Saturday, May 18
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बाघों व बघेलों का बांधवगढ़

एक जिप्सी में ड्राइवर और गार्ड मिलाकर कुल आठ लोग बैठकर पार्क के अंदर जा सकते हैं, पर हमलोग कुल छह ही थे। सूर्योदय के साथ ही पार्क के अंदर प्रवेश दे दिया जाता है, पर कुछ कागजी खानापूर्ति करने में देर हो गई और पार्क के अंदर जाने वाली गाड़ियों में सबसे अंतिम हमारी ही थी। मेरे साथ मंजू, रूबी और विनय थे। बाघ देखने की बेचैनी सभी के चेहरे पर दिख रही थी। इच्छा मेरी भी थी। बांधवगढ़ नेशनल पार्क के कोर एरिया की पहले की दो यात्राओं में भी मुझे बाघ के दर्शन नहीं हो पाए थे। कोर एरिया की यह तीसरी यात्रा थी। इसके पहले बफर जोन में भी तीन-चार यात्राएं कर चुका हूं। पर मैं यह जान चुका था कि सिर्फ बाघ देखने की चाहत में जंगल घुमने का आनंद नहीं लिया जा सकता। गाइड भी इस बात से वाकिफ था कि जिस समय हम पार्क के अंदर जा रहे थे, उस समय के बाद बाघ का दिखना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन यह भी जरूरी नहीं कि अल सुबह पार्क में चले जाएं, तो बाघ दिख ही जाए। पहले की यात्राओं का यह अनुभव है। बाघ दिखना हो, तो कभी भी और कोर एरिया के बाहर भी दिख सकता है।

बांधवगढ़ में सफारी

खैर, हमारी जिप्सी पार्क के गेट पर पहुंच गई। मैंने गाइड से साफ-साफ कह दिया कि बाघ का दिखना जरूरी नहीं है, पर ढाई घंटे जंगल में मजे से गुजारने हैं। पक्षियों एवं अन्य जानवरों को भी खुले में देखना बहुत ही आनंददायी होता है। बांधवगढ़ में बाघों की संख्या अन्य पार्कों की तुलना में बहुत ज्यादा है, पर अन्य जंगली जानवर एवं पक्षियों की कई प्रजातियां भी बड़ी संख्या में हैं। पार्क के अंदर हमलोग मगधी जोन से गए। यहां ताला, मगधी एवं खितौली तीन जोन है, जिसके माध्यम से पार्क के अंदर पर्यटन के लिए रूट बना हुआ है। ताला जोन में कंदराएं, गुफाएं, तालाब एवं घाटियां हैं, जहां ज्यादातर बड़े जंगली जानवर आराम फरमाते हैं। बांधवगढ़ किला भी ताला जोन में ही है।
मगधी एवं खितौली जोन में बाघ एवं तेंदुआ बहुत आसानी से नहीं दिखते। मगधी जोन के बाद पार्क का बफर जोन लग जाता है, जहां तक आसपास के ग्रामीणों को भी आने-जाने की छूट है। बाघ और तेंदुए जब अंदर शिकार नहीं कर पाते, तब गाय-भैंस का शिकार करने के लिए इधर चले आते हैं। तो, पार्क में घुसते ही सबसे पहले जिस जंगली जानवर से सामना हुआ, वह था सूअर। बड़ी संख्या में जंगली सूअर पास के मैदान में दिख रहे थे। कैमरे के कुछ क्लिक में उन्हें कैद किया और फिर हम आगे बढ़ चले। इसके बाद अगले दो घंटे में बाघ भले ही नहीं दिखा, जिसकी संभावना पहले से ही थी, पर हमने जंगल का भरपूर आनंद उठाया।

जंगल में मस्ती मारते बंदर व चीतल

सूअरों को देखने के बाद कुछ आगे बढ़े, तो चीतल का एक बड़ा झुंड घास चरते हुए दिखाई दिया। मैंने ड्राइवर को जिप्सी रोकने के लिए कहा और चीतल सरपट इधर से उधर भागने लगे। चेहरे पर अलग-अलग भाव लिए आंख से आंख मिलाकर उनमें से कई सारे ओझल हो गए। कुछ दूर आगे बढ़ने पर कई जिप्सियों में सवार पर्यटक दिखने लगे। एक जिप्सी के गाइड दूसरी जिप्सी के गाइड से, एक जिप्सी के पर्यटक दूसरी के पर्यटक से – कहीं कुछ दिखा, कुछ संकेत, कुछ संभावना, कहीं पंजे का निशान (पगमार्क), बच्चों के साथ वाली बाघिन? कुछ शब्दों के ये अधूरे वाक्य गाइड एवं पर्यटकों के बीच आपसी सवाल है और सबकुछ केंद्रित है – बाघ दर्शन की संभावनाओं पर। जिप्सी पर सवार गाइड एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं. कभी इस बीट से तो कभी उस बीट से कॉल आता है, ’’बंदर ने इधर कॉल दिया है/बाघ के पंजे का ताजा निशान इधर है/इधर से दहाड़ सुनाई पड़ी आदि। इस बीच गाइड यह भी बताते हैं कि इस इलाके में तीन शावकों के साथ बाघिन रहती है, तो इस इलाके में कल बाघ दिखाई पड़ा था। ऐसे में पार्क के अंदर घुमने का रोमांच बरकरार रहता है। इस बीट से उस बीट पर कभी सरपट तो कभी धीमी रफ्तार से जिप्सी में बैठे-बैठे मैंने कई जंगली जानवरों – सियार, सांभर, चीतल, सूअर, बारासिंघा, मोर, लंगूर आदि के साथ-साथ कई पक्षियों के दर्शन किए। आगे एक फॉरेस्ट कैंप पर जिप्सी रुकी। वहां कई विदेशी सैलानियों से बात हुई, सब बाघ देखने आए थे। पगमार्क के दर्शन तो उन्हें हुए, पर बाघ के नहीं। हां, जिन्हें जंगल घुमने का मजा लेना था, वे ले रहे थे।

