सुरकंडा का मंदिर देवी का महत्वपूर्ण स्थान है। दरअसल गढ़वाल के इस इलाके में प्रमुखतम धार्मिक स्थान के तौर पर माना जाता है। लेकिन इस जगह की अहमियत केवल इतनी नहीं है। यह इस इलाके का सबसे ऊंचा स्थान है और इसकी ऊंचाई 9995 फुट है। मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है। इसके चलते जब आप ऊपर हों तो चारों तरफ नजरें घुमाकर 360 डिग्री का नजारा लिया जा सकता है। केवल इतना ही नहीं, इस जगह की दुर्लभता इसलिए भी है कि उत्तर-पूर्व की ओर यहां हिमालय की श्रृंखलाएं बिखरी पड़ी हैं। चूंकि बीच में कोई और व्यवधान नहीं है इसलिए बाईं तरफ हिमाचल प्रदेश की पहाडिय़ों से लेकर सबसे दाहिनी तरफ नंदा देवी तक की पूरी श्रृंखला यहां दिखाई देती है। सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री यानी चारों धामों की पहाडिय़ां नजर आती हैं। यह एक ऐसा नजारा है तो वाकई दुर्लभ है। गढ़वाल के किसी इलाके से इतना खुला नजारा देखने को नहीं मिलता। एक इसी नजारे के लिए इस जगह को मसूरी, धनौल्टी व चंबा जैसी जगहों से भी कहीं ऊपर आंका जा सकता है। और तो और, चूंकि सुरकंडा का मंदिर लगभग दस हजार फुट की ऊंचाई पर है, इसलिए यहां बर्फ भी मसूरी-धनौल्टी से ज्यादा गिरती है। मार्च की शुरुआत तक यहां आपको बर्फ जमी मिल जाएगी। फिर कद्दूखाल ठीक राजमार्ग पर स्थित होने की वजह से पहुंचना सहज होने के कारण भी यह जगह ज्यादा आकर्षक बन जाती है।
सुरकुट पर्वत पर गिरा था सती का सिर जब राजा दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में यज्ञ किया तो पुत्री सती व उनके पति शंकर को आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान से क्षुब्ध सती ने यज्ञ कुण्ड में प्राणों की आहुति दे दी। पत्नी वियोग में व्याकुल व क्रोधित भगवान शंकर सती के शव को लेकर हिमालय की ओर चल दिए। इस दौरान भगवान विष्णु ने महादेव का बोझ कम करने के लिए सुदर्शन चक्र को भेजा। इस दौरान सती के शरीर के अंग भिन्न जगहों पर गिरे। माना जाता है कि इस दौरान सुरकुट पर्वत पर सती का सिर गिरा तभी से इस स्थान का नाम सुरकंडा पड़ा। चंबा प्रखंड का जड़धारगांव देवी का मायका माना जाता है। यहां के लोग विभिन्न अवसरों पर देवी की आराधना करते हैं। मंदिर की समस्त व्यवस्था वही करते हैं। पूजा-अर्चना का काम पुजाल्डी गांव के लेखवार जाति के लोग करते है। सिद्धपीठों में मां सुरकंडा का महातम्य सबसे अलग है। देवी सुरकंडा सभी कष्टों व दुखों को हरने वाली हैं। नवरात्र व गंगादशहरे के अवसर पर देवी के दर्शनों से मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि सुरकंडा मंदिर में प्रतिवर्ष गंगा दशहरे के मौके पर विशाल मेला लगता है।
सुरकंडा में चढ़ाई के लिए नीचे कद्दूखाल से ऊपर चोटी तक सीढिय़ां बनी हुई हैं। सीढिय़ाँ ख़त्म होने के साथ ही ढ़ालनुमा पक्का रास्ता शुरू हो जाता है ! चढ़ाई काफ़ी खड़ी है इसलिए बहुत जल्दी ही थकान महसूस होने लगती है! मंदिर जाने के रास्ते में कुछ स्थानीय लोग खाने-पीने का समान और मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद बेचते हैं! रास्ते में जगह-जगह लोगों के आराम करने के लिए व्यवस्था भी है। जो लोग पैदल जाने में समर्थ नहीं है उन लोगों के लिए यहाँ खच्चरों की व्यवस्था भी है। एक तरफ के रास्ते (चढ़ाई) का खच्चर पर अमूमन 400 रुपये का खर्च है।
कहां रुके
सुरकंडा या कद्दूखाल में रुकने की कोई बढिय़ा जगह नहीं। कद्दूखाल के पास कुछेक छोटे-बड़े गेस्टहाउस हैं, लेकिन कायदे की जगहें या तो धनौल्टी में हैं या फिर चंबा में। ज्यादातर सैलानी मसूरी में रुककर दिनभर के लिए सुरकंडा आने का कार्यक्रम बनाते हैं। मेरी सलाह में मसूरी में भीड़-भाड़ के बीच रुकने के बजाय धनौल्टी में रुकना बेहतर है। धनौल्टी व कद्दूखाल के बीच सड़क पर ही अच्छे रिजॉर्ट हैं और सस्ते गेस्टहाउस भी। वहां रुककर आसपास की जगहों को आसानी से घूमा जा सकता है। यह इलाका अपने सेब के बगीचों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। इसलिए भी मसूरी की तुलना में यह जगह ज्यादा सुकून देती है।
कैसे पहुंचे
