दुनिया में कई नए-पुराने पुल अपने वास्तुशिल्प और इंजीनियरिंग कौशल के लिए मशहूर हैं। लेकिन भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय के जीवित पुलों को देख कर आप दांतो तले उंगलियां दबाए बगैर नहीं रह पाएंगे। मनोरम प्राकृतिक छटा बिखरने वाले ये अनोखे पुल स्थानीय मूल निवासियों के उत्कृष्ट तकनीकी कौशल के जीते-जागते उदाहरण हैं। मेघालय में घने जंगल, दुर्गम घाटियां व बीहड़ जंगल हैं। यहां छोटी-छोटी पहाड़ी नदियां हैं जो मानसून के दौरान उफनती रहती हैं। यहां लकड़ी के पुल बहुत जल्द गलने लगेंगे या बह जाएंगे। स्टील और कंक्रीट से बने पुलों की भी सीमाएं हैं। लेकिन आपको यह जानकर अचरज होगा कि जिंदा पेड़ों की जड़ों से बनाए गए पुल कई सदियों तक चल सकते हैं। जंगलों में बहने वाली छोटी नदियां मानसून के महीनों में बड़ी नदियों में तब्दील हो जाती हैं। इन उफनती हुई नदियों को पार करने के लिए स्थानीय खासी और जयंतिया आदिवासियों न...
Read Moreचेक राजधानी प्राग में सुंदर इमारतों की कमी नहीं है। यहां के गिरजाघरों की वास्तु कला बेजोड़ है। यहां एक गिरजाघर ऐसा है जिसका तहखाना ही उसकी सबसे बड़ी खासियत है। कार्लोवो नमेस्ति शहर का सबसे बड़ा स्क्वायर है जहां से थोड़ी सी दूरी पर रेसोलोवा स्ट्रीट पर कैथेड्रल चर्च ऑफ सेंट साइरिल और मेथोडियस की भव्य इमारत है। स्थानीय लोग इस चर्च को पैराशूटिश्ट चर्च भी कहते हैं। यह गिरजाघर बेरोक स्थापत्य कला का खूबसूरत नमूना है लेकिन अधिकांश लोग यहां इसके तहखाने को देखने के लिए आते हैं जिस पर गोलियों के निशान है। इन गोलियों के निशान के पीछे चेक इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय छिपा हुआ है। 75 वर्ष पहले, 18 जून 1942 को इसी तहखाने में सात चेक और स्लोवाक वायुसैनिकों ने बर्बर नाजी हुकूमत के खिलाफ अपनी अंतिम लड़ाई लड़ी थी। ये वायुसैनिक ऑपरेशन एन्थ्रोपोइड में शामिल थे जो बोहेमिया और...
Read Moreदुनिया के सैलानियों में कंबोडिया के अंगकोर वाट के मंदिरों की लोकप्रियता ठीक उसी तरह की है जैसे हमारे यहां स्थित ताजमहल की! यदि आप दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भ्रमण का मन बना रहे हों तो अपने यात्रा कार्यक्रम में कंबोडिया को अवश्य शामिल करें क्योंकि यहां एक ऐसी वास्तुशिल्पीय जादूनगरी है जिसका भव्य रूप आपको बार-बार रोमांचित करता रहेगा। यह जादूनगरी है अंगकोर वाट। कंबोडिया के सियमरीप शहर से करीब 5.5 किलोमीटर दूर स्थित अंगकोर वाट दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक परिसर माना जाता है। यह खमेर स्थापत्य कला और वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना होने के साथ-साथ कंबोडियाई लोगों का गौरवशाली प्रतीक भी है और कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज पर इसकी छवि अंकित है। प्राचीन कलाकारों ने अपनी कला-प्रतिभा की अभिव्यक्ति के लिए मंदिरो,मस्जिदों और गिरजाघरों को माध्यम बनाया था। पाषाण, ईंटों और चूना पत्थर से खड़े किए गए कई स्म...
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