Wednesday, December 25
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शिरुई पहाड़ी के लिली

पूर्वोत्तर में नगालैंड व मणिपुर की सीमा पर स्थित डिजुको घाटी के बारे में आपने सुना होगा जो एक बेहद खूबसूरत फूलों की घाटी है। उसी घाटी में एक डिजुको लिली भी खिलता है जो बेहद दुर्लभ है। इस बार मैं आपको पूर्वोत्तर में ही एक और ऐसी जगह लेकर चल रहा हूं जो डिजुको की ही तरह अपने लिली के लिए बेहद प्रसिद्ध है। ये हैं मणिपुर की शिरुई या सिरोय पहाडिय़ों के लिली फूल। शिरुई पहाड़ी पर खिलने की वजह से इसे आम बोलचाल में शिरुई लिली कहा जाता है।

यह फूल की एक विदेशी वैरायटी है जो केवल उखरुल जि़ले में ही पाई जाती है। वर्ष 1946 में एक अंग्रेज वनस्पतिशास्त्री फ्रैंक किंगडम वार्ड फूल की इस विशिष्ट किस्म को खोजने वाला प्रथम व्यक्ति था। उसने इसका नाम अपनी पत्नी के नाम पर लिलियम मैकलिनिए रखा था। स्थानीय लोग सिरोय लिली को काशोंगवोन कहते हैं और यह अधिकतर शिरुई काशुग या शिरुई पर्वत पर पाया जाता है। काशोंग यानी पहाड़ी की चोटी और वोन यानी फूल। कुछ को बात है इस फूल की खूबसूरती में जो इसे राज्य के राजकीय फूल का दर्जा हासिल है।

शिरुई काशोंग चोटी उखरुल जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यह चोटी कुल 56 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली शिरुई श्रृंखला का सबसे ऊंचा बिंदु है। दिसंबर से फरवरी के बीच इस चोटी पर बर्फबारी भी होती है। इस चोटी से सात नदियां निकलती हैं- सिंगुइरा कोंग, नामरा कोंग, खोखती कोंग, मारेत कोंग, यांगुई कोंग, पातिक कोंग और नगयलसारी कोंग। कोंग शब्द का अर्थ है नदी। कहा यह भी जाता है कि इन नदियों की संख्या यहा नजर आने वाले लिली को नजदीक से देखने पर नजर आने वाले रंगों के समान है।

बहरहाल हकीकत यह है कि यह अनूठा फूल दुनिया भर में केवल यहीं पाया जाता है। ऐसी भी कहानियां बताई जाती हैं कि कुछ लोगों ने इस लिली को यहां से ले जाकर कहीं और बोने की कोशिश भी की लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए। आखिरकार, यहां की कई कथाओं में शिरुई को इस पहाड़ी की देवी की बेटी माना जाता है तो आप भला शिरुई लिली को इस पहाड़ी से कैसे अलग कर सकते हैं! बहरहाल, शिरुई पहाड़ी की तलहटी में वहां से ऊपर जाने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन किया जाता है। उसके बाद आप ऊपर ट्रैक के लिए जा सकते हैं। शिरुई लिली फूल उस समय खिले होते हैं जब बाकी पूरे देश में मौसम गर्म होता है, यहां तक कि इंफाल में भी। लेकिन शिरुई पहाड़ी पर आपको उस समय भी हल्की रिमझिम बारिश मिल सकती है। हालांकि थोड़ी बारिश मौसम की तपिश को कम करके चोटी तक ट्रैक को आसान ही बनाती है। जिन्हें चलने और थोड़ी बहुत पहाडिय़ां चढऩे की आदत है, उनके लिए यह चढ़ाई ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिए। कुछ जगह यह समतल सर्पीला रास्ता है तो कुछ जगहों पर सीढिय़ों के माफिक पत्थर तो कहीं जंगल के बीच से चढ़ाई।

रास्ते में चलते हुए कई बार आपको ऐसे पेड़-पौधे नजर आ जाएंगे जो आपने जीवन में और कहीं नहीं देखे होंगे। शुरुआत का सर्पीला रास्ता पार करने के बाद आप एक सीढ़ीनुमा रास्ते पर चढ़ेंगे। कुछ देर उन सीढिय़ों पर चढ़ाई चढऩे के बाद आप एक घाटी में पहुंच जाएंगे। आपकी एक तरफ जंगल होगा और दूसरी तरफ नीचे ढलान और दूर नजर आते गांव। आगे चलकर एक घसियाले मैदान में एक पुरानी लकड़ी का टूटा-फूटा घर नजर आएगा। यहां आप थोड़ा आराम कर सकते हैं, यहां भी आपको कहीं-कहीं लिली खिले नजर आ सकते हैं। लेकिन आपकी मंजिल दूर है।

वहां से शिरुई पहाड़ी की चोटी के लिए थोड़ी चढ़ाई और है। यह रास्ता भी थोड़ा थकाने वाला है। लेकिन एक बार 2763 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उस लिली के बागान में पहुंचेंगे तो रास्ते की सारी तकलीफ और थकान भूल जाएंगे। महज एक से तीन फुट तक ऊंचे पौधे पर लगे गुलाबी रंग के इस शिरुई लिली के रूप में इतनी मनमोहक ताकत है। अक्सर लिली के पौधे में आपको एक ही फूल लगा मिलता है लेकिन कभी-कभी आपको एक ही पौधे में नौ फूल तक मिल सकते हैं।

चोटी से नजारा भी बहुत शानदार होता है। आपको वहां से दूर म्यांमार के इलाके नजर आ सकते हैं। नीचे फूलों से लकदक हरी-भरी घाटी आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती है।

