वैसे तो भोपाल की पहचान झील नगरी के तौर पर है लेकिन इसी नगर में दर्जन भर नायाब संग्रहालय भी हैं। इतने संग्रहालय शायद ही किसी दूसरे शहर में आपको मिलें। इसलिए इस बात पर अफसोस होता है कि जब भी भोपाल का जिक्र होता है तो झीलों के बीच यहां के संग्रहालयों की बात कहीं गुम होकर रह जाती है। यूं तो संग्रहालय देश के हर शहर में मिल जाएंगे लेकिन भोपाल के संग्रहालयों की बात कुछ अलग है। मध्यप्रदेश पुरा सामग्री के लिहाज से सबसे समृद्ध राज्यों में एक है। इसलिए सामग्री के लिहाज से यहां के संग्रहालय काफी समृद्ध हैं। भोपाल के दर्जन भर संग्रहालय व सांस्कृतिक केंद्र इसको एक अलग पहचान देते हैं। इनमें मानव जीवन की झांकी से लेकर राज्य की पुरा धरोहरों, आदिम जनजीवन, प्रदर्शनकारी कला, समाचार पत्र पत्रिकाओं के विकास, दूरसंचार, इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम की झलक से रु-ब-रु हुआ जा सकता है। बड़ी छोटी झीलें भ...
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Tiger reserves, national parks and wildlife sanctuaries reopened in Madhya Pradesh on Thursday, after remaining closed for three months due to rains, an official said. Tourist footfall on the first day was fairly good, as at least 36 jeeps with visitors operated at Kanha Tiger Reserve, principal chief conservator of Forest (Wildlife) Alok Kumar told this afternoon. Tiger in Bandhavgarh. File Photo: Gagan Nayar The core areas of tiger reserves and national parks had remained closed between July and September due to rains. This year, since parks were closed after corona outbreak in March, state forest department kept the buffer zones open even during monsoon months. State tourism department even ran a campaign #buffermeinsafar to attract the tourists after the lockdown was graduall...
Read Moreमध्य प्रदेश जंगलों से भरा-पूरा है। एक से बढ़कर एक टाइगर रिजर्व हैं यहां। लेकिन इनके बीच भीड़ से दूर कई खामोश सुकून भरे जंगल भी हैं बारिश के दिन हो या गुजरते मानसून वाले दिन, जंगल प्रेमियों के लिए अक्सर ये दिन लुभावने लगते हैं। अक्टूबर से खुलने वाले राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिजर्व की ओर बेतहाशा भीड़ बढ़ जाती है। ऐसे में कुछ ऐसे पड़ाव होते हैं, जो थोड़े सकून से घूमने वालों के लिए पहली पसंद बन जाते हैं। ऐसा ही एक पड़ाव है मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले का नरसिंहगढ़ अभयारण्य। यूं तो यहां गर्मी के दिनों को छोड़कर कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन मानसून की उतरन के बाद यहां की सैर वाकई शानदार होती है। तभी तो इस क्षेत्र को मालवा का कश्मीर कहा जाता है। अभयारण्य के बीच चिड़ीखो तालाब यहां की कुदरती खूबसूरती का नायाब तोहफा है। भोपाल के आसपास के जंगलों की हर बार की सैर रोमांचकारी होती है। बाहर से आने...
Read Moreघूमने की चाहत हो लेकिन दिमाग पर काम का बोझ, तो भला क्या किया जाए। इसी में बीच का रास्ता निकालने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन लेकर आया है ‘वर्केशन’ की अवधारणा यानी ‘वर्क के साथ वेकेशन’ या काम के साथ-साथ छुट्टियां और घूमना-फिरना। इसमें आपको मिलेगा आपके रुकने की जगह पर दफ्तर का सा ढांचा, जिसमें आप तसल्ली से अपना काम कर सकेंगे और साथ में आपके पास होगा ढेर सारा समय जिसमें आप आसपास घूम सकेंगे, लोगों से मिल-जुल सकेंगे, प्रकृति का आनंद ले सकेंगे और अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में नई ऊर्जा फूंक सकेंगे। यानी ‘वर्क फ्रॉम होम’ वालों के लिए अब ‘वर्क फ्रॉम वेकेशन’ की सुहूलियत है। कोविड 19 महामारी के खतरे से बचने के लिए भारत समेत दुनिया भर की कंपनियॉ अपने कर्मचारियों की सेहत को ध्यान में रखते हुए उन्हें घर से काम करने (वर्क फ्रॉम होम) के मौके दे रही है, लोगों को अक्सर घर से काम करने की बात रोमांचक लगत...
Read MoreThe wait is over and Madhya Pradesh tourism wants to announce it in big way. It has launched a campaign “#IntezaarKhatamHua” to build the confidence and trust amongst the travellers and to keep the audience engaged during the monsoon season by featuring the major monsoon tourism attractions of the destinations like Amarkantak, Panchmarhi, Mandu, Orchha, Tamia, Bhedaghat, and all its National Parks. In the process it also wants to promote state as next big roadtrip and caravan tourism destination. Shiva temple at Bhojpur is a big draw Madhya Pradesh already has some popular monsoon destinations like Mandu and Pachmarhi and this time around after reopening the state borders for domestic tourists in post-COVID-19 lockdown situations, it has also kept buffer zones of all its national pa...
