतर है। ट्रेन से शिमला आकर आगे सड़क के रास्ते यहां आया जा सकता है। या फिर पठानकोट तक बड़ी रेल लाइन से और उसके आगे छोटी लाइन से जोगिंदरनगर तक आकर फिर सड़क के रास्ते यहां आया जा सकता है।
कहां ठहरें
जलोड़ी जोत से लगभग एक किलोमीटर आगे सरयूल सर की तरफ कुछ वर्षों से फॉरेस्ट कॉरपोरेशन के तत्वावधान में इको टूरिज्म के तहत बने नेचर कैंप में यात्री ठहर सकते हैं। ये कैंप अप्रैल से जुलाई-अगस्त तक विभाग द्वारा लगाए जाते हैं। कैंप पूरी आधुनिक सुख-सुविधाओं से सुसज्जित रहते हैं। यहां आप प्रकृति के बीच रहकर आप अपनी इस यात्रा को और भी खुशनुमा बना सकते हैं। इसके अलावा खनाग में ठहरने के लिए पीडब्ल्यूडी का विश्राम गृह, पनेउ और टकरासी में ठहरने के लिए जंगलात महकमे के विश्राम गृह उपलब्ध हैं।
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