जैसे ही मैं दक्षिण के मैकलोडगंज का शब्दचित्र बांधने लगी हूं, मेरी आंखों के आगे वही वैभवशाली भवन आकार लेने लगा है जिसे देखकर मेरे मुंह से एक ही शब्द निकला था.. वाह! और इसके साथ ही कानों में गूंजने लगी हैं मंत्रोच्चार की ध्वनियां.. जिन्हें सुनते ही मेरा सारा तनाव बह निकला और मुझे लगा कि मैं ध्यान के सागर में गोते लगा रही हूं। मैं एक ऐसी बस्ती की बात कर रही हूं जिसे भारत में तिब्बती विस्थापितों का दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना कहा जा सकता है बायलाकूपे है तो कर्नाटक के मैसूर जिले में, लेकिन मैसूर से यहां तक पहुंचने में करीब दो घंटे का वक्त लग जाता है। बहुत कम लोग होंगे जो मैसूर जाने के दौरान बायलाकूपे आते होंगे। अक्सर लोग जब कूर्ग घूमने जाते हैं, तब बायलाकूपे का रुख करते हैं। जब आप कूर्ग से मैसूर जाते हैं, तो कूर्ग के कुशलनगर से बाहर निकलते ही दाईं तरफ का मोड़ आपको पांच किलोमीटर के...
Read Moreउत्तर भारत में सालों बिताने के बाद मैं कई चीज़ें मुंबई में अक़्सर मिस करती हूं। जैसे उत्तरी भारत का खाना, और सर्दी का मौसम। मुंबई में ठंड न के बराबर होती है। इधर कुछ दिनों से उत्तरी भारत के दोस्तों से जब भी बात होती, वो कंपकंपाती सर्दी का राग अलापने लगते। अचानक ख़याल आया कि क्यों न हम भी किसी ठंडी जगह जाकर सर्द मौसम का मज़ा लें। बजट और समय का ध्यान भी रखना था, ऐसे में भला माथेरान से अच्छी जगह क्या हो सकती थी। बस, कुछ दोस्तों के साथ चल दिए हम माथेरान। मुंबई से हम माथेरान के लिए अलसुबह रवाना हुए। दादर स्टेशन से लोकल ट्रेन पकड़ 2 घंटे में हम नेरल जंक्शन पहुंच गए। नेरल माथेरान के लिए सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। नेरल में छोटी लाइन है जो माथेरान तक जाती है। स्टेशन से बाहर आने पर हमें एक लंबी क़तार दिखी। लाइन टॉय ट्रेन की टिकट के लिए थी। टॉय ट्रेन माथेरान का मुख्य आकर्षण है। छुक-छुक करती हु...
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