Read Moreएक जिप्सी में ड्राइवर और गार्ड मिलाकर कुल आठ लोग बैठकर पार्क के अंदर जा सकते हैं, पर हमलोग कुल छह ही थे। सूर्योदय के साथ ही पार्क के अंदर प्रवेश दे दिया जाता है, पर कुछ कागजी खानापूर्ति करने में देर हो गई और पार्क के अंदर जाने वाली गाड़ियों में सबसे अंतिम हमारी ही थी। मेरे साथ मंजू, रूबी और विनय थे। बाघ देखने की बेचैनी सभी के चेहरे पर दिख रही थी। इच्छा मेरी भी थी। बांधवगढ़ नेशनल पार्क के कोर एरिया की पहले की दो यात्राओं में भी मुझे बाघ के दर्शन नहीं हो पाए थे। कोर एरिया की यह तीसरी यात्रा थी। इसके पहले बफर जोन में भी तीन-चार यात्राएं कर चुका हूं। पर मैं यह जान चुका था कि सिर्फ बाघ देखने की चाहत में जंगल घुमने का आनंद नहीं लिया जा सकता। गाइड भी इस बात से वाकिफ था कि जिस समय हम पार्क के अंदर जा रहे थे, उस समय के बाद बाघ का दिखना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन यह भी जरूरी नहीं कि अल सुबह पार्क मे...
Read MoreDevadasi dance by Dr Yashoda Rao Thakore at Khajuraho festival of dances (2015) was perhaps the biggest achievement of this year's dance festival. This was perhaps the first time that Devadasi dance was performed as an independent classical form of dance at any national platform. Yashoda Rao Thakore is a famous Kuchipudi dancer and has written a thesis on 'Temple of Songs of Andhra Temple dancers'. https://youtu.be/GS4ZIB42rDM ...
Read Moreजब अपने शहर और राज्य की सीमाओं से बाहर कोई घूमने निकलता है, तो बहुत जल्दी ही वह विश्वविख्यात ताज महल को देख चुका होता है। उत्तरप्रदेश के आगरा शहर में स्थित सफेद संगमरमर से बने इस विख्यात मकबरे को मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में प्रेम के प्रतीक के रूप में बनवाया था। ताज महल को मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। 1983 में इसे युनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया था। ताज महल दुनिया के सात आश्चर्य में भी शामिल रहा है। मुख्य मकबरे सहित आसपास के पूर्ण विकसित परिसर को बनाने में लगभग 22 साल लगे थे। यह संभव है कि आपने आगरा का ताज महल देख लिया हो, लेकिन क्या आपने काला ताज महल देखा है? ऐसी मान्यता है कि वर्तमान ताज महल के सामने यमुना के दूसरी ओर शाहजहां के मकबरे के रूप में काला ताज महल बनाया जाना था, लेकिन वह बनाया नहीं जा सका। इस मान्यता से परे सफेद स...
Read Moreमध्य प्रदेश तो इतिहास, कला, स्थापत्य, शिल्प, परंपरा, प्राकृतिक सौंदर्य और वन्य जीव संरक्षण क्षेत्रों का खज़ाना है, लेकिन इस बार मेरा मन अटक गया महेश्वर पर। दिल्ली से इंडिगो की सवेरे 11 बजे की फ्लाइट ली और डेढ़ घंटे में आ पहुंचे हम इंदौर एयरपोर्ट पर। वहां पहले से ही बुक की हुई टैक्सी पकड़ी और चल पड़े सीधे महेश्वर की ओर। इंदौर नगर पार करते-करते कुछ भूख महसूस हुई तो ए.बी. रोड पर राजेंद्र नगर में ड्राइवर ने श्रीमाया सेलिब्रेशन रेस्टोरेंट के सामने गाड़ी को रोक दिया। घाट पर कुछ साधु बैरागी अलमस्त अपने में मग्न, तो कहीं स्नान करते श्रद्धालु और, उधर पश्चिम में सूर्य अपनी सुनहरी आभा के साथ विदा लेने की तैयारी में... महेश्वर का यह बहुत ही सुंदर नज़ारा था साफ़ और सुंदर, हरियाली से घिरे इस स्पेशियस रेस्टोरेंट में मल्टी-क्यूज़िन व्यंजन उपलब्ध हैं, और साथ में हैं चुस्त सेवा। मेन्यू देखिए, पेमेंट...
Read Moreखजुराहो का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा था। खजिरवाहिला से नाम पड़ा खजुराहो। लेकिन यह अपने आप में अद्भुत बात है कि यहां कोई भी खजूर के लिए नहीं आता। यहां आने वाले इसके मंदिरों को देखने आते हैं। भारतीय मंदिरों की स्थापत्य कला व शिल्प में खजुराहो की जगह अद्वितीय है। इसकी दो वजहें हैं- एक तो शिल्प की दृष्टि से ये बेजोड़ हैं ही, दूसरी तरफ इनपर स्त्री-पुरुष प्रेम की जो आकृतियां गढ़ी गई हैं, उसकी मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिलती। यही कारण है कि खजुराहो को यूनेस्को से विश्व विरासत का दरजा मिला हुआ है। भारत आने वाले ज्यादातर विदेशी पर्यटक खजुराहो जरूर आना चाहते हैं। वहीं हम भारतीयों के लिए ये मंदिर एक हजार साल पहले के इतिहास का दस्तावेज हैं। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेल वंश के राजाओं ने किया था। इनके निर्माण के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। कहा जाता ह...
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