सुरकंडा देवी के मंदिर के लिए कद्दूखाल से एक-डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है। कद्दूखाल उत्तराखंड में मसूरी-चंबा राजमार्ग पर धनौल्टी और चंबा के बीच स्थित एक छोटा सा गांव है। कद्दूखाल धनौल्टी से सात किलोमीटर दूर है और चंबा से 23 किलोमीटर। चंबा व मसूरी से यहां जाने के लिए कई साधन हैं जिनमें टैक्सी व बसें आसानी से मिल जाती हैं। मसूरी यहां से 34 किलोमीटर और देवप्रयाग 113 किलोमीटर दूर है
रोपवे
सुरकंडा मंदिर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को जल्द ही रोप-वे की सौगात भी मिलने जा रही है। पांच करोड़ की लागत से 600 मीटर लंबे रोपवे का निर्माण पर्यटन विभाग पब्लिक प्राइवेट पार्टनर (पीपीपी) मोड से कराएगा। निर्माणदायी कंपनी दो साल में इसका निर्माण पूरा कर देगी। मां सुरकंडा देवी के दर्शन को हर वर्ष दूर-दराज से सैकड़ों श्रद्धालू पहुंचते हैं। अब कद्दूखाल से देवी मंदिर को रोप-वे से जोडऩे के लिए शासन से मंजूरी मिल गई है। पांच करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले छह सौ मीटर लंबे रोपवे का निर्माण एक कंपनी करेगी, जो 30 साल तक इसका संचालन भी करेगी। तीन साल से सुरकंडा देवी मंदिर रोपवे प्रोजेक्ट फाइलों में कैद था। सिद्धपीठ सुरकंडा देवी को रोपवे से जोडऩे का प्रस्ताव पर्यटन विभाग ने वर्ष 2012 में तैयार किया था। संभवत जून माह में रोपवे का काम शुरू कर दिया जाएगा। रोपवे प्रोजेक्ट के बनने के बाद वहां पर रोपवे संचालन के लिए स्थानीय युवाओं को वरीयता दी जाएगी। पर्यटन विभाग ने इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया है। नॉन टैक्निकल कर्मचारियों के काम स्थानीय युवाओं से कराए जाएंगे। इस प्रोजेक्ट की खास बात ये है कि इसमें एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा। सिर्फ बड़े पेड़ों की लॉपिंग की जाएगी।
सुरकंडा देवी के मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली (वानस्पतिक नाम टेक्सस बकाटा) की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता।
आसपास
सुरकंडा देवी (कद्दूखाल) से महज सात किलोमीटर दूर धनौल्टी है। धनौल्टी एक पर्यटक केन्द्र के रूप में पिछले 10-12 सालों में विकसित हुआ है। महानगरों के भीड़ भरे कोलाहलपूर्ण एवं प्रदूषित वातावरण से दूर यहां की शीतल ठंडी हवाओं का साथ पर्यटकों को फिर तरोताजा बना देता है। यहां के ऊंचे पर्वतों व घने वनों का नैसगिर्क एवं सुरम्य वातावरण धनौल्टी का मुख्य आकर्षण है। यहां स्थित आकाश को छूते देवदार के वृक्ष किसी कवि की कल्पना से भी आकर्षक और धनौल्टी के आभूषण हैं। टिहरी-गढ़वाल जनपद के अंर्तगत आने वाला यह मनोरम पर्यटक केन्द्र समुद्र तट से लगभग 2300 मी. की ऊंचाई पर है। धनौल्टी को देखकर लगता है, जैसे प्रकृति ने अपनी छटा के सभी रंग इस क्षेत्र में बिखेर दिए हैं। जो पर्यटक मात्र प्रकृति की गोद में विचरण के उद्देश्य से कहीं घूमने जाते हैं, उनके लिए यह जगह स्वर्ग के समान है। आजादी से पहले तक धनौल्टी पर्यटन स्थल नहीं था। यहां टिहरी नरेश की इस्पेक्शन बिल्डिंग होती थी। सन् 1950 में टिहरी नरेश की रियासत के राज्य में सम्मिलित होने के बाद यह बिल्डिंग तहसील के रूप में कार्य करने लगी। धनौल्टी तहसील में नायब तहसीलदार के संरक्षण में सभी सरकारी कार्य होते हैं। सर्दियों में धनौल्टी में अत्यधिक ठंड और बर्फबारी होने की वजह से यह तहसील थत्यूड़ (ब्लाक मुख्यालय में स्थानांतरित हो जाती है। धनौल्टी में सरकारी कार्यालय के नाम पर तहसील के अतिरिक्त एक बैंक, एक छोटा पोस्ट ऑफिस और एक जूनियर हाईस्कूल ही हैं। इंटर कॉलिज यहां से चार कि.मी. दूर भवान में स्थित है। धनौल्टी की मूल आबादी मात्र 400-500 है। ये सभी गढ़वाली लोग हैं, जो आसपास के गांवों से यहां आकर बस गए हैं। प्रत्येक वर्ष ग्रीष्म ऋतु में लगभग 25-30 हजार से अधिक पर्यटक धनौल्टी में डेरा डालते हैं। धनौल्टी में ठहरने के स्थान बहुत सीमित होने की वजह से पर्यटकों को कई बार रात बिताने मसूरी वापस जाना पड़ता है।
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