तुर्की सरकार ने हागिया सोफ़िया को फिर से मसजिद में तब्दील कर देने के फैसले की दुनियाभर में हुई आलोचना के बाद यह सफाई देने की कोशिश की है कि इससे सैलानियों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तुर्की के संस्कृति मंत्रालय ने हागिया सोफ़िया का नियंत्रण आधिकारिक रूप से अब देश की सर्वोच्च धार्मिक सत्ता को सौंप दिया है। लेकिन साथ ही उसने यह आश्वासन भी देने की कोशिश की है कि सैलानी उसमें स्वतंत्र रूप से जा सकेंगे और उन्हें उसके लिए कोई भुगतान नहीं करना होगा। इस प्राचीन व ऐतिहासिक कैथेड्रल को मसजिद में परिवर्तित करने के लिए एक सहयोग समझौते पर देश के संस्कृति मंत्रालय और वहां के मज़हबी निदेशालय के बीच एक समझौते पर दस्तख़त किए गए हैं।
तुर्की के संस्कृति मंत्री मेहमत नूरी एरसोय ने उन तमाम चिंताओं को तवज्जो देने की कोशिश की है कि इस फैसले से पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने एक ट्विट में कहा कि “हागिया सोफ़िया मसजिद हमेशा की तरह स्थानीय व विदेशी सैलानियों के लिए खुली रहेगी और उन्हें इसके लिए कोई भुगतान नहीं देना होगा।” एरसोय का कहना था कि उन्हें भरोसा है अब इस जगह को देखने के लिए ज्यादा लोग आएंगे। न केवल देश से बल्कि पूरी दुनिया से लाखों लोग यहां इबादत के लिए आएंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि इस इमारत को पूरी हिफ़ाजत के साथ रखा जाएगा और मंत्रालय उसके पुनरुद्धार व संरक्षण के काम की निगरानी करेगा। मज़हबी निदेशालय वहां इबादत के काम की निगरानी करेगा। वह यह भी कहने से नहीं चूके कि हागिया सोफ़िया का कदन बहुत ऊंचा है और वह तुर्की के प्रयासों से ही यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में है।
हालांकि अभी यह खुलासा नहीं किया गया है कि क्या वहां जाने वाले सैलानियों के लिए किसी तरह के नए नियम बनेंगे। हालांकि यह कयास तो लगाया ही जा सकता है कि आगंतुकों को कपड़े पहनने पर ध्यान देना होगा, अपना अंग पूरा ढकना होगा और महिलाओं को सिर भी ढकना होगा। अभी यह भी पता नहीं है कि क्या आगंतुकों को अपने जूते उतारने होंगे या फिर मसजिद के कुछ हिस्से सैलानियों के लिए बंद कर दिए जाएंगे। अधिकारियों का यह भी वादा था कि इमारत के भीतर मौजूद ईसाई प्रतीक सलामत रखे जाएंगे, हालांकि उन्होंने यह साफ नहीं किया कि क्या उन्हें देखने की इजाजत आम लोगों को होगी। कई इतिहासकारों ने हागिया के भविष्य को लेकर चिंता जाहिर की है। उसके संरक्षण के साथ गहरे तौर पर जुड़ी रही ज़ेनेप आहुनबे ने एक इंटरव्यू में सवाल किया कि दीवारों पर मैडोना और अन्य संतों की मूर्तियों के साथ, या उनकी मौजूदगी में वे नमाज पढ़ेंगे?
हागिया सोफिया का निर्माण सन 537 में एक रोमन कैथोलिक चर्च के तौर पर हुआ था। बाद में जब तुर्कों ने कोंस्टेनटिनापोल शहर पर कब्जा कर लिया और उसे इस्तांबुल नाम दे दिया तो वह आयासोफिया नाम की मसजिद में तब्दील कर दी गई। फिर 1934 में तुर्की की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक सरकार ने उसे संग्रहालय में तब्दील करने का आदेश दे दिया। पिछले हफ्ते देश की शीर्ष अदालत ने 86 साल पुराने उस आदेश को गैरकानूनी बताते हुए खारिज कर दिया जिसका दुनियाभर में धर्मनिरपेक्ष व ईसाई संगठनों व लोगों ने कड़ा विरोध किया। कोर्ट के आदेश के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्डोगन ने इस बारे में शासनादेश जारी कर दिया।
बताया जाता है कि फिर से मसजिद बना दी गई इस इमारत में पहली नमाज 24 जुलाई को पढ़ी जाएगी। हागिया सोफिया तुर्की की सबसे ज्यादा देखे जाने वाली सांस्कृतिक जगह हुआ करती थी। यूनेस्को ने भी इस फैसले का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि इस जगह का काफी मजबूत प्रतीकात्मक व व्यापक महत्व है। फैसले से पहले ही तुर्की के राष्ट्रपति की इस बारे में मंशाओं का रूसी व ग्रीक चर्चों ने कड़ा विरोध किया था और कहा था कि इससे पूर्व व पश्चिम में भेद बढ़ेगा। अमेरिका ने भी इसे संग्रहालय ही बने रहने देने की वकालत की थी। हालांकि एर्डोगन ने लोगों की शंकाओं को यह कहते हुए शांत करने की कोशिश की थी कि यह जगह समूची इंसानियत की साझी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है और इस फैसले से यहां आने वाले किसी भी सैलानी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
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