धरती के भी खेल बड़े निराले हैं। हम मिस्र में हजारों साल पहले बने इंसानों के बनाए पिरामिडों की बातें करते हैं और दूसरी तरफ कुदरत है कि किसी जगह पर एक खेल की तरह पिरामिड बनाती है और गिरा देती है और फिर बना डालती है। हम यहां बात कर रहे हैं इटली के साउथ टिरोल इलाके में प्रकृति के एक अजीब करिश्मे की। ये पिरामिड भी मिट्टी व पत्थर के ही बनते हैं, बस फर्क इतना है कि न उनका कोई पक्का नाप-जोख होता है और न ही उनके भीतर कुछ रखने या किसी को हजारों सालों तक लंबी नींद में सुलाने की कोई व्यवस्था होती है।
इन्हें हम पिरामिड कहते हैं तो इनके आकार के लिए जो नीचे से बड़ा और ऊपर जाते-जाते नुकीला हो जाता है। कहा जाता है कि ये असामान्य ढांचे उस मिट्टी से बनने शुरू हुए जो पिछले हिम युग के बाद ग्लेशियरों के पिघल जाने से पीछे रह गई थी। जब मौसम शुष्क होता है तो यह मिट्टी चट्टान जैसी सख्त हो जाती है, लेकिन जैसे ही बारिश होती है तो यह ढीली होकर नरम पड़ जाती है, सरकने लगती है और 10 से 15 मीटर के तीखे ढलान बना देती है। बारिश तेज होती है और ये ढलान बह जाते हैं।
लेकिन कुदरत का चमत्कार देखिए। यह हाल केवल उस मिट्टी का होता है जिसपर बारिश का पानी पड़ता है। इसी मिट्टी के ढलान में कई चट्टानें भी होती हैं और ये चट्टानें उनके नीचे छिपी मिट्टी को पानी से बचा लेती हैं, लिहाजा उन चट्टानों के नीचे की मिट्टी जस की तस रहती है। अब इसमें करिश्मा यह होता है कि जब अगल-बगल की मिट्टी पानी से बह जाती है, तो चट्टानों के नीचे मिट्टी के खंबे जैसे खड़े हो जाते हैं, नीचे से थोड़े मोटे और ऊपर से नुकीले खंबे जिनके ऊपर भारी-भरकम चट्टानें तक टिकी रहती हैं- ऐसे, मानो खंबों को किसी ने टोपी पहना दी हो। सतह से बीसियों फुट ऊपर तक खड़े ये खंबे ही हमारी पृथ्वी के पिरामिड हैं। लेकिन यह सब किसी एक बारिश में या एक मौसम में नहीं हो जाता। यह एक सतत प्रक्रिया है और इस तरह के प्राकृतिक पिरामिड बनने में सैकड़ों या हजारों साल तक का वक्त लग जाता है। ये खंबे या पिरामिड भी धीरे-धीरे ढह जाते हैं, लेकिन इन्हें ढहने में आसपास की बाकी जमीन की तुलना में ज्यादा वक्त लगता है। एक वक्त ऐसा आएगा जब इस खंबे की भी मिट्टी इतनी बह जाएगी कि उसका ढांचा उसकी चोटी पर रखी हुई चट्टान का भार नहीं सह पाएगा और तब यह खंबा भरभरा के ढह जाएगा। है न, कुदरत का कमाल।
प्रकृति ने भी यह करिश्मा हर जगह नहीं किया है। जाहिर है कि खास आबो-हवा और खास सतह ही इस संरचना के लिए अनुकूल होती होगी। यह उसी जगह पर होगा जहां पहले कभी बर्फीले ग्लेशियर रहे होंगे। इटली के दक्षिणी टाइरोल इलाके में ही आपको ये देखने को मिलेंगे और वहां यह काफी बड़े इलाके में फैले हुए हैं। सबसे बढिय़ा पिरामिड उत्तर इटली में बोजेन से थोड़ी दूर रिट्टेन के पठार में देखने को मिल जाते हैं। कहा जाता है कि वहां कभी एक विशाल बर्फीला ग्लेशियर था और उससे निकलते कई छोटे ग्लेशियर भी थे। हिम युग के बाद ग्लेशियर पिघले तो पीछे खास तरह की मिट्टी छोड़ गए। वहां अब 30 मीटर तक की ऊंचाई के प्राकृतिक पिरामिड मौजूद हैं।
ये यूरोप में सबसे ऊंचे और सबसे गठीले आकार के प्राकृतिक पिरामिड माने जाते हैं। इसी तरह पस्टर घाटी में परछा के निकट प्लाटेन में अर्थ पिरामिड देखने को मिल जाते हैं। यह इलाका समुद्र तल से 1550 से 1750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। दक्षिण टाइरोल के कुछ अन्य इलाकों में भी इस तररह के पिरामिड हैं। बोजेन से रिट्टेन केबल कार में बैठकर अगर आप ओबरबोजेन जाएंगे तो रास्ते में आपको इन पृथ्वी पिरामिडों का नजारा देखने को मिल जाएगा। रिट्टेन के पिरामिड इतने खूबसूरत इसलिए भी हैं क्योंकि वे एक खास तरह की आबोहवा में हैं। वहां तीखा ढलान है जो हवा के बहाव से बचा रहता है। इसके अलावा वहां के मौसम में भारी बारिश व फिर बड़े सूखे का क्रम बारी-बारी से चलता रहता है। इससे पुराने पिरामिड गिरने और नए पिरामिड बनने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। वाकई अगर आपको आंखों पर पट्टी बांधकर अचानक से इन पिरामिडों के बीच में लाकर खड़ा कर दिया जाए तो आपको लगेगा मानो आप किसी और ग्रह पर पहुंच गए हैं। दिन के अलग-अलग समय में और साल के अलग-अलग महीनों में इनका रंग भी अलग-अलग सा दिखता है।
देखें नजदीक से: इन पिरामिडों को नजदीक से देखा जा सकता है। लेंगमूस में कार पार्किंग से दस मिनट के रास्ते पर एक प्लेटफॉर्म बना है जहां से इन्हें देखा जा सकता है। बोजेन से केबल कार के जरिये या रिट्टेन की आकर्षक छोटी लाइन की रेलगाड़ी के जरिये आप इस जगह तक पहुंच सकते हैं जहां से पिरामिडों की तरफ जाने के लिए आसान पैदल रास्ते बने हुए हैं।
अब आप इन पिरामिड को देखकर कुदरत की कारीगरी को सलाह तो सकते हैं लेकिन उन्हें छू नहीं सकते। आखिर जरा सी गलती से आप ऊपर से चट्टान को गिरा सकते हैं और इस तरह से पृथ्वी की सैकड़ों या हजारों साल की मेहनत को खराब कर सकते हैं।
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