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परंबिकुलम है केरल में खास

आप रोमांटिक सफर पर हो, वाइल्डलाइफ टूरिज्म के लिए या किसी रोमांच की तलाश में, परंबिकुलम टाइगर रिजर्व के जंगल और जानवर कभी आपको निराश नहीं करेंगे। यह वो जंगल है जिसे मशहूर पक्षी विज्ञानी सालिम अली जैसे दिग्गजों ने अपनी लेखनी व चित्रों से खासा सराहा है और अमूर्त रूप दिया है। परंबिकुलम इसलिए भी खास है क्योंकि यह देश के सबसे नए टाइगर रिजर्व में से एक है। इसे फरवरी 2010 में ही देश के 38वें टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला था।

परंबिकुलम टाइगर रिजर्व केरल के पल्लकड जिले में पल्लकड शहर से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर चित्तूर तालुक में है। यहां की पहाडिय़ों की ऊंचाई समुद्र तल से 300 मीटर से लेकर 1438 मीटर तक है। केरल जैसी जगह पर 1400 मीटर से ऊपर की ऊंचाई मौसम में खासा बदलाव ला देती है। बाकी केरल के विपरीत परंबिकुलम में बड़ा खुशनुमा मौसम रहता है। यहां का तापमान सामान्य तौर पर 15 डिग्री से 32 डिग्री सेल्शियस के बीच रहता है।

परंबिकुलम टाइगर रिजर्व अन्नामलाई और नेलियमपथी पहाड़ियों के बीच स्थित है। हरी-भरी पहाड़ियां और उनके बीच साथ मनमोहक घाटियां यहां आने वाले सैलानियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण हैं। रिजर्व का खासा हिस्सा अन्नामलाई पहाड़ियों पर है और उसकी कई चोटियां नीचे हरी-भरी वादियों का शानदार नजारा देती हैं। इनमें इस रिजर्व की सबसे ऊंची दक्षिण में 1438 मीटर की करीमाला गोपुरम है तो उत्तर में 1290 मीटर की ऊंचाई पर पंडारावरई। पूर्व में 1120 मीटर की ऊंचाई पर स्थित वेंगोलिमाला है तो पश्चिम में 1010 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पुलियारपदम। वेंगोलिमाला की तरफ अक्सर सैलानी नीलगिरी थार को देखने जाते हैं।  करीमलाई से थुनाकदावु और परंबिकुलम जलाशयों का बेहद शानदार नजारा ऊपर से देखने को मिलता है। जगह-जगह पर वॉच टावर भी बने हैं, जिनपर चढ़कर सैलानी नदी और हरी-भरी वादी का आनंद ले सकते हैं।

परंबिकुलम टाइगर रिजर्व चारों तरफ से कई अन्य संरक्षित वन्य अभयारण्यों से घिरा हुआ है। इसे देश के सबसे संरक्षित जैव पार्कों में से एक माना जाता है। बाघ से लेकर तेंदुए और हाथी व मगरमच्छ तक, इस पार्क के जंगल अपने में तमाम किस्म के वन्यजीवों व वनस्पतियों को समेटे हुए हैं। यह रिजर्व मुख्य रूप से अपने बाघों के लिए चर्चा में आया। वर्ष 2010 में जो सेंसस हुआ था, उसके अनुसार परंबिकुलम और उससे साथ लगे जंगलों में 32-26 बाघ थे। वैसे यहां स्तनपायी जीवों की 39 प्रजातियां हैं। जलचरों की 16 प्रजातियां यहां पर हैं। सरीसृपों (रेप्टाइल्स) की 61, मछलियों की 47 प्रजातियां यहां मिलती हैं। इस इलाके में हजार से ज्यादा तरह के कीड़े हैं और 124 किस्म की तितलियां।

यह जगह पक्षी प्रेमियों के लिए भी खास है क्योंकि यहां 250 से ज्यादा तरह के निवासी और प्रवासी पक्षी देखने को मिलते हैं। इतने जलाशयों की मौजूदगी यहां पर पक्षियों को देखने का शानदार मौका उपलब्ध कराती हैं। यहां मिलने वाले पक्षियों में ग्रे-हेडेड फिशिंग ईगल, पेनिनजुलर बे आउल (उल्लू), नीलगिरी वुड पीजन, ब्लैक कैप्ड किंगफिशर, ग्रेट ब्लैक वुडपेकेर (कठफोड़वा), और लेसर ग्रे-हेडेड फिश ईगल प्रमुख हैं।

