केरल में ही कई ऐसे नेशनल पार्क व वाइल्डलाइफ रिजर्व हैं जो सैलानियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। लेकिन साइलेंट वैली नेशनल पार्क उन सबसे बहुत अलग है। यहां जो जैव विविधता है, वह कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहां जो सुकून है, और जो शांति है, वह भी कहीं और मिलनी मुश्किल ही है। तो जंगल में नीरवता कोई खास बात नहीं। लेकिन किसी वन में इतनी खामोशी हो कि वहां झिंगुरों तक की आवाज सुनाई न दे, तो वाकई हैरानी होती है। दरअसल साइलेंट वैली को अपना नाम इसी खासियत के चलते मिला। साइलेंट वैली यानी खामोश घाटी। लेकिन इस खामोश वन में भी जैव-विविधता की अद्भुत भरमार है। हकीकत तो यह है कि जिस तरह की जैव विविधता यहां देखने को मिलती है, वैसी पश्चिमी घाट में और कहीं नहीं मिलेगी। यहां के कुछ वनस्पति और जीव-जंतु तो पूरी दुनिया में दुर्लभ हैं। कुदरत का यह अनमोल खजाना नीलगिरी पहाडिय़ों में है। साइले...
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मलाबार का इलाका केरल की कई पारंपरिक कलाओं का केंद्र रहा है। इनमें तैय्यम और कलरिपयट्टु शामिल हैं। वहीं कर्नाटक से लगे उत्तर केरल में कासरगोड यक्षगान और पुतलियों के नाच के लिए प्रसिद्ध है। तैय्यम को कलियट्टम भी कहा जाता है। यह नृत्य परंपरा कम से कम आठ सौ साल पुरानी बताई जाती है। यह उत्तर केरल में प्रचलित रहा मूलत: धार्मिक अनुष्ठान का नृत्य है। कन्नूर व कासरगोड जिलों में इस कला की खास तौर पर परवरिश हुई। यह भी कहा जाता है कि तैय्यम दरअसल दैवम् शब्द का अपभ्रंश या देशज रूप है। इसमें नृत्य है,अभिनय है, संगीत है और प्राचीन जनजातीय संस्कृति की झलक इसमें साफ देखने को मिलती है। उसमें नायकों के यशोगान और पूर्वजों की आत्माओं के ध्यान को ज्यादा अहमियत दी जाती थी। केरल में तैय्यम की एक प्रस्तुति माना जाता है कि लगभग चार सौ किस्म के तैय्यम प्रचलन में हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय रक्त चामुंडी,...
Read Moreदक्षिण मलाबार इलाके पर निला, जिसे अब भरतपुझा नदी भी कहा जाता है, का बड़ा ही मजबूत सांस्कृतिक प्रभाव रहा है। यह नदी तमिलनाडु में पश्चिमी घाट की अनइमलाई पहाडिय़ों से निकलती है और केरल के मलाबार इलाके के तीन जिलों- पालक्कड, त्रिशूर व मलप्पुरम से होकर गुजरती है। मलप्पुरम जिले में पोन्नानि में अरब सागर में मिलने से पहले यह नदी इन जिलों के ग्यारह तालुकों से होकर गुजरती है। निला या भरतपुझा नदी यह नदी यहां के सांस्कृतिक जनजीवन का हिस्सा है और नदी, इसके किनारे बने मंदिरों और उन मंदिरों में बैठे देवी-देवताओं से जुड़ी कई लोककथाएं व मिथक प्रचलन में हैं। इस नदी का तट कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों का भी गवाह रहा है। जमोरिन राजाओं के समय में मलप्पुरम में तिरुनवया में हर 12 साल में केरल के सभी शासकों का महा-समागम- ममंगम होता था। यह समागम आखिरी बार 1766 में हुआ। आज यहां सालाना सर्वोदय मेला होता है। उसके अ...
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