बनारस कहें या वाराणसी- या कहें काशी, शहर तो एक ही है। लेकिन, यह तीनों नाम एक ही शहर का परिचय अलग-अलग अंदाज़ में देते हैं। वाराणसी कहें तो मन में चित्र बन जाता है भगवान विश्वनाथ की नगरी का या दशाश्वमेध घाट की दुनिया भर में मशहूर संध्या आरती का। इस नगरी की बात ही खास है। पुरानेपन की शोभा समेटे यह आगे बढ़ने को आतुर नगरी है। काशी कहते ही लगता है हम एक बहुत पुराने स्थान की बात कर रहे हैं जिसका संबध सीधे भगवान राम के पूर्वज सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जीवन गाथा से जुड़ा है। यह नगरी सदियों से संस्कृति, शिक्षा, भारतीय वैदिक ग्रंथों के ज्ञान और इनसे जुड़े मुद्दों पर जांच-परख-रिसर्च और विकास का केंद्र रही है। बनारस में सूर्योदय का शानदार नजारा वहीं, बनारस कहते ही दिमाग में यहां के एक बीत गए युग की कहानी, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई, यहां के पान-ठंडाई-चाट-घाट और बनारसी साड़ियों की तस्वीर स...
Read Moreमध्य प्रदेश तो इतिहास, कला, स्थापत्य, शिल्प, परंपरा, प्राकृतिक सौंदर्य और वन्य जीव संरक्षण क्षेत्रों का खज़ाना है, लेकिन इस बार मेरा मन अटक गया महेश्वर पर। दिल्ली से इंडिगो की सवेरे 11 बजे की फ्लाइट ली और डेढ़ घंटे में आ पहुंचे हम इंदौर एयरपोर्ट पर। वहां पहले से ही बुक की हुई टैक्सी पकड़ी और चल पड़े सीधे महेश्वर की ओर। इंदौर नगर पार करते-करते कुछ भूख महसूस हुई तो ए.बी. रोड पर राजेंद्र नगर में ड्राइवर ने श्रीमाया सेलिब्रेशन रेस्टोरेंट के सामने गाड़ी को रोक दिया। घाट पर कुछ साधु बैरागी अलमस्त अपने में मग्न, तो कहीं स्नान करते श्रद्धालु और, उधर पश्चिम में सूर्य अपनी सुनहरी आभा के साथ विदा लेने की तैयारी में... महेश्वर का यह बहुत ही सुंदर नज़ारा था साफ़ और सुंदर, हरियाली से घिरे इस स्पेशियस रेस्टोरेंट में मल्टी-क्यूज़िन व्यंजन उपलब्ध हैं, और साथ में हैं चुस्त सेवा। मेन्यू देखिए, पेमेंट...
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