टकटकी लगाकर देखता सांभर

अब पार्क के बाहर निकलने का वक्त हो रहा था, पर मन अंदर से बाहर आने का नहीं हो रहा था। तभी हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई। मौसम के इस करवट ने माहौल को रोमांटिक बना दिया। सामने एक पेड़ की ऊंची टहनी पर बैठे पक्षी का जोड़ा प्यार में तल्लीन दिख गया। उससे कुछ आगे एक मोर मगन होकर नाच रहा था। बिना उनकी इजाजत के उन खूबसूरत नजारों को कैमरे में कैद कर लिया। आगे एक काला हिरण दिखाई दिया। पहले उसके चेहरे पर घबराहट के भाव आए और लगा कि वह दौड़ लगा देगा। पर जब कैमरे को उसकी ओर किया, तो ऐसा लगा वह अपने सुंदर श्यामल चेहरे की तस्वीर उतरवाना चाहता है।

पार्क से बाहर आए, तो गाइड एवं ड्राइवर से चाय-नाश्ते के लिए चलने को कहा। उनके चेहरे पर बाघ नहीं दिखा पाने का अफसोस था। उन्होंने बताया कि कई बार बाघ घने जंगलों में भी नहीं दिखते, पर दिखना हो, तो मुख्य सड़क पर भी दिख जाते हैं। एक दुकान पर चाय-नाश्ते के लिए हमलोग बैठ गए। तभी मैंने अचानक जोर से कहा, ‘‘वो रहा बाघ।’’ सभी ने अपनी नजरे आश्चर्य से उधर घुमाई। सबने मुस्करा दिया। सामने एक स्टूडियो के बाहर पोस्टर में बाघ टंगे पड़े थे।

जंगल में मोर नाचा, किसने देखा

बांधवगढ़ जाने के लिए उमरिया नजदीकी रेलवे स्टेशन है। दिल्ली, ग्वालियर, जबलपुर, रायपुर या बिलासपुर से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। फ्लाइट से खजुराहो या जबलपुर उतरकर 4 घंटे में सड़क मार्ग से बांधवगढ़ पहुंचा जा सकता है। यहां ठहरने के लिए मध्यप्रदेश पयर्टन विकास निगम के होटलों के अलावा कई निजी बजट एवं महंगे होटल हैं। पार्क घुमने का प्लान करें, तो पहले ही http://mponline.gov.in/ पर जाकर पार्क में इंट्री की बुकिंग करा लें। पर्यटकों के लिए पार्क 15 अक्तूबर से 30 जून तक खुला रहता है। मानसून के दिनों में पार्क बंद रहता है। हालांकि इस साल कोविड-19 के कारण चार महीने बंद रहने के बाद खुले मध्य प्रदेश के नेशनल पार्क के बफर जोन मानसून में भी खुले रहेंगे।

शेष शैया पर विष्णु

सफेद बाघ वाले क्षेत्र के रूप में विख्यात मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित बांधवगढ़ पुराने समय से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। 450 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस पार्क में बाघों का घनत्व सबसे ज्यादा है। बांधवगढ़ में वन्य जीव एवं प्राकृतिक सौंदर्य तो है ही, साथ ही यहां का इतिहास भी समृद्ध है। बांधवगढ़ के अंदर 800 मीटर की ऊंचाई पर बनाए गए 2000 साल पुराने बांधवगढ़ किले से चारों ओर का नजारा बहुत ही विहंगम दिखाई पड़ता है। बांधवगढ़ किले के उत्तरी हिस्से की गुफाओं की खुदाई में ब्राह्मी अभिलेख भी मिले हैं। किले के पास ही चरणगंगा नदी है, जिसके बाजू में शेष शैया पर विराजमान विष्णु की विशाल मूर्ति है। बघेल म्युजियम में यहां के समृद्ध इतिहास की झलक को देखा जा सकता है। ताला जोन से पार्क के अंदर जाने पर चरणगंगा के पास पुरातात्विक स्थलों को देखा जा सकता है।

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