इस रिजर्व को इस बात का भी श्रेय जाता है कि यहां दुनिया का सबसे पहला वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित सागौन (टीक) का बागान है। बाद में इस बागान को भी रिजर्व का हिस्सा बना दिया गया था। यहीं पर दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना सागौन का पेड़ भी है। इस पेड़ को यहां कन्निमारा कहते हैं। हालांकि माना जाता है कि यह एक आयरिश नाम कोन्नेमारा का अपभ्रंश है। यह पेड़ 350 साला पुराना बताया जाता है। इसकी ऊंचाई 40 मीटर है और इसका घेरा 6.4 मीटर का है। यह घेरा इतना बड़ा है कि चार लोग अपनी बाहें फैलाकर खड़े हों तो ही इस पेड़ को घेर सकते हैं। जंगल में रहने वाले जनजातीय लोग इस पेड़ को बड़ा खास मानते हैं। वे समय-समय पर यहां पूजा-अर्चना भी करते रहते हैं।

दरअसल 19वीं सदी में परंबिकुलम के जंगल दो अलग-अलग प्रशासकीय इकाइयों के रूप में थे- सुंगम फॉरेस्ट रिजर्व और परंबिकुलम फॉरेस्ट रिजर्व। 1886 में पहली बार यहां के संरक्षण की योजना बनी थी। उससे पहले इमारती लकड़ी के लिए यहां जंगलों में खूब कटाई होती थी। 1907 में तो बाकायदा यहां पटरी बिछाई गई थी ताकि पेड़ों को काटकर चलाकुड्डी तक पहुंचाया जा सके। 1921 में यहां सागौन के जंगल खड़े करने का सिलसिला शुरू हुआ था। 1951 में उस पटरी को खत्म कर दिया गया। फिर 1962 में यहां सागौन के पेड़ लगाने के लिए एक विशेष डिवीजन बनाया गया था। लेकिन जल्दी ही इस समूचे इलाके को परंबिकुलम अभयारण्य के तहत ले लिया गया और कुछ ही समय बाद इस सागौन डिवीजन को भी बंद कर दिया गया। इस रिजर्व में सागौन का आखिरी पेड़ भी 1983 में ही लगाया गया था।

कैसे पहुंचे

परंबिकुलम टाइगर रिजर्व वैसे तो केरल में है लेकिन रोचक बात यह है कि यहां जाने के लिए केरल से कोई रास्ता नहीं है। यहां जाना है तो आपको तमिलनाडु होकर जाना पड़ेगा। तमिलनाडु में पोल्लाच्चि होकर ही एक रास्ता परंबिकुलम जाता है। पोल्लाच्चि से परंबिकुलम की दूरी लगभग 65 किलोमीटर है। पोल्लाच्चि तमिलनाडु में कोयंबटूर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोयंबटूर ही परंबिकुलम के लिए सबसे निकट का हवाई अड्डा भी है और मुख्य लाइन का बड़ा रेलवे स्टेशन भी। पोल्लाच्चि में भी जंक्शन रेलवे स्टेशन है। पोल्लाच्चि आने का एक और अच्छा रास्ता केरल में पल्लकड (पालघाट) होकर है। परंबिकुलम टाइगर रिजर्व पल्लकड जिले में ही आता है। पल्लकड से पोल्लाच्चि के लिए दिन में चार ट्रेनें हैं। यह रास्ता महज एक से डेढ़ घंटे के बीच का है। दरअसल पोल्लाच्चि स्टेशन पल्लकड से पलानी तक की रेल लाइन पर आता है। लेकिन पल्लकड आने के लिए भी कोयंबटूर के रास्ते ही आना होगा। या फिर तिरुवनंतपुरम जाने वाली कोंकण रेलवे की मुख्य रेल लाइन पर शोरोन्नूर से पल्लकड के लिए दूसरी ट्रेन पकडऩी होगी। कोयंबटूर के रास्ते दिल्ली से पल्लकड के लिए भी सीधी ट्रेनें हैं।

परंबिकुलम के लिए केरल एसआरटीसी की एक बस पल्लकड से रोजाना सवेरे चलती है। तमिलनाडु एसटीसी की दो बसें पोल्लाच्चि से टॉपस्लिप के रास्ते परंबिकुलम के लिए चलती हैं- एक सवेरे और एक दोपहर में। टॉपस्लिप से दो-ढाई किलोमीटर आगे तमिलनाडु की सीमा खत्म हो जाती है। केरल में घुसने के बाद दो किलोमीटर आगे अनाप्पडी है। सार्वजनिक व निजी वाहनों से पहुंचने वालों को अनाप्पडी में उतरकर रिजर्व के इनफोरमेशन सेंटर से सफारी के लिए टिकट लेने होते हैं। अनाप्पडी से ही जंगल के भीतर अलग-अलग जगहों के लिए जाया जा सकता है। 350 साल पुराना कन्निमारा सागौन का पेड़ थुनक्कादावु में है जो अनाप्पडी से लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर है।