शिरुई में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस चोटी पर परी राजकुमारी काशोंग फिलावा का वास है और यह चोटी व उसकी तमाम वनस्पति और पशु-पक्षी उसके नियंत्रण में हैं, वही उनकी हिफाजत भी करती है। तांगखुलों के पूर्वज कई पीढिय़ों से इस पहाड़ को पवित्र मानते रहे हैं। इस पहाड़ पर होने वाली बर्फबारी को उस मौसम की संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। एक और मान्यता यह है कि अगर कोई शिरुई काशोंग चोटी पर खड़ा होकर कोई इच्छा करता है तो वह जरूर पूरी होती है।

कब व कैसे

शिरुई लिली के खिलने का चरम समय आम तौर पर मई के दूसरे हफ्ते से लेकर जून के दूसरे हफ्ते तक रहता है। मणिपुर पर्यटन ने अब हर साल यहां शिरुई लिली फेस्टिवल आयोजित करना शुरू किया है। इस साल यह फेस्टिवल 25 से 28 मई 2022 को है।

वैसे तो यह गर्मी के दिन होते हैं लेकिन शिरुई पहाड़ी खासी ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए ऊपर पहुंचकर हवा चलने की स्थिति में थोड़ी ठंडक महसूस हो सकती है। उसके अलावा मई के अंत में बारिश का मौसम भी शुरू हो जाता है। इन दोनों ही स्थितियों से बचाव के लिए कपड़े, बरसाती या छाते आदि का पूरा इंतजाम रखें। ऊपर जाने का रास्ता बहुत कठिन नहीं, लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि आपको चलने का अभ्यास कितना है। अच्छा अभ्यास हो तो पांच से छह घंटे के भीतर आप ऊपर जाकर नीचे लौट सकते हैं। यह इस पर भी निर्भर करता है कि आप ऊपर कितना वक्त गुजारते हैं।

वैसे इस लिली के अलावा भी शिरुई काशोंग पहाड़ी पर सालभर कई तरह के फूल खिलते हैं। पहाड़ी के घसियाले ढलान पर 150 से ज्यादा किस्म के फूल देने वाले पौधे हैं। इनमें बुरांश (रोडोडेंन्ड्रोन) भी हैं और कई दुर्लभ किस्म के ऑर्किड भी। शिरुई श्रृंखला की दूसरी व तीसरी चोटी के बीच बुरांश की सात किस्में मिलती हैं जिनमें सफेद फूलों वाले बुरांश की किस्म भी है। अन्य कई बहुरंगी फूल यहां खिले रहते हैं। इनमें एक और अहम फूल छायाहीन सफेद रंग का फूल है जो यहां हजारों की तादाद में मौजूद है। स्थानीय भाषा में इसे होराम वोन कहा जाता है यानी बर्फ का फूल। जब यह फूल समूची पहाड़ी को ढक लेता है तो ऐसा लगता है मानो यहां बर्फ की चादर बिछ गई हो। इसके अलावा यहां जंगली गुलाब भी हैं।

इतनी खूबसूरत जगह हो तो स्वाभाविक है कि यहां पक्षी भी होंगे ही। यह इलाका होर्नबिल के अलावा ट्रैगोपान ब्लाइथ और शिरी नामक प्रवासी पक्षी का भी बसेरा है। शिरुई काशोंग का बफर क्षेत्र 120 वर्ग किलोमीटर का है।

उखरुल और आसपास

यदि आपको हरियाली आकर्षित करती है तो आपको उखरुल ज़रूर आना चाहिए। उखरुल करामाती, सुंदर और अद्भुत है। भीड़भाड़, कारों के शोर, बड़ी इमारतों और कोलाहल वाले भवनों से दूर बसा यह शहर स्वर्ग जैसा लगता है। इसीलिए इसका दूसरा नाम ग्रीन टाउन भी है।

उखरुल अनेक पर्यटन स्थलों से भरा हुआ है। उखरुल में और इसके आसपास अनेक लोकप्रिय पार्क, चोटियाँ और झरने हैं। डंकन पार्क और अल शैदाई पार्क पर्यटकों के लिए आदर्श पिकनिक स्पॉट हैं। खयांग झरना और वन क्षेत्र, एंगो चिंग आदि उन जगहों में से हैं जहां अभी सैलानियों की रेलमपेल नहीं है। एक समतल पहाड़ी, लुंघर सिहाई फानग्रेइ और काचोउ फुंग झील खाली समय में टहलने के लिए एक अच्छी जगह है। खयांग पर्वत और निल्लाइ चाय बागान हरियाली से भरे हैं। पुरातत्व में रुचि रखने वाले लोगों के लिए खांगखुंई मंगसर गुफा एक बड़ा आकर्षण है। उखरुल की अपनी ऊंचाई समुद्र तल से 1662 मीटर है। यानी आपको शिरुई पहाड़ी के लिए एक हजार मीटर और ऊंचाई पर जाना होता है।

उखरुल जिला मणिपुर की राजधानी इंफाल से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उखरुल सीमावर्ती जिला है और उसकी सीमा पड़ोसी देश म्यांमार से लगती है। राजधानी इंफाल से सड़क के रास्ते उखरुल तक पहुंचा जा सकता है। इसी तरह सड़क के रास्ते उखरुल से शिरुई पहाड़ी की तलहटी तक पहुंचा जा सकता है। उखरुल में रुकने के लिए भी लॉज, होटल व गेस्टहाउस की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

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