प्रवेश व सफारी

पोल्लाच्चि से परंबिकुलम के रास्ते में सेतुमदई से आरक्षित वन का इलाका शुरू हो जाता है- पहले तमिलनाडु वन विभाग का और आगे जाकर केरल वन विभाग का। तमिलनाडु वन विभाग सेतुमदई में प्रत्येक व्यक्ति से वन प्रवेश शुल्क लेता है और टॉपस्लिप से आगे केरल सीमा में प्रवेश करने पर केरल वन विभाग को भी प्रवेश शुल्क देना होता है। अनाप्पडी में रिजर्व के भीतर सफारी पर जाने के लिए केरल वन ïविभाग के वाहन जाते हैं। उसका शुल्क अलग होता है। बड़े 18 सीटर वाहन में लगभग 170 रुपये व्यक्ति शुल्क देना होता है। सफारी लगभग तीन घंटे की होती है। सफारी सवेरे भी होती है और शाम को भी। किसी भी अन्य टाइगर रिजर्व की ही तरह परंबिकुलम में भी बाघ दिखने के लिए थोड़ा धैर्य और थोड़ी किस्मत, दोनों चाहिए होते हैं।

यहां कुछ इलाकों में ट्रेकिंग की भी इजाजत है लेकिन उसके लिए साथ में प्रशिक्षित स्थानीय जनजातीय गाइड होना जरूरी है। यहां तीन-चार अलग-अलग ट्रैक हैं। जंगल में पैदल घूमते हुए जानवरों को नजदीक से देखने का अहसास अलग ही है।

कहां रुकें

अनाप्पडी और आसपास के इलाकों में रुकने के लिए कई सारी सुविधाएं हैं। रुकने के कई पैकेज भी उपलब्ध हैं जिसमें रुकना, सफारी, ट्रैकिंग, राफ्टिंग आदि सब शामिल हैं। अनाप्पडी में ही रुकने के लिए टेंट व कॉटेज उपलब्ध हैं। वहां एक हनी कॉंब काम्प्लेक्स है। थुनक्कादावु में एक ट्री टॉप हट है। करीमाला गोपुरम पहाड़ी के नीचे बाइसन वैली रेस्ट हाउस है। थुनक्कादावु जलाशय के ही आसपास ही रुकने की और भी कई सारी जगहें हैं। इनमें ज्यादातर में बुनियादी सुविधाएं शामिल हैं। आप चाहें तो खाने की व्यवस्था अलग से हो जाती है। पेरुवरिप्पलम जलाशय में एक छोटा सा द्वीप है, जिसमें बांस के पेड़ों के ऊपर एक बने हट में रुका जा सकता है। वेट्टिकुन्नु द्वीप में इसी तरह रुकने के लिए हट है।

क्या करें

परंबिकुलम में जंगल सफारी, कैंपिंग और ट्रैकिंग के अलावा बंबू राफ्टिंग भी की जा सकती है। बांस की बनी ये राफ्ट स्थानीय स्तर पर ही बनाई जाती हैं। यह राफ्टिंग आम तौर पर परंबिकुलम और पेरुवरिप्पलम जलाशयों में कराई जाती है। इसका टिकट अनाप्पडी में इनफोर्मेशन सेंटर से या परंबिकुलम से लिया जा सकता है। कुदरत को नजदीक से देखने के साथ-साथ इस राफ्टिंग के दौरान कई वन्यजीवों को भी देखा जा सकता है, जैसे कि हाथी, गौर, सांभर, हिरण, हॉर्नबिल, नीलगिरी लंगूर, जंगली कुत्ते, मगरमच्छ, तेंदुए और किस्मत ने साथ दिया तो बाघ भी। इसलिए यहां जाएं तो इस अनुभव को लेने का मौका न छोड़ें। इसके अलावा यहां कई नेचर कैंप भी लगाए जाते हैं ताकि युवा पीढ़ी को प्रकृति के विविध रूपों को लेकर और जागरूक बनाया जा सके। आसपास के इलाकों में रुकने के लिए कई सारी सुविधाएं हैं।

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